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| अर्थ है - देवताओं ( वायू, वरुण, अग्नि, पृथ्वि आदि यानी पर्यावरण) का पोषण करते हुए नि:स्वार्थ भाव से परस्पर हित साधते हुए परम कल्याण को प्राप्त करो। यह है पर्यावरण से संबंधों का आधार। | | अर्थ है - देवताओं ( वायू, वरुण, अग्नि, पृथ्वि आदि यानी पर्यावरण) का पोषण करते हुए नि:स्वार्थ भाव से परस्पर हित साधते हुए परम कल्याण को प्राप्त करो। यह है पर्यावरण से संबंधों का आधार। |
| उपर्युक्त तत्त्वज्ञान पर आधारित भारतीय जीवन दृष्टि के सूत्र निम्न हैं। | | उपर्युक्त तत्त्वज्ञान पर आधारित भारतीय जीवन दृष्टि के सूत्र निम्न हैं। |
− | १. सारी सृष्टि आत्म तत्त्व का ही विस्तार है। मनुष्य परमात्मा का ही सर्वश्रेष्ठ रूप है। एकात्मता सृष्टि के | + | १. सारी सृष्टि आत्म तत्त्व का ही विस्तार है। मनुष्य परमात्मा का ही सर्वश्रेष्ठ रूप है। एकात्मता सृष्टि के सभी व्यवहारों का आधारभूत सिध्दांत है। परस्पर संबंधों का आधार पारिवारिक भावना है। |
− | सभी व्यवहारों का आधारभूत सिध्दांत है। परस्पर संबंधों का आधार पारिवारिक भावना है।
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| २. सृष्टि चेतन से बनीं है जड से नहीं। | | २. सृष्टि चेतन से बनीं है जड से नहीं। |
− | ३. जीवन स्थल (वर्तमान चर-अचर सृष्टि को प्रभावित करने वाला और उस से प्रभावित होने वाला) और | + | ३. जीवन स्थल (वर्तमान चर-अचर सृष्टि को प्रभावित करने वाला और उस से प्रभावित होने वाला) और काल (सृष्टि के निर्माण से लेकर सृष्टि के अंत तक) के संदर्भ में अखंड है। पुनर्जन्म ही काल के संदर्भ में अखंडता है। |
− | काल (सृष्टि के निर्माण से लेकर सृष्टि के अंत तक) के संदर्भ में अखंड है। पुनर्जन्म ही काल के संदर्भ में
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− | अखंडता है।
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| ४. सृष्टि की रचना परस्पर पूरक और चक्रीय है। | | ४. सृष्टि की रचना परस्पर पूरक और चक्रीय है। |
− | ५. कर्म ही मानव जीवन का नियमन करते हैं। कर्मसिध्दांत इसे समझने का साधन है। अच्छे (परोपकार या | + | ५. कर्म ही मानव जीवन का नियमन करते हैं। कर्मसिध्दांत इसे समझने का साधन है। अच्छे (परोपकार या पुण्य) कर्म जीवन को अच्चा आप्रर बुरे (परपीडा या पाप) कर्म जीवन को बुरा बनाते हैं। |
− | पुण्य) कर्म जीवन को अच्चा आप्रर बुरे (परपीडा या पाप) कर्म जीवन को बुरा बनाते हैं।
| + | ६. मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। सामाजिक जीवन का लक्ष्य 'स्वतंत्रता' है। उपर्युक्त जीवन दृष्टि पर आधारित व्यवहार सूत्रों की चर्चा हमने पूर्व के अध्याय ८ में की है। |
− | ६. मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। सामाजिक जीवन का लक्ष्य 'स्वतंत्रता' है। | |
− | उपर्युक्त जीवन दृष्टि पर आधारित व्यवहार सूत्रों की चर्चा हमने पूर्व के अध्याय ८ में की है।
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| == यूरो-अमरिकी व्यवस्था समूह == | | == यूरो-अमरिकी व्यवस्था समूह == |