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'''प्रशासक''' : परन्तु सिस्टम में परिवर्तन करना हमारा काम नहीं है, हमारा अधिकार भी नहीं है। यह तो संसद का काम है, उनका अधिकार है। हम तो सिस्टम के सेवक हैं।
 
'''प्रशासक''' : परन्तु सिस्टम में परिवर्तन करना हमारा काम नहीं है, हमारा अधिकार भी नहीं है। यह तो संसद का काम है, उनका अधिकार है। हम तो सिस्टम के सेवक हैं।
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'''शिक्षक''' : आपके मुँह से 'सेवक' शब्द सुनकर बहुत अच्छा लगा, परन्तु इन सेवकों' का रॉब तो सम्राट जैसा, नहीं ब्रिटीशों जैसा है। आपके सामने खडा रहकर व्यक्ति पहले तो दब जाय ऐसी ही आपकी भावभंगिमा होती है। खैर, आपने अपने आपको सेवक कहा और
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'''शिक्षक''' : आपके मुँह से 'सेवक' शब्द सुनकर बहुत अच्छा लगा, परन्तु इन सेवकों' का रॉब तो सम्राट जैसा, नहीं ब्रिटीशों जैसा है। आपके सामने खडा रहकर व्यक्ति पहले तो दब जाय ऐसी ही आपकी भावभंगिमा होती है। खैर, आपने अपने आपको सेवक कहा और सांसदों को निर्णायक कहा, परन्तु उनसे बात करो तो कहते हैं कि हम कुछ भी करना चाहें तो भी यह प्रशासकीय अधिकारियों की फौज अनुकूल नहीं है, वह कुछ भी नहीं होने देती। हम तो आज है, कल नहीं रहेंगे परन्तु वे तो रहने वाले हैं। वे सिस्टम के नाम पर हमारी कुछ नहीं चलने देते । आपका क्या कहना है ?
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'''प्रशासक''' : नहीं, ऐसा नहीं होता । कभी कभी सांसद या मन्त्री ऐसी बातें करते हैं जो अव्यावहारिक भी होती हैं और अनैतिक भी। तभी ऐसा होता है अन्यथा हम विधायक पद्धति से ही पेश आते हैं।
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'''शिक्षक''' : परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि सिस्टम जड है, वह ब्रिटीशों की बनाई हुई है। वह स्वाधीनता और पराधीनता मे अन्तर नहीं करती । वह अपने आप नहीं बदलेगी। आप भी उसे नहीं बदलेंगे क्योंकि आप 'सेवक' हैं। संसद बदल सकती है परन्तु वह अस्थिर है। सांसद अथवा मन्त्री कुछ परिवर्तन करना चाहे तो आप उसे होने नहीं देते । आप नहीं परन्तु आपकी सिस्टम शिक्षा के स्वभाव को जानते नहीं इसलिये परिवर्तन करने नहीं देते । तब इस समस्या का हल क्या है ? आप चाहें तब सेवक और चाहें तब स्वामी बन जाते हैं। क्या यह बात सही नहीं है ? आप कदाचित इस बात से सहमत नहीं होंगे परन्तु जनसामान्य की धारणा तो यही है कि इस देश की प्रशासन व्यवस्था अपने आपको ब्रिटीशों के उत्तराधिकारी मानती है और सामान्य जन से अलग ही रहना चाहती है।
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मैं प्रशासन व्यवस्था को केवल दोष ही देना नहीं चाहता हूँ। मेरा निवेदन यह है कि लोकतंत्र में भले ही जनप्रतिनिधियों का शासन रहता हो तो भी प्रशासन ही सर्वोपरि होता है। आप इस व्यवस्था में सर्वोच्च पद पर है। आपका सम्पूर्ण तन्त्र शिक्षामन्त्री को परामर्श, मार्गदर्शन, सुझाव और सहयोग के लिये होता है । इनके बिना शासन का काम एक दिन भी नहीं चल सकता । आप व्यवस्था में सर्वोच्च होने के साथ साथ बुद्धिमान भी हैं । आपकी बुद्धि को जड सिस्टम की यान्त्रिकता से मुक्त कर शिक्षा, देश और जनसामान्य की स्थिति को दिखिये और आपके अधिकार
    
==References==
 
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