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आधुनिक समय में भी एक कालखण्ड ऐसा आया जब कन्या भ्रूण हत्या की मात्रा बढ गई । यह चिन्तित कर देने वाला मामला अवश्य था । हमारी यह भी धारणा बनी है कि हम लडकों को ही पढाते हैं, लडकियों को नहीं । इसका उपाय करने के प्रयास होने लगे । सरकार की ओर से अनेक प्रयास हुए । उनमें से यह “बेटी बचाओ बेटी पढाओ' सूत्र आया ।
 
आधुनिक समय में भी एक कालखण्ड ऐसा आया जब कन्या भ्रूण हत्या की मात्रा बढ गई । यह चिन्तित कर देने वाला मामला अवश्य था । हमारी यह भी धारणा बनी है कि हम लडकों को ही पढाते हैं, लडकियों को नहीं । इसका उपाय करने के प्रयास होने लगे । सरकार की ओर से अनेक प्रयास हुए । उनमें से यह “बेटी बचाओ बेटी पढाओ' सूत्र आया ।
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आज समाज में यह सूत्र तो स्वीकृत हो गया है परन्तु हम करते क्या हैं ? हम कहने लगे हैं कि हमारे लिये बेटी और बेटा समान है । परन्तु हम बेटी को बेटी के रूप में नहीं स्वीकार कर रहे हैं, बेटी को बेटा बना रहे हैं । अनजान में भी हम बेटी के साथ बेटे जैसा व्यवहार कर रहे हैं । छोटी बेटी को हम लडके की तरह बुलाते हैं । उसके कपडे उसके खेल, उसकी गतिविधियाँ सब लडके जैसी ही हों ऐसा हम चाहते हैं ।
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आज समाज में यह सूत्र तो स्वीकृत हो गया है परन्तु हम करते क्या हैं ? हम कहने लगे हैं कि हमारे लिये बेटी और बेटा समान है । परन्तु हम बेटी को बेटी के रूप में नहीं स्वीकार कर रहे हैं, बेटी को बेटा बना रहे हैं । अनजान में भी हम बेटी के साथ बेटे जैसा व्यवहार कर रहे हैं । छोटी बेटी को हम लडके की तरह बुलाते हैं । उसके कपड़े उसके खेल, उसकी गतिविधियाँ सब लडके जैसी ही हों ऐसा हम चाहते हैं ।
    
परीक्षा करके देखें । बेटा और बेटी समान हैं तो बेटे को बेटी की तरह बुलायेंगे ? बेटे को बेटी का वेश पहनायेंगे ? लडकियों के खेल दोनों खेलेंगे ? कभी नहीं । लडके की माता और बहन भी ऐसा करना पसन्द नहीं करेंगी । फिर बेटी को बेटे जैसा क्यों बनाना है ? अर्थात्‌ हमारा बालक बेटी के रूप में भले हीं हो हम उसे बेटे की तरह पालेंगे ।
 
परीक्षा करके देखें । बेटा और बेटी समान हैं तो बेटे को बेटी की तरह बुलायेंगे ? बेटे को बेटी का वेश पहनायेंगे ? लडकियों के खेल दोनों खेलेंगे ? कभी नहीं । लडके की माता और बहन भी ऐसा करना पसन्द नहीं करेंगी । फिर बेटी को बेटे जैसा क्यों बनाना है ? अर्थात्‌ हमारा बालक बेटी के रूप में भले हीं हो हम उसे बेटे की तरह पालेंगे ।
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हम स्त्रीपुरुष समान मानते हैं परन्तु पुरुष के साथ समानता प्राप्त करने के लिये स्त्री को पुरुष जैसा बनना पडता है । स्त्री ख्री रहकर पुरुष के समान नहीं बन सकती यही तो स्त्री की अवमानना है ।
 
हम स्त्रीपुरुष समान मानते हैं परन्तु पुरुष के साथ समानता प्राप्त करने के लिये स्त्री को पुरुष जैसा बनना पडता है । स्त्री ख्री रहकर पुरुष के समान नहीं बन सकती यही तो स्त्री की अवमानना है ।
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क्या आगे चलकर हम यह करना चाहते हैं कि बेटी विवाह के बाद ससुराल न जाये ? क्योंकि पुरुष जैसा ही बनना है तो वही करना पडेगा । पुरुष ससुराल नहीं जाता तो स्त्री क्यों जाय ? आज अब लडकियाँ अपना ही घर बसाना चाहती हैं, ससुराल उसका घर नहीं होता ।
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क्या आगे चलकर हम यह करना चाहते हैं कि बेटी विवाह के बाद ससुराल न जाये ? क्योंकि पुरुष जैसा ही बनना है तो वही करना पड़ेगा । पुरुष ससुराल नहीं जाता तो स्त्री क्यों जाय ? आज अब लडकियाँ अपना ही घर बसाना चाहती हैं, ससुराल उसका घर नहीं होता ।
    
इसलिये बेटी बचाओ बेटी पढाओ का सूत्र ठीक से समझकर बेटी को बेटी बनाने की ओर बेटे को बेटा
 
इसलिये बेटी बचाओ बेटी पढाओ का सूत्र ठीक से समझकर बेटी को बेटी बनाने की ओर बेटे को बेटा
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एक अभिभावक का प्रश्न
 
एक अभिभावक का प्रश्न
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आपकी बात ठीक है । उत्पादकों के साथ स्पर्धा में गये तो टिकना असम्भव है । इसलिये विद्यालय के शिक्षक, संचालक और अभिभावकों ने मिलकर उत्पादन, वितरण और निवेश की योजना बनानी चाहिये । उत्पादन के लिये सुरक्षित बाजार निर्माण करना चाहिये । विद्यार्थियों को उत्पादन करना सिखाना इसका मुख्य उद्देश्य है परन्तु उत्पादन की खपत को कुछ समय के लिये सुरक्षित करना होगा । धीरे धीरे बाजार खुला हो जायेगा । परन्तु उत्पादन फिर यन्त्रों के बडे पैमाने पर होने वाले उत्पादनों के साथ स्पर्धा में जा पडे ऐसी स्थिति नहीं निर्माण करनी चाहिये । उत्पादन के अनेक नैतिक नियमों की चर्चा ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
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आपकी बात ठीक है । उत्पादकों के साथ स्पर्धा में गये तो टिकना असम्भव है । इसलिये विद्यालय के शिक्षक, संचालक और अभिभावकों ने मिलकर उत्पादन, वितरण और निवेश की योजना बनानी चाहिये । उत्पादन के लिये सुरक्षित बाजार निर्माण करना चाहिये । विद्यार्थियों को उत्पादन करना सिखाना इसका मुख्य उद्देश्य है परन्तु उत्पादन की खपत को कुछ समय के लिये सुरक्षित करना होगा । धीरे धीरे बाजार खुला हो जायेगा । परन्तु उत्पादन फिर यन्त्रों के बडे पैमाने पर होने वाले उत्पादनों के साथ स्पर्धा में जा पड़े ऐसी स्थिति नहीं निर्माण करनी चाहिये । उत्पादन के अनेक नैतिक नियमों की चर्चा ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
    
'''प्रश्न २६ भाषा प्रभुत्व के लिये पुस्तक पढने को आप कितना महत्त्व देते हैं ?'''
 
'''प्रश्न २६ भाषा प्रभुत्व के लिये पुस्तक पढने को आप कितना महत्त्व देते हैं ?'''
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भारत में धार्मिक शिक्षा होनी चाहिये इतना यदि हमने स्वीकर कर लिया तो सारी की सारी बातें परिवर्तनीय हैं यह
 
भारत में धार्मिक शिक्षा होनी चाहिये इतना यदि हमने स्वीकर कर लिया तो सारी की सारी बातें परिवर्तनीय हैं यह
भी मानना ही पडेगा
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भी मानना ही पड़ेगा
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हमें यदि भोपाल से कन्याकुमारी जाना है परन्तु दिल्ली जाने वाली गाडी में बैठ गये हैं तो कोच बदलना, बैठक बदलना, नास्ते के पदार्थ बदलना आदि से काम नहीं चलेगा । हमें गाडी ही बदलनी होगी, इतना ही नहीं तो उल्टी दिशा में जाने वाली गाडी में ही बैठना पडेगा
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हमें यदि भोपाल से कन्याकुमारी जाना है परन्तु दिल्ली जाने वाली गाडी में बैठ गये हैं तो कोच बदलना, बैठक बदलना, नास्ते के पदार्थ बदलना आदि से काम नहीं चलेगा । हमें गाडी ही बदलनी होगी, इतना ही नहीं तो उल्टी दिशा में जाने वाली गाडी में ही बैठना पड़ेगा
    
हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना
 
हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना
पडेगा । इसी प्रकार यदि धार्मिक शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।  
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पड़ेगा । इसी प्रकार यदि धार्मिक शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।  
    
'''प्रश्न ४० सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ?'''
 
'''प्रश्न ४० सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ?'''
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४. प्रतिदिन एक घंटा घर का कोई भी काम जिम्मेदारी से करना।  
 
४. प्रतिदिन एक घंटा घर का कोई भी काम जिम्मेदारी से करना।  
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५. सूती कपडे पहनना।  
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५. सूती कपड़े पहनना।  
    
'''प्रश्न ५५ ऐसी पाँच बातें बताइयें जो हमें माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों से अनिवार्य रूप से करवानी चाहिये ।'''
 
'''प्रश्न ५५ ऐसी पाँच बातें बताइयें जो हमें माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों से अनिवार्य रूप से करवानी चाहिये ।'''

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