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वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
 
वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
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8. मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, इसलिए हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
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9. हम 'आर्थिक हत्यारे' वैश्विक साम्राज्य खड़ा करते हैं। हम सब बहुत सज्जन स्त्री-पुरुष हैं, जो सब अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का उपयोग करके दूसरे देशों के लिए ऐसी कठिन स्थिति पैदा करते हैं कि उसमें दूसरे देश  हमारी कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् विशाल कम्पनियों, बैंको और हमारी सरकार के गुलाम बन जाय । हमारे माफिया
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सहभागीदारों की तरह हमें आर्थिक हत्यारे लालच देते हैं । देश में विकास के नाम पर बिजली के केन्द्र, हाइवे, मार्ग, बन्दरगाह, एयरपोर्ट और औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए ऋण देते हैं । इन सभी ऋणों के साथ शर्त होती है कि केवल हमारे देश की इंजिनीयरिंग और निर्माण कार्य करने वाली कम्पनियों को ही वह ठेका देना होगा, अर्थात् जो ऋण देंगे उसके अधिकांश भाग की राशि अमेरिका से बाहर कभी नहीं जाती। लोगों के ये पैसे वाशिंग्टन की बैंकों में से न्यूयार्क, हस्टन और सान्फ्रान्सीस्को की इंजिनीयरिंग ऑफिसों में मात्र ट्रान्सफर होते है । परन्तु ऋण लेने वाले देश तो ऋण की सारी रकम तथा उस पर लगने वाला व्याज भी चुकाने को बाध्य हो जाते हैं, और इस प्रकार कर्ज में डूब जाते हैं। अगर आर्थिक हत्यारा पूर्ण रूप से सफल होता है तो उस देश को इतना बड़ा ऋण दे दिया जाता है कि लेने वाला देश इतनी बड़ी राशि कभी भी चुका न सके और कुछ वर्षों के बाद ही ऋण और ब्याज की किश्त अदा न कर पाये इस स्थिति में आ जाता है। ऐसी लाचार स्थिति में माफियों की तरह हम पूरा लाभ उठाते हैं। बाद में हम उस देश में पुलिस थाना स्थापित करने की माँग करते हैं जिससे तुम्हारी प्राकृतिक सम्पदा-पेट्रोलियम, खनिज आदि ले सकें। और वह कर्ज तो वैसा का वैसा खड़ा ही रहता है। इस तरह देश को गुलाम बनाते हैं और हमारा वैश्विक साम्राज्य बढ़ता हैं।
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10. मैं और मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों ने ईक्वाडोर (दक्षिण अमेरिका का देश) में गत ३५ वर्षों में आधुनिक अर्थशास्त्र, बैंक और इंजिनीयरिंग के विकास के नाम पर जो काम किया उससे गरीबी जो ५०% थी, वह ७०% हुई, कुल कर्ज २८ करोड़ डालर था वह १६०० करोड़ डॉलर हुआ, बेकारी १५% थी वह बढ़कर ७०% हुई, राष्ट्रीय सम्पत्ति का २०% गरीबों पर खर्च होता था, वह घटकर ६% रह गया ! ३५ वर्ष पहले शुद्ध नदी, शुद्ध पानी आदि था वह गन्दे गटर में बदल गया, क्योंकि ऑयल कम्पनियाँ प्रतिदिन ४० लाख गेलन गन्दा, तेल वाला और केन्सरयुक्त पानी इन स्वच्छ नदियों में डालती थीं। इन कम्पनियों ने ३५० खदानें खोदकर खुली छोड़ दीं, जिनमें मनुष्य और पशु गिरकर मरते रहते हैं।
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अकेले ईक्वाडोर की यह दशा नहीं है। हम आर्थिक हत्यारों ने जिन जिन देशों को अमेरिकन वैश्विक साम्राज्य का गुलाम बना दिया है उन सभी देशों का यही हाल है। तीसरे विश्व का कर्ज बढ़कर २५०० अरब डॉलर पहुँच गया है। और कर्ज का ब्याज प्रति वर्ष ३७५ अरब डॉलर होता है उसमें से यह ब्याज की रकम २० गुणा है ! अभी (२००४) दुनिया की आधी बस्ती दैनिक दो डॉलर से भी कम ही कमाती है। इतनी कमाई तो १९७० में भी थी। परन्तु अभी तीसरे विश्व के केवल एक प्रतिशत लोग अपने देश की कुल वित्तीय समृद्धि तथा सम्पत्तियों का ७० से ९०% हिस्सा रखते हैं।
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11.  हम (२००४ में) सुन्दर नदी के किनारे प्रवास कर रहे थे, वहाँ नदी के बीच में राक्षसी दिवार के रूप में खड़ा हुआ बाँध आया । इस बाँध के पानी से १५६ मेगावट का हाइड्रोलेक्ट्रिक पॉवर प्रोजेक्ट चलता था। इस की बिजली बड़े उद्योगों में उपयोग ली जाती थी। जिनसे ईक्वाडोर के मुठ्ठी भर मनुष्य समृद्ध होते थे और नदी के किनारे बसे हुए किसान और स्थानीय लोगों के अकथ्य दुःखों का कारण यह बाँध था । यह हाइड्रोलेक्ट्रिक प्लान्ट और ऐसे दूसरे अनेक प्रोजेक्ट मेरे और मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों के प्रयत्नों से विकसित हुए थे। ऐसे प्रोजेक्टों के कारण ही अमेरिकी वैश्विक साम्राज्य में ईक्वाडोर हस्तक बना है। इसके कारण ही स्थानीय प्रजाएँ हमारी तेल कम्पनियों के सामने युद्ध छेड़ने की धमकियाँ देती हैं ।
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आर्थिक हत्यारों के द्वारा स्थापित प्रोजेक्टों के कारण आज ईक्वाडोर विदेशी कर्ज में नष्ट हो गया है। परिणाम स्वरूप उसके राष्ट्रीय बजट का अधिकांश भाग कर्ज चुकता करने में ही चला जाता है। और अपने देश में भयानक गरीबी में लिपटे हुए करोड़ों लोगों के लिए उपयोग करने के स्थान पर कर्ज की भरपाई करने में ही सारा राष्ट्रीय बजट चला जाता है । ईक्वाडोर के लिए अब एक मात्र मार्ग यह है कि कर्ज के बदले में तेल कम्पनियों को प्राकृतिक जंगल ही बेच दिये जाये, वास्तव में आर्थिक हत्यारों की ईक्वाडोर पर सबसे पहली नजर पड़ी उसका मुख्य कारण यही था कि एमेजोन प्रदेश के नीचे तेल का समृद्ध भंडार पड़ा हुआ है, वह अरब राष्ट्रों के तेल भंडारों जितना ही है, उसे हड़प लेना ही मुख्य उद्देश्य था । दुनिया भर में ईक्वाडोर में से प्रति १०० डॉलर के तेल में से ७५ डॉलर तो तेल कम्पनियाँ ही ले जाती हैं। शेष बचे २५ डॉलर में से विदेशी कर्ज की भरपाई करने में १९ डॉलर चले जाते हैं । बाकी बचे ६ डॉलर में से फौज और सरकारी खर्च निकालने के बाद बेचारे गरीब मनुष्य की प्रगति, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए केवल ढाई डॉलर मुश्किल से बचता है । इस तरह प्रति १०० डॉलर का तेल ईक्वाडोर में से निकाल लेने में जिसे पैसों की सख्त जरुरत है, जिसकी जिन्दगी बाँध के कारण, तेल के लिये खुदाई के कारण तथा पाइपलाइन के कारण बर्बाद हुई है और जो पर्याप्त भोजन और स्वच्छ पानी के बिना मर रहे हैं, उनके लिए मुश्किल से ढाई डॉलर रकम बचती है।
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ये सभी लोग - ईक्वाडोर में लाखों और पूरी दुनियाँ में करोड़ों लोग - संभावित आतंकवादी हैं। ये कोई साम्यवादी नहीं हैं या अराजकवादी नहीं हैं और मूल रुपसे अनिष्ट लोग नहीं है, परन्तु वे अन्याय से पूर्णतया हताश हो चुके हैं।
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12.  हम आर्थिक हत्यारे षडयंत्र करने वाले शठ मनुष्य होते हैं । हम इतिहास से सीखे हुए हैं । इसलिए हम तलवार नहीं रखते, हम कवच भी नहीं पहनते, जिससे हम अलग रूप में दिखें । ईक्वेडोर, इण्डोनेशिया और नाइजिरीया जैसे देशों में हम दकानदार या शिक्षक के जैसा पहनावा पहनते हैं। वॉशिंगटन और पेरिस में हम सरकारी अधिकारियों और बैंक अधिकारियों जैसे दिखाई देते हैं । हम प्रोजेक्ट साइट की जानकारी लेते हैं और गरीबी में डूबे गाँव में भी चक्कर लगा लेते हैं। हम परोपकार और परमार्थ की वकालत करते हैं । और स्थानीय अखबारों के साथ हम आश्चर्यजनक रूप से मानवतावादी कामकाज करते रहने का वचन देते हैं। सरकारी समितियों की कॉन्फरन्स टेबल पर बड़े बड़े कागजों पर बनाये हुए धन्धों के चमत्कारिक परिणाम के बारे में हार्वर्ड बिजनस स्कूल में भाषण देते हैं । दस्तावेजों पर खुल्लम खुल्ला हमारा नाम होता है। हम इस तरह अपने आपको आर्थिक विकास के निष्णात के रुप में प्रस्तुत करते हैं और बड़े निष्णात के रूप में लोक हमारा
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स्वीकार करते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण पद्धति काम करती है। हम लगभग कभी गैरकानूनी काम नहीं करते हैं । क्यों कि सम्पूर्ण पद्धति ही कानून सम्मत है और समस्त पद्धतियाँ शोषण के लिए ही बनाई हुई हैं । ऐसा होते हुए भी अगर हम आर्थिक हत्यारे के रूप में विफल होते हैं तो अधिक पापी, गुंडे लोग काम को अपने हाथ में लेते हैं, जिन्हें हम आर्थिक हत्यारे 'जेकल' (अर्थात् खूनी) कहते हैं । ये लोग पुराने साम्राज्य के काले कारनामे करने वालों के वारिस ही माने जाते हैं । ये सभी जेकल, हमारे पीछे हमारी छाया की तरह सदैव खड़े मिलते हैं। जब ये चित्र में आते हैं, तब देश के जो प्रमुख होते हैं उन्हें भी सत्ता से उखाड़ फेंक दिया जाता हैं । अथवा वे हिंसक दुर्घटना में मारे जाते हैं। और कदाचित जेकल भी विफल हो जाय तो पुराने तरीके आजमाने पड़ते हैं । अर्थात् युद्ध किया जाता है, जिसमें युवा अमेरिकनों को मारने या मरने के लिए भेजा जाता है।
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13.  मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
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14.  मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय कृणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के । लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । कृणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । इसलिए ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
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15.  मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो
    
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