| | + | वास्तुशास्त्र मानव जीवन का सर्वाधिक उपयोगी और व्यवहारिक शास्त्र है। वास्तु शब्द उपयुक्त निवास स्थान, भूखण्ड एवं नैसर्गिक या कृत्रिम गृह का द्योतक है। वेदों में सुवास्तु शब्द शोभन गृह के अर्थ में तथा अवास्तु शब्द गृह के अभाव में प्रयुक्त हुआ है। वास्तुशास्त्र उद्भव के सन्दर्भ में प्राप्त होता है कि सर्वप्रथम पृथु के इच्छानुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र विश्वकर्मा ने एक सुव्यवस्थित एवं शास्त्रसम्मत विधि से गृह, ग्राम, नगर, पुर, पत्तन आदि की निर्माण योजना बनाकर कार्य सम्पन्न किया, यहीं से प्रायः वास्तुशास्त्र का उद्भव माना जाता है।<ref>शोधकर्ता- बबलू मिश्रा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/479623 वास्तु विद्या विमर्श- प्रथम अध्याय], सन् २०१८, शोधकेन्द्र- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (पृ० १२)।</ref> |
| | वास्तुशास्त्र के प्रमुख आचार्यों का उल्लेख वास्तुशास्त्र के अनेक ग्रन्थों और पुराणों में प्राप्त होता है। मत्स्यपुराण में भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति इन अठारह आचार्यों का वर्णन किया गया है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/DVS-101.pdf वास्तु शास्त्र का स्वरूप व परिचय], सन् २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (पृ० ३५)।</ref> | | वास्तुशास्त्र के प्रमुख आचार्यों का उल्लेख वास्तुशास्त्र के अनेक ग्रन्थों और पुराणों में प्राप्त होता है। मत्स्यपुराण में भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति इन अठारह आचार्यों का वर्णन किया गया है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/DVS-101.pdf वास्तु शास्त्र का स्वरूप व परिचय], सन् २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (पृ० ३५)।</ref> |