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इस स्थिति में हमारे लिये दो काम करणीय हैं । एक तो हमें यह करना है कि हम स्वयं अपने देश को जानें । हमारे अतीत और वर्तमान के विषय में जानें । हम अपने आपको ठीक भी करें।
 
इस स्थिति में हमारे लिये दो काम करणीय हैं । एक तो हमें यह करना है कि हम स्वयं अपने देश को जानें । हमारे अतीत और वर्तमान के विषय में जानें । हम अपने आपको ठीक भी करें।
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भारत को भारत बनने की महती आवश्यकता है। सनातन भारत और वर्तमान भारत एकदूसरे से बहुत भिन्न है। सनातन भारत वर्तमान भारत के अन्दर जी रहा है परन्तु वह बहुत दबा हुआ है। कभी कभी तो उसके अस्तित्व का भी पता न चले इतना दबा हुआ है। वर्तमान भारत पश्चिम की छाया में जी रहा है। पर्याप्त मात्रा में बदला है और बदल रहा है । हमें अपने आपको पुनः भारतीय बनाना होगा। भारत भारत बने इसका अर्थ क्या है और वह कैसे होगा इसकी चर्चा पूर्व विभाग में हमने की है । उस भारत की जानकारी हम विश्व को दें। यह पहला कार्य है।
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भारत को भारत बनने की महती आवश्यकता है। सनातन भारत और वर्तमान भारत एकदूसरे से बहुत भिन्न है। सनातन भारत वर्तमान भारत के अन्दर जी रहा है परन्तु वह बहुत दबा हुआ है। कभी कभी तो उसके अस्तित्व का भी पता न चले इतना दबा हुआ है। वर्तमान भारत पश्चिम की छाया में जी रहा है। पर्याप्त मात्रा में बदला है और बदल रहा है । हमें अपने आपको पुनः धार्मिक बनाना होगा। भारत भारत बने इसका अर्थ क्या है और वह कैसे होगा इसकी चर्चा पूर्व विभाग में हमने की है । उस भारत की जानकारी हम विश्व को दें। यह पहला कार्य है।
    
दूसरा कार्य है हम भारत का परिचय विश्व को दें। अर्थात् वह परिचय सनातन भारत का हो, वर्तमान भारत का नहीं । हमारे जो लोग विदशों में जाकर बसे हैं उनके माध्यम से विश्व भारत को पहचानता है। हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों के प्रमुख तथा कार्यकर्ता विदेशों में जाते हैं। उनके माध्यम से विश्व भारत को जानता है । हमारे विद्यार्थी, अध्यापक, वैज्ञानिक, पर्यटक विदेशों में जाते हैं । उनके माध्यम से विश्व को भारत का परिचय होता है । उसी प्रकार से विदेशों से इन्हीं कारणों से लोग भारत में आते हैं तब उनके माध्यम से भी विश्व को भारत का परिचय होता है। परन्तु यह परिचय सनातन और वर्तमान भारत का मिश्रण है। भारत स्वयं भी अपने आपको सनातन कम और वर्तमान अधिक मात्रामें जानता है।
 
दूसरा कार्य है हम भारत का परिचय विश्व को दें। अर्थात् वह परिचय सनातन भारत का हो, वर्तमान भारत का नहीं । हमारे जो लोग विदशों में जाकर बसे हैं उनके माध्यम से विश्व भारत को पहचानता है। हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों के प्रमुख तथा कार्यकर्ता विदेशों में जाते हैं। उनके माध्यम से विश्व भारत को जानता है । हमारे विद्यार्थी, अध्यापक, वैज्ञानिक, पर्यटक विदेशों में जाते हैं । उनके माध्यम से विश्व को भारत का परिचय होता है । उसी प्रकार से विदेशों से इन्हीं कारणों से लोग भारत में आते हैं तब उनके माध्यम से भी विश्व को भारत का परिचय होता है। परन्तु यह परिचय सनातन और वर्तमान भारत का मिश्रण है। भारत स्वयं भी अपने आपको सनातन कम और वर्तमान अधिक मात्रामें जानता है।
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# भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।  
 
# भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।  
 
# भारत की आकांक्षा हमेशा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये । विश्व के लोगों के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगों को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।  
 
# भारत की आकांक्षा हमेशा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये । विश्व के लोगों के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगों को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।  
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें भारतीय जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। भारतीय जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
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# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें धार्मिक जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। धार्मिक जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
 
इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।  
 
इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।  
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दोनों अध्ययन केन्द्रों में विश्व के अनेक देशों से तेजस्वी विद्यार्थी अध्ययन हेतु आयें ऐसी इसकी प्रतिष्ठा बननी चाहिये परन्तु इण्टरनेट के इस युग में विज्ञापन के माध्यम से प्रचार हो और प्रतिष्ठा बने ऐसा मार्ग नहीं अपनाना चाहिये । प्रतिष्ठा ज्ञान को ही, संस्था की नहीं । इसलिये इण्टरनेट के माध्यम से ज्ञान के सर्वत्र पहुँचाने की व्यवस्था की जा सकती है। हम मौन रहें और अन्य लोग प्रशंसा करें इस लायक हों यह सही भारतीय मार्ग है।  
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दोनों अध्ययन केन्द्रों में विश्व के अनेक देशों से तेजस्वी विद्यार्थी अध्ययन हेतु आयें ऐसी इसकी प्रतिष्ठा बननी चाहिये परन्तु इण्टरनेट के इस युग में विज्ञापन के माध्यम से प्रचार हो और प्रतिष्ठा बने ऐसा मार्ग नहीं अपनाना चाहिये । प्रतिष्ठा ज्ञान को ही, संस्था की नहीं । इसलिये इण्टरनेट के माध्यम से ज्ञान के सर्वत्र पहुँचाने की व्यवस्था की जा सकती है। हम मौन रहें और अन्य लोग प्रशंसा करें इस लायक हों यह सही धार्मिक मार्ग है।  
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13 .आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय होना अपेक्षित है । राष्ट्रीय का अर्थ है भारतीय जीवनदृष्टि के अनुसार उसका अधिष्ठान लिये । इसका चरित्र ज्ञानात्मक होना चाहिये। भारत में ज्ञान को कार्यकुशलता, भावना, विचार, बुद्धिमत्ता, विज्ञान, संस्कार आदि सभी बातों से उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। ज्ञान आत्मतत्त्व का लक्षण है। श्रीमद् भगवद् गीता में कहा है, 'न हि ज्ञानेन सद्दश पवित्रमिहे विद्यते' - इस संसार में ज्ञान जैसा पवित्र और कुछ नहीं है। इस ज्ञान का ही अधिष्ठान विश्वविद्यालय को होना चाहिये । राष्ट्रीयता और ज्ञानात्मक अधिष्ठान के साथ । साथ व्यावहारिक और वैश्विक सन्दर्भो को नहीं भूलना चाहिये, युगानुकूलता और देशानुकूलता के आयामों को भी नहीं भूलना चाहिये। सनातन का अर्थ प्राचीन नहीं होता, चिरपुरातन और नित्यनूतन ऐसा होता है। विश्वविद्यालय के चरित्र में ये सारे तत्त्वदिखाई देने चाहिये।  
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13 .आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का चरित्र राष्ट्रीय होना अपेक्षित है । राष्ट्रीय का अर्थ है धार्मिक जीवनदृष्टि के अनुसार उसका अधिष्ठान लिये । इसका चरित्र ज्ञानात्मक होना चाहिये। भारत में ज्ञान को कार्यकुशलता, भावना, विचार, बुद्धिमत्ता, विज्ञान, संस्कार आदि सभी बातों से उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। ज्ञान आत्मतत्त्व का लक्षण है। श्रीमद् भगवद् गीता में कहा है, 'न हि ज्ञानेन सद्दश पवित्रमिहे विद्यते' - इस संसार में ज्ञान जैसा पवित्र और कुछ नहीं है। इस ज्ञान का ही अधिष्ठान विश्वविद्यालय को होना चाहिये । राष्ट्रीयता और ज्ञानात्मक अधिष्ठान के साथ । साथ व्यावहारिक और वैश्विक सन्दर्भो को नहीं भूलना चाहिये, युगानुकूलता और देशानुकूलता के आयामों को भी नहीं भूलना चाहिये। सनातन का अर्थ प्राचीन नहीं होता, चिरपुरातन और नित्यनूतन ऐसा होता है। विश्वविद्यालय के चरित्र में ये सारे तत्त्वदिखाई देने चाहिये।  
    
14. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक विश्वस्तरीय सन्दर्भ ग्रन्थालय होना चाहिये । उसमें देशभर में जो राष्ट्रीय विचार का प्राचीनतम और अर्वाचीनतम साहित्य एकत्रित करना चाहिये । साथ ही अपने देश में जो अराष्ट्रीय धारायें चलती है उसका परिचय देने वाला साहित्य भी होना चाहिये। तीसरा प्रकार है विश्वभर में भारत के विषय में सही और गलत धारणा से, उचित और अनुचित प्रयोजन से, अच्छी और बुरी नियत से निर्मित साहित्य है वह भी होना चाहिये । देशविदेश की शिक्षा, संस्कृति, धर्म, तत्त्वज्ञान विषयक पत्रिकायें आनी चाहिये । आकारप्रकार में यह ग्रन्थालय नालन्दा के धर्मगंज का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जो छ: छ: मंजिलों के नौ भवनों का बना हुआ था। इस सम्पूर्ण विश्वविद्यालय का चरित्र तक्षशिला का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जिसकी आयु ग्यारहसौ वर्ष की थी और जो सिकन्दर के आक्रमण को परावर्तित करने का तथा आततायी सम्राट को राज्यभ्रष्ट करने का तथा उसका स्थान ले सके ऐसा सम्राट निर्माण करने का सामर्थ्य रखता था।  
 
14. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक विश्वस्तरीय सन्दर्भ ग्रन्थालय होना चाहिये । उसमें देशभर में जो राष्ट्रीय विचार का प्राचीनतम और अर्वाचीनतम साहित्य एकत्रित करना चाहिये । साथ ही अपने देश में जो अराष्ट्रीय धारायें चलती है उसका परिचय देने वाला साहित्य भी होना चाहिये। तीसरा प्रकार है विश्वभर में भारत के विषय में सही और गलत धारणा से, उचित और अनुचित प्रयोजन से, अच्छी और बुरी नियत से निर्मित साहित्य है वह भी होना चाहिये । देशविदेश की शिक्षा, संस्कृति, धर्म, तत्त्वज्ञान विषयक पत्रिकायें आनी चाहिये । आकारप्रकार में यह ग्रन्थालय नालन्दा के धर्मगंज का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जो छ: छ: मंजिलों के नौ भवनों का बना हुआ था। इस सम्पूर्ण विश्वविद्यालय का चरित्र तक्षशिला का स्मरण दिलाने वाला होना चाहिये जिसकी आयु ग्यारहसौ वर्ष की थी और जो सिकन्दर के आक्रमण को परावर्तित करने का तथा आततायी सम्राट को राज्यभ्रष्ट करने का तथा उसका स्थान ले सके ऐसा सम्राट निर्माण करने का सामर्थ्य रखता था।  
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15. परन्तु आन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्राण तो वहाँ के अध्यापकऔर विद्यार्थी ही हो सकते हैं। तक्षशिला का यश उसकी कुलपति परम्परा और चाणक्य तथा जीवक जैसे अध्यापकों के कारण से है, भवन और ग्रन्थालय से नहीं। इसलिये सर्वाधिक चिन्ता इनके विषय में ही करनी चाहिये । देशभर से विद्वान, देशभक्त, जिज्ञासु, अध्ययनशील, विश्वकल्याण की भावना वाले अध्यापकों और  विद्यार्थियों को इस विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन-अनुसन्धान हेतु आमन्त्रित करना चाहिये । देशभर के महाविद्यालयों और विद्यालयों के विद्यार्थियों का प्रयत्नपूर्वक चयन करना चाहिये । साथ ही दस वर्ष के बाद अच्छे विद्यार्थी और बीस वर्ष के बाद अच्छे अध्यापक प्राप्त हों इस विशिष्ट हेतु से गर्भाधान से शिक्षा देनेवाला विद्यालय भी शुरू करना चाहिये। ये ऐसे विद्यार्थी होंगे जो भविष्य में इसी विश्वविद्यालय में कार्यरत होंगे। ऐसा विश्वविद्यालय शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ होना चाहिये।  
 
15. परन्तु आन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्राण तो वहाँ के अध्यापकऔर विद्यार्थी ही हो सकते हैं। तक्षशिला का यश उसकी कुलपति परम्परा और चाणक्य तथा जीवक जैसे अध्यापकों के कारण से है, भवन और ग्रन्थालय से नहीं। इसलिये सर्वाधिक चिन्ता इनके विषय में ही करनी चाहिये । देशभर से विद्वान, देशभक्त, जिज्ञासु, अध्ययनशील, विश्वकल्याण की भावना वाले अध्यापकों और  विद्यार्थियों को इस विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन-अनुसन्धान हेतु आमन्त्रित करना चाहिये । देशभर के महाविद्यालयों और विद्यालयों के विद्यार्थियों का प्रयत्नपूर्वक चयन करना चाहिये । साथ ही दस वर्ष के बाद अच्छे विद्यार्थी और बीस वर्ष के बाद अच्छे अध्यापक प्राप्त हों इस विशिष्ट हेतु से गर्भाधान से शिक्षा देनेवाला विद्यालय भी शुरू करना चाहिये। ये ऐसे विद्यार्थी होंगे जो भविष्य में इसी विश्वविद्यालय में कार्यरत होंगे। ऐसा विश्वविद्यालय शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ होना चाहिये।  
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16. इस विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्थायें पूर्णरूप से भारतीय होनी चाहिये । वास्तुशास्त्र, स्थापत्यशास्त्र, पर्यावरण आदि का विचार कर भवन, फर्नीचर, मैदान, बगीचा, पानी और स्वच्छता आदि की व्यवस्थायें बननी चाहिये । उदाहरण के लिये  
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16. इस विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्थायें पूर्णरूप से धार्मिक होनी चाहिये । वास्तुशास्त्र, स्थापत्यशास्त्र, पर्यावरण आदि का विचार कर भवन, फर्नीचर, मैदान, बगीचा, पानी और स्वच्छता आदि की व्यवस्थायें बननी चाहिये । उदाहरण के लिये  
 
# विश्वविद्यालय परिसर में कोई पेट्रोल संचालित वाहन प्रवेश नहीं करेगा, उनके स्थान पर रथ, पालखी, साइकिल, रिक्सा आदि अवश्य होंगे।  
 
# विश्वविद्यालय परिसर में कोई पेट्रोल संचालित वाहन प्रवेश नहीं करेगा, उनके स्थान पर रथ, पालखी, साइकिल, रिक्सा आदि अवश्य होंगे।  
 
# विद्यालय परिसर में, अथवा कम से कम भवनों के कक्षों में पादत्राण का प्रयोग नहीं होगा।  
 
# विद्यालय परिसर में, अथवा कम से कम भवनों के कक्षों में पादत्राण का प्रयोग नहीं होगा।  
# इस विश्वविद्यालय में भारतीय वेश पहनकर ही प्रवेश हो सकेगा । विदेशी भी भारतीय वेश पहनेंगे।  
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# इस विश्वविद्यालय में धार्मिक वेश पहनकर ही प्रवेश हो सकेगा । विदेशी भी धार्मिक वेश पहनेंगे।  
 
# भोजन सात्त्विक और शुद्ध शाकाहारी होगा।  
 
# भोजन सात्त्विक और शुद्ध शाकाहारी होगा।  
 
# इस विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन करने वाले हाथ से होने वाले कामों में हाथ बँटायेंगे। बिना कारसेवा के कोई नहीं रहेगा।  
 
# इस विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन करने वाले हाथ से होने वाले कामों में हाथ बँटायेंगे। बिना कारसेवा के कोई नहीं रहेगा।  
# विश्वविद्यालय में बैठने की व्यवस्था भारतीय रहेगी। आपात्कालीन व्यवस्थायें अधार्मिक हो सकती हैं परन्तु शीघ्रातिशीघ्र उनका त्याग करने की मानसिकता विकसित होगी।  
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# विश्वविद्यालय में बैठने की व्यवस्था धार्मिक रहेगी। आपात्कालीन व्यवस्थायें अधार्मिक हो सकती हैं परन्तु शीघ्रातिशीघ्र उनका त्याग करने की मानसिकता विकसित होगी।  
 
# विश्वविद्यालय में सिन्थेटिक पदार्थों और सिन्थेटिसीझम का पूर्ण निषेध रहेगा।  
 
# विश्वविद्यालय में सिन्थेटिक पदार्थों और सिन्थेटिसीझम का पूर्ण निषेध रहेगा।  
 
# विद्युत का प्रयोग नहीं करने का साहस भी दिखाना होगा।
 
# विद्युत का प्रयोग नहीं करने का साहस भी दिखाना होगा।
 
# विश्वविद्यालय में भोजन की व्यवस्था में किसी स्वास्थ्य और पर्यावरण विरोधी यन्त्रों, मसालों और खाद्य सामग्री का प्रयोग नहीं होगा।  
 
# विश्वविद्यालय में भोजन की व्यवस्था में किसी स्वास्थ्य और पर्यावरण विरोधी यन्त्रों, मसालों और खाद्य सामग्री का प्रयोग नहीं होगा।  
 
# विश्वविद्यालय का भवन प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग कर बनाया जायेगा।
 
# विश्वविद्यालय का भवन प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग कर बनाया जायेगा।
इन बातों का अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ असुविधा से भरा हुआ होगा। उल्टे अधिक सुविधापूर्ण हो इसका ध्यान रखा जायेगा। हमें पर्यावरण रक्षा, स्वास्थ्य और सुविधा एकदूसरे के अविरोधी हो सकते हैं यही सिद्ध करना होगा । इसी दृष्टि से सारे आयोजन किये जायेंगे। अध्ययन का समय, अध्ययन की पद्धति, अध्ययन के सन्दर्भ, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि सभी बातें भारतीय बनानी होंगी। साथ ही अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिये अध्ययन अध्यापन के अनुकूल आचारशैली भी अपनानी होगी। विदेशों से आने वाले विद्यार्थी विश्वविद्यालय की जीवनशैली अपनायेंगे, विश्वविद्यालय उनके लिये अपनी शैली में परिवर्तन नहीं करेगा।
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इन बातों का अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ असुविधा से भरा हुआ होगा। उल्टे अधिक सुविधापूर्ण हो इसका ध्यान रखा जायेगा। हमें पर्यावरण रक्षा, स्वास्थ्य और सुविधा एकदूसरे के अविरोधी हो सकते हैं यही सिद्ध करना होगा । इसी दृष्टि से सारे आयोजन किये जायेंगे। अध्ययन का समय, अध्ययन की पद्धति, अध्ययन के सन्दर्भ, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि सभी बातें धार्मिक बनानी होंगी। साथ ही अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिये अध्ययन अध्यापन के अनुकूल आचारशैली भी अपनानी होगी। विदेशों से आने वाले विद्यार्थी विश्वविद्यालय की जीवनशैली अपनायेंगे, विश्वविद्यालय उनके लिये अपनी शैली में परिवर्तन नहीं करेगा।
    
विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
 
विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
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वैश्विक संकटों का निवारण केवल इच्छा करने से नहीं होगा, प्रत्यक्षा काम करने से होगा, शिक्षा का एक ऐसा स्वरूप खडा करना जो सबको उपयोगी लगे, उसमें सबकी सहभागिता हो, यह आज की आवश्यकता है।  हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि ऐसा आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय शीघ्र ही हो।  
 
वैश्विक संकटों का निवारण केवल इच्छा करने से नहीं होगा, प्रत्यक्षा काम करने से होगा, शिक्षा का एक ऐसा स्वरूप खडा करना जो सबको उपयोगी लगे, उसमें सबकी सहभागिता हो, यह आज की आवश्यकता है।  हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि ऐसा आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय शीघ्र ही हो।  
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१३. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने हेतु पूर्वतैयारी : ऐसा विश्वविद्यालय बनाने का काम सरल नहीं है । भारत का वर्तमान शैक्षिक वातावरण अत्यन्त विपरीत है। भारतीय शास्त्रों का अध्ययन शिक्षा की मुख्य धारा में नहीं होता है। जहाँ होता है वहाँ वर्तमान समय के व्यावहारिक सन्दर्भो के बिना होता है।।
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१३. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने हेतु पूर्वतैयारी : ऐसा विश्वविद्यालय बनाने का काम सरल नहीं है । भारत का वर्तमान शैक्षिक वातावरण अत्यन्त विपरीत है। धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन शिक्षा की मुख्य धारा में नहीं होता है। जहाँ होता है वहाँ वर्तमान समय के व्यावहारिक सन्दर्भो के बिना होता है।।
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सर्वसामान्य जनजीवन पश्चिमीप्रभाव से ग्रस्त है। पश्चिम हमारे घरों की रसोई और शयन कक्षों तक घुस गया है। युवा, किशोर, बाल भारतीय नामक कोई जीवनदृष्टि होती है ऐसी कल्पना से भी अनभिज्ञ हैं। अंग्रेजी माध्यम में पढनेवाले भारत में ही अधार्मिक बनकर रहते हैं। विश्वविद्यालयों के बारे में मनीषी कहते हैं कि ये विश्वविद्यालय भारत में अवश्य हैं परन्तु उनमें भारत नहीं है । भारत बनाने की बात तो दूर की है । जितना बचा है उतने भारत को भी वे भारत रहने देना नहीं चाहते हैं । राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ भारत के ही पैसे से पूरजोर में चलती हैं। ऐसे कई वर्ग हैं जो भारत से रक्षण पोषण और सुविधायें तो अधिकारपूर्वक चाहते हैं परन्तु भारतीय बनकर रहना नहीं चाहते । सरकार भारतीय शिक्षा का समर्थन नहीं कर रही है। प्रशासक वर्ग अभी भी ब्रिटीशों का उत्तराधिकारी बनकर ही व्यवहार करता है।
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सर्वसामान्य जनजीवन पश्चिमीप्रभाव से ग्रस्त है। पश्चिम हमारे घरों की रसोई और शयन कक्षों तक घुस गया है। युवा, किशोर, बाल धार्मिक नामक कोई जीवनदृष्टि होती है ऐसी कल्पना से भी अनभिज्ञ हैं। अंग्रेजी माध्यम में पढनेवाले भारत में ही अधार्मिक बनकर रहते हैं। विश्वविद्यालयों के बारे में मनीषी कहते हैं कि ये विश्वविद्यालय भारत में अवश्य हैं परन्तु उनमें भारत नहीं है । भारत बनाने की बात तो दूर की है । जितना बचा है उतने भारत को भी वे भारत रहने देना नहीं चाहते हैं । राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ भारत के ही पैसे से पूरजोर में चलती हैं। ऐसे कई वर्ग हैं जो भारत से रक्षण पोषण और सुविधायें तो अधिकारपूर्वक चाहते हैं परन्तु धार्मिक बनकर रहना नहीं चाहते । सरकार धार्मिक शिक्षा का समर्थन नहीं कर रही है। प्रशासक वर्ग अभी भी ब्रिटीशों का उत्तराधिकारी बनकर ही व्यवहार करता है।
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ऐसी स्थिति में भारतीय स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाना सरल कार्य नहीं है। परन्तु करना अनिवार्य है ऐसा समझकर इन सभी अवरोधों को पार कर कैसे बनेगा इस दिशा में ही विचार करना चाहिये । यह सब हमारी पूर्वतैयारी होगी। इस तैयारी के विषय में हमें कुछ इन चरणों में विचार करना होगा।  
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ऐसी स्थिति में धार्मिक स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाना सरल कार्य नहीं है। परन्तु करना अनिवार्य है ऐसा समझकर इन सभी अवरोधों को पार कर कैसे बनेगा इस दिशा में ही विचार करना चाहिये । यह सब हमारी पूर्वतैयारी होगी। इस तैयारी के विषय में हमें कुछ इन चरणों में विचार करना होगा।  
    
१. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का स्वरूप और उसकी आवश्यकताओं का प्रारूप बनाकर संचार माध्यमों के द्वारा देशभर में व्यापक रूप में प्रचारित कर सबसे सहयोग का निवेदन करना चाहिये । आर्थिक आवश्यकता कम तो नहीं होगी। अतः व्यापक सहयोग की आवश्यकता रहेगी।  
 
१. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का स्वरूप और उसकी आवश्यकताओं का प्रारूप बनाकर संचार माध्यमों के द्वारा देशभर में व्यापक रूप में प्रचारित कर सबसे सहयोग का निवेदन करना चाहिये । आर्थिक आवश्यकता कम तो नहीं होगी। अतः व्यापक सहयोग की आवश्यकता रहेगी।  
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इसी प्रकार से व्यवसाय बदलना भी सम्भव नहीं होगा।
 
इसी प्रकार से व्यवसाय बदलना भी सम्भव नहीं होगा।
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विश्वविद्यालय की योजना के अनुसार भारतीय शास्त्रों का ही अध्ययन होगा । अतः उस प्रकार के छात्र ही इसमें अध्ययन हेतु आयेंगे।
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विश्वविद्यालय की योजना के अनुसार धार्मिक शास्त्रों का ही अध्ययन होगा । अतः उस प्रकार के छात्र ही इसमें अध्ययन हेतु आयेंगे।
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विश्वविद्यालय की स्थापना की प्रक्रिया में ही सरकार का नियन्त्रण नहीं होगा ऐसी कल्पना की गई है। अब अन्य विश्वविद्यालयों के समान पाठ्यक्रम होने चाहिये जिससे विश्वविद्यालय बदलने में कठिनाई न हो ऐसा दबाव बन सकता है परन्तु ऐसा करना सम्भव नहीं होगा क्योंकि अन्य विश्वविद्यालय यूरोपीय ज्ञानसंकल्पना के अनुसार चलेंगे परन्तु आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञानपरंपरा में चलेगा इस बात की स्पष्टता करनी होगी।
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विश्वविद्यालय की स्थापना की प्रक्रिया में ही सरकार का नियन्त्रण नहीं होगा ऐसी कल्पना की गई है। अब अन्य विश्वविद्यालयों के समान पाठ्यक्रम होने चाहिये जिससे विश्वविद्यालय बदलने में कठिनाई न हो ऐसा दबाव बन सकता है परन्तु ऐसा करना सम्भव नहीं होगा क्योंकि अन्य विश्वविद्यालय यूरोपीय ज्ञानसंकल्पना के अनुसार चलेंगे परन्तु आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय धार्मिक ज्ञानपरंपरा में चलेगा इस बात की स्पष्टता करनी होगी।
    
इस विश्वविद्यालय में आवश्यक नहीं होगा कि नियत समय में ही पाठ्यक्रम पूर्ण होगा, नियत स्वरूप में ही परीक्षा यें होंगी सबके लिये समान अवधि रहेगा । विद्यार्थी की क्षमता और तत्परता के अनुसार कमअधिक समय लग सकता है।
 
इस विश्वविद्यालय में आवश्यक नहीं होगा कि नियत समय में ही पाठ्यक्रम पूर्ण होगा, नियत स्वरूप में ही परीक्षा यें होंगी सबके लिये समान अवधि रहेगा । विद्यार्थी की क्षमता और तत्परता के अनुसार कमअधिक समय लग सकता है।
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संक्षेप में विश्वविद्यालय के मापदण्ड भी भारतीय पद्धति के अनुसार होंगे।
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संक्षेप में विश्वविद्यालय के मापदण्ड भी धार्मिक पद्धति के अनुसार होंगे।
    
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय काम करने लगेगा तब संकल्पनायें और व्यवहार कालक्रम में स्पष्ट होते जायेंगे ।
 
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय काम करने लगेगा तब संकल्पनायें और व्यवहार कालक्रम में स्पष्ट होते जायेंगे ।
    
==References==
 
==References==
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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<references />धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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