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प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में ही बस्ते के बोझ की समस्या है। जैसे ही विद्यार्थी महाविद्यालय में आते हैं, उन्हें बस्ते की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रगत अध्ययन करने वाले अनेक विद्यार्थी छात्रावास में रहते हैं। उन्हें बस्ता उठाना नहीं पड़ता। अधिकांश विद्यार्थी ऐसे हैं जो कम से कम पुस्तकें और लेखन सामग्री लेकर महाविद्यालय में जाते हैं। हाँ, इधर टेबलेट या लेपटॉप ले जाने लगे हैं ।
 
प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में ही बस्ते के बोझ की समस्या है। जैसे ही विद्यार्थी महाविद्यालय में आते हैं, उन्हें बस्ते की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रगत अध्ययन करने वाले अनेक विद्यार्थी छात्रावास में रहते हैं। उन्हें बस्ता उठाना नहीं पड़ता। अधिकांश विद्यार्थी ऐसे हैं जो कम से कम पुस्तकें और लेखन सामग्री लेकर महाविद्यालय में जाते हैं। हाँ, इधर टेबलेट या लेपटॉप ले जाने लगे हैं ।
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प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थी तो अपना बस्ता उठा भी नहीं सकते, ऐसा भारी होता है । इसके उपाय के रूप में लोग क्या करते हैं ? बच्चों की मातायें बस्ता उठाकर वाहन तक छोड़ने के लिये जाती हैं। कई विद्यालयों में बस्ता रखने की व्यवस्था की जाती है । वहाँ पुस्तकों और लेखन सामग्री के दो संच रखे जाते हैं । एक विद्यालय के लिये और दूसरा घर के लिये । इसमें सुविधा होती है, परन्तु खर्च बढ़ता है । आश्चर्य इस बात का है कि आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी भी अपना पूरा बस्ता लेकर विद्यालय जाते हैं ।
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प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थी तो अपना बस्ता उठा भी नहीं सकते, ऐसा भारी होता है । इसके उपाय के रूप में लोग क्या करते हैं ? बच्चोंं की मातायें बस्ता उठाकर वाहन तक छोड़ने के लिये जाती हैं। कई विद्यालयों में बस्ता रखने की व्यवस्था की जाती है । वहाँ पुस्तकों और लेखन सामग्री के दो संच रखे जाते हैं । एक विद्यालय के लिये और दूसरा घर के लिये । इसमें सुविधा होती है, परन्तु खर्च बढ़ता है । आश्चर्य इस बात का है कि आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी भी अपना पूरा बस्ता लेकर विद्यालय जाते हैं ।
    
==== बस्ते के सम्बन्ध में विचारणीय बातें ====
 
==== बस्ते के सम्बन्ध में विचारणीय बातें ====
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==== अभिमत : ====
 
==== अभिमत : ====
धार्मिक शिक्षा पद्धति की विस्मृति के कारण प्राथमिक विद्यालयों में स्लेट पेंसिल को छोड़कर अन्य साधन-सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती यह बात हमें समझ में ही नहीं आती । इसके विपरीत विद्यालय में क्या पढ़ाया और घर पर क्या गृहकार्य किया इसकी ओर ही सारा ध्यान रहता है। अतः शिशुवाटिका से ही कॉपी- किताबों का बोझ बच्चों को सहना पड़ता है । वास्तव में अभिभावक और शिक्षक के परस्पर विश्वास और सहयोग से ही बालक की शिक्षा एवं विकास संभव होता है । स्लेट का उपयोग करके पर्यावरण की अपरिमित हानि हम रोक सकते हैं । 'शिक्षक' रूपी चेतनायुक्त मार्गदर्शक होते हुए भी विषयों की गाइडबुक उपयोग में लानी पड़े यह विपरीत विचार ही है । माध्यमिक विद्यालयों में ओडियो-वीडियों सीडीज़ कुछ मात्रा में उपयोगी होते हैं। परन्तु उसमें ज्ञानार्जन का प्रमाण कम और मनोरंजन का प्रमाण अधिक होता है । संगणक, केलक्युलेटर आदि उच्च शिक्षा में उपयोगी हो सकते हैं, अन्यत्र हानिकारक ही होते हैं । विवेक जाग्रत होने से पहले इन साधनों का उपयोग करने से विकास नहीं विनाश की ही अधिक सम्भावना है।
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धार्मिक शिक्षा पद्धति की विस्मृति के कारण प्राथमिक विद्यालयों में स्लेट पेंसिल को छोड़कर अन्य साधन-सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती यह बात हमें समझ में ही नहीं आती । इसके विपरीत विद्यालय में क्या पढ़ाया और घर पर क्या गृहकार्य किया इसकी ओर ही सारा ध्यान रहता है। अतः शिशुवाटिका से ही कॉपी- किताबों का बोझ बच्चोंं को सहना पड़ता है । वास्तव में अभिभावक और शिक्षक के परस्पर विश्वास और सहयोग से ही बालक की शिक्षा एवं विकास संभव होता है । स्लेट का उपयोग करके पर्यावरण की अपरिमित हानि हम रोक सकते हैं । 'शिक्षक' रूपी चेतनायुक्त मार्गदर्शक होते हुए भी विषयों की गाइडबुक उपयोग में लानी पड़े यह विपरीत विचार ही है । माध्यमिक विद्यालयों में ओडियो-वीडियों सीडीज़ कुछ मात्रा में उपयोगी होते हैं। परन्तु उसमें ज्ञानार्जन का प्रमाण कम और मनोरंजन का प्रमाण अधिक होता है । संगणक, केलक्युलेटर आदि उच्च शिक्षा में उपयोगी हो सकते हैं, अन्यत्र हानिकारक ही होते हैं । विवेक जाग्रत होने से पहले इन साधनों का उपयोग करने से विकास नहीं विनाश की ही अधिक सम्भावना है।
    
इसका अर्थ यह नहीं है कि धार्मिक शिक्षा पद्धति में शैक्षिक साधन-सामग्री के लिए कोई स्थान ही नहीं है । स्थान है, परन्तु वह विषय सापेक्ष है । यथा संगीत सीखना है तो तानपुरा, हार्मानियम, तबला आवश्यक है । जबकि निरर्थक साधन-सामग्री का उपयोग वर्जित है। होना तो यह चाहिए कि ईश्वर प्रदत्त साधन ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों  का विकास करें, उन्हें सक्षम बनायें और उपकरणों का उपयोग कम से कम करें । यही श्रेष्ठ धार्मिक विचार है । महँगे साधनों का उपयोग करके ही हमने शिक्षा को महँगी बना दी है । विद्यालय आरम्भ होने से पहले ही कॉपी-किताब, बस्ता, गणवेश आदि साधन-सामग्री का व्यवसाय आरम्भ हो जाता है और लाखों रूपयों का व्यवहार होता है। कुछ भी हो यह अनुभव सिद्ध है कि साधन-सामग्री कभी भी शिक्षक का विकल्प नहीं बन सकती ।
 
इसका अर्थ यह नहीं है कि धार्मिक शिक्षा पद्धति में शैक्षिक साधन-सामग्री के लिए कोई स्थान ही नहीं है । स्थान है, परन्तु वह विषय सापेक्ष है । यथा संगीत सीखना है तो तानपुरा, हार्मानियम, तबला आवश्यक है । जबकि निरर्थक साधन-सामग्री का उपयोग वर्जित है। होना तो यह चाहिए कि ईश्वर प्रदत्त साधन ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों  का विकास करें, उन्हें सक्षम बनायें और उपकरणों का उपयोग कम से कम करें । यही श्रेष्ठ धार्मिक विचार है । महँगे साधनों का उपयोग करके ही हमने शिक्षा को महँगी बना दी है । विद्यालय आरम्भ होने से पहले ही कॉपी-किताब, बस्ता, गणवेश आदि साधन-सामग्री का व्यवसाय आरम्भ हो जाता है और लाखों रूपयों का व्यवहार होता है। कुछ भी हो यह अनुभव सिद्ध है कि साधन-सामग्री कभी भी शिक्षक का विकल्प नहीं बन सकती ।
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===== पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा =====
 
===== पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा =====
इसमें पक्षियों को दाना डालना एवं उनकी की हुई अस्वच्छता स्वच्छ करना - ये दो प्रकार के काम होंगे। विद्यालय के ५-६ बच्चों का समूह प्रार्थना में न बैठे, उस समय यह काम करे। एक सप्ताह के बाद समूह बदलेगा काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा चावल) । पक्षियों द्वारा की हुई गंदगी साफ करना ।
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इसमें पक्षियों को दाना डालना एवं उनकी की हुई अस्वच्छता स्वच्छ करना - ये दो प्रकार के काम होंगे। विद्यालय के ५-६ बच्चोंं का समूह प्रार्थना में न बैठे, उस समय यह काम करे। एक सप्ताह के बाद समूह बदलेगा काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा चावल) । पक्षियों द्वारा की हुई गंदगी साफ करना ।
    
====== शैक्षिक मूल्य ======
 
====== शैक्षिक मूल्य ======
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====== उपाय ======
 
====== उपाय ======
शान्त बैठकर प्रार्थना करना और पक्षी की सेवा करना दोनों समान ही है, यह विचार करना । बच्चों को इस का अर्थ समझाना, यह भी महत्वपूर्ण शिक्षा है इस बात को ध्यान में रखना ।
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शान्त बैठकर प्रार्थना करना और पक्षी की सेवा करना दोनों समान ही है, यह विचार करना । बच्चोंं को इस का अर्थ समझाना, यह भी महत्वपूर्ण शिक्षा है इस बात को ध्यान में रखना ।
    
===== वृक्ष वनस्पति सेवा =====
 
===== वृक्ष वनस्पति सेवा =====

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