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गराजिर्वसुदेवत्यो मणिभ्रदो थ वाणिजे। विष्टेस्तु दैवतं मृत्युर्देवता परिकीर्तिताः॥
 
गराजिर्वसुदेवत्यो मणिभ्रदो थ वाणिजे। विष्टेस्तु दैवतं मृत्युर्देवता परिकीर्तिताः॥
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शकुनस्य गरूत्मान्वै वृषभो वै चतुष्पदे। नागस्य देवता नागाः कौस्तुभस्य धनाधिपः॥(नार०सं०)</blockquote>अर्थ- वव के स्वामी इन्द्र, बालव के ब्रह्मा, कौलव के मित्र(सूर्य), तैतिल के अर्यमा, गर की अधिपति पृथ्वी, वणिज की अधिपति लक्ष्मी तथा विष्टि के स्वामी यम हैं। शकुनि के कलि, चतुष्पद के सांड(वृषभ), नाग के सर्प तथा किंस्तुघ्न के स्वामी वायु हैं।
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शकुनस्य गरूत्मान्वै वृषभो वै चतुष्पदे। नागस्य देवता नागाः कौस्तुभस्य धनाधिपः॥(नार०सं०)<ref name=":1">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०२८)</ref></blockquote>अर्थ- वव के स्वामी इन्द्र, बालव के ब्रह्मा, कौलव के मित्र(सूर्य), तैतिल के अर्यमा, गर की अधिपति पृथ्वी, वणिज की अधिपति लक्ष्मी तथा विष्टि के स्वामी यम हैं। शकुनि के कलि, चतुष्पद के सांड(वृषभ), नाग के सर्प तथा किंस्तुघ्न के स्वामी वायु हैं।
    
== करणों का प्रयोजन ==
 
== करणों का प्रयोजन ==
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'''नाग-''' इसमें स्थिरकर्म, कठिनकर्म, हरण एवं अवरोध संबंधी कर्म करना चाहिये।
 
'''नाग-''' इसमें स्थिरकर्म, कठिनकर्म, हरण एवं अवरोध संबंधी कर्म करना चाहिये।
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'''किंस्तुघ्न-''' इसमें स्थिरकर्म, वृद्धिकर्म, पुष्टिकर्म, मांगलिककर्म तथा सिद्धि कर्म करना चाहिये।
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'''किंस्तुघ्न-''' इसमें स्थिरकर्म, वृद्धिकर्म, पुष्टिकर्म, मांगलिककर्म तथा सिद्धि कर्म करना चाहिये।<ref name=":1" />
    
== करण फल ==
 
== करण फल ==
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<blockquote>बवकरणभवः स्याद्वालकृत्यः प्रतापी विनयचरितवेषो बालवे राजपूज्यः।गजतुरगसमेतः कौलवे चारूकर्मा मृदुपटुवचनः स्यात्तैतिले पुण्यशीलः॥</blockquote>अर्थ- बव करण में उत्पन्न व्यक्ति बालकके समान आचरण करने वाला प्रतापी होता है। बालव करण में उत्पन्न जातक विनयी किन्तु राजपूज्य होता है, कौलव करण में जन्म हो तो जातक हाथी-घोडे से युक्त, सत्कार्यकर्ता होता है, तैतिल करण में जन्म हो तो जातक मृदु वाक्पटु और पुण्यात्मा होता है।<blockquote>गरजकरणजातो वीतशत्रुः प्रतापी वणिजि निपुणवक्ता जारकान्ताविलोलः।निखिलजनविरोधी पापकर्मा पवादी परिजनपरिपूज्यो विष्टिजातः स्वतन्त्रः॥</blockquote>अर्थ- गर करण में उत्पन्न जातक शत्रुहीन, प्रतापी होता है, वणिज करण में उत्पन्न व्यक्ति कुशल वक्ता, स्त्रियों के प्रति आकर्षित होता है, विष्टि करण में उत्पन्न व्यक्ति जनविरोधी, पापात्मा, अपवादी और स्वजन एवं परिजनों द्वारा पूजित होता है।
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शकुनि करण में उत्पन्न व्यक्ति काल को जानने वाला, चिरसुखी, किन्तु दूसरों के विपत्ति का कारण होता है। चतुष्पद करण में उत्पन्न जातक सर्वज्ञ, सुन्दर बुद्धिवाला, यश और धन से सम्पन्न होता है। नाग करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति तेजस्वी, अतिधनसम्पन्न, बलशाली और वाचाल होता है। किंस्तुघ्न करणोत्पन्न जातक दूसरों का कार्य करने वाला, चपल, बुद्धिमान् और हास्यप्रिय होता है।
    
== सन्दर्भ ==
 
== सन्दर्भ ==
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