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| The following Rig Veda mantras (2.12.1 to 15) describe the greatness of Indra. | | The following Rig Veda mantras (2.12.1 to 15) describe the greatness of Indra. |
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− | यो जात एव प्रथमो मनस्वान देवो देवान क्रतुना पर्यभूषत | यस्य शुष्माद् रोदसी अभ्यसेतां नृ न्णस्य मह्ना स जनास इन्द्रः || 1 | + | यो जात एव प्रथमो मनस्वान देवो देवान क्रतुना पर्यभूषत | यस्य शुष्माद् रोदसी अभ्यसेतां नृ न्णस्य मह्ना स जनास इन्द्रः || 1 |
− | यः पर्थिवीं व्यथमानाम दृंहद् यः पर्वतान प्रकुपिताँ अरम्णात् | यो अन्तरिक्षं विममे वरीयो यो दयामस्तभ्नात् स जनास इन्द्रः || 2 | + | |
− | यो हत्वाहिमरिणात सप्त सिन्धून यो गा उदाजदपधा वलस्य | यो अश्मनोरन्तरग्निं जजान संव्र्क समत्सु स जनास इन्द्रः || | + | यः पर्थिवीं व्यथमानाम दृंहद् यः पर्वतान प्रकुपिताँ अरम्णात् | यो अन्तरिक्षं विममे वरीयो यो दयामस्तभ्नात् स जनास इन्द्रः || 2 |
− | येनेमा विश्वा चयवना कर्तानि यो दासं वर्णमधरंगुहाकः | शवघ्नीव यो जिगीवान लक्षमाददर्यः पुष्टानि स जनास इन्द्रः || | + | |
− | यं समा पर्छन्ति कुह सेति घोरमुतेमाहुर्नैषो अस्तीत्येनम | सो अर्यः पुष्तीर्विज इवा मिनाति शरदस्मै धत्त स जनास इन्द्रः || | + | यो हत्वाहिमरिणात सप्त सिन्धून यो गा उदाजदपधा वलस्य | यो अश्मनोरन्तरग्निं जजान संवृक् समत्सु स जनास इन्द्रः || 3 |
− | यो रध्रस्य चोदिता यः कर्शस्य यो बरह्मणो नाधमानस्यकीरेः | युक्तग्राव्णो यो.अविता सुशिप्रः सुतसोमस्य स जनास इन्द्रः || | + | |
− | यस्याश्वासः परदिशि यस्य गावो यस्य गरामा यस्य विश्वे रथासः | यः सूर्यं य उषसं जजान यो अपां नेता स जनास इन्द्रः || | + | येनेमा विश्वा च्यवना कृतानि यो दासं वर्णमधरंगुहाकः | श्वघ्नीव यो जिगीवाँ लक्षमाददर्यः पुष्टानि स जनास इन्द्रः || 4 |
− | यं करन्दसी संयती विह्वयेते परे.अवर उभया अमित्राः | समानं चिद रथमातस्थिवांसा नाना हवेते स जनास इन्द्रः || | + | |
− | यस्मान न रते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते | यो विश्वस्य परतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत स जनास इन्द्रः || | + | यं स्मा पृच्छन्ति कुह सेति घोरमुतेमाहुर्नैषो अस्तीत्येनम् | सो अर्यः पुष्तीर्विज इवा मिनाति श्रदस्मै धत्त स जनास इन्द्रः || 5 |
− | यः शश्वतो मह्येनो दधानानमन्यमानाञ्छर्वा जघान | यः शर्धते नानुददाति शर्ध्यां यो दस्योर्हन्ता स जनास इन्द्रः || | + | |
− | यः शम्बरं पर्वतेषु कषियन्तं चत्वारिंश्यां शरद्यन्वविन्दत | ओजायमानं यो अहिं जघान दानुं शयानं स जनास इन्द्रः || | + | यो रध्रस्य चोदिता यः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः | युक्तग्राव्णो योऽविता सुशिप्रः सुतसोमस्य स जनास इन्द्रः || 6 |
− | यः सप्तरश्मिर्व्र्षभस्तुविष्मानवास्र्जत सर्तवे सप्तसिन्धून | यो रौहिणमस्फुरद वज्रबाहुर्द्यामारोहन्तं स जनास इन्द्रः || | + | |
− | दयावा चिदस्मै पर्थिवी नमेते शुष्माच्चिदस्य पर्वता भयन्ते | यः सोमपा निचितो वज्रबाहुर्यो वज्रहस्तः स जनास इन्द्रः || | + | यस्याश्वासः प्रदिशि यस्य गावो यस्य ग्रामा यस्य विश्वे रथासः | यः सूर्यं य उषसं जजान यो अपां नेता स जनास इन्द्रः || 7 |
− | यः सुन्वन्तमवति यः पचन्तं यः शंसन्तं यः शशमानमूती | यस्य बरह्म वर्धनं यस्य सोमो यस्येदं राधः स जनास इन्द्रः || | + | |
| + | यं क्रन्दसी संयती विह्वयेते परेऽवर उभया अमित्राः | समानं चिद् रथमातस्थिवांसा नाना हवेते स जनास इन्द्रः || 8 |
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| + | यस्मान न रते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते | यो विश्वस्य परतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत स जनास इन्द्रः || |
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| + | यः शश्वतो मह्येनो दधानानमन्यमानाञ्छर्वा जघान | यः शर्धते नानुददाति शर्ध्यां यो दस्योर्हन्ता स जनास इन्द्रः || |
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| + | यः शम्बरं पर्वतेषु कषियन्तं चत्वारिंश्यां शरद्यन्वविन्दत | ओजायमानं यो अहिं जघान दानुं शयानं स जनास इन्द्रः || |
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| + | यः सप्तरश्मिर्व्र्षभस्तुविष्मानवास्र्जत सर्तवे सप्तसिन्धून | यो रौहिणमस्फुरद वज्रबाहुर्द्यामारोहन्तं स जनास इन्द्रः || |
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| + | दयावा चिदस्मै पर्थिवी नमेते शुष्माच्चिदस्य पर्वता भयन्ते | यः सोमपा निचितो वज्रबाहुर्यो वज्रहस्तः स जनास इन्द्रः || |
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| + | यः सुन्वन्तमवति यः पचन्तं यः शंसन्तं यः शशमानमूती | यस्य बरह्म वर्धनं यस्य सोमो यस्येदं राधः स जनास इन्द्रः || |
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| यः सुन्वते पचते दुध्र आ चिद वाजं दर्दर्षि स किलासि सत्यः | वयं त इन्द्र विश्वह परियासः सुवीरासो विदथमा वदेम || | | यः सुन्वते पचते दुध्र आ चिद वाजं दर्दर्षि स किलासि सत्यः | वयं त इन्द्र विश्वह परियासः सुवीरासो विदथमा वदेम || |
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