− | भारत कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की ऋतुओं में कृषि की दृष्टि से वर्षा ऋतु अधिक उपयोगी मानी जाती है। कब जल वृष्टि होगी, कब नहीं का ज्ञान होते रहने पर ही किसान कृषि कार्यों के सम्बन्ध में अधिक सतर्क रह सकते हैं। अन्य ऋतुओं के दैनन्दिन पर्यवेक्षण से आगामी वर्षा अधिकांश ज्ञान सम्भव है। भारतीय आचार्यों ने ऋतु सम्बन्धी वर्षा, वायु, मेघ और आकाशीय विद्युत आदि के विषय में अनुसन्धान करके अपने अनुभवों को लिपिबद्ध किया है। ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में जैसे- बृहत् संहिता, मेघमाला और बृहद्दैवज्ञ रंजन आदि में वह संग्रह रूप में भी उपलब्ध है।<ref>आचार्य भास्करानन्द लोहानी, भारतीय ज्योतिष और मौसम विज्ञान, सन् २०१२, एल्फा पब्लिकेशन नई सडक, दिल्ली(पृ० २)।</ref> | + | भारतीय ज्योतिषशास्त्र की ऋतु-विज्ञान शाखा में भावी वृष्टि, अल्पवृष्टि, अतिवृष्टि, आँधी, तूफान और दुर्दिन आदि के परिज्ञान के लिये अनेकानेक विधियाँ वर्णित हैं। भारत कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की ऋतुओं में कृषि की दृष्टि से वर्षा ऋतु अधिक उपयोगी मानी जाती है। कब जल वृष्टि होगी, कब नहीं इसका ज्ञान होने पर ही किसान कृषि कार्यों के सम्बन्ध में अधिक सतर्क रह सकते हैं। ऋतुओं के दैनन्दिन पर्यवेक्षण से आगामी वर्षा काअधिकांश ज्ञान सम्भव है। भारतीय आचार्यों ने ऋतु सम्बन्धी वर्षा, वायु, मेघ और आकाशीय विद्युत आदि के विषय में अनुसन्धान करके अपने अनुभवों को लिपिबद्ध किया है। ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में जैसे- बृहत् संहिता, मेघमाला और बृहद्दैवज्ञ रंजन आदि में वह संग्रह रूप में भी उपलब्ध है।<ref>आचार्य भास्करानन्द लोहानी, भारतीय ज्योतिष और मौसम विज्ञान, सन् २०१२, एल्फा पब्लिकेशन नई सडक, दिल्ली(पृ० २)।</ref> |
| रामायण, महाभारत, पुराणों विशेषकर वायुपुराण, ब्रह्मपुराण , विष्णुपुराण , मत्स्यपुराण एवं अग्निपुराण में मेघों द्वारा होने वाली वर्षा का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। ज्योतिषशास्त्र में संहिता ग्रन्थों में बृहत्संहिता, भद्रबाहुसंहिता, नारद संहिता, मेघमाला, प्राच्य भारतीयम् , ऋतुविज्ञानम् , कृषिपाराशर, कादम्बिनी, आर्षवर्षावायुविज्ञानम् , अद्भुतसागर, मयूरचित्रम् , बृहद्दैवज्ञरञ्जन, वृष्टिप्रबोध आदि में मेघ निर्माण , मेघों का वर्गीकरण एवं मेघों द्वारा होने वाली वर्षा का विशेष वर्णन प्राप्त होता है<ref>दुर्गेश कुमर शुक्ल , [http://hdl.handle.net/10603/476134 ज्योतिषशास्त्र में वृष्टिविज्ञान] , सन् २०१७, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, भूमिका,(पृ० १३)।</ref> | | रामायण, महाभारत, पुराणों विशेषकर वायुपुराण, ब्रह्मपुराण , विष्णुपुराण , मत्स्यपुराण एवं अग्निपुराण में मेघों द्वारा होने वाली वर्षा का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। ज्योतिषशास्त्र में संहिता ग्रन्थों में बृहत्संहिता, भद्रबाहुसंहिता, नारद संहिता, मेघमाला, प्राच्य भारतीयम् , ऋतुविज्ञानम् , कृषिपाराशर, कादम्बिनी, आर्षवर्षावायुविज्ञानम् , अद्भुतसागर, मयूरचित्रम् , बृहद्दैवज्ञरञ्जन, वृष्टिप्रबोध आदि में मेघ निर्माण , मेघों का वर्गीकरण एवं मेघों द्वारा होने वाली वर्षा का विशेष वर्णन प्राप्त होता है<ref>दुर्गेश कुमर शुक्ल , [http://hdl.handle.net/10603/476134 ज्योतिषशास्त्र में वृष्टिविज्ञान] , सन् २०१७, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, भूमिका,(पृ० १३)।</ref> |