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# भोजन सात्त्विक और शुद्ध शाकाहारी होगा।  
 
# भोजन सात्त्विक और शुद्ध शाकाहारी होगा।  
 
# इस विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन करने वाले हाथ से होने वाले कामों में हाथ बँटायेंगे। बिना कारसेवा के कोई नहीं रहेगा।  
 
# इस विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन करने वाले हाथ से होने वाले कामों में हाथ बँटायेंगे। बिना कारसेवा के कोई नहीं रहेगा।  
# विश्वविद्यालय में बैठने की व्यवस्था भारतीय रहेगी। आपात्कालीन व्यवस्थायें अभारतीय हो सकती हैं परन्तु शीघ्रातिशीघ्र उनका त्याग करने की मानसिकता विकसित होगी।  
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# विश्वविद्यालय में बैठने की व्यवस्था भारतीय रहेगी। आपात्कालीन व्यवस्थायें अधार्मिक हो सकती हैं परन्तु शीघ्रातिशीघ्र उनका त्याग करने की मानसिकता विकसित होगी।  
 
# विश्वविद्यालय में सिन्थेटिक पदार्थों और सिन्थेटिसीझम का पूर्ण निषेध रहेगा।  
 
# विश्वविद्यालय में सिन्थेटिक पदार्थों और सिन्थेटिसीझम का पूर्ण निषेध रहेगा।  
 
# विद्युत का प्रयोग नहीं करने का साहस भी दिखाना होगा।
 
# विद्युत का प्रयोग नहीं करने का साहस भी दिखाना होगा।
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१३. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने हेतु पूर्वतैयारी : ऐसा विश्वविद्यालय बनाने का काम सरल नहीं है । भारत का वर्तमान शैक्षिक वातावरण अत्यन्त विपरीत है। भारतीय शास्त्रों का अध्ययन शिक्षा की मुख्य धारा में नहीं होता है। जहाँ होता है वहाँ वर्तमान समय के व्यावहारिक सन्दर्भो के बिना होता है।।
 
१३. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने हेतु पूर्वतैयारी : ऐसा विश्वविद्यालय बनाने का काम सरल नहीं है । भारत का वर्तमान शैक्षिक वातावरण अत्यन्त विपरीत है। भारतीय शास्त्रों का अध्ययन शिक्षा की मुख्य धारा में नहीं होता है। जहाँ होता है वहाँ वर्तमान समय के व्यावहारिक सन्दर्भो के बिना होता है।।
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सर्वसामान्य जनजीवन पश्चिमीप्रभाव से ग्रस्त है। पश्चिम हमारे घरों की रसोई और शयन कक्षों तक घुस गया है। युवा, किशोर, बाल भारतीय नामक कोई जीवनदृष्टि होती है ऐसी कल्पना से भी अनभिज्ञ हैं। अंग्रेजी माध्यम में पढनेवाले भारत में ही अभारतीय बनकर रहते हैं। विश्वविद्यालयों के बारे में मनीषी कहते हैं कि ये विश्वविद्यालय भारत में अवश्य हैं परन्तु उनमें भारत नहीं है । भारत बनाने की बात तो दूर की है । जितना बचा है उतने भारत को भी वे भारत रहने देना नहीं चाहते हैं । राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ भारत के ही पैसे से पूरजोर में चलती हैं। ऐसे कई वर्ग हैं जो भारत से रक्षण पोषण और सुविधायें तो अधिकारपूर्वक चाहते हैं परन्तु भारतीय बनकर रहना नहीं चाहते । सरकार भारतीय शिक्षा का समर्थन नहीं कर रही है। प्रशासक वर्ग अभी भी ब्रिटीशों का उत्तराधिकारी बनकर ही व्यवहार करता है।
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सर्वसामान्य जनजीवन पश्चिमीप्रभाव से ग्रस्त है। पश्चिम हमारे घरों की रसोई और शयन कक्षों तक घुस गया है। युवा, किशोर, बाल भारतीय नामक कोई जीवनदृष्टि होती है ऐसी कल्पना से भी अनभिज्ञ हैं। अंग्रेजी माध्यम में पढनेवाले भारत में ही अधार्मिक बनकर रहते हैं। विश्वविद्यालयों के बारे में मनीषी कहते हैं कि ये विश्वविद्यालय भारत में अवश्य हैं परन्तु उनमें भारत नहीं है । भारत बनाने की बात तो दूर की है । जितना बचा है उतने भारत को भी वे भारत रहने देना नहीं चाहते हैं । राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ भारत के ही पैसे से पूरजोर में चलती हैं। ऐसे कई वर्ग हैं जो भारत से रक्षण पोषण और सुविधायें तो अधिकारपूर्वक चाहते हैं परन्तु भारतीय बनकर रहना नहीं चाहते । सरकार भारतीय शिक्षा का समर्थन नहीं कर रही है। प्रशासक वर्ग अभी भी ब्रिटीशों का उत्तराधिकारी बनकर ही व्यवहार करता है।
    
ऐसी स्थिति में भारतीय स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाना सरल कार्य नहीं है। परन्तु करना अनिवार्य है ऐसा समझकर इन सभी अवरोधों को पार कर कैसे बनेगा इस दिशा में ही विचार करना चाहिये । यह सब हमारी पूर्वतैयारी होगी। इस तैयारी के विषय में हमें कुछ इन चरणों में विचार करना होगा।  
 
ऐसी स्थिति में भारतीय स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाना सरल कार्य नहीं है। परन्तु करना अनिवार्य है ऐसा समझकर इन सभी अवरोधों को पार कर कैसे बनेगा इस दिशा में ही विचार करना चाहिये । यह सब हमारी पूर्वतैयारी होगी। इस तैयारी के विषय में हमें कुछ इन चरणों में विचार करना होगा।  

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