Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "लोगो" to "लोगों"
Line 35: Line 35:  
१५. पहला वर्ग समर्थ है परन्तु श्रद्धावान नहीं है । धर्म, संस्कृति और ज्ञान के प्रति जानकारी, निष्ठा और श्रद्द नहीं है । सामान्य जन दुर्बल है परन्तु श्रद्धावान और निष्टावान है । जानकारी तो उसके पास भी न के बराबर है ।
 
१५. पहला वर्ग समर्थ है परन्तु श्रद्धावान नहीं है । धर्म, संस्कृति और ज्ञान के प्रति जानकारी, निष्ठा और श्रद्द नहीं है । सामान्य जन दुर्बल है परन्तु श्रद्धावान और निष्टावान है । जानकारी तो उसके पास भी न के बराबर है ।
   −
१६. भारत में धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा  हेतु सामान्य जन के हृदय की श्रद्दा समर्थ सिद्ध होगी । भौतिक दृष्टि से समर्थ लोगों की अश्रद्धा के सामने भौतिक दृष्टि से दुर्बल लोगों की श्रद्दा का सामर्थ्य अधिक परिणामकारी होता है । श्रद्द के इस बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
+
१६. भारत में धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा  हेतु सामान्य जन के हृदय की श्रद्दा समर्थ सिद्ध होगी । भौतिक दृष्टि से समर्थ लोगोंं की अश्रद्धा के सामने भौतिक दृष्टि से दुर्बल लोगोंं की श्रद्दा का सामर्थ्य अधिक परिणामकारी होता है । श्रद्द के इस बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
    
१७. धर्म और संस्कृति की दुहाई देने वाले अनेक लोग बडे होते हैं, लाखों को धर्मोपदेश करते हैं । उनके हृदयों में श्रद्धा नहीं होती । जो लाखों लोग उन पर श्रद्धा रखते हैं वे अज्ञान होने पर भी, उनके श्रद्धा केन्द्र भोंदुगीरी करने वाले, भटकाने वाले होने पर भी श्रद्धा रखने वालों की श्रद्धा सत्य होती है । इस श्रद्दा के बल पर भारत में धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
१७. धर्म और संस्कृति की दुहाई देने वाले अनेक लोग बडे होते हैं, लाखों को धर्मोपदेश करते हैं । उनके हृदयों में श्रद्धा नहीं होती । जो लाखों लोग उन पर श्रद्धा रखते हैं वे अज्ञान होने पर भी, उनके श्रद्धा केन्द्र भोंदुगीरी करने वाले, भटकाने वाले होने पर भी श्रद्धा रखने वालों की श्रद्धा सत्य होती है । इस श्रद्दा के बल पर भारत में धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
Line 41: Line 41:  
१८. भारत के असंख्य सम्प्रदायों में लाखों करोड़ों लोग भक्ति, सत्संग, सेवा आदि में लगे हुए रहते हैं । पढे लिखे लोग उनके ऐसे कामों का मजाक उडाते हैं । अथवा वे ही अपने किसी स्वार्थ के लिये सेवा करते हैं । इन सेवा करने वालों के अन्तःकरण के भाव के बल से धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
१८. भारत के असंख्य सम्प्रदायों में लाखों करोड़ों लोग भक्ति, सत्संग, सेवा आदि में लगे हुए रहते हैं । पढे लिखे लोग उनके ऐसे कामों का मजाक उडाते हैं । अथवा वे ही अपने किसी स्वार्थ के लिये सेवा करते हैं । इन सेवा करने वालों के अन्तःकरण के भाव के बल से धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
   −
१९. लाखों करोड़ों लोग तीर्थयात्रा करते हैं, पदयात्रा करते हैं, काँवट में नदियों का जल ले जाकर मन्दियों में अभिषेक करते हैं, अनेक प्रकार से भक्ति करते हैं । धनवानों और सत्तावानों के लिये इन बातों का कोई महत्त्व नहीं है । परन्तु सामान्य, आअज्ञानी और कम शिक्षित लोगों की श्रद्धा के बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
+
१९. लाखों करोड़ों लोग तीर्थयात्रा करते हैं, पदयात्रा करते हैं, काँवट में नदियों का जल ले जाकर मन्दियों में अभिषेक करते हैं, अनेक प्रकार से भक्ति करते हैं । धनवानों और सत्तावानों के लिये इन बातों का कोई महत्त्व नहीं है । परन्तु सामान्य, आअज्ञानी और कम शिक्षित लोगोंं की श्रद्धा के बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
    
२०. “परहित सरिस धरम नहीं भाई, परपीडा सम नहीं अधमाई' के सूत्र को सत्य समझने वाले और उसको कृति में लाने वाले असंख्य लोग भारत में हैं । वे फूटपाथों पर रहते हैं, मजदूरी करते हैं, भीख माँगते हैं, निरक्षर हैं, दुनिया इनकी भावना और कृति को नहीं जानती है । परन्तु धार्मिकता इनमें जीवित है । इसके बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
२०. “परहित सरिस धरम नहीं भाई, परपीडा सम नहीं अधमाई' के सूत्र को सत्य समझने वाले और उसको कृति में लाने वाले असंख्य लोग भारत में हैं । वे फूटपाथों पर रहते हैं, मजदूरी करते हैं, भीख माँगते हैं, निरक्षर हैं, दुनिया इनकी भावना और कृति को नहीं जानती है । परन्तु धार्मिकता इनमें जीवित है । इसके बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
Line 47: Line 47:  
२१. आज भी भारत में असंख्य लोग हैं जो धार्मिकता कैसे प्रतिष्ठित होगी यह जानते हैं । वे चाहते भी हैं । परन्तु उनमें शक्ति नहीं है, सामर्थ्य नहीं है इसलिये हताश हैं । उन्हें किसी का सहयोग प्राप्त नहीं होता है। उनके ज्ञान और भावना के बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
२१. आज भी भारत में असंख्य लोग हैं जो धार्मिकता कैसे प्रतिष्ठित होगी यह जानते हैं । वे चाहते भी हैं । परन्तु उनमें शक्ति नहीं है, सामर्थ्य नहीं है इसलिये हताश हैं । उन्हें किसी का सहयोग प्राप्त नहीं होता है। उनके ज्ञान और भावना के बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
   −
२२. भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन हुए हैं । राष्ट्रीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा के प्रयास भी हुए हैं। उन सभी आन्दोलनों में अनेक लोगों के त्याग और साधना रहे हैं । ये आन्दोलन और राष्ट्रीय शिक्षा के प्रयोग असफल हुए हैं परन्तु जो त्याग और साधना की पूंजी जमा हुई है उसके बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
+
२२. भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन हुए हैं । राष्ट्रीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा के प्रयास भी हुए हैं। उन सभी आन्दोलनों में अनेक लोगोंं के त्याग और साधना रहे हैं । ये आन्दोलन और राष्ट्रीय शिक्षा के प्रयोग असफल हुए हैं परन्तु जो त्याग और साधना की पूंजी जमा हुई है उसके बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
   −
२३. आज भी शिक्षा क्षेत्र के अनेक संगठन कार्यरत हैं । अनेक सांस्कृतिक संगठन भी शिक्षा विषयक कार्य कर रहे हैं। इनमें जो सामर्थ्य है वह तो धार्मिकता के प्रयास में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं और पश्चिमीकरण के प्रभाव में बहने की विवशता दिखा रहे हैं । परन्तु इन्हीं संगठनों में धार्मिकता विरुद्ध के इन प्रयासों से दुःखी होने वाले अनेक छोटे लोग हैं । इन छोटे लोगों के दुःख के बल पर धार्मिकता की पुनर्ध्रतिष्ठा होगी ।
+
२३. आज भी शिक्षा क्षेत्र के अनेक संगठन कार्यरत हैं । अनेक सांस्कृतिक संगठन भी शिक्षा विषयक कार्य कर रहे हैं। इनमें जो सामर्थ्य है वह तो धार्मिकता के प्रयास में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं और पश्चिमीकरण के प्रभाव में बहने की विवशता दिखा रहे हैं । परन्तु इन्हीं संगठनों में धार्मिकता विरुद्ध के इन प्रयासों से दुःखी होने वाले अनेक छोटे लोग हैं । इन छोटे लोगोंं के दुःख के बल पर धार्मिकता की पुनर्ध्रतिष्ठा होगी ।
    
२४. इन संगठनों में कृति की असमर्थता है परन्तु सदिच्छा अभी भी जीवित है। इस सदिच्छा के बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
२४. इन संगठनों में कृति की असमर्थता है परन्तु सदिच्छा अभी भी जीवित है। इस सदिच्छा के बल पर धार्मिकता की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।

Navigation menu