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इन्हें मानना कब अनिवार्य है ? जब अन्य देशों के साथ व्यवहार करना है अथवा आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहार करना है तब इन्हें मानना अनिवार्य है। उदाहरण के लिये आन्तर्राष्ट्रीय मानक नहीं अपनाये हैं तो कोई शोधपत्रिका आन्तर्राष्ट्रीय नहीं बन सकती और उन्हीं मानकों के बिना ऐसी पत्रिका में किसी अध्येता का शोध प्रबन्ध प्रकाशित नहीं हो सकता। आन्तर्राष्ट्रीय मानकों को नहीं अपनाया है तो विश्वविद्यालय को आन्तर्राष्ट्रीय का दर्जा प्राप्त नहीं हो सकता, कभी कभी तो इन मानकों को नहीं मानना आपराधिक भी बन जाता है। उदाहरण के लिये चिकित्साशास्त्र में एलोपथी द्वारा मान्य नहीं है ऐसा उपचार करना अपराध माना जाता है ।
 
इन्हें मानना कब अनिवार्य है ? जब अन्य देशों के साथ व्यवहार करना है अथवा आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहार करना है तब इन्हें मानना अनिवार्य है। उदाहरण के लिये आन्तर्राष्ट्रीय मानक नहीं अपनाये हैं तो कोई शोधपत्रिका आन्तर्राष्ट्रीय नहीं बन सकती और उन्हीं मानकों के बिना ऐसी पत्रिका में किसी अध्येता का शोध प्रबन्ध प्रकाशित नहीं हो सकता। आन्तर्राष्ट्रीय मानकों को नहीं अपनाया है तो विश्वविद्यालय को आन्तर्राष्ट्रीय का दर्जा प्राप्त नहीं हो सकता, कभी कभी तो इन मानकों को नहीं मानना आपराधिक भी बन जाता है। उदाहरण के लिये चिकित्साशास्त्र में एलोपथी द्वारा मान्य नहीं है ऐसा उपचार करना अपराध माना जाता है ।
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परन्तु मुख्य रूप से सन्दर्भ आर्थिक होता है। उदाहरण के लिये आप किसी बिमारी का उपचार जानते हैं और करते हैं परन्तु वह प्रमाणित नहीं है । तब आप उपचार तो कर सकते हैं परन्तु उसका पैसा नहीं ले सकते । यदि कोई उसके विरुद्ध शिकायत करता है, नुकसान होने का दावा करता है तब भी वह अपराध बनता है । यदि वह आन्तर्राष्ट्रीय मानकों द्वारा मान्य है और फिर भी उससे नुकसान होता है तो वह उपचार को दोष नहीं माना जाता, दवाई का भी नहीं माना जाता, व्यक्ति का हो सकता है अथवा वह संयोग हो सकता है।
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परन्तु मुख्य रूप से सन्दर्भ आर्थिक होता है। उदाहरण के लिये आप किसी बिमारी का उपचार जानते हैं और करते हैं परन्तु वह प्रमाणित नहीं है । तब आप उपचार तो कर सकते हैं परन्तु उसका पैसा नहीं ले सकते । यदि कोई उसके विरुद्ध शिकायत करता है, नुकसान होने का दावा करता है तब भी वह अपराध बनता है । यदि वह आन्तर्राष्ट्रीय मानकों द्वारा मान्य है और तथापि उससे नुकसान होता है तो वह उपचार को दोष नहीं माना जाता, दवाई का भी नहीं माना जाता, व्यक्ति का हो सकता है अथवा वह संयोग हो सकता है।
    
आज के सारे आन्तर्राष्ट्रीय मापदण्ड पश्चिमी जीवनदृष्टि के अनुसार बने हैं । इसलिये अनेक बातों में भारत उसे मान्य नहीं कर सकता । उदाहरण शिक्षा के क्षेत्र का ही लें। पश्चिम की अनुसन्धान पद्धित को भारत मान्य नहीं कर सकता । परन्तु विडम्बना है कि उसे मान्य करना पडता है क्योंकि भारत ने अपनी प्राचीन अनुसन्धान पद्धति को युगानुकूल स्वरूप देकर पुनर्जीवित नहीं किया । इसलिये भारत को पुनः धार्मिक ज्ञान की साधना कर, उसे पुनर्जीवित कर अपने लिये और विश्व के लिये मापदण्ड बनाने चाहिये।
 
आज के सारे आन्तर्राष्ट्रीय मापदण्ड पश्चिमी जीवनदृष्टि के अनुसार बने हैं । इसलिये अनेक बातों में भारत उसे मान्य नहीं कर सकता । उदाहरण शिक्षा के क्षेत्र का ही लें। पश्चिम की अनुसन्धान पद्धित को भारत मान्य नहीं कर सकता । परन्तु विडम्बना है कि उसे मान्य करना पडता है क्योंकि भारत ने अपनी प्राचीन अनुसन्धान पद्धति को युगानुकूल स्वरूप देकर पुनर्जीवित नहीं किया । इसलिये भारत को पुनः धार्मिक ज्ञान की साधना कर, उसे पुनर्जीवित कर अपने लिये और विश्व के लिये मापदण्ड बनाने चाहिये।
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#अमेरिका में पर्यावरण का प्रदूषण बहत होता है क्योंकि वहाँ प्राकृतिक सम्पदा का शोषण होता है। अमेरिका में लोगोंं के मन अत्यधिक उत्तेजनाग्रस्त रहते हैं । पहली बात के लिये मुझे नाराजगी होती है और दूसरी बात के लिये उसकी दया आती है। वहाँ सामाजिक बदनामी जैसा कुछ नहीं है । दैनन्दिन जीवन में भ्रष्टाचार नहीं है। ये दो बातें मुझे अच्छी लगती हैं।
 
#अमेरिका में पर्यावरण का प्रदूषण बहत होता है क्योंकि वहाँ प्राकृतिक सम्पदा का शोषण होता है। अमेरिका में लोगोंं के मन अत्यधिक उत्तेजनाग्रस्त रहते हैं । पहली बात के लिये मुझे नाराजगी होती है और दूसरी बात के लिये उसकी दया आती है। वहाँ सामाजिक बदनामी जैसा कुछ नहीं है । दैनन्दिन जीवन में भ्रष्टाचार नहीं है। ये दो बातें मुझे अच्छी लगती हैं।
 
#अमेरिका में किसी को खर्च की सीमा आँकना नहीं आता । बैंक के ऋण ले लेकर वे अपना खर्च करते हैं । वहाँ बचत नाम की कोई बात नहीं है । ये दो बातें मुझे जरा भी उचित #अमेरिका में ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र का बहुत विकास हुआ है। हार्वर्ड और एमआईटी जैसे विश्वविद्यालय और नासा जैसी अनुसन्धान संस्था विश्व में सर्वश्रेष्ठ है । यह विश्वभर के विद्वानों को आकर्षित करता है। दूसरा, अमेरिका समृद्ध देश है। उस पर प्रकृति की बडी कृपा है । इन दो कारणों से मुझे अमेरिका अच्छा लगता है । परन्तु अमेरिका इन्हीं दो कारणों से विश्व पर वर्चस्व जमाने का प्रयास करता है, विश्व को अपनी तरह चलाना चाहता हैं। साथ ही वह बाजार के माध्यम से अन्य देशों की सम्पत्ति छीनने का प्रयास करता है । ये दो बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
 
#अमेरिका में किसी को खर्च की सीमा आँकना नहीं आता । बैंक के ऋण ले लेकर वे अपना खर्च करते हैं । वहाँ बचत नाम की कोई बात नहीं है । ये दो बातें मुझे जरा भी उचित #अमेरिका में ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र का बहुत विकास हुआ है। हार्वर्ड और एमआईटी जैसे विश्वविद्यालय और नासा जैसी अनुसन्धान संस्था विश्व में सर्वश्रेष्ठ है । यह विश्वभर के विद्वानों को आकर्षित करता है। दूसरा, अमेरिका समृद्ध देश है। उस पर प्रकृति की बडी कृपा है । इन दो कारणों से मुझे अमेरिका अच्छा लगता है । परन्तु अमेरिका इन्हीं दो कारणों से विश्व पर वर्चस्व जमाने का प्रयास करता है, विश्व को अपनी तरह चलाना चाहता हैं। साथ ही वह बाजार के माध्यम से अन्य देशों की सम्पत्ति छीनने का प्रयास करता है । ये दो बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
#अमेरिका विश्व में अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये आतंकवाद को बढावा देने में भी संकोच नहीं करता । वह स्वार्थप्रेरित हिंसा का आश्रय लेता है। दूसरा, इतने समृद्ध देश में भी बेरोजगारी और भुखमरी तो है ही। इसका अर्थ है कि वह देश को चला नहीं सकता । इसलिये मुझे अमेरिका अच्छा नहीं लगता । ये दो इतनी बड़ी बातें हैं कि उन के सामने और कोई अच्छी बात टिक नहीं सकती। फिर भी आप क्या अच्छा लगता है यह भी पूछ रहे हैं इसलिये बताता हूँ कि वहां के रास्ते, वहाँ के बड़े बड़े भवन और वहाँ यातायात की सुविधा मुझे अच्छे लगते हैं।
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#अमेरिका विश्व में अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये आतंकवाद को बढावा देने में भी संकोच नहीं करता । वह स्वार्थप्रेरित हिंसा का आश्रय लेता है। दूसरा, इतने समृद्ध देश में भी बेरोजगारी और भुखमरी तो है ही। इसका अर्थ है कि वह देश को चला नहीं सकता । इसलिये मुझे अमेरिका अच्छा नहीं लगता । ये दो इतनी बड़ी बातें हैं कि उन के सामने और कोई अच्छी बात टिक नहीं सकती। तथापि आप क्या अच्छा लगता है यह भी पूछ रहे हैं इसलिये बताता हूँ कि वहां के रास्ते, वहाँ के बड़े बड़े भवन और वहाँ यातायात की सुविधा मुझे अच्छे लगते हैं।
 
#अमेरिका भौतिक दृष्टि से आगे होगा परन्तु उसकी समृद्धि हिंसक है । साथ ही सांस्कृतिक दृष्टि से वह बहुत ही पिछडा देश माना जायेगा । सामाजिक स्तर पर अकेलापन और व्यक्तिगत स्तर पर शान्ति और सन्तोष का अभाव इस देश के भविष्य को धूमिल बना रहे हैं । उसे मानसिक स्थिरता सिखाने की आवश्यकता है । इन दो बातों के सामने और यदि कोई अच्छी बातें रहीं तो भी वे निरर्थक हैं। इसलिये छोटी छोटी अच्छी बातों का मैं उल्लेख ही नहीं कर रहा हूँ। विश्व को अमेरिका से सावध रहने की आवश्यकता है।
 
#अमेरिका भौतिक दृष्टि से आगे होगा परन्तु उसकी समृद्धि हिंसक है । साथ ही सांस्कृतिक दृष्टि से वह बहुत ही पिछडा देश माना जायेगा । सामाजिक स्तर पर अकेलापन और व्यक्तिगत स्तर पर शान्ति और सन्तोष का अभाव इस देश के भविष्य को धूमिल बना रहे हैं । उसे मानसिक स्थिरता सिखाने की आवश्यकता है । इन दो बातों के सामने और यदि कोई अच्छी बातें रहीं तो भी वे निरर्थक हैं। इसलिये छोटी छोटी अच्छी बातों का मैं उल्लेख ही नहीं कर रहा हूँ। विश्व को अमेरिका से सावध रहने की आवश्यकता है।
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उत्तर  
 
उत्तर  
 
# आज का भारत विश्वगुरु बनने का न तो दावा कर सकता है न इच्छा । यदि करता है तो वह हास्यास्पद होगा क्योंकि धन, ज्ञान, बल और सत्ता में से एक भी बात उसके पास नहीं है । मुझे तो लगता है कि भारत विश्वगुरु था यह भी एक कल्पना ही होनी चाहिये, वास्तविकता नहीं ।
 
# आज का भारत विश्वगुरु बनने का न तो दावा कर सकता है न इच्छा । यदि करता है तो वह हास्यास्पद होगा क्योंकि धन, ज्ञान, बल और सत्ता में से एक भी बात उसके पास नहीं है । मुझे तो लगता है कि भारत विश्वगुरु था यह भी एक कल्पना ही होनी चाहिये, वास्तविकता नहीं ।
# मैं मानता हूँ कि भारत कभी विश्वगुरु रहा होगा । परन्तु प्रत्येक राष्ट्र के जीवन में चढाव और उतार आते ही हैं। आज भारत की स्थिति विपरीत हो गई है, उसने यूरोप के समक्ष अपनी पराजय को स्वीकार कर लिया है। वह पश्चिम के अधीन हो गया है, पश्चिम की बुद्धि से चल रहा है । आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी शैली का स्वीकार कर लिया है। ऐसा भारत विश्वगरु कैसे बन सकता है ? फिर भी भारत में विश्वगुरु बनने की सम्भावना अवश्य है। ऐसा बनने के लिये भारत अपने आपको पश्चिम से श्रेष्ठ सिद्ध करे यह आवश्यक है।
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# मैं मानता हूँ कि भारत कभी विश्वगुरु रहा होगा । परन्तु प्रत्येक राष्ट्र के जीवन में चढाव और उतार आते ही हैं। आज भारत की स्थिति विपरीत हो गई है, उसने यूरोप के समक्ष अपनी पराजय को स्वीकार कर लिया है। वह पश्चिम के अधीन हो गया है, पश्चिम की बुद्धि से चल रहा है । आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी शैली का स्वीकार कर लिया है। ऐसा भारत विश्वगरु कैसे बन सकता है ? तथापि भारत में विश्वगुरु बनने की सम्भावना अवश्य है। ऐसा बनने के लिये भारत अपने आपको पश्चिम से श्रेष्ठ सिद्ध करे यह आवश्यक है।
 
# विश्वगुरु बनने के लिये भारत को आधुनिक विश्व की शैली को अपनाकर उसमें ही पश्चिम से आगे निकलना होगा। भारत के लोगोंं को परमात्मा ने पश्चिम के लोगोंं से अधिक बुद्धि, कार्यकुशलता और मनोबल दिये हैं। ये सब दुर्लभ गुण हैं । इन गुणों का व्यवस्थित पद्धति से विकास किया जाय तो भारत देखते ही देखते विश्वगुरु बन सकता है।
 
# विश्वगुरु बनने के लिये भारत को आधुनिक विश्व की शैली को अपनाकर उसमें ही पश्चिम से आगे निकलना होगा। भारत के लोगोंं को परमात्मा ने पश्चिम के लोगोंं से अधिक बुद्धि, कार्यकुशलता और मनोबल दिये हैं। ये सब दुर्लभ गुण हैं । इन गुणों का व्यवस्थित पद्धति से विकास किया जाय तो भारत देखते ही देखते विश्वगुरु बन सकता है।
 
# भारत जब विश्वगुरु था तब विश्व के अन्य देश अविकसित थे। आज अब अन्य देश विकसित हो गये हैं। विकास का प्रतिमान बदल गया है। आज के प्रतिमान का जनक अमेरिका है। आज विश्वगुरु के स्थान के लायक अमेरिका नहीं तो और कौन हो सकता है ? भारत को विश्वगुरु बनने के लिये अमेरिका से स्पर्धा करनी होगी और उससे आगे निकलना होगा । मैं नहीं मानता कि भारत कम से कम सौ वर्ष तक विश्वगुरु बनने की कल्पना भी कर सकता है।
 
# भारत जब विश्वगुरु था तब विश्व के अन्य देश अविकसित थे। आज अब अन्य देश विकसित हो गये हैं। विकास का प्रतिमान बदल गया है। आज के प्रतिमान का जनक अमेरिका है। आज विश्वगुरु के स्थान के लायक अमेरिका नहीं तो और कौन हो सकता है ? भारत को विश्वगुरु बनने के लिये अमेरिका से स्पर्धा करनी होगी और उससे आगे निकलना होगा । मैं नहीं मानता कि भारत कम से कम सौ वर्ष तक विश्वगुरु बनने की कल्पना भी कर सकता है।
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# सिन्थेटिक वस्त्र भी शरीर स्वास्थ्य के लिये प्रतिकूलता निर्माण करते हैं ।  
 
# सिन्थेटिक वस्त्र भी शरीर स्वास्थ्य के लिये प्रतिकूलता निर्माण करते हैं ।  
 
# यन्त्र से पानी का शुद्धीकरण, फ्रिज, माइक्रोवेव, मिक्सर, ग्राइण्डर आदि स्वास्थ्य के शत्रु हैं ।
 
# यन्त्र से पानी का शुद्धीकरण, फ्रिज, माइक्रोवेव, मिक्सर, ग्राइण्डर आदि स्वास्थ्य के शत्रु हैं ।
# व्यायाम और श्रम नहीं करना हमारी राष्ट्रीय आपदा बन गई है। जिन्हें करना पडता है वे मजदरी में करते हैं इसलिये उसका लाभ नहीं होता । फिर भी वे काम नहीं करने वालों की अपेक्षा कम अस्वस्थ होते हैं।
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# व्यायाम और श्रम नहीं करना हमारी राष्ट्रीय आपदा बन गई है। जिन्हें करना पडता है वे मजदरी में करते हैं इसलिये उसका लाभ नहीं होता । तथापि वे काम नहीं करने वालों की अपेक्षा कम अस्वस्थ होते हैं।
 
# मनोविकार शरीर स्वास्थ्य के महाशत्रु हैं। आज की अनेक बिमारियाँ मनोविकार से ही पैदा हुई हैं। लोभ, लालच, परिग्रह, द्वेष, चिन्ता आदि ये मनोविकार हैं जो शरीर स्वास्थ्य को हानि पहँचाते हैं।
 
# मनोविकार शरीर स्वास्थ्य के महाशत्रु हैं। आज की अनेक बिमारियाँ मनोविकार से ही पैदा हुई हैं। लोभ, लालच, परिग्रह, द्वेष, चिन्ता आदि ये मनोविकार हैं जो शरीर स्वास्थ्य को हानि पहँचाते हैं।
 
# हमारे घरों, कार्यालयों, विद्यालयों की बेन्च, कुर्सी, सोफा पर बैठने की व्यवस्था खडे खडे भोजन बानाने, करने, भाषण, करने, गाने की व्यवस्था भी घुटने और कमर के दर्द पैदा करने वाली है।
 
# हमारे घरों, कार्यालयों, विद्यालयों की बेन्च, कुर्सी, सोफा पर बैठने की व्यवस्था खडे खडे भोजन बानाने, करने, भाषण, करने, गाने की व्यवस्था भी घुटने और कमर के दर्द पैदा करने वाली है।

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