वेदों में मंत्रों की संख्या एक लक्ष अर्थात एक लाख है - <blockquote>लक्षं तु वेदाश्चत्वारः लक्षं भारतमेव च। (चरणव्यूह ५/१)</blockquote>वेदों के एक लक्ष मन्त्रों में कर्मकाण्ड के ८० हजार मन्त्र, उपासनाकाण्ड के १६ हजार मन्त्र और ज्ञानकाण्ड के ४ हजार मन्त्र हैं। इनमें सबसे अधिक मन्त्र कर्मकाण्ड में हैं। वेदों में कर्मकाण्ड के जितने मन्त्र हैं, उतने अन्य किसी विषय के नहीं हैं।
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== उद्धरण ==
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== सारांश ==
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कर्मकाण्ड शब्द का तात्पर्य विविध शास्त्रीय क्रिया कलापों के प्रतिपादक वेदों से सम्बन्धित है। सामान्यतया इस शब्द का अर्थ विविध कर्मों के द्वारा मनुष्य इष्ट पूर्ति और उसके जीवन को सुव्यवस्थित, सुसमृद्ध एवं परिपूर्ण बनाने से है।<ref>शोधगंगा-राहुल पी० शाबरन, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/249732 प्राचीन भारत में पौरोहित्य कर्म-औचित्य एवं प्रासंगिकता], सन 2009, डॉ० राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद (पृ० 304)।</ref>
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कर्मकाण्ड शब्द कर्म तथा काण्ड इन दो शब्दों के योग से बना है। कर्म का तात्पर्य शास्त्रोक्त शुभदायक कर्मों से है और काण्ड से अभिप्राय विविध क्षेत्रों एवं अंगों में विभक्त शाखाओं के अनुगमन में निहित है।