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विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
 
विश्वविद्यालय में अध्ययन का माध्यम हिन्दी या संस्कृत रहेगा। विदेशी विद्यार्थी भी इनमें से एक अथवा दोनों का अभ्यास करके आयेंगे। अंग्रेजी भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का अध्ययन करने की अनुमति तो रहेगी परन्तु माध्यम अंग्रेजी नहीं होगा।
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==== . सरकार की भूमिका ====
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==== ११. सरकार की भूमिका ====
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भारत सरकार का अनुमोदन अवश्य होना चाहिये । यह सरकार की भी प्रतिष्ठा का विषय बनेगा । परन्तु यह विश्वविद्यालय सरकारी नहीं होगा। भारत सरकार की पहल से नहीं बनेगा । अन्य विश्वविद्यालयों के समान संसद में प्रस्ताव विधेयक पारित कर, कानून बनाकर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मान्यता लेकर यह नहीं बनेगा। अध्यापकों की पहल से बनेगा। अध्यापकों की बनी हुई आचार्य परिषद अपने में से ही योग्य व्यक्ति को
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आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भारत सरकार का अनुमोदन अवश्य होना चाहिये । यह सरकार की भी प्रतिष्ठा का विषय बनेगा । परन्तु यह विश्वविद्यालय सरकारी नहीं होगा। भारत सरकार की पहल से नहीं बनेगा । अन्य विश्वविद्यालयों के समान संसद में प्रस्ताव विधेयक पारित कर, कानून बनाकर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मान्यता लेकर यह नहीं बनेगा। अध्यापकों की पहल से बनेगा। अध्यापकों की बनी हुई आचार्य परिषद अपने में से ही योग्य व्यक्ति को कुलपति नियुक्त करेगी और कुलपति के नेतृत्व में आचार्य परिषद विश्वविद्यालय का संचालन करेगी। भारत सरकार, उद्योगसमूह, जनसामान्य अर्थ का सहयोग करेंगे परन्तु नियन्त्रण नहीं।
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इस विश्वविद्यालय की शैक्षिक गतिविधियों का आयोजन नियोजन विश्वविद्यालय स्वयं करेगा। सर्व प्रकार की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय स्वयं वहन करेगा, समाज सहयोग करेगा। अध्यापकों के ज्ञान और चरित्र से तथा सरकार और देश की आवश्यकता विषयक जागृति से प्रेरित होकर विश्वविद्यालय को सहयोग अवश्य मिलेगा। इस विषय में भी वह तक्षशिला विद्यापीठ का ही अनुसरण करेगा।
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इस विश्वविद्यालय के प्रमाणपत्रों की प्रतिष्ठा देश के और विदेशों के विश्वविद्यालयों में होगी। अनेक विश्वविद्यालय इसके शैक्षिक पक्ष को अपनाना चाहेंगे। इस विषय में विश्वविद्यालय संगठनात्मक काम भी करेगा अन्य विश्वविद्यालयों को अपने कार्य में सहभागी बनायेगा।
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१२. यह विश्वविद्यालय वर्तमान समय की आवश्यकता को पहचानकर लोकशिक्षा और परिवार शिक्षा का कार्यक्रम भी नियमित रूप से चलायेगा । वास्तव में शिक्षा से सम्बन्धित सभी पक्षों का एक साथ समग्रता में विचार करना ही विश्वविद्यालय का मुख्य प्रयोजन रहेगा । विश्व को मार्गदर्शन करने हेतु भारत को समर्थ बनाना मुख्य मार्ग है । सभी समस्याओं का ज्ञानात्मक हल ढूँढना सही पद्धति है। सम्पूर्ण ज्ञान को व्यवहारक्षम बनाना अनिवार्य आवश्यकता है। इन बातों को आधारभूत सूत्र बनाकर विश्वविद्यालय को शीघ्रातिशीघ्र कार्यरत करना चाहिये ।
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वैश्विक संकटों का निवारण केवल इच्छा करने से नहीं होगा, प्रत्यक्षा काम करने से होगा, शिक्षा का एक ऐसा स्वरूप खडा करना जो सबको उपयोगी लगे, उसमें सबकी सहभागिता हो, यह आज की आवश्यकता है।  हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि ऐसा आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय शीघ्र ही हो।
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१३. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने हेतु पूर्वतैयारी : ऐसा विश्वविद्यालय बनाने का काम सरल नहीं है । भारत का वर्तमान शैक्षिक वातावरण अत्यन्त विपरीत है। भारतीय शास्त्रों का अध्ययन शिक्षा की मुख्य धारा में नहीं होता है। जहाँ होता है वहाँ वर्तमान समय के व्यावहारिक सन्दर्भो के बिना होता है।।
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सर्वसामान्य जनजीवन पश्चिमीप्रभाव से ग्रस्त है। पश्चिम हमारे घरों की रसोई और शयन कक्षों तक घुस गया है। युवा, किशोर, बाल भारतीय नामक कोई जीवनदृष्टि होती है ऐसी कल्पना से भी अनभिज्ञ हैं। अंग्रेजी माध्यम में पढनेवाले भारत में ही अभारतीय बनकर रहते हैं। विश्वविद्यालयों के बारे में मनीषी कहते हैं कि ये विश्वविद्यालय भारत में अवश्य हैं परन्तु उनमें भारत नहीं है । भारत बनाने की बात तो दूर की है । जितना बचा है उतने भारत को भी वे भारत रहने देना नहीं चाहते हैं । राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ भारत के ही पैसे से पूरजोर में चलती हैं। ऐसे कई वर्ग हैं जो भारत से रक्षण पोषण और सुविधायें तो अधिकारपूर्वक चाहते हैं परन्तु भारतीय बनकर रहना नहीं चाहते । सरकार भारतीय शिक्षा का समर्थन नहीं कर रही है। प्रशासक वर्ग अभी भी ब्रिटीशों का उत्तराधिकारी बनकर ही व्यवहार करता है।
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ऐसी स्थिति में भारतीय स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाना सरल कार्य नहीं है। परन्तु करना अनिवार्य है ऐसा समझकर इन सभी अवरोधों को पार कर कैसे बनेगा इस दिशा में ही विचार करना चाहिये । यह सब हमारी पूर्वतैयारी होगी। इस तैयारी के विषय में हमें कुछ इन चरणों में विचार करना होगा।
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१४. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का स्वरूप और उसकी आवश्यकताओं का प्रारूप बनाकर संचार माध्यमों के द्वारा देशभर में व्यापक रूप में प्रचारित कर सबसे सहयोग का निवेदन करना चाहिये । आर्थिक आवश्यकता कम तो नहीं होगी। अतः व्यापक
    
==References==
 
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