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=== भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं की संवाहक ===
 
=== भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं की संवाहक ===
हर भाषा का विकास वह समाज अपनी मान्यताओं, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति के आधारपर ही करता है । उस समाज की भाषा यह उस समाज की सोच का प्रतिबिंब होती है । इसीलिये सभी समाजशास्त्रज्ञ, शिक्षाशास्त्रज्ञ और भाषाशास्त्रज्ञ शिक्षा के माध्यम के विषय में एकमत हैं। सभी का सुविचारित कहना है की हर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिये। अपनी मातृभाषा या देशी भाषाएं शिक्षा का माध्यम रहने से बच्चा अपनी संस्कृति के साथ जुडा रहता है। जैसे बच्चे की अपनी माँ का दूध ही बच्चे का सबसे बेहतर पोषण कर सकता है। उसी प्रकार से मातृभाषा मे शिक्षा पाने से बच्चे का विकास अन्य किसी भी भाषा को शिक्षा के माध्यम के तौरपर स्वीकार करने से बेहतर होता है। मातृभाषा के स्थानपर बच्चों की शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा को बनाने से बच्चे का सांस्कृतिक दृष्टि से गणना से परे नुकसान होता है ।
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भाषा का विकास एक समाज अपनी मान्यताओं, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति के आधार पर ही करता है। उस समाज की भाषा, उस समाज की सोच का प्रतिबिंब होती है। इसीलिये सभी समाजशास्त्रज्ञ, शिक्षाशास्त्रज्ञ और भाषाशास्त्रज्ञ शिक्षा के माध्यम के विषय में एकमत हैं। सभी का सुविचारित कहना है की हर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिये। अपनी मातृभाषा या देशी भाषाएं शिक्षा का माध्यम रहने से बच्चा अपनी संस्कृति के साथ जुडा रहता है। जैसे बच्चे की अपनी माँ का दूध ही बच्चे का सबसे बेहतर पोषण कर सकता है। उसी प्रकार से मातृभाषा मे शिक्षा पाने से बच्चे का विकास अन्य किसी भी भाषा को शिक्षा के माध्यम के तौरपर स्वीकार करने से बेहतर होता है। मातृभाषा के स्थानपर बच्चों की शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा को बनाने से बच्चे का सांस्कृतिक दृष्टि से गणना से परे नुकसान होता है। 
धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, संस्कार, परमात्मा, मोक्ष, एकात्मता जैसी संकल्पनाएं अन्य समाजों की भाषाओं में नहीं है । ना ही इन संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति के लिये उचित शब्द । अन्य भाषाओ के माध्यम से पढने से हमारे बच्चे इन मूलभूत भारतीय संकल्पनाओं से अर्थात् मूल भारतीय तत्व से अपरिचित रह जाते है ।
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विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देना एक सामाजिक अपराध है । यह विषय सामान्य लोगोंद्वारा निर्णय करने का नहीं है । ऐसे मामलों में लोकतंत्रात्मक पध्दति अपनाने से जनता का अपरिमित नुकसान होता है । समाज एक कुटुम्ब जैसा ही होता है । इस में कुछ बडे (समझदार, ज्ञानी) लोग होते हैं। लेकिन बडी संख्या अज्ञानीयों की होती है । घर में जैसे जो सज्ञान (केवल आयु से नहीं तो ज्ञान, अनुभव आदि से सज्ञान) होते है, वही सब के हित को ध्यान मे रखकर निर्णय लेते है । घर के सब लोग उस निर्णय के अनुसार व्यवहार करते है। भोजन में, खाने के लिये क्या हो इस बात का निर्णय नासमझ बच्चों के मत (लोकतांत्रिक प्रणालि के अनुसार मतदान) के अनुसार तय नहीं किया जा सकता । इसी प्रकार शिक्षा का माध्यम कौनसी भाषा हो इसका निर्णय लोकतांत्रिक ढंग से नहीं लिया जा सकता । यह निर्णय करना, वोट बँक की राजनीति करनेवाले राजनीतिक दलों का या सरकारका काम नहीं है । यह निर्भय, नि:स्वार्थ और विद्वान शिक्षाविदों का काम है ।  
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धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, संस्कार, परमात्मा, मोक्ष, एकात्मता जैसी संकल्पनाएं अन्य समाजों की भाषाओं में नहीं है । ना ही इन संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति के लिये उचित शब्द। अन्य भाषाओ के माध्यम से पढने से हमारे बच्चे इन मूलभूत भारतीय संकल्पनाओं से अर्थात् मूल भारतीय तत्व से अपरिचित रह जाते है।
३. अंग्रेजी या योरप की अन्य भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के सांस्कृतिक दुष्परिणाम
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मेकॉले का भारत में शिक्षा के माध्यम के विषय में अत्यंत स्पष्ट मत था । भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने के परिणामस्वरूप क्या होगा यह मेकॉले बताता है,'......वी विल बी टीचिंग फॉल्स ऍस्ट्रॉनॉमी, फॉल्स हिस्ट्री ऍंड फॉल्स मेडिसीन बीकॉज दे आर इन द बॅड कंपनी ऑफ अ फॉल्स रिलीजन. वी शॅल ऍब्स्टेन फ्रॉम गिव्हींग एनी पब्लिक एन्करेजमेंट टु द पीपल एंगेज्ड इन टु द कन्व्हर्शन ऑफ नेटिव्हज् इन टु क्रिश्चॅनिटी '. भावार्थ यह है की यदि हम भारतीय भाषा का शिक्षा के माध्यम के तौरपर उपयोग करते है तो हमें झूठा खगोल पढाना होगा अर्थात् आर्यभट्ट और वराहमिहिर पढाने होंगे (कोपरनिकस और गॅलिलियो नहीं), झूठा इतिहास पढाना पडेगा अर्थात् राम और कृष्ण का (भारत की मानहानी करनेवाला, विकृत छवि निर्माण करनेवाला मनगढन्त इतिहास नहीं), झुठा वैद्यक पढाना होगा अर्थात् चरक और शुश्रुत के वैद्यकीय क्षेत्रका पराक्रम अर्थात् आयुर्वेद सिखाना होगा, ऍलोपथी नहीं। आगे मेकॉले कहता है - और ऐसा करने से जो लोग भारत के मूल निवासियों को ईसाई बनाने में जुटे हुए है उन्हें हम कोई मदद नहीं करेंगे। इससे मेकॉले का यह अभिप्राय है की अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा देने से भारतीयों के ईसाईकरण में मदद होती है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पानेवाले भारतीयों की जीवनदृष्टि बदलकर अंग्रेजियत की याने व्यक्तिवादी, इहवादी और जड़वादी हो जाती है ।   
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विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देना एक सामाजिक अपराध है । यह विषय सामान्य लोगों द्वारा निर्णय करने का नहीं है। ऐसे मामलों में लोकतंत्रात्मक पद्दति अपनाने से जनता का अपरिमित नुकसान होता है। समाज एक कुटुम्ब जैसा ही होता है । इस में कुछ बडे (समझदार, ज्ञानी) लोग होते हैं। लेकिन बडी संख्या अज्ञानियों की होती है । घर में जैसे जो सज्ञान (केवल आयु से नहीं तो ज्ञान, अनुभव आदि से सज्ञान) होते है, वही सब के हित को ध्यान मे रखकर निर्णय लेते है। घर के सब लोग उस निर्णय के अनुसार व्यवहार करते है। भोजन में, खाने के लिये क्या हो इस बात का निर्णय नासमझ बच्चों के मत (लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुसार मतदान) के अनुसार तय नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार शिक्षा का माध्यम कौन सी भाषा हो इसका निर्णय लोकतांत्रिक ढंग से नहीं लिया जा सकता । यह निर्णय करना, वोट बैंक की राजनीति करनेवाले राजनीतिक दलों का या सरकार का काम नहीं है । यह निर्भय, नि:स्वार्थ और विद्वान शिक्षाविदों का काम है ।  
व्यवहार में भी हम यही अनुभव करते है। अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा पानेवाले बच्चों का सर्वप्रथम वाचनविश्व बदल जाता है । वह केवल अंग्रेजी साहित्य पढने की क्षमता और रुचि रखता है । जैसा साहित्य बच्चा पढता है वैसे ही उस के विचार बन जाते है । जैसे उस के विचार होते हैं वैसी उस की मानसिकता बन जाती है और जैसी मानसिकता होगी वैसा ही उस का व्यवहार हो जाता है । कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करेंगे
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ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी - (प्रामाणिकता यह सर्वश्रेष्ठ रणनीति है) - इस अर्थ की कहावत किसी भी भारतीय भाषा में नहीं है । हमारी मान्यता तो है की प्रामाणिकता तो हमारे खून में होनी चाहिये । प्रामाणिकता हमारा धर्म है। ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी कहनेवाला प्रामाणिकता का रणनीति के तौरपर उपयोग करता है ।
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=== अंग्रेजी या योरप की अन्य भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के सांस्कृतिक दुष्परिणाम ===
किंग कॅन डू नो राँग - (राजा कभी भी गलती नहीं कर सकता) किसी भी भारतीय भाषा में इस अर्थ की कहावत नहीं है। भारतीय मान्यता तो यह है की राजा भी गलती कर सकता है । और उसकी गलती का दण्ड उसे मिलना चाहिये।  
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मेकॉले का भारत में शिक्षा के माध्यम के विषय में अत्यंत स्पष्ट मत था । भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने के परिणामस्वरूप क्या होगा यह मेकॉले बताता है: "वी विल बी टीचिंग फॉल्स ऍस्ट्रॉनॉमी, फॉल्स हिस्ट्री ऍंड फॉल्स मेडिसीन बीकॉज दे आर इन द बॅड कंपनी ऑफ अ फॉल्स रिलीजन. वी शॅल ऍब्स्टेन फ्रॉम गिव्हींग एनी पब्लिक एन्करेजमेंट टु द पीपल एंगेज्ड इन टु द कन्व्हर्शन ऑफ नेटिव्हज् इन टु क्रिश्चॅनिटी".  
यू कॅन नॉट चूज युवर पॅरेंट्स् - (आप अपने माता पिता कौन हों यह तय नहीं कर सकते) । भारतीय मान्यता तो यह है की हम अपने कर्मों के कारण अपने पूर्वजन्म के अंतिम क्षण में ही अपने माता पिता तय कर लेते हैं।
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क्राईंग चाईल्ड ओन्ली गेट्स् मिल्क – बच्चा रोएगा नहीं तो उसे दूध नहीं मिलेगा । इस अर्थ की भी कोई कहावत किसी भी भारतीय भाषा में नहीं है । हमारे यहां तो यही सर्वमान्य है की बच्चा यदि नहीं रोएगा तो भी उस की माँ उसे दूध पिलाएगी ही। माँ अपने बच्चे को भूखा नहीं रहने देगी। यह कहावत पाश्चात्य तत्व - फाईट फॉर राईट्स्- से निर्माण हुई है। अन्यथा कोई अंग्रेज माँ भी बच्चा रोता नहीं है इसलिये उसे भूखा नहीं रहने देगी।  
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भावार्थ यह है कि यदि हम भारतीय भाषा का शिक्षा के माध्यम के तौर पर उपयोग करते है तो हमें झूठा खगोल पढाना होगा अर्थात् आर्यभट्ट और वराहमिहिर पढाने होंगे (कोपरनिकस और गॅलिलियो नहीं), झूठा इतिहास पढाना पडेगा अर्थात् राम और कृष्ण का (भारत की मानहानी करनेवाला, विकृत छवि निर्माण करनेवाला मनगढन्त इतिहास नहीं), झूठा वैद्यक पढाना होगा अर्थात् चरक और शुश्रुत के वैद्यकीय क्षेत्र का पराक्रम अर्थात् आयुर्वेद सिखाना होगा, ऍलोपथी नहीं।
आय ऍम स्टिल ए सेलेबल पर्सन, माइट इज राईट, किलर इन्स्टिन्ग्ट, आदि - ऐसे और भी कई उदाहरण दिये जा सकते है ।  
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इसीलिये शिक्षा का माध्यम कौनसी भाषा हो इसका भी निर्णय न तो बहुमत से और न ही सरकार के द्वारा करना ठीक होगा । यह निर्णय करना भी निर्भय, नि:स्वार्थ, देशभक्त और विद्वान शिक्षाविदों का काम है ।
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आगे मेकॉले कहता है - और ऐसा करने से जो लोग भारत के मूल निवासियों को ईसाई बनाने में जुटे हुए है उन्हें हम कोई मदद नहीं करेंगे। इससे मेकॉले का यह अभिप्राय है की अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा देने से भारतीयों के ईसाईकरण में मदद होती है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पाने वाले भारतीयों की जीवनदृष्टि बदलकर अंग्रेजियत की याने व्यक्तिवादी, इहवादी और जड़वादी हो जाती है।
४. शब्द निर्माण क्षमता  
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भारतीय देवनागरी लिपि में ३६ व्यंजन और १६ (वर्तमान में १२) स्वर हैं। अंग्रेजी में इक्कीस व्यंजन और पाँच स्वर हैं। इन वर्ण और स्वरों के बाहर कोई शब्द इन भाषाओं में नहीं हो सकता । इन वर्ण और स्वरों के आधारपर ही शब्द बनते है । गणित कर यदि देखा जाये तो ध्यान में आएगा की अंग्रेजी भाषा में जो शब्द निर्माण की सम्भावनाएँ हैं उन से न्यूनतम १ इस ऑंकडेपर २२ शून्य रखने से जितनी संख्या बनती है, उतने गुना से अधिक शब्द निर्माण की क्षमता भारतीय भाषाओं में है । शब्द निर्माण क्षमता अधिक होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में सरलता और सटीकता। शब्द निर्माण क्षमता कम होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में कठिनाई ।
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व्यवहार में भी हम यही अनुभव करते है। अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा पानेवाले बच्चों का सर्वप्रथम वाचनविश्व बदल जाता है । वह केवल अंग्रेजी साहित्य पढने की क्षमता और रुचि रखता है । जैसा साहित्य बच्चा पढता है वैसे ही उस के विचार बन जाते है । जैसे उस के विचार होते हैं वैसी उस की मानसिकता बन जाती है और जैसी मानसिकता होगी वैसा ही उस का व्यवहार हो जाता है । कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करेंगे:
शब्द निर्माण की क्षमता के साथ ही सभी संभाव्य विविध शब्दों के निर्माण की क्षमता होना भी पूर्णत्व का लक्षण है। संस्कृत भाषा में मर्यादित संख्यामें तय किये गए ‘धातु’ओं की मदद से हर ‘अर्थ’ के लिए शब्द निर्माण किया जा सकता है। इस दृष्टि से संस्कृत भाषा की श्रेष्ठता अनन्यसाधारण है।
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* ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी - (प्रामाणिकता यह सर्वश्रेष्ठ रणनीति है) - इस अर्थ की कहावत किसी भी भारतीय भाषा में नहीं है । हमारी मान्यता तो है कि  प्रामाणिकता तो हमारे खून में होनी चाहिये । प्रामाणिकता हमारा धर्म है। ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी कहनेवाला प्रामाणिकता का रणनीति के तौर पर उपयोग करता है।
५. भारतीय भाषाएं समझने, सीखने में और उन के उपयोग में सरलता
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* किंग कॅन डू नो राँग - (राजा कभी भी गलती नहीं कर सकता) किसी भी भारतीय भाषा में इस अर्थ की कहावत नहीं है। भारतीय मान्यता तो यह है कि राजा भी गलती कर सकता है । और उसकी गलती का दण्ड उसे मिलना चाहिये।  
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* यू कॅन नॉट चूज युवर पॅरेंट्स् - (आप अपने माता पिता का चयन नहीं कर सकते) । भारतीय मान्यता तो यह है कि हम अपने कर्मों के कारण अपने पूर्वजन्म के अंतिम क्षण में ही अपने माता पिता तय कर लेते हैं।  
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* क्राईंग चाईल्ड ओन्ली गेट्स् मिल्क – बच्चा रोएगा नहीं तो उसे दूध नहीं मिलेगा । इस अर्थ की भी कोई कहावत किसी भी भारतीय भाषा में नहीं है । हमारे यहां तो यही सर्वमान्य है कि बच्चा यदि नहीं रोएगा तो भी उस की माँ उसे दूध पिलाएगी ही। माँ अपने बच्चे को भूखा नहीं रहने देगी। यह कहावत पाश्चात्य तत्व - फाईट फॉर राईट्स्- से निर्माण हुई है। अन्यथा कोई अंग्रेज माँ भी बच्चा रोता नहीं है इसलिये उसे भूखा नहीं रहने देगी।  
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* आय ऍम स्टिल ए सेलेबल पर्सन, माइट इज राईट, किलर इन्स्टिन्ग्ट, आदि - ऐसे और भी कई उदाहरण दिये जा सकते है ।  
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इसीलिये शिक्षा का माध्यम कौनसी भाषा हो इसका भी निर्णय न तो बहुमत से और न ही सरकार के द्वारा करना ठीक होगा । यह निर्णय करना भी निर्भय, नि:स्वार्थ, देशभक्त और विद्वान शिक्षाविदों का काम है ।  
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=== शब्द निर्माण क्षमता ===
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भारतीय देवनागरी लिपि में ३६ व्यंजन और १६ (वर्तमान में १२) स्वर हैं। अंग्रेजी में इक्कीस व्यंजन और पाँच स्वर हैं। इन वर्ण और स्वरों के बाहर कोई शब्द इन भाषाओं में नहीं हो सकता । इन वर्ण और स्वरों के आधारपर ही शब्द बनते है । गणित कर यदि देखा जाये तो ध्यान में आएगा की अंग्रेजी भाषा में जो शब्द निर्माण की सम्भावनाएँ हैं उन से न्यूनतम १ इस ऑंकडेपर २२ शून्य रखने से जितनी संख्या बनती है, उतने गुना से अधिक शब्द निर्माण की क्षमता भारतीय भाषाओं में है । शब्द निर्माण क्षमता अधिक होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में सरलता और सटीकता। शब्द निर्माण क्षमता कम होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में कठिनाई ।
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शब्द निर्माण की क्षमता के साथ ही सभी संभाव्य विविध शब्दों के निर्माण की क्षमता होना भी पूर्णत्व का लक्षण है। संस्कृत भाषा में मर्यादित संख्यामें तय किये गए ‘धातु’ओं की मदद से हर ‘अर्थ’ के लिए शब्द निर्माण किया जा सकता है। इस दृष्टि से संस्कृत भाषा की श्रेष्ठता अनन्यसाधारण है।  
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=== भारतीय भाषाएं समझने, सीखने में और उन के उपयोग में सरलता ===
 
५.१ संस्कृत तो श्रेष्ठतम है ही । लेकिन अन्य भारतीय भाषाएं भी अंग्रेजी से अधिक व्याकरण शुध्द हैं। तर्कसंगत हैं। बुद्धियुक्त हैं। इस लिये भारतीय भाषाएं सीखना सरल है। भारतीय भाषाएं उपयोग करने में भी सरल है ।  
 
५.१ संस्कृत तो श्रेष्ठतम है ही । लेकिन अन्य भारतीय भाषाएं भी अंग्रेजी से अधिक व्याकरण शुध्द हैं। तर्कसंगत हैं। बुद्धियुक्त हैं। इस लिये भारतीय भाषाएं सीखना सरल है। भारतीय भाषाएं उपयोग करने में भी सरल है ।  
 
शरीर रचना शास्त्र का भी इसमे विशेष ध्यान दिया गया है । ओष्ठय, दंत्य, मूर्धन्य, तालव्य और कंठय ऐसी हमारे भाषाओं की वर्णमालाओं के अक्षरों की रचना अत्यंत वैज्ञानिक है ।  
 
शरीर रचना शास्त्र का भी इसमे विशेष ध्यान दिया गया है । ओष्ठय, दंत्य, मूर्धन्य, तालव्य और कंठय ऐसी हमारे भाषाओं की वर्णमालाओं के अक्षरों की रचना अत्यंत वैज्ञानिक है ।  
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अनुनासिकों के स्वाभाविक उच्चारणों को भी वर्णमाला में सटीक स्थान दिया गया है । जैसे दंड शब्द में ' ण् ' का उच्चार होगा । ' म् ' का नहीं। क्यों की ' ण ' यह ' ट ' वर्ग का अनुनासिक है ।
 
अनुनासिकों के स्वाभाविक उच्चारणों को भी वर्णमाला में सटीक स्थान दिया गया है । जैसे दंड शब्द में ' ण् ' का उच्चार होगा । ' म् ' का नहीं। क्यों की ' ण ' यह ' ट ' वर्ग का अनुनासिक है ।
 
५.५ भारतीय सोच में ' पूर्णत्व की प्राप्ति ' का आग्रह है । इसलिये भारतीय भाषाओं में शब्दों का उच्चारण स्पष्ट, पूरा और पर्याप्त शक्ति के साथ हो, जिससे वह सुननेवाले को अच्छी तरह से सुनाई दे, समझ में आये, ऐसा आग्रह होता है। अंग्रेजी या योरप की अन्य भाषा में शायद जितना अधूरा उच्चारण होगा, उतना उसे ठीक उच्चारण (राइट ऍक्सेंट) माना जाता है ।     
 
५.५ भारतीय सोच में ' पूर्णत्व की प्राप्ति ' का आग्रह है । इसलिये भारतीय भाषाओं में शब्दों का उच्चारण स्पष्ट, पूरा और पर्याप्त शक्ति के साथ हो, जिससे वह सुननेवाले को अच्छी तरह से सुनाई दे, समझ में आये, ऐसा आग्रह होता है। अंग्रेजी या योरप की अन्य भाषा में शायद जितना अधूरा उच्चारण होगा, उतना उसे ठीक उच्चारण (राइट ऍक्सेंट) माना जाता है ।     
५.६ देवनागरी के लेखन से उंगलियाँ और संस्कृत भाषा बोलने से जबान लचीली बन जाती है । फिर विश्व की कोई भी भाषा लिखना और बोलना सरल हो जाता है ।  
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५.६ देवनागरी के लेखन से उंगलियाँ और संस्कृत भाषा बोलने से जबान लचीली बन जाती है । फिर विश्व की कोई भी भाषा लिखना और बोलना सरल हो जाता है ।
६. ज्ञान और विज्ञान की भाषा
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संस्कृत भाषा यह प्राचीनतम काल से ज्ञान और विज्ञान की भाषा रही है । इस की वर्तमान विज्ञान की विधा में भी नये शब्द निर्माण की क्षमता विश्व की अन्य किसी भी भाषा से विलक्षण है । संस्कृत में बने शब्द अर्थवाही भी होते है। जैसे संगणक के साथ पेन ड्राईव्ह नाम का एक उपकरण होता है। इस उपकरण का कार्य जानकारी का संकलन और आवश्यकतानुसार उपलब्धता करना है। इस कार्य का न तो पेन(लेखनी) से सम्बन्ध है और ना ही ड्राईव्ह याने ‘चलाना’ से। इसे संस्कृत में स्मृति शलाका कहते हैं। अर्थ है - जिसमें स्मृति सुरक्षित की है ऐसी छोटी सी डंडी।
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=== ज्ञान और विज्ञान की भाषा ===
७. सामाजिकता बढानेवाली - रिश्ते नातों की भाषा  
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संस्कृत भाषा यह प्राचीनतम काल से ज्ञान और विज्ञान की भाषा रही है । इस की वर्तमान विज्ञान की विधा में भी नये शब्द निर्माण की क्षमता विश्व की अन्य किसी भी भाषा से विलक्षण है । संस्कृत में बने शब्द अर्थवाही भी होते है। जैसे संगणक के साथ पेन ड्राईव्ह नाम का एक उपकरण होता है। इस उपकरण का कार्य जानकारी का संकलन और आवश्यकतानुसार उपलब्धता करना है। इस कार्य का न तो पेन(लेखनी) से सम्बन्ध है और ना ही ड्राईव्ह याने ‘चलाना’ से। इसे संस्कृत में स्मृति शलाका कहते हैं। अर्थ है - जिसमें स्मृति सुरक्षित की है ऐसी छोटी सी डंडी।  
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=== सामाजिकता बढानेवाली - रिश्ते नातों की भाषा ===
 
भारतीय कुटुम्ब यह सामाजिकता के पाठ पढने का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है । इस में जन्म के समय केवल अपने लिये विचार करनेवाला बच्चा बडा होकर अपनों के लिये जीने लग जाता है । बच्चे का अपनत्व का दायरा भारतीय कुटुम्ब में अन्य किसी भी समाज से बडा होता है । वसुधैव कुटुम्बकम् का वस्तुपाठ बच्चा इस विशाल कुटुम्ब से ही लेना प्रारंभ करता है । भारतीय भाषाएं सामाजिकता के विकास की दृष्टि से भी अत्यंत विकसित है । हमारी भाषाओं में भिन्न भिन्न प्रकार के जितने रिश्तों के नाम हैं विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, दादा-दादी, नाना-नानी, मौसा-मौसी, फूफा-फूफी, ताऊ-ताई, ननद-ननदोई, बहन-बहनोई, साला-साली, भतिजा-भतीजी, भांजा-भांजी, देवर-भाभी, जेठ-जेठानी, चाचा-चाची, मानी हुई बहन या भाई / मानस-कन्या या मानसपुत्र आदि । अंग्रेजी में यह रिश्ते बस मदर-फादर, ब्रदर-सिस्टर, सन-डॉटर, अंकल-ऑंटी तक ही सीमित है ।  
 
भारतीय कुटुम्ब यह सामाजिकता के पाठ पढने का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है । इस में जन्म के समय केवल अपने लिये विचार करनेवाला बच्चा बडा होकर अपनों के लिये जीने लग जाता है । बच्चे का अपनत्व का दायरा भारतीय कुटुम्ब में अन्य किसी भी समाज से बडा होता है । वसुधैव कुटुम्बकम् का वस्तुपाठ बच्चा इस विशाल कुटुम्ब से ही लेना प्रारंभ करता है । भारतीय भाषाएं सामाजिकता के विकास की दृष्टि से भी अत्यंत विकसित है । हमारी भाषाओं में भिन्न भिन्न प्रकार के जितने रिश्तों के नाम हैं विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, दादा-दादी, नाना-नानी, मौसा-मौसी, फूफा-फूफी, ताऊ-ताई, ननद-ननदोई, बहन-बहनोई, साला-साली, भतिजा-भतीजी, भांजा-भांजी, देवर-भाभी, जेठ-जेठानी, चाचा-चाची, मानी हुई बहन या भाई / मानस-कन्या या मानसपुत्र आदि । अंग्रेजी में यह रिश्ते बस मदर-फादर, ब्रदर-सिस्टर, सन-डॉटर, अंकल-ऑंटी तक ही सीमित है ।  
८. अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम न बनाकर भारतीय भाषाओं को माध्यम बनाने  की आवश्यकता
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=== अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम न बनाकर भारतीय भाषाओं को माध्यम बनाने  की आवश्यकता ===
 
८.१ अपनी भाषा का प्रयोग सामान्य व्यवहार के लिये करना यह हर समाज के लिये स्वत्व और स्वाभिमान की बात होती है। पराभूत और परावलंबी मानसिकता रखनेवाले समाज ही विदेशी समाजों की भाषा अपनाते हैं। जर्मनी में जर्मन, जापान में जापानी, पुर्तगाल में पुर्तगाली, फ्रांस में फ्रेंच भाषाओं का ही ये देश सामान्य व्यवहार के लिये उपयोग करते हैं।  
 
८.१ अपनी भाषा का प्रयोग सामान्य व्यवहार के लिये करना यह हर समाज के लिये स्वत्व और स्वाभिमान की बात होती है। पराभूत और परावलंबी मानसिकता रखनेवाले समाज ही विदेशी समाजों की भाषा अपनाते हैं। जर्मनी में जर्मन, जापान में जापानी, पुर्तगाल में पुर्तगाली, फ्रांस में फ्रेंच भाषाओं का ही ये देश सामान्य व्यवहार के लिये उपयोग करते हैं।  
 
८.२ अभारतीय भाषाएं उन समाजों की मान्यताओं, सोच को अभिव्यक्त करती है । और अभारतीय समाजों में एकात्मता का विचार नहीं है। इसलिये इन भाषाओं में अध्ययन कर बच्चे हीन संस्कृति अपनाते जाते है। बच्चों को हीन संस्कृति से बचाकर ' एकात्मता ' पर आधारित श्रेष्ठ संस्कृति मे संस्कारित करना भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने से ही संभव होता है ।  
 
८.२ अभारतीय भाषाएं उन समाजों की मान्यताओं, सोच को अभिव्यक्त करती है । और अभारतीय समाजों में एकात्मता का विचार नहीं है। इसलिये इन भाषाओं में अध्ययन कर बच्चे हीन संस्कृति अपनाते जाते है। बच्चों को हीन संस्कृति से बचाकर ' एकात्मता ' पर आधारित श्रेष्ठ संस्कृति मे संस्कारित करना भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने से ही संभव होता है ।  
 
८.३ बच्चों की प्रतिभा का पूरा उपयोग अध्ययन के लिये होता है । भारतीय भाषाएं सीखने के लिये सरल, व्याकरणशुध्द और तर्कशुध्द होने के कारण भाषा सीखने में प्रतिभा का न्यूनतम और बहुत छोटा हिस्सा ही व्यय होता है । बचा हुआ पूरा हिस्सा नये विषयों के अध्ययन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।
 
८.३ बच्चों की प्रतिभा का पूरा उपयोग अध्ययन के लिये होता है । भारतीय भाषाएं सीखने के लिये सरल, व्याकरणशुध्द और तर्कशुध्द होने के कारण भाषा सीखने में प्रतिभा का न्यूनतम और बहुत छोटा हिस्सा ही व्यय होता है । बचा हुआ पूरा हिस्सा नये विषयों के अध्ययन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।
 
८.४ संस्कृत भाषा जिसे आती है, उसे विश्व की अन्य कोई भी भाषा सीखना बहुत सरल होता है । अन्य भारतीय भाषाओं के लिये भी यह कम-अधिक मात्रा में लागू होता है ।
 
८.४ संस्कृत भाषा जिसे आती है, उसे विश्व की अन्य कोई भी भाषा सीखना बहुत सरल होता है । अन्य भारतीय भाषाओं के लिये भी यह कम-अधिक मात्रा में लागू होता है ।
८.५ ग्रीक और लॅटिन यह संस्कृत के बाद दूसरे क्रमांक की प्राचीन भाषाएं हैं। किंतु संस्कृत में आज भी उपलब्ध विविध विषयोंपर लिखे ग्रंथों की पांडुलिपियाँ ग्रीक और लॅटिन दोनों भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है । वर्तमान शिक्षा के कारण इन पांडुलिपियों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान अस्तंगत होता जा रहा है । भारतीय और विशेषत: संस्कृत सीखने से इन ग्रंथों में सुरक्षित और छुपा ज्ञान मानवमात्र को उपलब्ध हो सकेगा ।
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८.५ ग्रीक और लॅटिन यह संस्कृत के बाद दूसरे क्रमांक की प्राचीन भाषाएं हैं। किंतु संस्कृत में आज भी उपलब्ध विविध विषयोंपर लिखे ग्रंथों की पांडुलिपियाँ ग्रीक और लॅटिन दोनों भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है । वर्तमान शिक्षा के कारण इन पांडुलिपियों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान अस्तंगत होता जा रहा है । भारतीय और विशेषत: संस्कृत सीखने से इन ग्रंथों में सुरक्षित और छुपा ज्ञान मानवमात्र को उपलब्ध हो सकेगा ।  
९. अंग्रेजी भाषा को हटाकर भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की उपाय योजना
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=== अंग्रेजी भाषा को हटाकर भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की उपाय योजना ===
 
भारतीय भाषाएं वर्तमान में अपने अस्तित्व की लडाई लड रही है । और अस्तित्व का यह संकट अग्रेजी भाषा को शिक्षा के माध्यम के स्वरूप में अपनाने की सामान्य लोगों की मानसिकता के कारण है। इस लडाई को लडाई के धर्म के अनुसार लडना होगा । भारतीय संस्कृति धर्मपर आधारित होने से यह धर्मयुध्द होगा । अर्थात् अंग्रेजी भाषा से हमारी कोई लडाई नहीं है । हमारी लडाई है अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने के विरोध में ।  
 
भारतीय भाषाएं वर्तमान में अपने अस्तित्व की लडाई लड रही है । और अस्तित्व का यह संकट अग्रेजी भाषा को शिक्षा के माध्यम के स्वरूप में अपनाने की सामान्य लोगों की मानसिकता के कारण है। इस लडाई को लडाई के धर्म के अनुसार लडना होगा । भारतीय संस्कृति धर्मपर आधारित होने से यह धर्मयुध्द होगा । अर्थात् अंग्रेजी भाषा से हमारी कोई लडाई नहीं है । हमारी लडाई है अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने के विरोध में ।  
 
अंग्रेजी भाषा का एक प्रबल बलस्थान निम्न है । विश्व के बहुत बडे हिस्से में, दर्जनों देशों में अंग्रेजों के उपनिवेश रहे हैं। हर उपनिवेश में अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को स्थानिक समाजपर थोपने के सफल प्रयास किये। इसी का परिणाम है की कई देशों ने जैसे अमरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की संस्कृति और सामान्य व्यवहार की भाषा अंग्रेजी बन गई । भारतीय संस्कृति मे उपनिवेषवाद को कोई स्थान नहीं है । इसलिये यह अंग्रेजी का ऐसा बलस्थान है जिसे हम उसी ढंग से उत्तर नहीं दे सकते। अर्थात् इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बनाकर नहीं दे सकते। इस बलस्थान को हमें भारतीय भाषाओं के अन्य बलस्थानों के बलपर ही परास्त करना होगा ।   
 
अंग्रेजी भाषा का एक प्रबल बलस्थान निम्न है । विश्व के बहुत बडे हिस्से में, दर्जनों देशों में अंग्रेजों के उपनिवेश रहे हैं। हर उपनिवेश में अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को स्थानिक समाजपर थोपने के सफल प्रयास किये। इसी का परिणाम है की कई देशों ने जैसे अमरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की संस्कृति और सामान्य व्यवहार की भाषा अंग्रेजी बन गई । भारतीय संस्कृति मे उपनिवेषवाद को कोई स्थान नहीं है । इसलिये यह अंग्रेजी का ऐसा बलस्थान है जिसे हम उसी ढंग से उत्तर नहीं दे सकते। अर्थात् इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बनाकर नहीं दे सकते। इस बलस्थान को हमें भारतीय भाषाओं के अन्य बलस्थानों के बलपर ही परास्त करना होगा ।   
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९.८ मातृभाषा (राज्य की) ही शिक्षा का माध्यम बने इस हेतु आंदोलन चलाना/जनजागरण करना।
 
९.८ मातृभाषा (राज्य की) ही शिक्षा का माध्यम बने इस हेतु आंदोलन चलाना/जनजागरण करना।
 
९.९ आंतराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में औपचारिक स्तर पर अपनी भाषाओं का ही उपयोग करते रहना। भिन्न भिन्न देशों में ' संस्कृत/हिंदी विश्व संम्मेलन ' का आयोजन कर, भारतीय भाषाओं की महत्ता विश्वविख्यात करना ।
 
९.९ आंतराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में औपचारिक स्तर पर अपनी भाषाओं का ही उपयोग करते रहना। भिन्न भिन्न देशों में ' संस्कृत/हिंदी विश्व संम्मेलन ' का आयोजन कर, भारतीय भाषाओं की महत्ता विश्वविख्यात करना ।
९.१० अंग्रेजी का वर्तमान में उपजीविका पाने के लिये महत्व समझकर ' अंग्रेजी भाषा ' अध्यापन के लिये श्रेष्ठ पध्दति का उपयोग करना । सुनना, बोलना, पढना और अंत में लिखना यह किसी भी  भाषा को सीखने के स्वाभाविक चरण होते है । बच्चा इसी क्रम से अपनी भाषा सीखता है । संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संभाषण के लिये विकसित ' संस्कृत संभाषण वर्ग ' की पध्दति से विद्यालय यदि अंग्रेजी पढाएंगे तो बच्चे अच्छी तरह अंग्रेजी बोल सकेंगे । इस से अभिभावकों को अंग्रेजी माध्यम में बच्चों को पढाने का मोह नहीं होगा ।  
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९.१० अंग्रेजी का वर्तमान में उपजीविका पाने के लिये महत्व समझकर ' अंग्रेजी भाषा ' अध्यापन के लिये श्रेष्ठ पद्दति का उपयोग करना । सुनना, बोलना, पढना और अंत में लिखना यह किसी भी  भाषा को सीखने के स्वाभाविक चरण होते है । बच्चा इसी क्रम से अपनी भाषा सीखता है । संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संभाषण के लिये विकसित ' संस्कृत संभाषण वर्ग ' की पद्दति से विद्यालय यदि अंग्रेजी पढाएंगे तो बच्चे अच्छी तरह अंग्रेजी बोल सकेंगे । इस से अभिभावकों को अंग्रेजी माध्यम में बच्चों को पढाने का मोह नहीं होगा ।  
 
९.११. एक तात्कालिक उपाय के रूप में, जबतक अंग्रेजी चलेगी तबतक रोमन लिपि के स्थानपर देवनागरी लिपि के उपयोग से अंग्रेजी भाषा के उच्चारण और लेखन की आधी समस्या हल हो सकेगी।  
 
९.११. एक तात्कालिक उपाय के रूप में, जबतक अंग्रेजी चलेगी तबतक रोमन लिपि के स्थानपर देवनागरी लिपि के उपयोग से अंग्रेजी भाषा के उच्चारण और लेखन की आधी समस्या हल हो सकेगी।  
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१०. अपनी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को लेने से भाषा समृध्दि या प्रदूषण
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=== अपनी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को लेने से भाषा समृध्दि या प्रदूषण ===
अपनी भाषा में बात करते समय अंग्रेजी शब्दों का उस में जहाँतहाँ उपयोग करना यह सामान्य लोगों की आदत बन गई है । उस के समर्थन मे कहा जाता है की ‘ऐसा करने से हमारी भाषा समृध्द बनती है’। अंग्रेजी भाषा का उदाहरण दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा भिन्न भिन्न भाषाओं से ऐसे शब्द लेती रहती है। अंग्रेजी शब्दकोष के हर नये प्रकाशन में ऐसे अन्य भाषाओं से लिये शब्द मिलते है । अंग्रेजी जैसी अवैज्ञानिक (आर्बिट्रेरी) भाषा के लिये यह ठीक हो सकता है । हमारी भाषाओं के लिये नहीं। हमारी भाषाओं के शब्दों का निर्माण शास्त्रीय पध्दति से होता है। अंग्रेजी शब्दों का उपयोग और समावेश हमारी भाषाओं में करने से हमारी भाषाएं प्रदूषित होती हैं। इसलिये अपनी भाषा में बोलते/लिखते समय हम यह विशेष रूप से देखें की अंग्रेजी या उर्दू भाषा के शब्दों का उपयोग कर हम अपनी भाषा को प्रदूषित तो नहीं कर रहे ? ऐसा करते हों तो इसे अविलंब रोकने का प्रयास करना आवश्यक है ।
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अपनी भाषा में बात करते समय अंग्रेजी शब्दों का उस में जहाँतहाँ उपयोग करना यह सामान्य लोगों की आदत बन गई है । उस के समर्थन मे कहा जाता है की ‘ऐसा करने से हमारी भाषा समृध्द बनती है’। अंग्रेजी भाषा का उदाहरण दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा भिन्न भिन्न भाषाओं से ऐसे शब्द लेती रहती है। अंग्रेजी शब्दकोष के हर नये प्रकाशन में ऐसे अन्य भाषाओं से लिये शब्द मिलते है । अंग्रेजी जैसी अवैज्ञानिक (आर्बिट्रेरी) भाषा के लिये यह ठीक हो सकता है । हमारी भाषाओं के लिये नहीं। हमारी भाषाओं के शब्दों का निर्माण शास्त्रीय पद्दति से होता है। अंग्रेजी शब्दों का उपयोग और समावेश हमारी भाषाओं में करने से हमारी भाषाएं प्रदूषित होती हैं। इसलिये अपनी भाषा में बोलते/लिखते समय हम यह विशेष रूप से देखें की अंग्रेजी या उर्दू भाषा के शब्दों का उपयोग कर हम अपनी भाषा को प्रदूषित तो नहीं कर रहे ? ऐसा करते हों तो इसे अविलंब रोकने का प्रयास करना आवश्यक है ।
११. पहली कक्षा से अंग्रेजी सीखने का आग्रह और बलप्रयोग सामाजिक अपराध है  
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=== पहली कक्षा से अंग्रेजी सीखने का आग्रह और बलप्रयोग सामाजिक अपराध है ===
 
११.१ अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय  है । इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है।
 
११.१ अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय  है । इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है।
 
११.२ अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यतावाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगों का ही शायद इन अंग्रेजीभाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगों को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है।
 
११.२ अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यतावाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगों का ही शायद इन अंग्रेजीभाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगों को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है।
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