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तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। तिथि के नाम से सर्वप्रथम ध्यान तारीख की ओर जाता है किन्तु भारतीय ज्योतिष शास्त्र में तिथि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही सभी दिन, त्यौहार, जन्मदिन, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है। तिथिका हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है। इससे हमारे जन्म, मृत्यु और विशेष कार्य जुडे होते हैं।  
 
तिथि भारतीय पंचांग का सबसे मुख्य अंग है। तिथि के नाम से सर्वप्रथम ध्यान तारीख की ओर जाता है किन्तु भारतीय ज्योतिष शास्त्र में तिथि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। यह भारतीय चान्द्रमास का एक दिन होता है। तिथि के आधार पर ही सभी दिन, त्यौहार, जन्मदिन, जयन्ती और पुण्यतिथि आदि का निर्धारण होता है। तिथिका हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पडता है। इससे हमारे जन्म, मृत्यु और विशेष कार्य जुडे होते हैं।  
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==परिचय==
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==परिचय॥ Parichaya==
चन्द्रमा की एक कलाको तिथि कहते हैं। चन्द्र कलारूप क्रिया उपलक्षित कालको तिथि के रूप में व्यवहृत किया जाता है। तिथियाँ १ से ३० तक एक मास में ३० होती हैं। ये पक्षों में विभाजित हैं। प्रत्येक पक्ष में १५-१५ तिथियाँ होती हैं। प्रत्येक तिथि का एक नाम है। तिथि जलतत्व है और यह हमारे मस्तिष्क-मन की स्थिति को दर्शाती है।जन्मकुण्डली में तिथि अतिआवश्यक हिस्सा है। जन्म के दिन पडने वाली तिथि को जन्मतिथि कहते हैं।  
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चन्द्रमा की एक कलाको तिथि कहते हैं। चन्द्र कलारूप क्रिया उपलक्षित कालको तिथि के रूप में व्यवहृत किया जाता है। तिथियाँ १ से ३० तक एक मास में ३० होती हैं। ये पक्षों में विभाजित हैं। प्रत्येक पक्ष में १५-१५ तिथियाँ होती हैं। प्रत्येक तिथि का एक नाम है। तिथि जलतत्व है और यह हमारे मस्तिष्क-मन की स्थिति को दर्शाती है।जन्मकुण्डली में तिथि अतिआवश्यक हिस्सा है। जन्म के दिन पडने वाली तिथि को जन्मतिथि कहते हैं।
==परिभाषा==
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==परिभाषा॥ Paribhasha==
 
तनोति विस्तारयति वर्द्धमानां क्षीयमाणांवा चन्द्रकलामेकां यः कालविशेषः सा तिथिः।
 
तनोति विस्तारयति वर्द्धमानां क्षीयमाणांवा चन्द्रकलामेकां यः कालविशेषः सा तिथिः।
==तिथि भेद==
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==तिथि भेद॥ ==
 
भारतवर्ष में दो प्रकार की तिथियाँ प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं।
 
भारतवर्ष में दो प्रकार की तिथियाँ प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं।
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सदैव दर्शे पितृकर्म कृत्वा नान्यद्विधेयं शुभपौष्टिकाद्यम्। मूढैः कृतं तत्र शुभोत्सवाद्यं विनाशमायात्यचिराद्भृशं तत् ॥१४ ॥ </blockquote>
 
सदैव दर्शे पितृकर्म कृत्वा नान्यद्विधेयं शुभपौष्टिकाद्यम्। मूढैः कृतं तत्र शुभोत्सवाद्यं विनाशमायात्यचिराद्भृशं तत् ॥१४ ॥ </blockquote>
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# '''प्रतिपदा-''' विवाह, उपनयन, यात्रा, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चौल, वास्तुकर्म, गृहप्रवेश आदि माङ्गलिक कार्य प्रतिपदा को नहीं करने चाहिये।
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# '''द्वितीया-''' यात्रा, विवाह, आभूषण, सङ्गीतविद्या, शिल्प आदि कार्य द्वितीया को नहीं करना चाहिये।
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# '''तृतीया-''' द्वितीया तिथि में निषेध कार्यों को तृतीया तिथिमें करना चाहिये।
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# '''चतुर्थी-''' विद्युत्कर्म, वध, बन्धन, शस्त्र, विष, अग्नि, घात आदि कार्य चतुर्थी तिथिमें करनेसे सिद्ध नहीं होते हैं।
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# '''पञ्चमी-''' द्वितीया तिथि में निषेध कार्यों को पञ्चमी तिथिमें करना चाहिये।
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# '''षष्ठी-''' अभ्यंग, यात्रा, पितृकर्म, दन्तकाष्ठ आदि सञ्चय नहीं करना चाहिये।
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# '''सप्तमी-''' द्वितीया, तृतीया और पञ्चमी तिथियों की तरह ही उनसभी कार्यों को सप्तमी तिथिमें भी आचरण करना चाहिये।
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# '''अष्टमी-''' संग्राम, वास्तु, शिल्पराज, प्रमोद, लेखन, स्त्री, रत्न, अखिल आभूषण आदि सभी कार्यों को अष्टमी तिथिमें करना शुभ होता है।
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# '''नवमी-''' चतुर्थी तिथिमें उक्त कार्यों को नवमी तिथि में करना चाहिये।
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# '''दशमी-'''  द्वितीया, तृतीया, पञ्चमी और सप्तमी तिथियों की तरह ही उनसभी कार्यों को नवमी तिथिमें भी आचरण करना चाहिये।
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# '''एकादशी-''' व्रत, उपवास, अनेक धार्मिक कृत्यों को, देव उत्सव, उद्यापन और कथा आदि शुभ कर्मों को एकादशी तिथि में करना चाहिये।
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# '''द्वादशी-''' यात्रा आदि को छोडकर पुष्टिकारक सभी धार्मिक एवं शुभ कार्यों को द्वादशी तिथिमें करना चाहिये।
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# '''त्रयोदशी-''' द्वितीया, तृतीया, पञ्चमी, सप्तमी और नवमी  तिथियों की तरह ही उनसभी कार्यों को  त्रयोदशी तिथिमें भी आचरण करना चाहिये।
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# '''चतुर्दशी-''' चतुर्थी तिथिमें विहित कार्यों को चतुर्दशी तिथि में भी करना चाहिये।
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# '''अमावस्या-''' अमावस्या तिथि में सदा पैतृक कर्मों को ही करना चाहिए। अन्य आचरणीय शुभ कार्यों को अमावस्या में त्याग देना चाहिये।
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# '''पूर्णिमा-''' विवाह, शिल्प, पौष्टिककर्म, मंगलकर्म, संग्राम, वास्तुकर्म, यज्ञक्रिया प्रतिष्ठा आदि कार्यों को पूर्णिमा तिथिमें करना चाहिये।
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=== युगादि-मन्वादि तिथियाँ ===
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=== तिथिवशात् गजच्छाया योग ===
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=== क्षयादि तिथियाँ ===
    
==तिथि निर्माण==
 
==तिथि निर्माण==
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