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भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार प्रत्येक विद्या के अपने-अपने प्रवर्तक [[Acharya (आचार्यः)|आचार्य]] हुए हैं। उन्हीं में से एक वास्तु विद्या रही है। [[Vastu Shastra (वास्तु शास्त्र)|वास्तु]] विद्या के मूल प्रवर्तक के रूप में विशेष रूप से दो नामों का उल्लेख किया जाता रहा है जिनमें [[Vishvakarman (विश्वकर्मन्)|विश्वकर्मा]] एवं मय नामक आचार्य हुए हैं।<ref>उमा शंकर, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/97756 वास्तु विज्ञान- आचार्य एवं ग्रन्थ], सन् 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २२७)।</ref>
== परिचय॥ Introduction ==
वास्तुशास्त्र के प्रमुख आचार्यों का उल्लेख वास्तुशास्त्र के अनेक ग्रन्थों और पुराणों में प्राप्त होता है। मत्स्यपुराण में भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति इन अठारह आचार्यों का वर्णन किया गया है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/DVS-101.pdf वास्तु शास्त्र का स्वरूप व परिचय], सन् २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (पृ० ३५)।</ref>
== दक्षिण एवं उत्तर परंपरा आचार्य ==
== उद्धरण ==
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[[Category:हिंदी भाषा के लेख]]
[[Category:Sthapatya Veda]]