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चंद्रराक्योदिगिशान की दिशा में वरुणस्य।
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चंद्रार्कयोदिगीशानां  दिशांच में वरुणस्य च ।
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जमा करने के लिए मिदन दघी ते ट्वान रक्षाु सर्वदा।
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निक्षेपार्थ मिदं दघि ते त्वां रक्षन्तु सर्वदा ||
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प्रमत्तम या प्रसुप्तम या दिवारात्रमथपिव।
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प्रमत्तं वा  प्रसुप्तं वा  दिवारत्रमथापिवा।
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रक्षातु सत्तम ते त्वन देवा: शकरापुरग में।
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रक्षन्तु  सततं ते त्वां देवाः शक्रपुरोगमा।
    
नामकरण संस्कार के बाद यह संस्कार विकसित हुआ। एक बार जब बच्चे का नामकरण विधि हो जारा है  , तो उसका नाम कुल , गोत्र और देशकाल के पूर्व नाम संदर्भ में प्रतिष्ठित होता है । इसलिए एक व्यक्ति के रूप में बच्चे की अस्मीता रक्षित हो जाता है। इसके बाद अपना लौकिक और अलौकिक कल्याण करने के लिए निष्क्रमण संस्कार किया जाता हैं। वह व्यक्ति एक नाम के रूप में वह जहां भी जाता है , नाम उस व्यक्ति को हर जगह  प्रतिष्ठा और अनुग्रह देगा  भगवान उस व्यक्ति की रक्षा करेंगे इस भावना के साथ यह संस्कार किया जाता है। इस तरह जीवन की पहली बाहरी यात्रा में आये बालक को देवदर्शन के लिए मंदिर ले जाया जाता है।
 
नामकरण संस्कार के बाद यह संस्कार विकसित हुआ। एक बार जब बच्चे का नामकरण विधि हो जारा है  , तो उसका नाम कुल , गोत्र और देशकाल के पूर्व नाम संदर्भ में प्रतिष्ठित होता है । इसलिए एक व्यक्ति के रूप में बच्चे की अस्मीता रक्षित हो जाता है। इसके बाद अपना लौकिक और अलौकिक कल्याण करने के लिए निष्क्रमण संस्कार किया जाता हैं। वह व्यक्ति एक नाम के रूप में वह जहां भी जाता है , नाम उस व्यक्ति को हर जगह  प्रतिष्ठा और अनुग्रह देगा  भगवान उस व्यक्ति की रक्षा करेंगे इस भावना के साथ यह संस्कार किया जाता है। इस तरह जीवन की पहली बाहरी यात्रा में आये बालक को देवदर्शन के लिए मंदिर ले जाया जाता है।
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