Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Line 78: Line 78:  
कुछ कच्चे वैज्ञानिक कहते है की परमात्मा को जबतक प्रयोगशाला में सिध्द नही किया जाता हम विश्वास नही कर सकते । ऐसे अडियल वैज्ञानिकों को स्वामी विवेकानंद उलटी चुनौती देते है की वे उन की प्रयोगशाला में सिध्द कर के दिखाएं की परमात्मा नहीं है । एक और भी दृष्टि से इसे देखने की बात स्वामी विवेकानंद करते है । परमात्मा के मानने से यदि लोग सदाचारी बनते है तो परमात्मा में विश्वास रखने में क्या बुराई है ?  वास्तविक बात तो यह है की मानव शरीर पंचमहाभूतों का बना होता है । वैज्ञानिक उपकरण उन्ही पंचमहाभूतों के बने होते है । शरीर से सूक्ष्म इंद्रियाँ होती है । इंद्रियों से सूक्ष्म मन, मन से सूक्ष्म बुध्दि, बुध्दि से सूक्ष्म चित्त और चइत्त से भी अधिक सूक्ष्म आत्मतत्व होता है । यह तो मीटर की मापन पट्टी लेकर नॅनो कण का आकार मापने जैसी गलत बात है । परमात्वतत्व को जानने के साधन वर्तमान प्रयोगशाला में उपलब्ध भौतिक उपकरण नही हो सकते ।  
 
कुछ कच्चे वैज्ञानिक कहते है की परमात्मा को जबतक प्रयोगशाला में सिध्द नही किया जाता हम विश्वास नही कर सकते । ऐसे अडियल वैज्ञानिकों को स्वामी विवेकानंद उलटी चुनौती देते है की वे उन की प्रयोगशाला में सिध्द कर के दिखाएं की परमात्मा नहीं है । एक और भी दृष्टि से इसे देखने की बात स्वामी विवेकानंद करते है । परमात्मा के मानने से यदि लोग सदाचारी बनते है तो परमात्मा में विश्वास रखने में क्या बुराई है ?  वास्तविक बात तो यह है की मानव शरीर पंचमहाभूतों का बना होता है । वैज्ञानिक उपकरण उन्ही पंचमहाभूतों के बने होते है । शरीर से सूक्ष्म इंद्रियाँ होती है । इंद्रियों से सूक्ष्म मन, मन से सूक्ष्म बुध्दि, बुध्दि से सूक्ष्म चित्त और चइत्त से भी अधिक सूक्ष्म आत्मतत्व होता है । यह तो मीटर की मापन पट्टी लेकर नॅनो कण का आकार मापने जैसी गलत बात है । परमात्वतत्व को जानने के साधन वर्तमान प्रयोगशाला में उपलब्ध भौतिक उपकरण नही हो सकते ।  
 
अपने पूर्वजों ने आत्मा और परमात्मा इन संकल्पनाओं से जुडे कई वर्तनसूत्रों और मान्यताओं का विकास किया है । उन का अब संक्षिप्त परिचय हम करेंगे ।  
 
अपने पूर्वजों ने आत्मा और परमात्मा इन संकल्पनाओं से जुडे कई वर्तनसूत्रों और मान्यताओं का विकास किया है । उन का अब संक्षिप्त परिचय हम करेंगे ।  
४.१ अमृतस्य पुत्रा: वयं  
+
४.१ अमृतस्य पुत्रा: वयं  
 +
 
 
हम अमृतपुत्र हैं। हम अमर हैं। अविनाशी हैं। मैं केवल शरीर नहीं हूं । मै अजर अमर अविनाशी ऐसा आत्मतत्व हूं । यह विचार ही मन से किसी भी बात के भय को नष्ट करनेवाला है । मेरा शरीर और मैं, हम भिन्न हैं। जैसे जीर्ण वस्त्र बदलकर हम नये वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार से हमारी आत्मा एक जीर्ण शरीर को या जिस शरीर का विहित कार्य पूर्ण हो गया है उस शरीर को त्यागकर एक नये शरीर को धारण करती है । चष्मे का क्रमांक बदलनेपर हम दूसरा चष्मा ले लेते है । वैसा ही हमारा वर्तमान शरीर है । आवश्यकता पूर्ण होनेपर या उस के निरुपयोगी होनेपर उसे बदला जा सकता है ।  
 
हम अमृतपुत्र हैं। हम अमर हैं। अविनाशी हैं। मैं केवल शरीर नहीं हूं । मै अजर अमर अविनाशी ऐसा आत्मतत्व हूं । यह विचार ही मन से किसी भी बात के भय को नष्ट करनेवाला है । मेरा शरीर और मैं, हम भिन्न हैं। जैसे जीर्ण वस्त्र बदलकर हम नये वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार से हमारी आत्मा एक जीर्ण शरीर को या जिस शरीर का विहित कार्य पूर्ण हो गया है उस शरीर को त्यागकर एक नये शरीर को धारण करती है । चष्मे का क्रमांक बदलनेपर हम दूसरा चष्मा ले लेते है । वैसा ही हमारा वर्तमान शरीर है । आवश्यकता पूर्ण होनेपर या उस के निरुपयोगी होनेपर उसे बदला जा सकता है ।  
 
‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् शरीर की आवश्यकता तो धर्म के पालन के लिये है । धर्म का पालन अच्छे ढंग से हो सके इसलिये शरीर स्वास्थ्य को महत्व है ।
 
‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् शरीर की आवश्यकता तो धर्म के पालन के लिये है । धर्म का पालन अच्छे ढंग से हो सके इसलिये शरीर स्वास्थ्य को महत्व है ।
Line 260: Line 261:  
2.  चिरंतन हिन्दू जीवन दृष्टि, भारतीय विचार साधना प्रकाशन, पुणे   
 
2.  चिरंतन हिन्दू जीवन दृष्टि, भारतीय विचार साधना प्रकाशन, पुणे   
 
3.  श्रीमद्भगवद्गीता
 
3.  श्रीमद्भगवद्गीता
      
==References==
 
==References==
890

edits

Navigation menu