| आधुनिक युग में जिहाद आतंकवाद का आरंभ पश्चिम एशिया से हआ। ब्लैक सेप्टेंबर' के आतंक से दुनिया में इस राजनीति की पहचान बनी। म्यूनिख ओलंपिक (१९७२) में इजराइली खिलाड़ियों की हत्या से फिलीस्तीनी आतंकवाद विश्व-कुख्यात हुआ। फिलीस्तीनी आंदोलन (पी.एल.ओ.) और इस के नेता यासिर अराफात लंबे समय तक खुले तौर पर आतंकवादी ही थे। बाद में, इन्हें पीछे छोड़ने वाले संगठन फतह और हमास भी आतंकी रणनीति में ही आगे बढ़े। फिलीस्तीनी आतंकवाद के बाद १९७९ में ईरान में अयातुल्ला खुमैनी द्वारा तख्तापलट और इस्लामी तानाशाही, उस की प्रतिद्वंदिता में सऊदी अरब द्वारा दुनिया भर में बहावी सुन्नी इस्लाम का प्रसार, १९८० के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सेना के विरुद्ध पाकिस्तान से संचालित अंतर्राष्ट्रीय जिहादी मोर्चेबंदी, ओसामा बिन लादेन व 'अल कायदा' का उदय और दुनिया भर में आतंकी हमले, अफगानिस्तान में तालिबान राज, कश्मीर में जिहादी घुसपैठ, भारतीय विमान अपहरण, कारगिल हमला, फिर दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई, गोधरा से लेकर भारतीय संसद तक पर अंतहीन जिहादी हमले, उधर न्यूयॉर्क, मॉस्को, लंदन, पेरिस, बाली, ढाका, आदि तमाम यूरोपीय, एशियाई नगरों पर आतंकी कहर, नाइजीरिया में बोको हराम तथा सीरिया-ईराक में इस्लामी स्टेट के साथ जिहादी आतंकवाद आज सब से बड़ी अंतर्राष्ट्रीय समस्या बना हुआ है । तरह-तरह के नाम और रूप में जिहादी राजनीति अब दुनिया के हर क्षेत्र में कमो-बेश सक्रिय है। हर कहीं इस्लाम, कुरान और प्रोफेट मुहम्मद का नाम ले-लेकर विभत्स कारनामे करने की एक पूरी समाप्त नहीं होने वाली श्रृंखला है। इस की खुली चर्चा न करना और लोगों को पूरी जानकारी न होना जनता को असुरक्षित छोड़ देने सा है। इस पर ध्यान देना चाहिए। | | आधुनिक युग में जिहाद आतंकवाद का आरंभ पश्चिम एशिया से हआ। ब्लैक सेप्टेंबर' के आतंक से दुनिया में इस राजनीति की पहचान बनी। म्यूनिख ओलंपिक (१९७२) में इजराइली खिलाड़ियों की हत्या से फिलीस्तीनी आतंकवाद विश्व-कुख्यात हुआ। फिलीस्तीनी आंदोलन (पी.एल.ओ.) और इस के नेता यासिर अराफात लंबे समय तक खुले तौर पर आतंकवादी ही थे। बाद में, इन्हें पीछे छोड़ने वाले संगठन फतह और हमास भी आतंकी रणनीति में ही आगे बढ़े। फिलीस्तीनी आतंकवाद के बाद १९७९ में ईरान में अयातुल्ला खुमैनी द्वारा तख्तापलट और इस्लामी तानाशाही, उस की प्रतिद्वंदिता में सऊदी अरब द्वारा दुनिया भर में बहावी सुन्नी इस्लाम का प्रसार, १९८० के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सेना के विरुद्ध पाकिस्तान से संचालित अंतर्राष्ट्रीय जिहादी मोर्चेबंदी, ओसामा बिन लादेन व 'अल कायदा' का उदय और दुनिया भर में आतंकी हमले, अफगानिस्तान में तालिबान राज, कश्मीर में जिहादी घुसपैठ, भारतीय विमान अपहरण, कारगिल हमला, फिर दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई, गोधरा से लेकर भारतीय संसद तक पर अंतहीन जिहादी हमले, उधर न्यूयॉर्क, मॉस्को, लंदन, पेरिस, बाली, ढाका, आदि तमाम यूरोपीय, एशियाई नगरों पर आतंकी कहर, नाइजीरिया में बोको हराम तथा सीरिया-ईराक में इस्लामी स्टेट के साथ जिहादी आतंकवाद आज सब से बड़ी अंतर्राष्ट्रीय समस्या बना हुआ है । तरह-तरह के नाम और रूप में जिहादी राजनीति अब दुनिया के हर क्षेत्र में कमो-बेश सक्रिय है। हर कहीं इस्लाम, कुरान और प्रोफेट मुहम्मद का नाम ले-लेकर विभत्स कारनामे करने की एक पूरी समाप्त नहीं होने वाली श्रृंखला है। इस की खुली चर्चा न करना और लोगों को पूरी जानकारी न होना जनता को असुरक्षित छोड़ देने सा है। इस पर ध्यान देना चाहिए। |
− | आश्चर्य है कि इतने लंबे अनुभव के बाद भी जिहाद की विचारधारा और रणनीति को समझा नहीं गया । अब जाकर इसे इस्लाम से जोड़ कर देखने में हिचक कम हुई है। हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब में ५५ मुस्लिम देशों के शासकों के सामने 'इस्लामवाद' की हानिकारक भूमिका का खुला उल्लेख किया । डोनाल्ड ट्रंप ने २१ मई २०१७ को उन सारे इकट्ठे मुस्लिम शासकों के सामने 'इस्लामी उग्रवाद और उस से प्रेरित इस्लामी आतंकी | + | आश्चर्य है कि इतने लंबे अनुभव के बाद भी जिहाद की विचारधारा और रणनीति को समझा नहीं गया । अब जाकर इसे इस्लाम से जोड़ कर देखने में हिचक कम हुई है। हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब में ५५ मुस्लिम देशों के शासकों के सामने 'इस्लामवाद' की हानिकारक भूमिका का खुला उल्लेख किया । डोनाल्ड ट्रंप ने २१ मई २०१७ को उन सारे इकट्ठे मुस्लिम शासकों के सामने 'इस्लामी उग्रवाद और उस से प्रेरित इस्लामी आतंकी समूहों का इमानदारी से सामना करने का आवाहन किया । यह बहुत बड़ी बात थी। इस से पहले तक जिहादी आतंकवाद की तमाम चर्चा में अमेरिका समेत सभी देशों के नेता, बुद्धिजीवी इस्लाम शब्द के उल्लेख से ही परहेज करते थे। बल्कि उलटा बोलते थे। वे मानते थे, और जोर देते थे कि इस आतंकवाद का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है, मदरसों को झूठे बदनाम किया जाता है, वहाँ किसी आतंकवाद का शिक्षण-प्रशिक्षण नहीं होता । पर गत कुछ वर्षों से यह सब बनावटी बातें कहना बंद हुआ है, जब खुद पाकिस्तान में हजारों मदरसों पर आतंकी प्रचार के आरोप में कार्रवाई हुई, जब इस्लामी स्टेट ने अपने झंडे में कुरान की आयत और प्रोफेट मुहम्मद की मुहर लगाकर ईराक-सीरिया में भयंकर विध्वंस, आतंकी हमले और अमानवीय क्रूरताएं कीं। |
| + | अतः अब दुनिया को मानना पड़ रहा है, स्वयं मुसलमानों में लोग मानने लगे हैं कि व्यापक जिहादी आतंकवाद का संबंध इस्लामी विचारधारा से है । बहस या चिन्ता इस पर है कि उस से निपटा कैसे जाए? वरना अब तक दुनिया भर के गैर-मुस्लिम नेता, बुद्धिजीवी, नीतिकार जिहादी मनोवृत्ति को प्रायः अपनी भावना या मूल्यों के अनुरूप देखने की गलती करते रहे हैं । राजनीतिक संघर्ष, लोकहित, समझौते, शांति, उन्नति, विकास आदि के बारे में अपनी धारणाओं से तालिबानी, अल कायदा या इस्लामी स्टेट की जिहादी मानसिकता को समझना परले दर्जे की मूर्खता है। किंतु यही होता रहा है। |
| + | पर यह एक बहुत बड़ा भ्रम है। यहाँ तक कि इसी भ्रम ने जिहादी आतंक और राजनीति को बढ़ने, फलनेफूलने में भारी सहयोग दिया । जिस तरह सभी घाव मरहम से नहीं ठीक होते, उसी तरह हरेक राजनीतिक संघर्ष बातचीत या लेन-देन से नहीं सुलझ सकता । जिस तरह कुछ घावों को चीरा लगाकर ही भरा जाता है, उसी तरह कुछ लड़ाइयाँ खुल कर लड़ी जाकर ही समाधान पाती हैं। ईराकी लोग सद्दाम हुसैन जैसे अत्याचारी तानाशाह को हटाकर लोकतंत्र लाना चाहते हैं, या ला देने पर खुश होंगे - इस भ्रम ने भी अमेरीकियों को ईराक में गलत तरीके से उलझाया । इस्लामी समाज में लोकतंत्र का कोई मूल्य नहीं, यह मामूली बात पश्चिमी या भारतीय बुद्धिजीवी मानना नहीं चाहते । यही स्थिति विकास, उन्नति, समानता, शांति जैसे अनेक मूल्यों की भी है। |
| + | किंतु जिहादी आतंकवाद के प्रतिकार के लिए पहले वह जैसा है, वैसा ही जानना आवश्यक है । अल कायदा, हमास, हिजबुल्ला, लश्करे-तोयबा, सिमी से लेकर इस्लामी स्टेट तक दर्जनों संगठन खुली जिहादी राजनीति में लगे हैं। इस के अलावा कई मुस्लिम देशों में स्वयं सत्ताधारी हलकों से प्रत्यक्ष या प्रच्छन्न रूप से जिहादी आतंक का संचालन या सहयोग होता रहता है। जैसा अभी, कई मुस्लिम देशों द्वारा कतार के बहिष्कार में भी देख सकते हैं। पर कतार ही नहीं, कई दूसरे मुस्लिम देशों से भी जिहादी आतंकवादियों को खुला-छिपा सहयोग मिलता रहा है। |