Changes

Jump to navigation Jump to search
इमेज प्लेसमेंट बदला
Line 116: Line 116:     
हर निर्माण के पीछे निर्माण करनेवाला होता है और निर्माण करनेवाले का कोई न कोई प्रयोजन होता है। सृष्टि निर्माण का प्रयोजन क्या है? साईंटिस्ट मानते हैं कि फफुन्द और अमोनिया की रासायनिक प्रक्रिया से जड़ में से ही एक कोशीय जीव अमीबा का निर्माण हुआ। इस प्रकार से मात्र रासायनिक प्रक्रिया से जीव निर्माण अब तक कोई साईंटिस्ट निर्माण नहीं कर पाया है। जीव की मदद के बिना कोई जीव अब तक निर्माण नहीं किया जा सका है। अमीबा से ही मछली, बन्दर आदि क्रम से विकास होते होते वर्तमान का मानव निर्माण हुआ है। लेकिन आज तक ऐसा एक भी बन्दर नहीं पाया गया है जिसका स्वर यंत्र कहीं दूर दूर तक भी मानव के स्वरयंत्र जितना विकसित होगा या जिसकी बुद्धि मानव की बुद्धि जितनी विकासशील हो। मानव में बुद्धि का विकास तो एक ही जन्म में हो जाता है। कई प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि अवसर न मिलने से बालक निर्बुद्ध ही रह जाता है। शायद बन्दर की बुद्धि जितनी भी उसकी बुद्धि विकसित नहीं हो पाती। प्रत्येक जीव में अनिवार्यता से उपस्थित जीवात्मा तथा परमात्मा के अस्तित्व को नहीं मानने की हठधर्मी के कारण ही साईंटिस्ट अधूरी और अयुक्तिसंगत ऐसी सृष्टि निर्माण की मान्यताओं को त्याग नहीं सकते। इसीलिये वे डार्विन की या मिलर की परिकल्पनाओं को ही सिद्धांत कहने को विवश हैं।
 
हर निर्माण के पीछे निर्माण करनेवाला होता है और निर्माण करनेवाले का कोई न कोई प्रयोजन होता है। सृष्टि निर्माण का प्रयोजन क्या है? साईंटिस्ट मानते हैं कि फफुन्द और अमोनिया की रासायनिक प्रक्रिया से जड़ में से ही एक कोशीय जीव अमीबा का निर्माण हुआ। इस प्रकार से मात्र रासायनिक प्रक्रिया से जीव निर्माण अब तक कोई साईंटिस्ट निर्माण नहीं कर पाया है। जीव की मदद के बिना कोई जीव अब तक निर्माण नहीं किया जा सका है। अमीबा से ही मछली, बन्दर आदि क्रम से विकास होते होते वर्तमान का मानव निर्माण हुआ है। लेकिन आज तक ऐसा एक भी बन्दर नहीं पाया गया है जिसका स्वर यंत्र कहीं दूर दूर तक भी मानव के स्वरयंत्र जितना विकसित होगा या जिसकी बुद्धि मानव की बुद्धि जितनी विकासशील हो। मानव में बुद्धि का विकास तो एक ही जन्म में हो जाता है। कई प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि अवसर न मिलने से बालक निर्बुद्ध ही रह जाता है। शायद बन्दर की बुद्धि जितनी भी उसकी बुद्धि विकसित नहीं हो पाती। प्रत्येक जीव में अनिवार्यता से उपस्थित जीवात्मा तथा परमात्मा के अस्तित्व को नहीं मानने की हठधर्मी के कारण ही साईंटिस्ट अधूरी और अयुक्तिसंगत ऐसी सृष्टि निर्माण की मान्यताओं को त्याग नहीं सकते। इसीलिये वे डार्विन की या मिलर की परिकल्पनाओं को ही सिद्धांत कहने को विवश हैं।
[[File:Bhartiya_Pratiman.JPG|frame|मनुष्य निर्मित सृष्टि के घटक]]
  −
   
== प्राकृतिक और मनुष्य निर्मित सृष्टि के घटक ==
 
== प्राकृतिक और मनुष्य निर्मित सृष्टि के घटक ==
 
परमात्मा से लेकर मनुष्य के शरीर के अन्दर उपस्थित कोषों तक क्रमश: सभी घटकों में परस्पर सम्बन्ध है। इनमें जो प्राकृतिक हैं उनमें परिवर्तन मानव की शक्ति के बाहर हैं। वैसे तो व्यक्ति से लेकर वैश्विक समाज तक की ईकाईयां भी परमात्मा निर्मित ही हैं। लेकिन इनके नियम मनुष्य अपने हिसाब से बदल सकता है। मनुष्य अपने हिसाब से बदलता भी रहा है।
 
परमात्मा से लेकर मनुष्य के शरीर के अन्दर उपस्थित कोषों तक क्रमश: सभी घटकों में परस्पर सम्बन्ध है। इनमें जो प्राकृतिक हैं उनमें परिवर्तन मानव की शक्ति के बाहर हैं। वैसे तो व्यक्ति से लेकर वैश्विक समाज तक की ईकाईयां भी परमात्मा निर्मित ही हैं। लेकिन इनके नियम मनुष्य अपने हिसाब से बदल सकता है। मनुष्य अपने हिसाब से बदलता भी रहा है।
Line 123: Line 121:  
इन सभी घटकों में महत्त्व की बात यह है कि प्रत्येक घटक अंग है और तुरंत नीचे का घटक उसका अंगी है। केवल परमात्मा अंग भी है और अपना अंगी भी है। इसका अधिक अध्ययन हम अन्गांगी सम्बन्ध इस अध्याय में करेंगे।
 
इन सभी घटकों में महत्त्व की बात यह है कि प्रत्येक घटक अंग है और तुरंत नीचे का घटक उसका अंगी है। केवल परमात्मा अंग भी है और अपना अंगी भी है। इसका अधिक अध्ययन हम अन्गांगी सम्बन्ध इस अध्याय में करेंगे।
   −
इसका चित्र रूप आगे  देखें।
+
इसका चित्र रूप आगे  देखें।[[File:Bhartiya_Pratiman.JPG|frame|मनुष्य निर्मित सृष्टि के घटक|center|542x542px]]
    
==References==
 
==References==
890

edits

Navigation menu