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==परिचय==
 
==परिचय==
भारतीय इतिहास में सब विद्याओं का आदि प्रवक्ता ब्रह्मा जी को कहा गया है। इसके अनुसार व्याकरणशास्त्र के आदि वक्ता भी ब्रह्मा जी ही हैं। ऋक्तन्त्रकार ने लिखा है - <blockquote>ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच, बृहस्पतिरिन्द्राय, इन्द्रो भरद्वाजाय, भरद्वाज ऋषिभ्यः, ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः॥(१/४)</blockquote>इस वचन के अनुसार व्याकरण के एकदेश अक्षरसमाम्नाय का सर्व प्रथम प्रवक्ता ब्रह्मा जी हैं।  
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भारतीय इतिहास में सब विद्याओं का आदि प्रवक्ता ब्रह्मा जी को कहा गया है। इसके अनुसार व्याकरणशास्त्र के आदि वक्ता भी ब्रह्मा जी ही हैं। ऋक्तन्त्रकार ने लिखा है - <blockquote>ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच, बृहस्पतिरिन्द्राय, इन्द्रो भरद्वाजाय, भरद्वाज ऋषिभ्यः, ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः॥(१/४)</blockquote>इस वचन के अनुसार व्याकरण के एकदेश अक्षरसमाम्नाय का सर्व प्रथम प्रवक्ता ब्रह्मा जी हैं। व्याकरण के प्रथम परिपूर्ण आचार्य पाणिनि हुए जिन्होंने तात्कालिक संस्कृतभाषा को संयत किया जो आज तक प्रचलित है। पाणिनि ने दस प्राचीन आचार्यों के नामों का उल्लेख किया है जिससे स्पष्ट होता है कि उनसे पूर्व भी ये वैयाकरण प्रसिद्ध रहे हैं।
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'''व्याकरण के प्रकार -''' प्राचीनकाल में आठ या नौ प्रकार की व्याकरण प्रचलित रही है। इस संबंध में कई प्रमाण मिलते हैं। जैसे - 
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#व्याकरणमष्टप्रभेदम् ।
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#सोऽयं नवव्याकरणानि षट् च भिषजां व्याचष्ट ताः संहिताः।
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#अष्टौ व्याकरणानि षट् च भिषजां व्याचष्ट ताः संहिताः।
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विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न नाम वाली व्याकरण-परम्पराओं का वर्णन प्राप्त होता है। जैसे -
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ब्राह्ममैशानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम्। त्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ॥
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इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः। पाणिन्यमरजैनेन्द्राः जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः॥
    
==परिभाषा==
 
==परिभाषा==
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==व्याकरणशास्त्र परम्परा==
 
==व्याकरणशास्त्र परम्परा==
विभिन्न शाब्दिकों द्वारा पाणिनीय व्याकरण से इतर व्याकरण सम्प्रदायों का आविर्भाव भी कालान्तर में हुआ है। कतिपय प्रमुख शब्दानुशासनों का संक्षिप्त विवरण निम्न है -  
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विभिन्न शाब्दिकों द्वारा पाणिनीय व्याकरण से इतर व्याकरण सम्प्रदायों का आविर्भाव भी कालान्तर में हुआ है। कतिपय प्रमुख शब्दानुशासनों का संक्षिप्त विवरण निम्न है -<ref>पं० युधिष्ठिर मीमांसक, [https://archive.org/details/3_20200913_20200913_1432/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%201-%20%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%BF%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%95%20%E0%A4%9C%E0%A5%80/page/n96/mode/1up संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास], सन् १९८४, युधिष्ठिर मीमांसक बहालगढ, सोनीपत (पृ० १३४)</ref>
    
'''कातन्त्रव्याकरण -'''  
 
'''कातन्त्रव्याकरण -'''  
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'''सारस्वतव्याकरण -'''
 
'''सारस्वतव्याकरण -'''
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== व्याकरण के प्रमुख सिद्धान्त ==
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==व्याकरण के प्रमुख सिद्धान्त==
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* पद साधुत्व के ज्ञान के लिये
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*पद साधुत्व के ज्ञान के लिये
* शाब्दबोध हेतु तथा व्याकरण दर्शन के रूप में स्फोटवाद
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*शाब्दबोध हेतु तथा व्याकरण दर्शन के रूप में स्फोटवाद
* शब्द के नित्यत्व का साधन करते हुये, शब्द को ही ब्रह्म स्वीकृत करना
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*शब्द के नित्यत्व का साधन करते हुये, शब्द को ही ब्रह्म स्वीकृत करना
* संसार को शब्दब्रह्म के विवर्त रूप में व्याख्यायित करना
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*संसार को शब्दब्रह्म के विवर्त रूप में व्याख्यायित करना
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*भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि से महाभाष्य में शिक्षा, व्याकरण और निरुक्त तीनों की चर्चा हुई है।
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==सारांश==
 
==सारांश==
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