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अतः कट्टर इस्लामी या जिहादी राजनीति - चाहे वह सूडान, सीरिया हो या पाकिस्तान या भारत में - उस की मानसिकता, विचारधारा और कूट के सामान्य नियमों को साफ-साफ समझना उस के इलाज की पहली पूर्वापेक्षा है । अन्यथा उस से निपटना असंभव बना रहेगा। जिहादी आतंकवाद आज दुनिया भर में अनेक नामों से सक्रिय है, पर उस में विभिन्नता के बावजूद कुछ समान चीजे भी हैं। उन्हें दमिश्क से ढाका, और फिलीस्तीन से लेकर कश्मीर तक तनिक हेर-फेर के साथ पहचाना जा सकता है।
 
अतः कट्टर इस्लामी या जिहादी राजनीति - चाहे वह सूडान, सीरिया हो या पाकिस्तान या भारत में - उस की मानसिकता, विचारधारा और कूट के सामान्य नियमों को साफ-साफ समझना उस के इलाज की पहली पूर्वापेक्षा है । अन्यथा उस से निपटना असंभव बना रहेगा। जिहादी आतंकवाद आज दुनिया भर में अनेक नामों से सक्रिय है, पर उस में विभिन्नता के बावजूद कुछ समान चीजे भी हैं। उन्हें दमिश्क से ढाका, और फिलीस्तीन से लेकर कश्मीर तक तनिक हेर-फेर के साथ पहचाना जा सकता है।
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इस जिहादी मानसिकता का मूल विश्वास है कि पूरी दुनिया में हर हाल में इस्लामी मतवाद को जीतना है, दूसरों को हारना और मिटना है। बीच का हर रास्ता 'कुफ्र' और शैतान की ईजाद है, वह उन्हें कदापि मंजूर नहीं । उस लक्ष्य के लिए लाखों निरीह गैर-मुस्लिम या मुस्लिम लोगों को मरने-मारने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं । बल्कि इस के लिए लड़ते हुए मरना उन के लिए उत्कंठा की बात है, क्योंकि कुरान में इस के लिए जन्नत में ७२ कुँवारी हूरों और सभी भोग-विलास सामग्री मिलने का भारी प्रलोभन दिया हुआ है । असंख्य जिहादियों की डायरी, पत्रों, आदि से यह प्रमाणिक रूप से पाया गया है कि जिहाद के लिए मरने की उत्कंठा में इस जन्नती प्रलोभन की सबसे बड़ी प्रेरणा है।
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अतः इस दुनिया में और मरने के बाद अतुलनीय महत्वाकांक्षा एवं ईनाम वाले ईश्वरीय दावों के साथ, ऐसी घातक और आत्मघातक कटिबद्धता वाली जिहादी विचारधारा के गुटों, समूहों का प्रतिकार करना आसान नहीं है। इस संदर्भ में कुछ बिन्दुओं पर विशेषकर विचार करना चाहिए -
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(१) जिहादी आतंकवाद ने केवल भारत, अमेरिका या यूरोप को ही निशाने पर नहीं रखा हुआ है। पिछले दो-तीन दशक से उस ने स्वयं मुस्लिम देशों, पश्चिम एशिया की लगभग हर राज्यसत्ता को भी चुनौती दी है। अभीअभी ईरान की संसद पर हमला करने वालों ने गर्व से दुहराया है, कि यही काम वे सउदी अरब और अन्य मुस्लिम देशों में भी करेंगे । वह राज्यसत्ताएं मुस्लिम हाथों में ही हैं । किंतु उन मुस्लिमों के जिन्होंने समय के साथ अनेक मूल इस्लामी मान्यताओं, निर्देशों से दूरी बना ली है अथवा जो सामाजिक-राजनीतिक जीवन के कई मामलों में सभी इस्लामी आदेशों को लागू करने में रुचि नहीं रखते । ऐसे शासकों से कट्टर इस्लामी और जिहादी संगठन नाराज रहे हैं। इसीलिए ऐसे इस्लामपंथियों ने पहले उन्हीं को निशाने पर रखा था। जब वे उस में विफल हुए, तब उन का कोप पश्चिमी देशों की ओर बढ़ा।
    
==References==
 
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