Changes

Jump to navigation Jump to search
no edit summary
Line 19: Line 19:  
प्रायः एक सौ वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ आधुनिक मौसम विज्ञान आज तक पूर्णरूप से भारतीय परिवेश में अपनी प्रामाणिकता स्थापित नहीं कर सका। जिसके कारण उत्पन्न बढती हुई जनसंख्या की समस्या, उसके लिए निर्धारित अन्न, रहन-सहन, यह सब अव्यवस्थित हो गया है। आधुनिक मौसम विज्ञान की वृष्टि विधा कृषि उपयोगी पूर्ण रूप से संतोषजनक नहीं है। अत्याधुनिक मौसम विज्ञान में मौसम की भविष्यवाणियाँ वह अत्याधुनिक संगणकों द्वारा की जाती है जो कृषि के लिये पूर्णतया उपयोगी नहीं है। न्यूनतम कृषि उपयोगी १०/१५ दिन पूर्व के पूर्वानुमान में भी आधुनिक मौसम विज्ञान अभी तक पूर्ण रूप में सक्षम नहीं है। इस सन्दर्भ में यद्यपि कार्य हो रहा है परन्तु उसके परिणाम अभी तक सन्तोष जनक नहीं हैं। अत एव आधुनिक मौसम वैज्ञानिक भी प्राचीन भारतीय विधियों एवं उनके मौसम के पूर्वानुमान के लिये उपयोग में लाने के निमित्त चर्चा करते हुए दिख रहे हैं। जैसे- डॉ० डे० एवं उनके सहयोगी जो सुप्रसिद्ध मौसम वैज्ञानिक हैं, उन्होंने मौसम नामक पत्रिका सन् २००४ में <nowiki>''</nowiki>नक्षत्र आधारित वर्षा एवं मौसम पर विस्तृत चर्चा की है। कुछ और वैज्ञानिक भी इस क्षेत्र में वैज्ञानिक आधार पर भारतीय प्राचीन विधा को आधार मानकर कार्य कर रहे हैं। जैसे वेदमूर्ति केतन काले के साथ डॉ०टी० वेणुगोपाल एवं उनके सहयोगी यज्ञात् भवति पर्जन्यः नामक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। ये लोग प्रसिद्ध मौसम वैज्ञानिक हैं। प्राचीन विचारों एवं पृष्ठभूमि को देखकर एस० के० मिश्रा ने पंचाङ्ग पर आधारित मौसम की भविष्यवाणियों पर अपना शोध प्रबन्ध प्रो० वी०के०दुबे, अध्यक्ष-विस्तार शिक्षा, कृषि संस्थान के निर्देशन एवं प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय, अध्यक्ष ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, के सह निर्देशन में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान
 
प्रायः एक सौ वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ आधुनिक मौसम विज्ञान आज तक पूर्णरूप से भारतीय परिवेश में अपनी प्रामाणिकता स्थापित नहीं कर सका। जिसके कारण उत्पन्न बढती हुई जनसंख्या की समस्या, उसके लिए निर्धारित अन्न, रहन-सहन, यह सब अव्यवस्थित हो गया है। आधुनिक मौसम विज्ञान की वृष्टि विधा कृषि उपयोगी पूर्ण रूप से संतोषजनक नहीं है। अत्याधुनिक मौसम विज्ञान में मौसम की भविष्यवाणियाँ वह अत्याधुनिक संगणकों द्वारा की जाती है जो कृषि के लिये पूर्णतया उपयोगी नहीं है। न्यूनतम कृषि उपयोगी १०/१५ दिन पूर्व के पूर्वानुमान में भी आधुनिक मौसम विज्ञान अभी तक पूर्ण रूप में सक्षम नहीं है। इस सन्दर्भ में यद्यपि कार्य हो रहा है परन्तु उसके परिणाम अभी तक सन्तोष जनक नहीं हैं। अत एव आधुनिक मौसम वैज्ञानिक भी प्राचीन भारतीय विधियों एवं उनके मौसम के पूर्वानुमान के लिये उपयोग में लाने के निमित्त चर्चा करते हुए दिख रहे हैं। जैसे- डॉ० डे० एवं उनके सहयोगी जो सुप्रसिद्ध मौसम वैज्ञानिक हैं, उन्होंने मौसम नामक पत्रिका सन् २००४ में <nowiki>''</nowiki>नक्षत्र आधारित वर्षा एवं मौसम पर विस्तृत चर्चा की है। कुछ और वैज्ञानिक भी इस क्षेत्र में वैज्ञानिक आधार पर भारतीय प्राचीन विधा को आधार मानकर कार्य कर रहे हैं। जैसे वेदमूर्ति केतन काले के साथ डॉ०टी० वेणुगोपाल एवं उनके सहयोगी यज्ञात् भवति पर्जन्यः नामक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। ये लोग प्रसिद्ध मौसम वैज्ञानिक हैं। प्राचीन विचारों एवं पृष्ठभूमि को देखकर एस० के० मिश्रा ने पंचाङ्ग पर आधारित मौसम की भविष्यवाणियों पर अपना शोध प्रबन्ध प्रो० वी०के०दुबे, अध्यक्ष-विस्तार शिक्षा, कृषि संस्थान के निर्देशन एवं प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय, अध्यक्ष ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, के सह निर्देशन में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान
 
==उद्धरण==
 
==उद्धरण==
 +
<references />
 +
[[Category:Vedangas]]
 +
[[Category:Jyotisha]]
 +
[[Category:Hindi Articles]]
928

edits

Navigation menu