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४२. परिवारों में विवाह विषयक संकट बढ गये हैं उन पर भी उचित पद्धति से पुनर्विचार करना होगा । बडी आयु में विवाह होना व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में अस्थिरता और असन्तुलन पैदा करती है ।
 
४२. परिवारों में विवाह विषयक संकट बढ गये हैं उन पर भी उचित पद्धति से पुनर्विचार करना होगा । बडी आयु में विवाह होना व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में अस्थिरता और असन्तुलन पैदा करती है ।
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४३. आज नौकरी अथर्जिन का प्रचलित साधन बन गई है। नहीं बिकने योग्य वस्तुयें बिकने लगी हैं । बडे बडे उद्योगों में उत्पादन का केन्द्रीकरण हो रहा है । मनुष्य और प्रकृति के स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं रही है । अथर्जिन हेतु न्यायनीति का विचार करने की भी आवश्यकता नहीं लगती है । भ्रष्टाचार सामान्य बन गया है । मनुष्य स्वतन्त्रता और स्वमान खो चुका है। समाज दरिद्रि बन रहा है। आर्थिक और सांस्कृतिक अधःपतन के इस काल में परिवार को ही स्वायत्त बनने की पहल करनी होगी |
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४३. आज नौकरी अर्थार्जन का प्रचलित साधन बन गई है। नहीं बिकने योग्य वस्तुयें बिकने लगी हैं । बडे बडे उद्योगों में उत्पादन का केन्द्रीकरण हो रहा है । मनुष्य और प्रकृति के स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं रही है । अर्थार्जन हेतु न्यायनीति का विचार करने की भी आवश्यकता नहीं लगती है । भ्रष्टाचार सामान्य बन गया है । मनुष्य स्वतन्त्रता और स्वमान खो चुका है। समाज दरिद्रि बन रहा है। आर्थिक और सांस्कृतिक अधःपतन के इस काल में परिवार को ही स्वायत्त बनने की पहल करनी होगी |
    
४४. जिसमें अन्य लोगों की रोजी छिन जाती हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । जिसमें स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश होता हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । संस्कारों की हानि होती हो ऐसा व्यवसाय भी नहीं करना चाहिये ।
 
४४. जिसमें अन्य लोगों की रोजी छिन जाती हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । जिसमें स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश होता हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । संस्कारों की हानि होती हो ऐसा व्यवसाय भी नहीं करना चाहिये ।
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६०. परिवार में किसी सदस्य के स्खलन की घटना भी घटती है । कभी किसी को व्यसन लग जाता है । बुरी आदत पनपती है । तब विवेकपूर्ण व्यवहार की आवश्यकता होती है । दोष यदि व्यक्तिगत स्तर पर है तो उसे दूर करने में कडाई, परामर्श, सहानुभूति आदि का प्रयोग कर उसे दूर करना चाहिये । परिवार के अन्दर ही एकदूसरे के प्रति क्षमाशीलता और उदारता का भी पुट होना चाहिये |
 
६०. परिवार में किसी सदस्य के स्खलन की घटना भी घटती है । कभी किसी को व्यसन लग जाता है । बुरी आदत पनपती है । तब विवेकपूर्ण व्यवहार की आवश्यकता होती है । दोष यदि व्यक्तिगत स्तर पर है तो उसे दूर करने में कडाई, परामर्श, सहानुभूति आदि का प्रयोग कर उसे दूर करना चाहिये । परिवार के अन्दर ही एकदूसरे के प्रति क्षमाशीलता और उदारता का भी पुट होना चाहिये |
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६१. परिवार में अथर्जिन भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य है । यह अब व्यक्तिगत विषय बन गया है। इसे पुनः पारिवारिक विषय बनाना चाहिये । पूरा परिवार मिलकर व्यवसाय करे यह अनेक प्रकार से लाभदायी है । परिवार का एकत्व बना रहता है यह सबसे बडा लाभ है।
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६१. परिवार में अर्थार्जन भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य है । यह अब व्यक्तिगत विषय बन गया है। इसे पुनः पारिवारिक विषय बनाना चाहिये । पूरा परिवार मिलकर व्यवसाय करे यह अनेक प्रकार से लाभदायी है । परिवार का एकत्व बना रहता है यह सबसे बडा लाभ है।
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६२. नई पीढी की आथर्जिन हेतु नौकरी की तलाश में भटकने की समस्या नहीं रहती । जन्म के साथ ही उसका अधथर्जिन सुरक्षित हो जाता है। साथ ही व्यवसाय के ही वातावरण में पलने के कारण अथर्जिन हेतु व्यवसाय की शिक्षा भी शुरु हो जाती
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६२. नई पीढी की आथर्जिन हेतु नौकरी की तलाश में भटकने की समस्या नहीं रहती । जन्म के साथ ही उसका अधथर्जिन सुरक्षित हो जाता है। साथ ही व्यवसाय के ही वातावरण में पलने के कारण अर्थार्जन हेतु व्यवसाय की शिक्षा भी शुरु हो जाती
    
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९२. परिवार में देशभक्ति की भावना के संस्कार मिलने चाहिये । उपभोग की सर्वसामग्री स्वदेशी हो इसका आग्रह रहना चाहिये । सस्ती है, सुन्दर है, सुलभ है, सुविधायुक्त है इसलिये विदेशी वस्तु खरीद सकते हैं यह अनुचित सिद्धान्त है ।
 
९२. परिवार में देशभक्ति की भावना के संस्कार मिलने चाहिये । उपभोग की सर्वसामग्री स्वदेशी हो इसका आग्रह रहना चाहिये । सस्ती है, सुन्दर है, सुलभ है, सुविधायुक्त है इसलिये विदेशी वस्तु खरीद सकते हैं यह अनुचित सिद्धान्त है ।
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९२. युवा पीढ़ी की उद्दण्डता परिवार में शिक्षा नहीं मिलने का ही परिणाम है । इस दृष्टि से बच्चों का संगोपन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है । इस दृष्टि से मातापिता और सन्तानें अधिक से अधिक साथ साथ जी सकें ऐसी परिवार की जीवनचर्या बननी चाहिये । आज की तरह बडे अथर्जिन के लिये और छोटे पढाई के लिये दिन का अधिकांश समय घर से बाहर और एकदूसरे से दूर ही रहता हो तब यह मामला बहुत कठिन हो जाता है ।
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९२. युवा पीढ़ी की उद्दण्डता परिवार में शिक्षा नहीं मिलने का ही परिणाम है । इस दृष्टि से बच्चों का संगोपन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है । इस दृष्टि से मातापिता और सन्तानें अधिक से अधिक साथ साथ जी सकें ऐसी परिवार की जीवनचर्या बननी चाहिये । आज की तरह बडे अर्थार्जन के लिये और छोटे पढाई के लिये दिन का अधिकांश समय घर से बाहर और एकदूसरे से दूर ही रहता हो तब यह मामला बहुत कठिन हो जाता है ।
    
९३. परिवार को सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि समाज में अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथनारी संरक्षण गृह आदि संस्थायें न पनपे । बेरोजगारी, अनाथों, बच्चों, विधवाओं, वृद्धों को पेन्शन देने की सरकारी
 
९३. परिवार को सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि समाज में अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथनारी संरक्षण गृह आदि संस्थायें न पनपे । बेरोजगारी, अनाथों, बच्चों, विधवाओं, वृद्धों को पेन्शन देने की सरकारी
    
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