Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 12: Line 12:  
#अष्टौ व्याकरणानि षट् च भिषजां व्याचष्ट ताः संहिताः।
 
#अष्टौ व्याकरणानि षट् च भिषजां व्याचष्ट ताः संहिताः।
   −
विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न नाम वाली व्याकरण-परम्पराओं का वर्णन प्राप्त होता है। जैसे -  
+
विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न नाम वाली व्याकरण-परम्पराओं का वर्णन प्राप्त होता है। जैसे - <blockquote>ब्राह्ममैशानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम्। त्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ॥
   −
ब्राह्ममैशानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम्। त्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ॥
+
इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः। पाणिन्यमरजैनेन्द्राः जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः॥</blockquote>अतः स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में आठ प्रकार के व्याकरण सम्प्रदाय रहे हैं। ये निम्नलिखित हैं -
   −
इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः। पाणिन्यमरजैनेन्द्राः जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः॥
+
ऐन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न, आपिशली, शाकटायन, पाणिनि, अमरजैनेन्द्र, जयन्ति - इन सभी व्याकरणों में पाणिनीय-व्याकरण ही सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ रही है।
    
==परिभाषा==
 
==परिभाषा==
924

edits

Navigation menu