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लेख सम्पादित किया
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{{One source|date=October 2019}}
 
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अध्ययन करते समय के अवरोध और उन्हें दूर करने के उपाय
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अध्यापक कितना भी अच्छा हो, अध्ययन करने की कितनी ही सुविधायें और साधन उपलब्ध हों, तो भी अध्ययन करने वाला यदि सक्षम नहीं है तो अध्ययन ठीक से नहीं होता है । अध्ययन हमेशा अध्ययन करने वाले पर ही निर्भर करता है । इसलिये अध्ययन करने वाले की क्षमता बढ़ाना यह भी शिक्षा का एक अहम्‌ मुद्दा है। अध्ययन करने के लिये कौन कौन से अवरोध आते हैं इसकी गणना प्रथम करनी चाहिये ताकि उनको दूर करने की हम कुछ व्यवस्था कर सकें । सब से पहला अवरोध शारीरिक स्तर का होता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, यदि शरीर दुर्बल है, तो अध्ययन करने में मन भी नहीं लगता है । अधिकांशतः हम देखते हैं कि छात्रों के बैठते समय पैर दर्द कर रहे हैं, कमर दर्द कर रही है, कन्धा दर्द कर रहा है, पीठ दर्द कर रही है । इसलिये उनका ध्यान उनके दर्द की तरफ ही जाता है, अध्ययन के विषय की ओर नहीं जाता। यह सब दर्द होने का कारण उनकी दुर्बलता ही होती है। चलने की, बैठने की, खड़े रहने की, सोने की ठीक स्थिति का अभ्यास नहीं होने के कारण से यह दर्द उत्पन्न होता है। कभी पेट में दर्द होता है, कभी सरदर्द करता है, कभी जम्हाइयाँ आती हैं । इन सब का कारण यह है कि उनकी निद्रा पूरी नहीं हुई है । उनका पाचन ठीक नहीं हुआ है। शरीर में अस्वास्थ्य के कारण से कई अवरोध निर्माण होते हैं।
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अध्यापक कितना भी अच्छा हो, अध्ययन करने की
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== शारीरिक स्तर के अवरोध ==
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यह तो शारीरिक स्तर के अवरोध हैं। कभी वे एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठ नहीं सकते, पैर हिलाते रहते हैं, हाथ हिलाते रहते हैं। लिखते समय उनकी उँगलियाँ दर्द करने लगती हैं। ये सारे शारीरिक और प्राणिक स्तर के अवरोध हैं । इन अवरोधों को दूर करने के लिये सब से पहले उनके प्राण का पोषण हो सके इस प्रकार के आहार की आवश्यकता है । यदि न पचने वाले आहार, शरीर को पोषण नहीं देनेवाला आहार, दिया जाये तो शरीर दुर्बल ही रहता है। शरीर में मेद बढ़ता है और शरीर दर्द करने लगता है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्र की आहार योजना बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है। उनकी निद्रा पूरी नहीं होने के भी कई कारण हैं । सब से पहला कारण है रात को देर से सोना और सुबह देर से उठना। रात को देर से सोने का भी कारण टीवी और घर के अन्य सब लोग जाग रहे हैं यही होता है । विज्ञान कहता है कि रात को जितना जल्दी सो जायें उतना ही शरीर स्वास्थ्य के लिये और मनः स्वास्थ्य के लिये अच्छा है । साथ ही यदि रात को सोते समय लिया हुआ अन्न पचा नहीं है तो निद्रा अच्छी नहीं होती।
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कितनी ही सुविधायें और साधन उपलब्ध हों, तो भी
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रात को देर से भोजन करने की आदत या घर की व्यवस्था भी निद्रा में बाधा निर्माण करती है और निद्रा में बाधा निर्माण होने के कारण से अध्ययन में भी अवरोध निर्माण होते हैं । इसलिये पहला नियम तो सोने से पहले लिया हुआ आहार पच जाये इस प्रकार से भोजन का समय निश्चित करना है। रात को सोते समय कई ऐसी आदतें होती हैं जिनके कारण से अच्छी निद्रा में बाधा निर्माण होती है । उदाहरण के लिये पीठ के बल सोना, पेट के बल सोना, मुँह खुला रख कर श्वास लेना, मुँह ढक कर सोना, एक पैर के उपर दूसरा पैर चढा कर सोना, गंदे कपडे पहन कर सोना, गरम कपड़े पहन कर सोना, पोलिस्टर के कपड़े पहन कर सोना, हाथ पैर धोये बिना सोना, सोने के कमरे की सारी खिड़कियाँ बन्द करके सोना, सीधे पँखे के नीचे सोना, ये सारी बातें अच्छी निद्रा में बाधा ही निर्माण करती है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्रों को सबसे पहले सोने की अच्छी और सही आदतें सिखाना है। ये आदतें उसके शरीर में शरीर का एक हिस्सा बन जानी चाहिये।
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अध्ययन करने वाला यदि सक्षम नहीं है तो अध्ययन ठीक
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रात को सोते समय अच्छे विचार करते हुए, अच्छी कहानी सुनते हुए, या अच्छे विचार का चिन्तन करते हुए सोने से निद्रा अच्छी आती है । टी.वी. में कैसे भी उत्तेजक दृश्य देखते देखते सोने से नींद खराब होती है, मन भी खराब होता है। यदि रात को ठीक समय पर सो जायें तो सुबह जल्दी उठना उनके लिये अपने आप सम्भव होता है। नींद पूरी होने के बाद ही जागना यह शरीर का स्वाभाविक धर्म है। परन्तु व्यवस्था भी हमने ऐसी ही करनी चाहिये कि सुबह पाँच बजे के आसपास उठना छात्रों के लिये स्वाभाविक हो। सुबह उठने के बाद यदि पेट साफ नहीं हुआ तो भी अस्वस्थता बनी रहती है इसलिये पेट साफ होने की ओर भी ध्यान चाहिये। दाँत साफ करना, गला साफ करना, श्वसन मार्ग साफ करना, यह भी बहुत आवश्यक है। बैठने की, चलने की, खड़े रहने की सही स्थिति सिखाना यह भी अध्ययन करने की पूर्व शर्ते हैं।
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से नहीं होता है । अध्ययन हमेशा अध्ययन करने वाले पर
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शरीर को स्वस्थ रखने के लिये शरीर की मालिश करना, अच्छी तरह से स्नान करना, और व्यायाम करना यह बहुत जरूरी है। व्यायाम के कारण से यदि एक बार पसीना निकल जाता है, सायंकाल खेलने के माध्यम से भी पसीना निकल जाता है तो शरीर के और मन के मैल निकल जाते हैं और शरीर स्फूर्तिदायक, स्वस्थ और प्रसन्न बन जाता है। इसके बाद मालिश और स्नान भी शरीर के पोषण के लिये बहुत आवश्यक है। उसके साथ साथ सात्त्विक आहार भी शरीर और मन दोनों के लिये उपकारक हैं इस प्रकार आहार विहार का अर्थात्‌ आहार, निद्रा इन दोनों का तथा व्यायाम खेल आदि सारी बातों का पहले ध्यान रखने से और सही आदतें डालने से, अध्ययन करने के लिये शरीर स्वस्थ रहता है और अनुकूलता निर्माण करता है। ऐसा छात्र अध्ययन करने में एकाग्रता भी साध सकता है।
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ही निर्भर करता है । इसलिये अध्ययन करने वाले की
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== प्राणिक स्तर के अवरोध ==
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यह पहला अवरोध दूर होने के बाद आगे प्राणिक स्तर पर जो अवरोध आते हैं वे ये हैं । ठीक से श्वसन नहीं होना । हम देखते हैं कि कई बच्चे बोर होते है । अध्ययन करना उन्हें अच्छा नहीं लगता । पढ़ते पढ़ते, सुनते सुनते जम्हाइयाँ आती हैं और शरीर थकान का अनुभव करता है। ये सब प्राण की कमी के लक्षण हैं । इसका मुख्य कारण उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं होती यही है। इसलिये उन्हें ठीक से श्वासोच्छवास करना सिखाना चाहिये । ठीक से श्वासोच्छवास करने के लिये बैठने की सही स्थिति आवश्यक होती है । छाती, गला और पेट न दबे इस प्रकार से बैठना, श्वसन मार्ग साफ होना और आस पास में स्वच्छ वायु होना यह अच्छे श्वसन के लिये आवश्यक बातें हैं । इसलिये जहाँ अध्ययन करने बैठना है वहाँ आस पास का स्थान स्वच्छ होना चाहिये, हवा भी स्वच्छ होनी चाहिये ताकि श्वास में शुद्ध हवा ही आए । छात्र को दीर्घ श्वसन सिखाना चाहिये । फेफड़े यदि श्वास से पूरे भरते नहीं है तो फेफड़ों में आया हुआ अशुद्ध रक्त पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है और ऐसा ही अशुद्ध रक्त शरीर में बहने के कारण से शरीर थकान का अनुभव करता है । साथ ही पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता, उसे हमेशा बोरडम ही लगता है। उसे हमेशा उदासी ही आती है, अतः अध्ययन सम्भव नहीं होता । इसलिये प्राणमय स्तर के अवरोध दूर करना आवश्यक हैं।
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क्षमता बढ़ाना यह भी शिक्षा का एक अहम्‌ मुद्दा है।
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== मन के स्तर के अवरोध ==
 
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तीसरा और सब से बड़ा अवरोध मन के स्तर का है। छात्रों का मन एकाग्र नहीं होना यह आम बात है । कक्षा में पढ़ने के लिये बैठें तो हैं, अध्यापक कुछ बोल रहा है अथवा छात्रों को पढ़ने के लिये दिया है, सामने पुस्तक भी खुली पड़ी है, चर्म चक्षु तो पुस्तक में लिखा हुआ देख रहे हैं, शारीरिक कान अध्यापक क्या कह रहे हैं वह सुन रहे हैं परन्तु मन के कान कहीं और हैं और कोई दूसरी बात रहे हैं । दूसरी सुनी हुई बात का स्मरण हो रहा हैं । मन की आँखें और ही कुछ देख रही हैं और उस देखे हुए दृश्य का आनन्द ले रही हैं । इसका ध्यान ही कक्षा कक्ष में क्या हो रहा है इसकी ओर नहीं है । ऐसे छात्र अध्ययन का पहला चरण भी पार नहीं कर पाते हैं । वे ग्रहणशील नहीं होते हैं अर्थात्‌ जो भी अध्ययन हो रहा है वह उनके अन्दर जाता ही नहीं है । ज्ञानेन्द्रियाँ उन्हें ग्रहण ही नहीं करती है तो ज्ञान के स्तर तक पहुँचने की कोई सम्भावना ही नहीं है । इसलिये जो हो रहा है वहीं पर मन को एकाग्र करना आवश्यक होता है। छात्र कभी एकाध शब्द सुनते हैं और फिर शेष ध्यान उनका और कहीं चला जाता है। ऐसा बार बार एकाग्रता का भंग होना वर्तमान कक्षा कक्ष में बहुत ही प्रचलन में है, बहुत ही सामान्य बात है । दूसरा मन के स्तर का अवरोध है, समझ में नहीं आना । यह वैसे बुद्धि, तेजस्वी नहीं होने का लक्षण है परन्तु अवरोध तो मन के स्तर का है । क्योंकि मन कहीं और लगा हुआ है । मन की रूचि अध्ययन में नहीं बन रही है । मन तनाव ग्रस्त है । मन उत्तेजना ग्रस्त है, शान्त नहीं है इसलिये वह ग्रहण नहीं कर पाता है । और जो ग्रहण किया है उसकी धारणा नहीं कर पाता है । ग्रहण नहीं करने के कारण से जो कुछ भी अध्ययन करता है वह आधा अधूरा होता है । उत्तेजना के कारण से जो भी ग्रहण करता है वह खण्ड खण्ड में करता है और उसकी समझ आधी अधूरी और बहुत ही मिश्रित स्वरूप की बनती है । इसलिये मन का शान्त होना बहुत ही आवश्यक है । उदाहरण के लिये एक पात्र में यदि २०० ग्राम दूध समाता है तो फिर उसमें कितना भी अधिक दूध डालो, वह तो केवल २०० ग्राम ही ग्रहण करेगा बाकी सारा दूध बह जायेगा । कक्षा कक्षों की भी यही स्थिति होती है। अध्यापक पढ़ाते ही जाते हैं पढ़ाते ही जाते हैं परन्तु छात्रों की ग्रहणशीलता कम होने के कारण से वह सब निर्रर्थक हो जाता है । छात्रों का पात्र तो छोटा का छोटा ही रह जाता है । इसलिये इस अवरोध को पार करने के लिये मन को शान्त रखना बहुत आवश्यक है । मन को शान्त रखने के उपाय की ओर हम बाद में ध्यान देंगे परन्तु मन के स्तर के जो अवरोध हैं उनको पार किये बिना ज्ञान सम्पादन होना तो असम्भव है ।
अध्ययन करने के लिये कौन कौन से अवरोध आते हैं
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इसकी गणना प्रथम करनी चाहिये ताकि उनको दूर करने की
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हम कुछ व्यवस्था कर सकें । सब से पहला अवरोध
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शारीरिक स्तर का होता है । यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, यदि
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शरीर दुर्बल है, तो अध्ययन करने में मन भी नहीं लगता
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है । अधिकांशतः हम देखते हैं कि छात्रों के बैठते समय पैर
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दर्द कर रहे हैं, कमर दर्द कर रही है, कन्धा दर्द कर रहा है,
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पीठ दर्द कर रही है । इसलिये उनका ध्यान उनके दर्द की
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तरफ ही जाता है, अध्ययन के विषय की औओर नहीं जाता ।
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यह सब दर्द होने का कारण उनकी दुर्बलता ही होती है ।
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चलने की, बैठने की, खड़े रहने की, सोने की ठीक स्थिति
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का अभ्यास नहीं होने के कारण से यह दर्द उत्पन्न होता है ।
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कभी पेट में दर्द होता है, कभी सरदर्द करता है, कभी
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जम्हाइयाँ आती हैं । इन सब का कारण यह है कि उनकी
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निद्रा पूरी नहीं हुई है । उनका पाचन ठीक नहीं हुआ है ।
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शरीर में अस्वास्थ्य के कारण से कई अवरोध निर्माण होते
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हैं।
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शारीरिक स्तर के अवरोध
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यह तो शारीरिक स्तर के अवरोध हैं । कभी वे एक
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स्थान पर लम्बे समय तक बैठ नहीं सकते, पैर हिलाते रहते
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हैं, हाथ हिलाते रहते हैं । लिखते समय उनकी उँगलियाँ दर्द
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करने लगती हैं । ये सारे शारीरिक और प्राणिक स्तर के
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अवरोध हैं । इन अवरोधों को दूर करने के लिये सब से
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पहले उनके प्राण का पोषण हो सके इस प्रकार के आहार
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की आवश्यकता है । यदि न पचने वाले आहार, शरीर को
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पोषण नहीं देनेवाला आहार, दिया जाये तो शरीर दुर्बल ही
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रहता है । शरीर में मेद बढ़ता है और शरीर दर्द करने लगता
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है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्र की आहार योजना
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बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है । उनकी निद्रा पूरी नहीं होने के
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भी कई कारण हैं । सब से पहला कारण है रात को देर से
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सोना और सुबह देर से उठना । रात को देर से सोने का भी
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कारण टीवी और घर के अन्य सब लोग जाग रहे हैं यही
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होता है । विज्ञान कहता है कि रात को जितना जल्दी सो
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जायें उतना ही शरीर स्वास्थ्य के लिये और मनः स्वास्थ्य
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के लिये अच्छा है । साथ ही यदि रात को सोते समय
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लिया हुआ अन्न पचा नहीं है तो निद्रा अच्छी नहीं होती ।
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रात को देर से भोजन करने की आदृत या घर की व्यवस्था
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भी निद्रा में बाधा निर्माण करती है और निद्रा में बाधा
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निर्माण होने के कारण से अध्ययन में भी अवरोध निर्माण
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होते हैं । इसलिये पहला नियम तो सोने से पहले लिया
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हुआ आहार पच जाये इस प्रकार से भोजन का समय
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निश्चित करना है। रात को सोते समय कई ऐसी आदतें
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होती हैं जिनके कारण से अच्छी निद्रा में बाधा निर्माण होती
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है । उदाहरण के लिये पीठ के बल सोना, पेट के बल
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सोना, मुँह खुला रख कर श्वास लेना, मुँह ढक कर सोना,
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एक पैर के उपर दूसरा पैर चढा कर सोना, Wee HIS TH
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कर सोना, गरम कपड़े पहन कर सोना, पोलिस्टर के कपड़े
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पहन कर सोना, हाथ पैर धोये बिना सोना, सोने के कमरे
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की सारी खिड़कियाँ बन्द करके सोना, सीधे पँखे के नीचे
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पर्व ३ : शिक्षा का मनोविज्ञान
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सोना, ये सारी बातें अच्छी निद्रा में बाधा ही निर्माण करती
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है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्रों को सबसे पहले
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सोने की अच्छी और सही आदतें सिखाना है । ये आदतें
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उसके शरीर में शरीर का एक हिस्सा बन जानी चाहिये ।
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रात को सोते समय अच्छे विचार करते हुए, अच्छी कहानी
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सुनते हुए, या अच्छे विचार का चिन्तन करते हुए सोने से
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निद्रा अच्छी आती है । टी.वी. में कैसे भी उत्तेजक दृश्य
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देखते देखते सोने से नींद खराब होती है, मन भी खराब
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होता है । यदि रात को ठीक समय पर सो जायें तो सुबह
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जल्दी उठना उनके लिये अपने आप सम्भव होता है । नींद
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पूरी होने के बाद ही जागना यह शरीर का स्वाभाविक धर्म
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है। परन्तु व्यवस्था भी हमने ऐसी ही करनी चाहिये कि
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सुबह पाँच बजे के आसपास उठना छात्रों के लिये
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स्वाभाविक हो । सुबह उठने के बाद यदि पेट साफ नहीं
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हुआ तो भी अस्वस्थता बनी रहती है इसलिये पेट साफ
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होने की ओर भी ध्यान चाहिये । दाँत साफ करना, गला
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साफ करना, श्वसन मार्ग साफ करना, यह भी बहुत
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आवश्यक है । बैठने की, चलने की, खड़े रहने की सही
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स्थिति सिखाना यह भी अध्ययन करने की पूर्व शर्ते हैं ।
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शरीर को स्वस्थ रखने के लिये शरीर की मालिश
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करना, अच्छी तरह से स्नान करना, और व्यायाम करना
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यह बहुत जरूरी है । व्यायाम के कारण से यदि एक बार
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पसीना निकल जाता है, सायंकाल खेलने के माध्यम से भी
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पसीना निकल जाता है तो शरीर के और मन के मैल
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निकल जाते हैं और शरीर स्फूर्तिदायक, स्वस्थ और प्रसन्न
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बन जाता है । इसके बाद मालिश और स्नान भी शरीर के
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पोषण के लिये बहुत आवश्यक है । उसके साथ साथ
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सात्त्विक आहार भी शरीर और मन दोनों के लिये उपकारक
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हैं । इस प्रकार आहार विहार का अर्थात्‌ आहार, निद्रा इन
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दोनों का तथा व्यायाम खेल आदि सारी बातों का पहले
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ध्यान रखने से और सही आदतें डालने से, अध्ययन करने
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के लिये शरीर स्वस्थ रहता है और अनुकूलता निर्माण
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करता है । ऐसा छात्र अध्ययन करने में एकाग्रता भी साध
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सकता है ।
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प्राणिक स्तर के अवरोध
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यह पहला अवरोध दूर होने के बाद आगे प्राणिक
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स्तर पर जो अवरोध आते हैं वे ये हैं । ठीक से श्वसन नहीं
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होना । हम देखते हैं कि कई बच्चे बोर होते है । अध्ययन
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करना उन्हें अच्छा नहीं लगता । पढ़ते पढ़ते, सुनते सुनते
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जम्हाइयाँ आती हैं और शरीर थकान का अनुभव करता
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है। ये सब प्राण की कमी के लक्षण हैं । इसका मुख्य
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कारण उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं होती यही है।
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इसलिये उन्हें ठीक से श्वासोच्छवास करना सिखाना
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चाहिये । ठीक से श्वासोच्छवास करने के लिये बैठने की
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सही स्थिति आवश्यक होती है । छाती, गला और पेट न
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दबे इस प्रकार से बैठना, श्वसन मार्ग साफ होना और आस
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पास में स्वच्छ वायु होना यह अच्छे श्वसन के लिये
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आवश्यक बातें हैं । इसलिये जहाँ अध्ययन करने बैठना है
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वहाँ आस पास का स्थान स्वच्छ होना चाहिये, हवा भी
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स्वच्छ होनी चाहिये ताकि श्वास में शुद्ध हवा ही आए ।
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छात्र को de श्वसन सिखाना चाहिये । फेफड़े यदि श्वास से
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पूरे भरते नहीं है तो फेफड़ों में आया हुआ अशुद्ध रक्त पूर्ण
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रूप से शुद्ध नहीं होता है और ऐसा ही अशुद्ध we शरीर में
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बहने के कारण से शरीर थकान का अनुभव करता है ।
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साथ ही पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता, उसे हमेशा
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बोस्डम ही लगता है । उसे हमेशा उदासी ही आती है, अतः
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अध्ययन सम्भव नहीं होता । इसलिये प्राणमय स्तर के
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अवरोध दूर करना आवश्यक हैं ।
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मन के स्तर के अवरोध
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तीसरा और सब से बड़ा अवरोध मन के स्तर का
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है। छात्रों का मन एकाग्र नहीं होना यह आम बात है ।
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कक्षा में पढ़ने के लिये बैठें तो हैं, अध्यापक कुछ बोल रहा
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है अथवा छात्रों को पढ़ने के लिये दिया है, सामने पुस्तक
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भी खुली पड़ी है, चर्म चक्षु तो पुस्तक में लिखा हुआ देख
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रहे हैं, शारीरिक कान अध्यापक क्या कह रहे हैं वह सुन
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रहे हैं परन्तु मन के कान कहीं और हैं और कोई दूसरी बात
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सुन रहे हैं । दूसरी सुनी हुई बात का स्मरण हो रहा हैं । मन
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की आँखें ओर ही कुछ देख रही हैं
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और उस देखे हुए दृश्य का आनन्द ले रही हैं । इसका
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ध्यान ही कक्षा कक्ष में क्या हो रहा है इसकी ओर नहीं है ।
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ऐसे छात्र अध्ययन का पहला चरण भी पार नहीं कर पाते
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हैं । वे ग्रहणशील नहीं होते हैं अर्थात्‌ जो भी अध्ययन हो
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रहा है वह उनके अन्दर जाता ही नहीं है । ज्ञानेन्द्रियाँ उन्हें
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ग्रहण ही नहीं करती है तो ज्ञान के स्तर तक पहुँचने की
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कोई सम्भावना ही नहीं है । इसलिये जो हो रहा है वहीं पर
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मन को एकाग्र करना आवश्यक होता है। छात्र कभी
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एकाध शब्द सुनते हैं और फिर शेष ध्यान उनका और कहीं
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  −
चला जाता है। ऐसा बार बार एकाग्रता का भंग होना
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वर्तमान कक्षा कक्ष में बहुत ही प्रचलन में है, बहुत ही
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सामान्य बात है । दूसरा मन के स्तर का अवरोध है, समझ
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में नहीं आना । यह वैसे बुद्धि, तेजस्वी नहीं होने का लक्षण
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है परन्तु अवरोध तो मन के स्तर का है । क्योंकि मन कहीं
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और लगा हुआ है । मन की रूचि अध्ययन में नहीं बन रही
  −
 
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है । मन तनाव ग्रस्त है । मन उत्तेजना ग्रस्त है, शान्त नहीं
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  −
है इसलिये वह ग्रहण नहीं कर पाता है । और जो ग्रहण
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किया है उसकी धारणा नहीं कर पाता है । ग्रहण नहीं करने
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के कारण से जो कुछ भी अध्ययन करता है वह आधा
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अधूरा होता है । उत्तेजना के कारण से जो भी ग्रहण करता
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है वह खण्ड खण्ड में करता है और उसकी समझ आधी
  −
 
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अधूरी और बहुत ही मिश्रित स्वरूप की बनती है । इसलिये
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मन का शान्त होना बहुत ही आवश्यक है । उदाहरण के
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लिये एक पात्र में यदि २०० ग्राम दूध समाता है तो फिर
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उसमें कितना भी अधिक दूध डालो, वह तो केवल Yoo
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  −
ग्राम ही ग्रहण करेगा बाकी सारा दूध बह जायेगा । कक्षा
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  −
कक्षों की भी यही स्थिति होती है । अध्यापक पढ़ाते ही
  −
 
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जाते हैं पढ़ाते ही जाते हैं परन्तु छात्रों की ग्रहणशीलता कम
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होने के कारण से वह सब निर्रर्थक हो जाता है । छात्रों का
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पात्र तो छोटा का छोटा ही रह जाता है । इसलिये इस
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अवरोध को पार करने के लिये मन को शान्त रखना बहुत
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आवश्यक है । मन को शान्त रखने के उपाय की ओर हम
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बाद में ध्यान देंगे परन्तु मन के स्तर के जो अवरोध हैं
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श्श२
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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उनको पार किये बिना ज्ञान सम्पादन होना तो असम्भव है ।
      
मन के साथ साथ ही बुद्धि भी जुड़ी हुई है । बुद्धि तेजस्वी
 
मन के साथ साथ ही बुद्धि भी जुड़ी हुई है । बुद्धि तेजस्वी
Line 435: Line 122:  
बिल्कुल ही नहीं करना चाहिये । करने से दोनों और से
 
बिल्कुल ही नहीं करना चाहिये । करने से दोनों और से
   −
बुद्धि को साधना नुकसान होता है । पहला पाचन भी ठीक नहीं होता दूसरा
+
== बुद्धि को साधना ==
 +
नुकसान होता है । पहला पाचन भी ठीक नहीं होता दूसरा
    
बुद्धि को साधने के साथ ही उसके सारे साधन तराशे ... शरीर भी थक जाता है और तीसरा विषय ग्रहण भी नहीं हो
 
बुद्धि को साधने के साथ ही उसके सारे साधन तराशे ... शरीर भी थक जाता है और तीसरा विषय ग्रहण भी नहीं हो
Line 553: Line 241:  
कुशाग्र बुद्धि बनती है उसकी प्रतिष्ठा हो ।
 
कुशाग्र बुद्धि बनती है उसकी प्रतिष्ठा हो ।
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मन को शान्त व एकाग्र बनाना
+
== मन को शान्त व एकाग्र बनाना ==
 
   
यह तो शारीरिक मानसिक दृष्टि से जो बाधायें होती
 
यह तो शारीरिक मानसिक दृष्टि से जो बाधायें होती
   Line 695: Line 382:  
का वातावरण पवित्र रखना चाहिये ।
 
का वातावरण पवित्र रखना चाहिये ।
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बुद्धि के अवरोध दूर करने के उपाय
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== बुद्धि के अवरोध दूर करने के उपाय ==
 
   
अब बुद्धि के क्षेत्र में अवरोध दूर करने के उपाय ।
 
अब बुद्धि के क्षेत्र में अवरोध दूर करने के उपाय ।
  

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