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14.  मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय कृणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के । लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । कृणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । इसलिए ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
 
14.  मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय कृणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के । लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । कृणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । इसलिए ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
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15.  मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो
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15.  मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
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16.  हम पूरी दुनियाँ में हमारी प्रतिनिधिक कचहरियाँ स्थापित करते हैं, उसका मुख्य कारण हमारे अपने ही हित साधना होता हैं । और उसका सही अर्थ ५० वर्षों में अमेरिकन लोकतंत्र को वैश्विक साम्राज्य में बदल डालना है।
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17.  हम इण्डोनेशिया में काम करते थे, तब हमें इण्डोनेशिया की प्रजा का भला करने के लिए नहीं अपितु उनका धन लूट लेने के लोभ में भेजा जाता था । मेरे साथी प्रोफेसर आदि को मेक्रो इकोनोमिक्स (जंगी प्रोजेक्ट आदि) का वास्तविक परिणाम क्या आता है, इसका विशेष ज्ञान नहीं था। अनेक किस्सों में जंगी प्रोजेक्टों के अमल के कारण समाज में आर्थिक पिरामिड में जो उसकी नोंक पर बैठा है वह सबसे अधिक धनवान बनता है। और जो नीचे तल में बैठा है, उसे और अधिक दबाने का काम ही वह करता है। इस वास्तविकता का ख्याल मेरे साथियों को नहीं था । मैं विचार करता रहता था कि किसी दिन तो मैं यह सारा षड़यन्त्र खोल कर रख दूंगा।
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18.  दुनियाँ का चित्र बदल डालने का निर्णय जो लोग लेते थे ऐसे बड़े बड़े लोगों के सम्पर्क में, मैं जैसे जैसे आया वैसे वैसे उनकी शक्ति और उनके ध्येय के विषय में मैं नास्तिक और निराशा वादी बनता गया ।
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19.  युद्धों के लिए शस्त्रों के थोक उत्पादन से किसे लाभ होता है। नदियों के ऊपर बाँध बनाने से या देश का पर्यावरण और संस्कृति का नाश करने से किसे लाभ होता है इस विषय में मुझे आश्चर्य होने लगा । आधा-अधूरा खाने के लिए, प्रदूषित पानी और समाप्त न होने वाले रोगों से लाखों - लाखों लोगों की मृत्यु होती है। इससे किसको लाभ होता है, इसका भी मुझे आश्चर्य लगने लगा । धीरे धीरे मुझे समझ में आने लगा कि लम्बी अवधि में तो किसी को लाभ नहीं, परन्तु अल्प अवधि में पिरामिड़ के शिखर पर बैठे मेरे जैसे अथवा मेरे बोस को लाभ जरुर होता है।
    
==References==
 
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