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'''मन्द्राग्रेत्वरी भुवनस्य गोपा वनस्पतीनां गृभिरोषधीनाम्‌।।'''</blockquote>( अर्थववेद 12.1.57)  
 
'''मन्द्राग्रेत्वरी भुवनस्य गोपा वनस्पतीनां गृभिरोषधीनाम्‌।।'''</blockquote>( अर्थववेद 12.1.57)  
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ऋग्वेद का ऋषि पृथ्वी को माता के रूप में दर्जा प्रदान करता है-<blockquote>'''“( ) पिता जनिता नाभिस्त्र बन्युर्मे माता पृथिवी महीयम्‌।'''</blockquote>(ऋग्वेद 1.164.23) |  
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ऋग्वेद का ऋषि पृथ्वी को माता के रूप में दर्जा प्रदान करता है-<blockquote>'''“( ) पिता जनिता नाभिस्त्र बन्युर्मे माता पृथिवी महीयम्‌।'''<ref>(ऋग्वेद 1.164.23)</ref> (ऋग्वेद 1.164.23) |</blockquote>अर्थात्‌ आकाश मेरे पिता है, बन्धु वातावरण मेरी नाभि है और यह पृथ्वी मेरी माता है जो कि सबसे महान हेै।
 
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अर्थात्‌ आकाश मेरे पिता है, बन्धु वातावरण मेरी नाभि है और यह पृथ्वी मेरी माता है जो कि सबसे महान हेै।
      
वृहदारण्पकोपनिषद्‌ में याज्ञवल्क्य ऋषि मैत्रेयी को समझाते हुए कहते हैं कि यह पृथ्वी सभी भूतों (मूल तत्वों) का मधु है और सब भूत इस पृथ्वी के मधु हैं-<blockquote>'''इयं पृथ्वी सर्वेषां भूतानां मध्वस्यै'''
 
वृहदारण्पकोपनिषद्‌ में याज्ञवल्क्य ऋषि मैत्रेयी को समझाते हुए कहते हैं कि यह पृथ्वी सभी भूतों (मूल तत्वों) का मधु है और सब भूत इस पृथ्वी के मधु हैं-<blockquote>'''इयं पृथ्वी सर्वेषां भूतानां मध्वस्यै'''
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