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संक्षेप में इस देश का तत्त्वज्ञान और व्यवहार हमारे अध्ययन का विषय रहेगा।
 
संक्षेप में इस देश का तत्त्वज्ञान और व्यवहार हमारे अध्ययन का विषय रहेगा।
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==== विश्व के विभिन्न सम्प्रदायों का अध्ययन ====
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==== २. विश्व के विभिन्न सम्प्रदायों का अध्ययन ====
 
धर्म निरपेक्षता, पन्थनिरपेक्षता, सेकुलरिझम, धार्मिक सहिष्णुता, साम्प्रदायिक सद्भाव, निधार्मिकता, साम्प्रदायिक कट्टरता आदि बातों का महान कोलाहल विश्व में मचा हुआ है । इस्लाम और इसाइयत विश्व के अर्थकारण, समाजकारण, राजकारण, लोकजीवन आदि को प्रभावित कर रहे हैं, यहाँ तक कि शिक्षा भी इनसे मुक्त नहीं है। धर्मान्तरण का बहुत बडा अभियान इन दोनों सम्प्रदायों के जन्मकाल से ही शुरू हुआ है और पूरा विश्व इसकी चपेट में आया हुआ है। इस स्थिति में सम्प्रदायों का अध्ययन करना आवश्यक रहेगा।
 
धर्म निरपेक्षता, पन्थनिरपेक्षता, सेकुलरिझम, धार्मिक सहिष्णुता, साम्प्रदायिक सद्भाव, निधार्मिकता, साम्प्रदायिक कट्टरता आदि बातों का महान कोलाहल विश्व में मचा हुआ है । इस्लाम और इसाइयत विश्व के अर्थकारण, समाजकारण, राजकारण, लोकजीवन आदि को प्रभावित कर रहे हैं, यहाँ तक कि शिक्षा भी इनसे मुक्त नहीं है। धर्मान्तरण का बहुत बडा अभियान इन दोनों सम्प्रदायों के जन्मकाल से ही शुरू हुआ है और पूरा विश्व इसकी चपेट में आया हुआ है। इस स्थिति में सम्प्रदायों का अध्ययन करना आवश्यक रहेगा।
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# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के छात्र अपने अध्यापकों के मार्गदर्शन में ऐसा अध्ययन कर सकते हैं। एक एक देश के ऐसे अध्ययन के बाद एकत्र चर्चा होना आवश्यक है। इस चर्चा के आधार पर विश्वस्थिति का आकलन हो सकता है । इन देशों के संकट क्या हैं और उनके निराकरण के उपाय क्या हैं यह समझना और उन देशों की सहायता करने के लिये प्रस्तुत होना आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का काम है। यहाँ के छात्रों को ऐसा अनुभव अधिक से अधिक मात्रा में मिलना चाहिये जिससे उनका दृष्टिकोण व्यापक बने । तटस्थतापूर्वक और सहृदयतापूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है।  भारत का इन देशों के साथ सम्बन्ध भी जुडना चाहिये । इसलिये इस अध्ययन में राष्ट्रीय दृष्टि होना भी आवश्यक है।  
 
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के छात्र अपने अध्यापकों के मार्गदर्शन में ऐसा अध्ययन कर सकते हैं। एक एक देश के ऐसे अध्ययन के बाद एकत्र चर्चा होना आवश्यक है। इस चर्चा के आधार पर विश्वस्थिति का आकलन हो सकता है । इन देशों के संकट क्या हैं और उनके निराकरण के उपाय क्या हैं यह समझना और उन देशों की सहायता करने के लिये प्रस्तुत होना आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का काम है। यहाँ के छात्रों को ऐसा अनुभव अधिक से अधिक मात्रा में मिलना चाहिये जिससे उनका दृष्टिकोण व्यापक बने । तटस्थतापूर्वक और सहृदयतापूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है।  भारत का इन देशों के साथ सम्बन्ध भी जुडना चाहिये । इसलिये इस अध्ययन में राष्ट्रीय दृष्टि होना भी आवश्यक है।  
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==== . देशों की आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन ====
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==== . देशों की आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन ====
 
यह अध्ययन बहुत ही रोचक रहेगा। कुछ इस प्रकार की जानकारी एकत्रित की जा सकती है।  
 
यह अध्ययन बहुत ही रोचक रहेगा। कुछ इस प्रकार की जानकारी एकत्रित की जा सकती है।  
 
# देश का क्षेत्र कितना है। यह क्षेत्र काल प्रवाह में कितना, किस प्रकार, किस रूप में बदलता रहा है । वर्तमान क्षेत्र कब से है। वर्तमान नाम क्या है। पूर्व में कौन कौन से नाम रहे हैं। वर्तमान नामकरण कैसे हुआ।  
 
# देश का क्षेत्र कितना है। यह क्षेत्र काल प्रवाह में कितना, किस प्रकार, किस रूप में बदलता रहा है । वर्तमान क्षेत्र कब से है। वर्तमान नाम क्या है। पूर्व में कौन कौन से नाम रहे हैं। वर्तमान नामकरण कैसे हुआ।  
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इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करने से देशों की राजकीय, आर्थिक, बौद्धिक सामर्थ्य का पता चलता है। अमेरिका जैसा देश इन देशों पर क्या असर करता है या कर सकता है इसका भी पता चलेगा। विश्व के सांस्कृतिक इतिहास में इनका क्या स्थान है इसकी भी जानकारी प्राप्त होगी। उनके लिये हम क्या कर सकते हैं इसका आकलन भी हम कर पायेंगे । इनकी हमारे साथ समरसता हो सकती है कि नहीं और यदि हों, तो कैसे इसका भी विचार हम कर पायेंगे।
 
इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करने से देशों की राजकीय, आर्थिक, बौद्धिक सामर्थ्य का पता चलता है। अमेरिका जैसा देश इन देशों पर क्या असर करता है या कर सकता है इसका भी पता चलेगा। विश्व के सांस्कृतिक इतिहास में इनका क्या स्थान है इसकी भी जानकारी प्राप्त होगी। उनके लिये हम क्या कर सकते हैं इसका आकलन भी हम कर पायेंगे । इनकी हमारे साथ समरसता हो सकती है कि नहीं और यदि हों, तो कैसे इसका भी विचार हम कर पायेंगे।
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==== . विश्व के देश भारत को जानें ====
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==== . विश्व के देश भारत को जानें ====
 
कभी तो ऐसा समय था जब पश्चिम भारत को सँपेरों और मदारियों का देश समझता था। कभी तो ऐसा समय था जब विदेशों से मेधावी विद्यार्थी भारत में अध्ययन करने के लिये आते थे । एक समय था जब भारत का विदेश व्यापार बहुत बडा था । एक समय था जब भारत के लोग विश्व के सभी देशों में संस्कृति का सन्देश लेकर पहुँचते थे। एक समय था जब भारत सोने की चिडिया के रूप में पहचाना जाता था। एक समय था जब भारत हिन्दुस्थान के रूप में पहचाना जाता था।
 
कभी तो ऐसा समय था जब पश्चिम भारत को सँपेरों और मदारियों का देश समझता था। कभी तो ऐसा समय था जब विदेशों से मेधावी विद्यार्थी भारत में अध्ययन करने के लिये आते थे । एक समय था जब भारत का विदेश व्यापार बहुत बडा था । एक समय था जब भारत के लोग विश्व के सभी देशों में संस्कृति का सन्देश लेकर पहुँचते थे। एक समय था जब भारत सोने की चिडिया के रूप में पहचाना जाता था। एक समय था जब भारत हिन्दुस्थान के रूप में पहचाना जाता था।
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विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
 
विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
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==== ११. सरकार की भूमिका ====
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==== . सरकार की भूमिका ====
 
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भारत सरकार का अनुमोदन अवश्य होना चाहिये । यह सरकार की भी प्रतिष्ठा का विषय बनेगा । परन्तु यह विश्वविद्यालय सरकारी नहीं होगा। भारत सरकार की पहल से नहीं बनेगा । अन्य विश्वविद्यालयों के समान संसद में प्रस्ताव विधेयक पारित कर, कानून बनाकर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मान्यता लेकर यह नहीं बनेगा। अध्यापकों की पहल से बनेगा। अध्यापकों की बनी हुई आचार्य परिषद अपने में से ही योग्य व्यक्ति को कुलपति नियुक्त करेगी और कुलपति के नेतृत्व में आचार्य परिषद विश्वविद्यालय का संचालन करेगी। भारत सरकार, उद्योगसमूह, जनसामान्य अर्थ का सहयोग करेंगे परन्तु नियन्त्रण नहीं।
 
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भारत सरकार का अनुमोदन अवश्य होना चाहिये । यह सरकार की भी प्रतिष्ठा का विषय बनेगा । परन्तु यह विश्वविद्यालय सरकारी नहीं होगा। भारत सरकार की पहल से नहीं बनेगा । अन्य विश्वविद्यालयों के समान संसद में प्रस्ताव विधेयक पारित कर, कानून बनाकर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मान्यता लेकर यह नहीं बनेगा। अध्यापकों की पहल से बनेगा। अध्यापकों की बनी हुई आचार्य परिषद अपने में से ही योग्य व्यक्ति को कुलपति नियुक्त करेगी और कुलपति के नेतृत्व में आचार्य परिषद विश्वविद्यालय का संचालन करेगी। भारत सरकार, उद्योगसमूह, जनसामान्य अर्थ का सहयोग करेंगे परन्तु नियन्त्रण नहीं।
  
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