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पृथ्वी के प्रति व्यक्तिगत तौर पर यह प्रार्थना यह दर्शाती हे कि वैदिक ऋषि पृथ्वी को लेकर कितना संवेदनशील हे। अगर ऐसी ही संवेदना हम भी हमारे मनों में रखें तो भूमि का संरक्षण स्वयंमेव ही हो जायेगा।
 
पृथ्वी के प्रति व्यक्तिगत तौर पर यह प्रार्थना यह दर्शाती हे कि वैदिक ऋषि पृथ्वी को लेकर कितना संवेदनशील हे। अगर ऐसी ही संवेदना हम भी हमारे मनों में रखें तो भूमि का संरक्षण स्वयंमेव ही हो जायेगा।
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[[File:Capture ३२.jpg|center|thumb|मृदा संरक्षण ]]
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वेदों के अनुसार पृथ्वी हम सबका आश्रय स्थल है। यह हमें पोषित करती हे, पालती है। हमें धारण करती हे। इसलिए इसका संरक्षण करना हमारा दायित्व है। अथर्ववेद में ऋषि कहता है कि हे भूमि! जब तक यम सूर्य के साथ आपके निबन्ध रूपों का दर्शन करूँ, तब तक मेरी दृष्टि उत्तम और अनुकूल क्रिया को नष्ट न करे-  <blockquote>'''यावत्‌ तेऽभि विपश्यानि भूमे सूर्येव मेदिना।'''
 
वेदों के अनुसार पृथ्वी हम सबका आश्रय स्थल है। यह हमें पोषित करती हे, पालती है। हमें धारण करती हे। इसलिए इसका संरक्षण करना हमारा दायित्व है। अथर्ववेद में ऋषि कहता है कि हे भूमि! जब तक यम सूर्य के साथ आपके निबन्ध रूपों का दर्शन करूँ, तब तक मेरी दृष्टि उत्तम और अनुकूल क्रिया को नष्ट न करे-  <blockquote>'''यावत्‌ तेऽभि विपश्यानि भूमे सूर्येव मेदिना।'''
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यहाँ पर ऋषि पृथ्वी के विभिन्न रूपों के संरक्षण की कामना करता है।
 
यहाँ पर ऋषि पृथ्वी के विभिन्न रूपों के संरक्षण की कामना करता है।
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[[File:Capture ३३.jpg|center|thumb|भूमि संरक्षण ]]
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ऋग्वेद के ऋषि अथर्वा का कहना हे कि हमें पृथ्वी का संरक्षण करना चाहिए क्योंकि यह पृथ्वी हम सबका भरण-पोषण करती है, हमारी सम्पत्ति की रक्षा करती है, दृढ आधार वाली है, अपने में स्वर्ण को समायें हुए है , सदैव चालयमान है, सभी को सुख प्रदान करती है, अग्नि का पोषण करने वाली है , इन्द्र को प्रधान मानने वाली ऐसी भूमि धन-बल के बीच हमें सुरक्षित रखे-<blockquote>'''“विश्वम्भरा रसुचानी प्रतिष्ठा हिरण्यवक्षा जगतो विनेशनी'''
 
ऋग्वेद के ऋषि अथर्वा का कहना हे कि हमें पृथ्वी का संरक्षण करना चाहिए क्योंकि यह पृथ्वी हम सबका भरण-पोषण करती है, हमारी सम्पत्ति की रक्षा करती है, दृढ आधार वाली है, अपने में स्वर्ण को समायें हुए है , सदैव चालयमान है, सभी को सुख प्रदान करती है, अग्नि का पोषण करने वाली है , इन्द्र को प्रधान मानने वाली ऐसी भूमि धन-बल के बीच हमें सुरक्षित रखे-<blockquote>'''“विश्वम्भरा रसुचानी प्रतिष्ठा हिरण्यवक्षा जगतो विनेशनी'''
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पृथ्वी के संरक्षण के लिए अथर्ववेद का ऋषि अपनी चिंता व्यक्त करता है और कहता हे कि हे पृथ्वी! तेरी गोद में हम निरोग बनें। अपनी धातु को दीर्घ काल  तक बनाये रखते हुए तेरे लिए बलिदान देने लायक बने रहें। यहाँ पर ऋषि पृथ्वी के संरक्षण के लिए अपना बलिदान तक देने की बात कहता हे-
 
पृथ्वी के संरक्षण के लिए अथर्ववेद का ऋषि अपनी चिंता व्यक्त करता है और कहता हे कि हे पृथ्वी! तेरी गोद में हम निरोग बनें। अपनी धातु को दीर्घ काल  तक बनाये रखते हुए तेरे लिए बलिदान देने लायक बने रहें। यहाँ पर ऋषि पृथ्वी के संरक्षण के लिए अपना बलिदान तक देने की बात कहता हे-
 
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[[File:Capture ३४.jpg|center|thumb|वन सरंक्षण सर्वस्व बलिदान]]
 
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<blockquote>'''उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं पतु पृथिवि रसूताः'''
चित्र 4.3 वन सरंक्षण सर्वस्व बलिदान<blockquote>'''उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं पतु पृथिवि रसूताः'''
      
'''दीर्घ न आपुः प्रतिबुहयमाना वयं तुश्यं बलिहृतः स्याम।।'''</blockquote>( अथर्ववेद 12.1.62)
 
'''दीर्घ न आपुः प्रतिबुहयमाना वयं तुश्यं बलिहृतः स्याम।।'''</blockquote>( अथर्ववेद 12.1.62)
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महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि यह प्रकृति हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में तो समर्थ है परन्तु किसी के लालच को पूर्ण करने में नहीं। यहां पर गांधी जी प्रकृति के अतिदोहन को रोके जाने की और संकेत देते हैं तथा कहते हैं कि प्रकृति का समावेशी संरक्षण करते हुए उपयोग किया जाये तो मनुष्य जाति को सभी जरुरतें पूरी हो सकती हैं।  
 
महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि यह प्रकृति हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में तो समर्थ है परन्तु किसी के लालच को पूर्ण करने में नहीं। यहां पर गांधी जी प्रकृति के अतिदोहन को रोके जाने की और संकेत देते हैं तथा कहते हैं कि प्रकृति का समावेशी संरक्षण करते हुए उपयोग किया जाये तो मनुष्य जाति को सभी जरुरतें पूरी हो सकती हैं।  
 
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[[File:Capture ३५.jpg|center|thumb|राष्ट्रपिता महात्मा गांधी]]
 
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चित्र 4.4 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
      
हमें हमारे आसपास के पर्यावरण, भूमि के दोहन के प्रति सचेत रहना चाहिए और जितना भी हो सके मिलजुल कर पृथ्वी का संरक्षण करना चाहिए।
 
हमें हमारे आसपास के पर्यावरण, भूमि के दोहन के प्रति सचेत रहना चाहिए और जितना भी हो सके मिलजुल कर पृथ्वी का संरक्षण करना चाहिए।
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