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१. भारत को भारत बने रहना विश्व की आवश्यकता है और भारत की नियति है । भारत भारत बना रह सकता है उसके ज्ञान, धर्म और संस्कृति के आधार पर । इन आधारों को सुरक्षित रखना अब सबका कर्तव्य है ।
 
१. भारत को भारत बने रहना विश्व की आवश्यकता है और भारत की नियति है । भारत भारत बना रह सकता है उसके ज्ञान, धर्म और संस्कृति के आधार पर । इन आधारों को सुरक्षित रखना अब सबका कर्तव्य है ।
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२. विश्व का यूरोपीकरण करने का बीडा यूरोप ने पाँच सौ वर्ष पूर्व उठाया था । सारे विश्व में फैल जाने हेतु यूरोप ने विश्वप्रवास शुरू किया था । लूट की शक्ति और यूरोपीकरण की इच्छा इनका प्रेरक तत्त्व था ।
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२. विश्व का यूरोपीकरण करने का बीडा यूरोप ने पाँच सौ वर्ष पूर्व उठाया था । सारे विश्व में फैल जाने हेतु यूरोप ने विश्वप्रवास आरम्भ किया था । लूट की शक्ति और यूरोपीकरण की इच्छा इनका प्रेरक तत्त्व था ।
    
३. उनके प्रभाव से अमेरिका का और ऑस्ट्रेलिया का यूरोपीकरण हो गया । आफ्रिका जैसे देशों को गुलाम होना पडा । शेष दुनिया की जीवनशैली यूरोपीय बन गई। विश्व के लिये पश्चिमी जीवनदृष्टि आधारित मानक बन गये और विश्वसंस्थाओं के माध्यम से स्थापित हो गये ।
 
३. उनके प्रभाव से अमेरिका का और ऑस्ट्रेलिया का यूरोपीकरण हो गया । आफ्रिका जैसे देशों को गुलाम होना पडा । शेष दुनिया की जीवनशैली यूरोपीय बन गई। विश्व के लिये पश्चिमी जीवनदृष्टि आधारित मानक बन गये और विश्वसंस्थाओं के माध्यम से स्थापित हो गये ।
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३१. देश में जहाँ जहाँ भी जिस रूप में ज्ञानसाधना, संस्कार साधना हो रही है उसका फल जमा हो रहा है । इसके पुण्य के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
३१. देश में जहाँ जहाँ भी जिस रूप में ज्ञानसाधना, संस्कार साधना हो रही है उसका फल जमा हो रहा है । इसके पुण्य के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
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३२. ऐसा नहीं है कि हमें कुछ करना नहीं पडेगा । प्रजा की भावना के साथ साथ पुरुषार्थ भी चाहिये । परन्तु शिक्षा की मुख्य धारा में सम्भावनायें कम हैं । सरकार और बडे से बडे संगठन विवश हैं । मुख्य धारा की शिक्षा अनेक प्रकार से अवरुद्ध हो गई है । ये अवरोध हटाने के लिये प्रयास करने के स्थान पर नये मार्ग खोजने की आवश्यकता है । नये मार्गों से प्रवाह शुरू होने के बाद हो सकता है कि बडे अवरोध दूर हो जाय, अथवा आप्रस्तुत बन जाय । ऐसे मार्गों का विचार आगे करेंगे ।
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३२. ऐसा नहीं है कि हमें कुछ करना नहीं पडेगा । प्रजा की भावना के साथ साथ पुरुषार्थ भी चाहिये । परन्तु शिक्षा की मुख्य धारा में सम्भावनायें कम हैं । सरकार और बडे से बडे संगठन विवश हैं । मुख्य धारा की शिक्षा अनेक प्रकार से अवरुद्ध हो गई है । ये अवरोध हटाने के लिये प्रयास करने के स्थान पर नये मार्ग खोजने की आवश्यकता है । नये मार्गों से प्रवाह आरम्भ होने के बाद हो सकता है कि बडे अवरोध दूर हो जाय, अथवा आप्रस्तुत बन जाय । ऐसे मार्गों का विचार आगे करेंगे ।

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