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चंद्रराक्योदिगिशान की दिशा में वरुणस्य।

जमा करने के लिए मिदन दघी ते ट्वान रक्षाु सर्वदा।

प्रमत्तम या प्रसुप्तम या दिवारात्रमथपिव।

रक्षातु सत्तम ते त्वन देवा: शकरापुरग में।

नामकरण संस्कार के बाद यह संस्कार विकसित हुआ। एक बार जब बच्चे का नामकरण विधि हो जारा है  , तो उसका नाम कुल , गोत्र और देशकाल के पूर्व नाम संदर्भ में प्रतिष्ठित होता है । इसलिए एक व्यक्ति के रूप में बच्चे की अस्मीता रक्षित हो जाता है। इसके बाद अपना लौकिक और अलौकिक कल्याण करने के लिए निष्क्रमण संस्कार किया जाता हैं। वह व्यक्ति एक नाम के रूप में वह जहां भी जाता है , नाम उस व्यक्ति को हर जगह  प्रतिष्ठा और अनुग्रह देगा  भगवान उस व्यक्ति की रक्षा करेंगे इस भावना के साथ यह संस्कार किया जाता है। इस तरह जीवन की पहली बाहरी यात्रा में आये बालक को देवदर्शन के लिए मंदिर ले जाया जाता है।

प्राचीन रूप:

इस संस्कार में शिशु को पहली बार सूर्यदर्शन कराया जाता है और घर में  बाहरी बरामदे / बरामदे की सीमा को लांघकर यह संस्कार पूर्ण किया जाता है | इसके बारे में अथर्ववेद में कहा गया है की  "हे शिशु/बालक/तुम्हारे निष्क्रमण संस्कार के समय भूलोक और पृथ्वी लोक तुम्हारे लिए सुखदायक और कल्यानमय हो और  सूरज आपके लिए सुखद और कल्यानमय  किरणों की वर्षा करें। तुम्हारे ह्रदय में स्वच्छ वायु का संचार हो | गंगायमुना बहती नदियाँ तुम्हें शुद्ध जल प्रदान करे ।

शास्त्रों के अनुसार, निष्क्रमण संस्कार का समय बारहवां दिन , चौथा महीना हो ऐसा बताया हुआ है। इस संस्कार के दिन घर के प्रांगण में गोबर से गोलाकार लेपन करना और उस पर स्वस्तिक रेखांकन कर उसपर धान रखा जाता है। वहाँ एक थाली रखकर बच्चे को बाहर लाकर सूर्यदर्शन कराया जाता है | कुछ जगहों पर बच्चे को भगवान के सामने नग्न रखा जाता है । पुनः वस्त्र धारण कर और देव पूजा, जाप करें और मंगल गीत गाये । लोकपाल , चंद्रमा , सूर्य , आकाश में नक्षत्र की  स्तुति की जाती है । पिता मंत्र का पाठ करते कहते है , _ हे बालक अप्रमत्त होवो या प्रमत्त, दिन हो या रात हो, इंद्र के नेतृत्व में सभी देवता इनका रक्षण करे |

बड़े होकर बालक सुन्दर देश का प्रवास करे, जलयान, वायुयान, कार , ट्रेन आदि तेज गति वहां देशों की यात्रा करे । उस समय दुर्घटनाओं और विपदाओं का लगातार भय रहता है। ऐसे समय सर्वत्र और सदैव सुरक्षा की कामना से बालक के शेषजीवन के लिए यह संस्कार का हेतु है |  बच्चे को मंदिर ले जाकर देवदर्शन किया जाता है |  मंदिर में पूजा कर जब वे घर लौटते थे तो बच्चे को अपने मामा की गोद में बिठाकर ले जाते है । सभी बच्चे को खिलौने , कपड़े इत्यादि के साथ आशीर्वाद देते है – ऐसा निष्क्रमण संस्कार करते है ।

वर्तमान प्रारूप:

आजकल ज्यादातर बच्चे प्रसूति वार्ड या अस्पताल में पैदा होते हैं । इसलिए जब बच्चे को  घर लेट समय सहज रूप से सूर्यदर्शन हो जाता है इसलिए नामकरण संस्कार और निष्क्रम संस्कार जोड़कर किया जाता है। यह समय के साथ हुआ एक व्यवस्था है। हालाँकि, वास्तव में,निष्क्रमण को आजकल एक विशेष प्राथमिकता है क्योंकि जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो वह शिक्षा और नौकरी के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाता है। उस समय हवाई जहाज ,पानी जहाज , ट्रेन , बस आदि जैसे एक्सप्रेस वाहनों का उपयोग या गांव में स्कूटर और कार का उपयोग अनिवार्य होता है तो हर जगह यात्रा के दौरान दैवीय शक्तियों से सुरक्षा की मांग करते हुए इस अनुष्ठान को करना बेहतर होगा।

प्रक्रिया:

पिता बच्चे को लेकर घर से बाहर लाते है । बच्चे को सुर्य्दर्शन करते समय कहते हैं , " देखो , यह सूर्य ब्रह्मांड का नेत्र है। आप सूर्य सौ . आप सौ वर्ष तक सूर्य को देखे - सौ साल जियो , सौ साल के लिए सुख पूर्वक  , शांतिपूर्ण जीवन जिएं और धर्म का पालन करें। भगवान तुम्हारी रक्षा करें

मंदिर में आराध्य देवता के सामने लकड़ी के पाट पर मुलायम  बिस्तर पर बच्चे को लिटाओ और कहो , " हे भगवान! बच्चो पर कोई समस्या न हो,  हर जगह , हमेशा के लिए , किसी भी समय में, किसी भी मौसम में , स्वदेश या विदेश में , चाहे वह कहीं भी हो और उस समय भूमि , जल , आकाश या अंतरिक्ष में ऐसी जगह अजन्मे बच्चे की आप से रक्षा होती है । हम सर्व कुटुम्बिय के लिए विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करते हैं।

लौटते समय बच्चे को मामा गोद में रखकर घर ले आओ।
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