| − | <blockquote>सामुद्रं गणितं चैव ज्योतिषं छन्द एव च। सिराज्ञानं तथा शिल्पं यन्त्रकर्म विधिस्तथा॥ एतान्यंगानि जानीयाद् वास्तुशास्त्रस्य बुद्धिमान्। शास्त्रानुसारेणाभ्युद्य लक्षणानि च लक्षयेत्॥ (समरांगण सूत्रधार)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%99%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF_%E0%A5%AA%E0%A5%AA समरांगणसूत्रधार], अध्याय- ४४, श्लोक- २-४।</ref></blockquote>सामुद्रिक, गणित, ज्योतिष, छंद, शिराज्ञान, शिल्प, यंत्रकर्म और विधि - ये वास्तुशास्त्र के आठ अंग हैं। समरांगण-सूत्रधार ही एकमात्र ग्रंथ है जिसमें निम्न छहों कलाओं का अधिकृत विवेचन है - | + | <blockquote>सामुद्रं गणितं चैव ज्योतिषं छन्द एव च। सिराज्ञानं तथा शिल्पं यन्त्रकर्म विधिस्तथा॥ एतान्यंगानि जानीयाद् वास्तुशास्त्रस्य बुद्धिमान्। शास्त्रानुसारेणाभ्युद्य लक्षणानि च लक्षयेत्॥ (समरांगण सूत्रधार)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%99%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF_%E0%A5%AA%E0%A5%AA समरांगणसूत्रधार], अध्याय- ४४, श्लोक- २-४।</ref></blockquote>सामुद्रिक, गणित, ज्योतिष, छंद, शिराज्ञान, शिल्प, यंत्रकर्म और विधि - ये वास्तुशास्त्र के आठ अंग हैं। भवना निर्माण के संबंध में भोजराज का मत है कि - <blockquote>वास्तुशास्त्रादृते तस्य न स्याल्लःक्षणनिश्चयः। तस्माल्लोकस्य कृपया शास्त्रमेतदुदीर्यते॥ (समरांगण-सूत्रधार) </blockquote>भाषार्थ - वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अतिरिक्त अन्य कोई प्रकार नहीं है, जिससे यह निश्चित किया जा सके कि कोई भी भवन सही निर्मित है अथवा नहीं। समरांगण-सूत्रधार ही एकमात्र ग्रंथ है जिसमें निम्न छहों कलाओं का अधिकृत विवेचन है - |