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== गुरुगृहवास ==
 
== गुरुगृहवास ==
गुरुकुल में अध्ययन करने हेतु छात्रों को गुरुकुल में
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गुरुकुल में अध्ययन करने हेतु छात्रों को गुरुकुल में रहना है अर्थात्‌ गुरुगृहवास करना है । इसका अर्थ यह है कि गुरुकुल यह गुरु का परिवार है और छात्र परिवार के सदस्य के रूप में वहाँ रहता है । इसके कई संकेत हैं । कुछ मुख्य इस प्रकार हैं:
 
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* जब तक छात्र गुरुकुल में रहता है तब तक वह अपने मूल परिवार का नहीं अपितु गुरु के परिवार का सदस्य है । गुरु उसके पिता, गुरु पत्नी माता एवं अन्य छात्र गुरु बंधु हैं । छात्र गुरु का मानसपुत्र है । गुरुकुल में प्रवेश के समय गुरु संस्कार करने के बाद ही छात्र को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार करते हैं । यह उपनयन संस्कार है । अब छात्र को अपने कुल की नहीं अपितु गुरु के कुल की रीति का पालन करना है, उसके कुल के आचार धर्म का पालन करना है । उदाहरण के लिये क्षत्रिय राजकुमार भी गुरुकुल में राजकुल की रीति से नहीं रहता है, ब्रह्मचारी बनकर गुरुकुल वेश धारण करता है, श्रम और तपश्चर्या करता है, भूमि पर सोता है, भिक्षाटन करता है, एक सामान्य व्यक्ति बनकर रहता है ।
रहना है अर्थात्‌ गुरुगृहवास करना है । इसका अर्थ यह है
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* गुरुगृहवास का और एक संकेत यह है कि यहाँ केवल पढ़ना नहीं है, यहाँ जीवन जीना है। यह चौबीस घण्टे का विद्यालय है, जहाँ खाना, सोना, काम करना, पढ़ना सब पढ़ाई के अन्तर्गत ही होते हैं । दिनचर्या, ऋतूचर्या, जीवनचर्या अध्ययन के महत्त्वपूर्ण अंग हैं । परिवार चलाने के सारे कामकाज करना भी अध्ययन का अंग है । सेवा, अतिथि सत्कार, साफ सफाई, भोजन बनाना या भोजन बनाने में सहयोग करना, शिष्टाचार सीखना, गुणसंपादन करना, कौशल प्राप्त करना ये सब अध्ययन के ही अंग हैं। अर्थात्‌ यह निरन्तर अध्ययन की प्रक्रिया है । अध्यापन पद्धति के स्थान पर अध्ययन पद्धति (learning methodology) की दृष्टि से देखें तो यह सीखने की उत्तम पद्धति है और इसी के अनुसरण में अध्यापन की भी उत्तम पद्धति है । एक, इसमें कृत्रिमता या पढ़ने पढ़ाने वाले के बीच दूरत्व नहीं रहता । दूसरा, यह समग्रता में शिक्षा होती है । तीसरा यह अत्यन्त सहजता से होती है । छात्र विद्यालय और घर, शिक्षक और अभिभावक के बीच बँटा हुआ नहीं रहता, न सांसारिक जीवन के अन्य व्यवधानों से शिक्षा बाधित होती है ।
 
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कि गुरुकुल यह गुरु का परिवार है और छात्र परिवार के
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सदस्य के रूप में वहाँ रहता है । इसके कई संकेत हैं । कुछ
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मुख्य इस प्रकार हैं -
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०... जब तक छात्र गुरुकुल में रहता है तब तक वह अपने
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मूल परिवार का नहीं अपितु गुरु के परिवार का
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सदस्य है । गुरु उसके पिता, गुरु पत्नी माता एवं
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अन्य छात्र गुरु बंधु हैं । छात्र गुरु का मानसपुत्र है ।
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ही छात्र को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार करते हैं ।
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यह उपनयन संस्कार है । अब छात्र को अपने कुल
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की नहीं अपितु गुरु के कुल की रीति का पालन
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करना है, उसके कुल के आचार धर्म का पालन
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करना है । उदाहरण के लिये क्षत्रिय राजकुमार भी
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गुरुकुल में राजकुल की रीति से नहीं रहता है,
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ब्रह्मचारी बनकर गुरुकुल वेश धारण करता है, श्रम
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और तपश्चर्या करता है, भूमि पर सोता है, भिक्षाटन
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करता है, एक सामान्य व्यक्ति बनकर रहता है ।
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गुरुगहबास का और एक संकेत यह है कि यहाँ
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केवल पढ़ना नहीं है, यहाँ जीवन जीना है। यह
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चौबीस घण्टे का विद्यालय है, जहाँ खाना, सोना,
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काम करना, पढ़ना सब पढ़ाई के अन्तर्गत ही होते
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हैं । दिनचर्या, क्तुचर्या, जीवनचर्या अध्ययन के
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महत्त्वपूर्ण अंग हैं । परिवार चलाने के सारे कामकाज
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करना भी अध्ययन का अंग है । सेवा, अतिथि
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सत्कार, साफ सफाई, भोजन बनाना या भोजन
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बनाने में सहयोग करना, शिष्टाचार सीखना,
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गुणसंपादन करना, कौशल प्राप्त करना ये सब
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अध्ययन के ही अंग हैं। अर्थात्‌ यह निरन्तर
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अध्ययन की प्रक्रिया है । अध्यापन पद्धति के स्थान
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पर अध्ययन पद्धति (1९208 methodology) #
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दृष्टि से देखें तो यह सीखने की उत्तम पद्धति है और
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इसीके अनुसरण में अध्यापन की भी उत्तम पद्धति
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है । एक, इसमें कृत्रिमता या पढ़ने पढ़ाने वाले के
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बीच दूरत्व नहीं रहता । दूसरा, यह समग्रता में शिक्षा
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होती है । तीसरा यह अत्यन्त सहजता से होती है ।
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के बीच बँटा हुआ नहीं रहता, न सांसारिक जीवन
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के अन्य व्यवधानों से शिक्षा बाधित होती है ।
      
== साथ मिलकर दायित्व निभाना ==
 
== साथ मिलकर दायित्व निभाना ==

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