कुछ कच्चे वैज्ञानिक कहते है की परमात्मा को जबतक प्रयोगशाला में सिध्द नही किया जाता हम विश्वास नही कर सकते । ऐसे अडियल वैज्ञानिकों को स्वामी विवेकानंद उलटी चुनौती देते है की वे उन की प्रयोगशाला में सिध्द कर के दिखाएं की परमात्मा नहीं है । एक और भी दृष्टि से इसे देखने की बात स्वामी विवेकानंद करते है । परमात्मा के मानने से यदि लोग सदाचारी बनते है तो परमात्मा में विश्वास रखने में क्या बुराई है ? वास्तविक बात तो यह है की मानव शरीर पंचमहाभूतों का बना होता है । वैज्ञानिक उपकरण उन्ही पंचमहाभूतों के बने होते है । शरीर से सूक्ष्म इंद्रियाँ होती है । इंद्रियों से सूक्ष्म मन, मन से सूक्ष्म बुध्दि, बुध्दि से सूक्ष्म चित्त और चइत्त से भी अधिक सूक्ष्म आत्मतत्व होता है । यह तो मीटर की मापन पट्टी लेकर नॅनो कण का आकार मापने जैसी गलत बात है । परमात्वतत्व को जानने के साधन वर्तमान प्रयोगशाला में उपलब्ध भौतिक उपकरण नही हो सकते । | कुछ कच्चे वैज्ञानिक कहते है की परमात्मा को जबतक प्रयोगशाला में सिध्द नही किया जाता हम विश्वास नही कर सकते । ऐसे अडियल वैज्ञानिकों को स्वामी विवेकानंद उलटी चुनौती देते है की वे उन की प्रयोगशाला में सिध्द कर के दिखाएं की परमात्मा नहीं है । एक और भी दृष्टि से इसे देखने की बात स्वामी विवेकानंद करते है । परमात्मा के मानने से यदि लोग सदाचारी बनते है तो परमात्मा में विश्वास रखने में क्या बुराई है ? वास्तविक बात तो यह है की मानव शरीर पंचमहाभूतों का बना होता है । वैज्ञानिक उपकरण उन्ही पंचमहाभूतों के बने होते है । शरीर से सूक्ष्म इंद्रियाँ होती है । इंद्रियों से सूक्ष्म मन, मन से सूक्ष्म बुध्दि, बुध्दि से सूक्ष्म चित्त और चइत्त से भी अधिक सूक्ष्म आत्मतत्व होता है । यह तो मीटर की मापन पट्टी लेकर नॅनो कण का आकार मापने जैसी गलत बात है । परमात्वतत्व को जानने के साधन वर्तमान प्रयोगशाला में उपलब्ध भौतिक उपकरण नही हो सकते । |