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पश्चिम का जीवनविषयक तर्क इस प्रकार का है इसलिये कामनापूर्ति के लिये आपाधापी करना उसके जीवनयापन का पर्याय बन गया है।
 
पश्चिम का जीवनविषयक तर्क इस प्रकार का है इसलिये कामनापूर्ति के लिये आपाधापी करना उसके जीवनयापन का पर्याय बन गया है।
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कामनाओं का स्वभाव ऐसा है कि एक कामना पूर्ण करो तो दस जगती है। अतः कामनापूर्ति के प्रयासों का कभी अन्त नहीं होता । इसलिये संसाधन सदा कम ही पडते हैं। 'और चाहिये', 'और चाहिये' के मन्त्र का ही रटण निरन्तर चलता है। कामना का दूसरा स्वभाव यह होता है कि एक पदार्थ से मिलनेवाला सुख क्रमशः कम होता जाता है। प्रथम अनुभव में जो पदार्थ अत्यन्त प्रिय और सुखकारक लगता है वही पुराना होते होते कम प्रिय और फिर अप्रिय होने लगता है। इसलिये मन को निरन्तर नये की चाह रहती है। इसमें से पदार्थ के बनावट के, पैकिंग के, प्रस्तुतिकरण के नये नये तरीके निर्माण होते हैं, नये नये फैशन, खाद्य पदार्थों के नये नये स्वाद निर्माण किये जाते हैं। फिर भी अतृप्ति बनी रहती है। इसमें से उन्माद पैदा होता है। उन्माद से गति का जन्म होता है। मन स्वभाव से चंचल भी होता है । चंचलता भी गति को जन्म देती है। इसमें से तेज गति की ललक पैदा होती है। इसलिये तेजगति के वाहन बनाये जाते हैं । गति बढाने के निरन्तर प्रयास चलते हैं। मोटरसाइकिल, कार, ट्रेन, वायुयान आदि की गति बढाना मनुष्य के लिये चुनौती बन जाता है। गति बढाने में सफलता का और तेज गति के वाहन से यात्रा करने में साहस का अनुभव होता है। इसका भी कहीं अन्त नहीं है।
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कामनाओं का स्वभाव ऐसा है कि एक कामना पूर्ण करो तो दस जगती है। अतः कामनापूर्ति के प्रयासों का कभी अन्त नहीं होता । इसलिये संसाधन सदा कम ही पडते हैं। 'और चाहिये', 'और चाहिये' के मन्त्र का ही रटण निरन्तर चलता है। कामना का दूसरा स्वभाव यह होता है कि एक पदार्थ से मिलनेवाला सुख क्रमशः कम होता जाता है। प्रथम अनुभव में जो पदार्थ अत्यन्त प्रिय और सुखकारक लगता है वही पुराना होते होते कम प्रिय और फिर अप्रिय होने लगता है। इसलिये मन को निरन्तर नये की चाह रहती है। इसमें से पदार्थ के बनावट के, पैकिंग के, प्रस्तुतिकरण के नये नये तरीके निर्माण होते हैं, नये नये फैशन, खाद्य पदार्थों के नये नये स्वाद निर्माण किये जाते हैं। तथापि अतृप्ति बनी रहती है। इसमें से उन्माद पैदा होता है। उन्माद से गति का जन्म होता है। मन स्वभाव से चंचल भी होता है । चंचलता भी गति को जन्म देती है। इसमें से तेज गति की ललक पैदा होती है। इसलिये तेजगति के वाहन बनाये जाते हैं । गति बढाने के निरन्तर प्रयास चलते हैं। मोटरसाइकिल, कार, ट्रेन, वायुयान आदि की गति बढाना मनुष्य के लिये चुनौती बन जाता है। गति बढाने में सफलता का और तेज गति के वाहन से यात्रा करने में साहस का अनुभव होता है। इसका भी कहीं अन्त नहीं है।
    
इस उन्माद का दूसरा स्वरूप है ऊँचे स्वर वाला संगीत और उतेजना पूर्ण नृत्य । इसे भी पराकाष्ठा तक पहुँचाने के प्रयास निरन्तर होते रहते हैं । येन केन प्रकारेण कामनाओं की पूर्ति करने की चाह, अधिक से अधिक कामनाओं की पूर्ति के प्रयास उन्हें शान्ति से, स्थिरतापूर्वक बैठने नहीं देते । गति उनके जीवन का मुख्य लक्षण बन गया है।  
 
इस उन्माद का दूसरा स्वरूप है ऊँचे स्वर वाला संगीत और उतेजना पूर्ण नृत्य । इसे भी पराकाष्ठा तक पहुँचाने के प्रयास निरन्तर होते रहते हैं । येन केन प्रकारेण कामनाओं की पूर्ति करने की चाह, अधिक से अधिक कामनाओं की पूर्ति के प्रयास उन्हें शान्ति से, स्थिरतापूर्वक बैठने नहीं देते । गति उनके जीवन का मुख्य लक्षण बन गया है।  
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तन्त्रज्ञान का शाब्दिक अर्थ भले ही अलग हो तो भी वह टैकनोलोजी के लिये स्वीकृत शब्द है। पश्चिम की टैकनोलोजी से आज सारा विश्व अभिभूत है।
 
तन्त्रज्ञान का शाब्दिक अर्थ भले ही अलग हो तो भी वह टैकनोलोजी के लिये स्वीकृत शब्द है। पश्चिम की टैकनोलोजी से आज सारा विश्व अभिभूत है।
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उन्नीसवीं शताब्दी में भाप का इन्जन, टेलीफोन तथा विद्युत की ऊर्जा की खोज से नई टैकनोलोजी की आरम्भआत हुई। सूत पहले भी काता जाता था और वस्त्र पहले भी बुने जाते थे परन्तु उस समय सूत कातने वाले और वस्त्र बुने वाले यन्त्र थे वे मनुष्य के हाथ की ऊर्जा से चलते थे। विश्व की जीवनशैली बदल देने वाले यन्त्र नहीं हैं, यन्त्रों को संचालित करने वाली ऊर्जा है। बिजली भाप, पेट्रोल और अब अणु ऊर्जा ने भारी बदल किया है । इस ऊर्जा के आविष्कार से पूर्व जिस ऊर्जा से यन्त्र संचालित होते थे वह ऊर्जा मनुष्य का और पशु का बल था। जैसे कि कुएं से पानी निकालने का काम सरल बनाने हेतु घिटनी थी परन्तु घडे को खींचने वाले मनुष्य के हाथ होते थे । जमीन जोतने के लिये हल था परन्तु हल को चलानेवाले बैल होते थे । परिवहन के साधन भी थे, केवल भूमि पर नहीं तो जलमार्ग से यात्रा के लिये भी वाहन थे परन्तु उन्हें चलाने में मनुष्य और पशुओं की ऊर्जा प्रयुक्त होती थी। उन्नीसवीं शताब्दी में जैसे ही अन्य ऊर्जाओं का आविष्कार हुआ परिवहन, यातायात, पदार्थों के उत्पादन आदि क्षेत्रों में बडा तहलका मच गया । टैकनोलोजी का स्वरूप ही बदल गया।
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उन्नीसवीं शताब्दी में भाप का इन्जन, टेलीफोन तथा विद्युत की ऊर्जा की खोज से नई टैकनोलोजी की आरम्भआत हुई। सूत पहले भी काता जाता था और वस्त्र पहले भी बुने जाते थे परन्तु उस समय सूत कातने वाले और वस्त्र बुने वाले यन्त्र थे वे मनुष्य के हाथ की ऊर्जा से चलते थे। विश्व की जीवनशैली बदल देने वाले यन्त्र नहीं हैं, यन्त्रों को संचालित करने वाली ऊर्जा है। बिजली भाप, पेट्रोल और अब अणु ऊर्जा ने भारी बदल किया है । इस ऊर्जा के आविष्कार से पूर्व जिस ऊर्जा से यन्त्र संचालित होते थे वह ऊर्जा मनुष्य का और पशु का बल था। जैसे कि कुएं से पानी निकालने का काम सरल बनाने हेतु घिटनी थी परन्तु घड़े को खींचने वाले मनुष्य के हाथ होते थे । जमीन जोतने के लिये हल था परन्तु हल को चलानेवाले बैल होते थे । परिवहन के साधन भी थे, केवल भूमि पर नहीं तो जलमार्ग से यात्रा के लिये भी वाहन थे परन्तु उन्हें चलाने में मनुष्य और पशुओं की ऊर्जा प्रयुक्त होती थी। उन्नीसवीं शताब्दी में जैसे ही अन्य ऊर्जाओं का आविष्कार हुआ परिवहन, यातायात, पदार्थों के उत्पादन आदि क्षेत्रों में बडा तहलका मच गया । टैकनोलोजी का स्वरूप ही बदल गया।
    
शुद्ध भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में जिज्ञासा से प्रेरित होकर जो आविष्कार हुए वे निश्चितरूप से प्रशंसनीय ही थे। परन्तु अल्पबुद्धि, स्वार्थबुद्धि और दुष्टबुद्धियुक्त मनुष्य के हाथ में जब प्रभावी साधन आता है तो उसका प्रयोग कैसा होगा यह सहज ही समझ में आनेवाली बात है। विज्ञान एक प्रभावी साधन है, वह न तो अच्छा होता है न बुरा, उसका प्रयोग करनेवाले पर निर्भर करता है कि उसके प्रयोग का परिणाम अच्छा होगा कि बुरा । विज्ञान के आविष्कार हुए तब पश्चिम की खुशी और गर्व की सीमा नहीं रही। दैवयोग से उस समय इंग्लैण्ड का आधिपत्य विश्व के बड़े हिस्से पर था । इसलिये विज्ञान के आविष्कारों से जन्मे उत्साह और आनन्द का प्रभाव अन्य देशों पर भी पडा।
 
शुद्ध भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में जिज्ञासा से प्रेरित होकर जो आविष्कार हुए वे निश्चितरूप से प्रशंसनीय ही थे। परन्तु अल्पबुद्धि, स्वार्थबुद्धि और दुष्टबुद्धियुक्त मनुष्य के हाथ में जब प्रभावी साधन आता है तो उसका प्रयोग कैसा होगा यह सहज ही समझ में आनेवाली बात है। विज्ञान एक प्रभावी साधन है, वह न तो अच्छा होता है न बुरा, उसका प्रयोग करनेवाले पर निर्भर करता है कि उसके प्रयोग का परिणाम अच्छा होगा कि बुरा । विज्ञान के आविष्कार हुए तब पश्चिम की खुशी और गर्व की सीमा नहीं रही। दैवयोग से उस समय इंग्लैण्ड का आधिपत्य विश्व के बड़े हिस्से पर था । इसलिये विज्ञान के आविष्कारों से जन्मे उत्साह और आनन्द का प्रभाव अन्य देशों पर भी पडा।

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