Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारि
Line 1,110: Line 1,110:  
ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी को इनका दर्शन होता है। लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है ।
 
ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी को इनका दर्शन होता है। लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है ।
    +
=== वृषेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 +
आगादिह महादेवो वृषेशो वृषभध्वजात्  । बाणेश्वरस्य  लिङ्गष्य  समीपे वृषदः सदा ।।(काशीखण्ड्)
   −
वृषेश्वर_महादेव  #काशी_खण्डोक्त
+
धर्मप्रद लिंग वृषेश्वर , जो कि वृषभध्वज तीर्थ से यहाँ आकर बाणेश्वर महादेव के समीप में सदैव शोभायान रहते है ।
 
  −
आगादिह महादेवो वृषेशो वृषभध्वजात्  ।
  −
 
  −
बाणेश्वरस्य  लिङ्गष्य  समीपे वृषदः सदा ।।
  −
 
  −
(#काशीखण्ड्)
  −
 
  −
~धर्मप्रद लिंग वृषेश्वर , जो कि वृषभध्वज तीर्थ से यहाँ आकर बाणेश्वर महादेव के समीप में सदैव शोभायान रहते है ।
      
काशी में वृषेश्वर लिंग का स्थापना महादेव के परम भक्त नंदी द्वारा किया गया है।
 
काशी में वृषेश्वर लिंग का स्थापना महादेव के परम भक्त नंदी द्वारा किया गया है।
Line 1,141: Line 1,135:  
इस मंदिर से थोड़ा पहले बाणेश्वर महादेव का भी मन्दिर है।
 
इस मंदिर से थोड़ा पहले बाणेश्वर महादेव का भी मन्दिर है।
   −
<nowiki>#</nowiki>अत्युग्रह_नरसिंह      #काशीखण्डोक्त
+
=== अत्युग्रह नरसिंह (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
अतिउग्र नरसिंह यह नरसिंह भगवान का रूप काशी में बहुत ही उग्र रूप से निवास करते है । काशी और काशीवासियो की सदैव रक्षा करते रहते है ।
 
अतिउग्र नरसिंह यह नरसिंह भगवान का रूप काशी में बहुत ही उग्र रूप से निवास करते है । काशी और काशीवासियो की सदैव रक्षा करते रहते है ।
    
इस तीर्थ के बारे में भगवान माधव विष्णु ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा था कि :--
 
इस तीर्थ के बारे में भगवान माधव विष्णु ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा था कि :--
   −
अतिउग्र नरसिंहोःहं  कल्शेश्वर पश्चिमे।
+
अतिउग्र नरसिंहोःहं  कल्शेश्वर पश्चिमे। अत्युग्रमपि पापोघं  हरामि श्रध्यार्चितः।।
 
  −
अत्युग्रमपि पापोघं  हरामि श्रध्यार्चितः।।
      
कल्शेश्वर शिव लिङ्ग के पश्चिम भाग में मैं अत्युग्रह नरसिंह के नाम से राहत हूं । श्रद्धा से उनका पूजन करने पर बड़ी उग्र पापराशि (जो अक्षय कर्मो के बाद भी इंसान को दुख देती है और पीछा नही छोड़ती) को भी दूर कर देता हूं ।
 
कल्शेश्वर शिव लिङ्ग के पश्चिम भाग में मैं अत्युग्रह नरसिंह के नाम से राहत हूं । श्रद्धा से उनका पूजन करने पर बड़ी उग्र पापराशि (जो अक्षय कर्मो के बाद भी इंसान को दुख देती है और पीछा नही छोड़ती) को भी दूर कर देता हूं ।
Line 1,155: Line 1,146:  
पता -ck 8/21 गौमठ (संकठा जी मन्दिर मार्ग के पास) , चौक , वाराणसी
 
पता -ck 8/21 गौमठ (संकठा जी मन्दिर मार्ग के पास) , चौक , वाराणसी
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_ब्रह्मनालेश्वर_महादेव  #काशीखण्डोक्त
+
=== श्री ब्रह्मनालेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
नाभितीर्थ नाभितीर्थेश्वर
<nowiki>#</nowiki>नाभितीर्थ   #नाभितीर्थेश्वर
      
काशी में चौक के ब्रह्मनाल मोहल्ले से मणिकर्णिका मार्ग पर जाने वाले मार्ग पर यह स्वयंभू शिवलिंग है , प्राचीन समय पर यहां इसी लिंग के आस पास कही ब्रह्मनाल तीर्थ (कुंड) भी था जो अब लुप्त होगया है । काशीखण्ड में ऐसा वर्णन है कि ब्रह्माल तीर्थ में स्नान करने से करोड़ो जन्म के पाप नष्ट होजाते है । स्वर्गीय पण्डित केदारनाथ व्यास जी के पुस्तक के अनुसार इनको अविमुक्तेश्वर नाम से भी बताया गया है ।
 
काशी में चौक के ब्रह्मनाल मोहल्ले से मणिकर्णिका मार्ग पर जाने वाले मार्ग पर यह स्वयंभू शिवलिंग है , प्राचीन समय पर यहां इसी लिंग के आस पास कही ब्रह्मनाल तीर्थ (कुंड) भी था जो अब लुप्त होगया है । काशीखण्ड में ऐसा वर्णन है कि ब्रह्माल तीर्थ में स्नान करने से करोड़ो जन्म के पाप नष्ट होजाते है । स्वर्गीय पण्डित केदारनाथ व्यास जी के पुस्तक के अनुसार इनको अविमुक्तेश्वर नाम से भी बताया गया है ।
Line 1,167: Line 1,157:  
यदि हम दिखावे से दूर होकर अपने आस पास के मंदिरों का ध्यान साफ सफाई रखते है तोह यह बहुत सौभाग्य प्रद है।क्योंकि भगवान शिव काशी के सभी लिंगो में एक स्वरूप वास करते है ।
 
यदि हम दिखावे से दूर होकर अपने आस पास के मंदिरों का ध्यान साफ सफाई रखते है तोह यह बहुत सौभाग्य प्रद है।क्योंकि भगवान शिव काशी के सभी लिंगो में एक स्वरूप वास करते है ।
    +
===== श्री काशी विश्वनाथ महिमा =====
 +
न विश्वानाथस्य समं हि लिङ्गं न तिर्थमन्यमणिकर्निकातः। तपोवन कुत्रचिदस्ति नान्यच्छुभं ममाःनन्दवनेन तुल्यं ।।
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_काशी_विश्वनाथ_महिमा
+
विश्वेशे परमान्नं यो दद्याद्दपर्णं चारुचामरं । त्रयलोकयं तर्पितम् तेन सदेवपृतमानवं ।।
 
  −
न विश्वानाथस्य समं हि लिङ्गं न तिर्थमन्यमणिकर्निकातः।
  −
 
  −
तपोवन कुत्रचिदस्ति नान्यच्छुभं ममाःनन्दवनेन तुल्यं ।।
  −
 
  −
विश्वेशे परमान्नं यो दद्याद्दपर्णं चारुचामरं ।
  −
 
  −
त्रयलोकयं तर्पितम् तेन सदेवपृतमानवं ।।
  −
 
  −
यस्तु विश्वेश्वरं दृष्ट्वा ह्यन्यत्राःपि विपद्यते।
     −
तस्य जन्मान्तरे मोक्षो भवत्येव न संशयः।।
+
यस्तु विश्वेश्वरं दृष्ट्वा ह्यन्यत्राःपि विपद्यते। तस्य जन्मान्तरे मोक्षो भवत्येव न संशयः।। (काशीखण्ड्)
 
  −
(#काशीखण्ड्)
      
विश्वनाथ के समान लिंग और मणिकर्णिका के तुल्य तीर्थ और मेरे शुभमय आनंदवन(काशी) के सदृश तपोवन दूसरा कही भी नही है।
 
विश्वनाथ के समान लिंग और मणिकर्णिका के तुल्य तीर्थ और मेरे शुभमय आनंदवन(काशी) के सदृश तपोवन दूसरा कही भी नही है।
Line 1,192: Line 1,172:  
~ इसीलिए तोह कहते है कि ~
 
~ इसीलिए तोह कहते है कि ~
   −
विश्व्नाथ सम लिंग नहीं , नगर न काशी समान ।
+
विश्व्नाथ सम लिंग नहीं , नगर न काशी समान । मणिकर्णिका सो तीर्थ नहीं , जग में कतहूँ महान ।।
 
  −
मणिकर्णिका सो तीर्थ नहीं , जग में कतहूँ महान ।।
  −
 
  −
मानुष तन वह धन्य है , विश्वनाथ को जो देख ।
     −
जन्म लिए कर विश्व मे , एक यही फल लेख ।।
+
मानुष तन वह धन्य है , विश्वनाथ को जो देख । जन्म लिए कर विश्व मे , एक यही फल लेख ।।
 
  −
<nowiki>#</nowiki>जैगीषव्येश्वर_महादेव          #काशी_खण्डोक्त
      +
=== जैगीषव्येश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
भूत भैरव मुहल्ला (करनघन्टा नखास मार्ग ) वाराणसी
 
भूत भैरव मुहल्ला (करनघन्टा नखास मार्ग ) वाराणसी
   −
अत्र जयेष्ठेश्वरक्षेत्रे त्वल्लिङ्गं सर्वसिद्धिदं ।
+
अत्र जयेष्ठेश्वरक्षेत्रे त्वल्लिङ्गं सर्वसिद्धिदं । नाशयेदघसंघानि  दृष्टं स्पृष्टं समर्चितम् ।।
   −
नाशयेदघसंघानि  दृष्टं स्पृष्टं समर्चितम् ।।
+
अस्मिन् ज्येष्ठेश्वरक्षेत्रे संभोज्य शिवयोगिनः। कोटिभोज्यफलं    सम्यगेकैकपरिसंख्यया।।
   −
अस्मिन् ज्येष्ठेश्वरक्षेत्रे संभोज्य शिवयोगिनः।
+
करिष्याम्यत्र      सान्निध्यमस्मिलिन्ङ्गे । योगसिद्धिप्रदानाय साध्केभ्यः सदैव हि ।।
 
  −
कोटिभोज्यफलं    सम्यगेकैकपरिसंख्यया।।
  −
 
  −
करिष्याम्यत्र      सान्निध्यमस्मिलिन्ङ्गे ।
  −
 
  −
योगसिद्धिप्रदानाय साध्केभ्यः सदैव हि ।।
      
इस ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र में यह लिंग सभी सिद्धियो का दाता है , इसके दर्शन और स्पर्श और पूजन से सभी पाप नष्ट होजाते है । इस ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र में एक एक शिव योगियो को भोजन कराने से करोड़ करोड़ जन को भोजन कराने का पूर्ण फल प्राप्त होता है। मैं साधक लोगो को सिद्धि दान करने के लिए सदैव इस लिंग में बना रहूंगा ।
 
इस ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र में यह लिंग सभी सिद्धियो का दाता है , इसके दर्शन और स्पर्श और पूजन से सभी पाप नष्ट होजाते है । इस ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र में एक एक शिव योगियो को भोजन कराने से करोड़ करोड़ जन को भोजन कराने का पूर्ण फल प्राप्त होता है। मैं साधक लोगो को सिद्धि दान करने के लिए सदैव इस लिंग में बना रहूंगा ।
   −
<nowiki>#</nowiki>प्राचीन_समय_की_बात_है
+
प्राचीन समय की बात है-
   −
जब शिव जी दिवोदास के याचना के अनुसार , ब्रह्मा जी के कहने पर काशी छोड़कर मंदरांचल चले गए थे , तभी से "#जैगीषव्य" नामक महामुनि काशी के प्रसिद्ध तीर्थ गंभीर गुहा में अन्न जल त्याग कर शिवलिंग स्थापित करके तपोलीन होगये थे । मुनि की प्रतिज्ञा थी कि भवानी नाथ के पुनः काशी में दर्शन होने पर ही वे अन्न जल ग्रहण करेंगे ।
+
जब शिव जी दिवोदास के याचना के अनुसार , ब्रह्मा जी के कहने पर काशी छोड़कर मंदरांचल चले गए थे , तभी से जैगीषव्य नामक महामुनि काशी के प्रसिद्ध तीर्थ गंभीर गुहा में अन्न जल त्याग कर शिवलिंग स्थापित करके तपोलीन होगये थे । मुनि की प्रतिज्ञा थी कि भवानी नाथ के पुनः काशी में दर्शन होने पर ही वे अन्न जल ग्रहण करेंगे ।
    
शिव जी को यह बात काशी छोड़ते ही पता चल गई थी , इसीलिए तोह शिव जी का काशी में पुनः वापस लौट आने की प्रबल इक्षा थी जिसको उन्होंने अभी विधि से पूर्ण कर ही लिया।
 
शिव जी को यह बात काशी छोड़ते ही पता चल गई थी , इसीलिए तोह शिव जी का काशी में पुनः वापस लौट आने की प्रबल इक्षा थी जिसको उन्होंने अभी विधि से पूर्ण कर ही लिया।
Line 1,240: Line 1,209:  
काशी में परमदुर्लभ इस जैगीषव्येश्वर नामक लिंग के तीन वर्ष तक सेवा करने से निश्चित ही योग प्राप्त हो जाता है ।
 
काशी में परमदुर्लभ इस जैगीषव्येश्वर नामक लिंग के तीन वर्ष तक सेवा करने से निश्चित ही योग प्राप्त हो जाता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कंदुकेश्वर_महादेव      #काशीखण्डोक्त
+
=== कंदुकेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
   
भूत भैरव मुहल्ला , (करनघन्टा नखास मार्ग) वाराणसी।
 
भूत भैरव मुहल्ला , (करनघन्टा नखास मार्ग) वाराणसी।
   −
मृडानी तस्य  लिङ्गस्य पूजां कुर्यात्सदैव हि ।
+
मृडानी तस्य  लिङ्गस्य पूजां कुर्यात्सदैव हि । तत्रैव देव्याः सान्निध्यं पार्वत्या भक्तसिद्धिदम् ।। (काशीखण्ड)
 
  −
तत्रैव देव्याः सान्निध्यं पार्वत्या भक्तसिद्धिदम् ।।
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
पार्वती देवी प्रतिदिन इस लिंग की पूजा करती है और वहां पर वर्तमान रहकर भक्त लोगों को सिद्धि प्रदान करती है ।
 
पार्वती देवी प्रतिदिन इस लिंग की पूजा करती है और वहां पर वर्तमान रहकर भक्त लोगों को सिद्धि प्रदान करती है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कंदुकेश्वर लिंग कंदुक (गेंद) से प्रकट हुआ है ।
+
कंदुकेश्वर लिंग कंदुक (गेंद) से प्रकट हुआ है ।
    
एक समय की बात है काशी के ज्येष्ठेश्वर लिंग के पास में महेश्वर (शिव)  विहार कर रहे थे और माता भगवती (भवानी) गेंद से(कंदुक से) खेल रहीं थी ।
 
एक समय की बात है काशी के ज्येष्ठेश्वर लिंग के पास में महेश्वर (शिव)  विहार कर रहे थे और माता भगवती (भवानी) गेंद से(कंदुक से) खेल रहीं थी ।
Line 1,268: Line 1,232:  
जो कोई कंदुकेश्वर की इस उत्पत्ति को सुनेगा और प्रसन्न मन से उनका पूजन करेगा , उसे पुनः किसी दुख का भय नही रहेगा ।
 
जो कोई कंदुकेश्वर की इस उत्पत्ति को सुनेगा और प्रसन्न मन से उनका पूजन करेगा , उसे पुनः किसी दुख का भय नही रहेगा ।
   −
कन्दुकेश्वरभक्तानां मानवानां  निरेनसाम् ।
+
कन्दुकेश्वरभक्तानां मानवानां  निरेनसाम् । योगक्षेमं सदा कुर्याद् भवानि भयनाशिनी ।।(काशीखण्ड)
 
  −
योगक्षेमं सदा कुर्याद् भवानि भयनाशिनी ।।
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
समस्त भयनशिनी स्वयं भवानी ही कंदुकेश्वर के निष्पाप भक्तलोगों का सैदेव योगक्षेम करती रहती है ।
 
समस्त भयनशिनी स्वयं भवानी ही कंदुकेश्वर के निष्पाप भक्तलोगों का सैदेव योगक्षेम करती रहती है ।
Line 1,280: Line 1,240:  
कंदुकेश्वर का नाम सुनते ही पापपुंज ऐसे शीघ्र क्षय होने लगते है , जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार दूर हो जाता है ।
 
कंदुकेश्वर का नाम सुनते ही पापपुंज ऐसे शीघ्र क्षय होने लगते है , जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार दूर हो जाता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>काल_भैरव    #काशीखण्डोक्त
+
=== काल भैरव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
वार्षिक रुद्राक्ष सृंगार महोत्सव (चतुर्दशी दर्शन)
<nowiki>#</nowiki>वार्षिक_रुद्राक्ष_सृंगार_महोत्सव
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>चतुर्दशी_दर्शन 18/12/21
      
काशी में मैदागिन से विशेश्वरगन्ज मार्ग पर अति प्रसिद्ध मंदिर
 
काशी में मैदागिन से विशेश्वरगन्ज मार्ग पर अति प्रसिद्ध मंदिर
   −
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां रविभुमिजवासरे |
+
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां रविभुमिजवासरे | यात्रां च भैरवी कृत्वा कृतेः पापै प्रमुच्यते ||
   −
यात्रां च भैरवी कृत्वा कृतेः पापै प्रमुच्यते ||
+
यत्किञ्चिदशुभं कर्म कृतं मानुषबुद्धितः | तत्सर्व विलयं याति कालभैरवं दर्शनात् ||
   −
यत्किञ्चिदशुभं कर्म कृतं मानुषबुद्धितः |
+
अनेकजन्मनियुतैयर्त्कृतं  जन्तुभिस्त्वघं | तत्सर्व विलयत्याशु कालभैरव दर्शनात् ||(काशीखण्ड)
 
  −
तत्सर्व विलयं याति कालभैरवं दर्शनात् ||
  −
 
  −
अनेकजन्मनियुतैयर्त्कृतं  जन्तुभिस्त्वघं |
  −
 
  −
तत्सर्व विलयत्याशु कालभैरव दर्शनात् ||
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
रवि और मंगलवार तथा अष्टमी एवं चतुर्दशी तिथि को कालभैरव की यात्रा करने से समस्त पापों से छुट जाता है ।
 
रवि और मंगलवार तथा अष्टमी एवं चतुर्दशी तिथि को कालभैरव की यात्रा करने से समस्त पापों से छुट जाता है ।
Line 1,308: Line 1,257:  
कालभैरव के दर्शन करने से लोगो के अनेक जन्म का संचित पाप अतिशीघ्र ही विलीन हो जाता है ।
 
कालभैरव के दर्शन करने से लोगो के अनेक जन्म का संचित पाप अतिशीघ्र ही विलीन हो जाता है ।
   −
तीर्थे कलोदके स्नात्वा कृत्वा तर्पण मत्वरः |
+
तीर्थे कलोदके स्नात्वा कृत्वा तर्पण मत्वरः | विलोक्य कालराजं च निरया दुद्धरेत् पीतृन् || (काशीखण्ड)
 
  −
विलोक्य कालराजं च निरया दुद्धरेत् पीतृन् ||
  −
 
  −
(#काशीखण्ड्)
      
कालोदक तीर्थ में (जो कि काल भैरव के मंदिर में ही है) स्थिरता पूर्वक स्नान तर्पण करके फिर कालराज(कालभैरव) का दर्शन करने से मनुष्य अपने पितरों का नरक से उद्धार कर देता है ।
 
कालोदक तीर्थ में (जो कि काल भैरव के मंदिर में ही है) स्थिरता पूर्वक स्नान तर्पण करके फिर कालराज(कालभैरव) का दर्शन करने से मनुष्य अपने पितरों का नरक से उद्धार कर देता है ।
   −
<nowiki>#</nowiki>कपर्दीश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त_लिंग
+
=== कपर्दीश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
 
+
पिशाच मोचन विमल कुंड विमलोदक महातीर्थ
<nowiki>#</nowiki>पिशाच_मोचन  #विमल_कुंड  #विमलोदक_महातीर्थ
  −
 
  −
<nowiki>#</nowiki>अगहन_शुक्ल_चतुर्दशी_यात्रा
     −
<nowiki>#</nowiki>लोटा_भंटा_मेला
+
अगहन शुक्ल चतुर्दशी यात्रा
   −
मार्गशीर्ष 17 /12/21
+
लोटा भंटा मेला
   −
ब्रह्महत्यादयः पापाः विनश्यन्त्यस्य् पूजनात  |
+
मार्गशीर्ष
   −
पिशाच मोचने कुण्डे स्नातः स्यात्प्रश मोर्यतेः ||
+
ब्रह्महत्यादयः पापाः विनश्यन्त्यस्य् पूजनात  | पिशाच मोचने कुण्डे स्नातः स्यात्प्रश मोर्यतेः || (पद्मपुराण)
 
  −
(#पद्मपुराण)
      
कपर्दीश्वर के पूजन से ब्रह्म हत्या का पाप दूर होता है ,यदि वह पिशाचमोचन कुंड में स्नान करके दर्शन करता है तोह उस व्यक्ति के पितृगण मुक्त होजाते है ।
 
कपर्दीश्वर के पूजन से ब्रह्म हत्या का पाप दूर होता है ,यदि वह पिशाचमोचन कुंड में स्नान करके दर्शन करता है तोह उस व्यक्ति के पितृगण मुक्त होजाते है ।
   −
कपर्दी नामक  गणपः शम्भोरत्यन्त वल्लभः |
+
कपर्दी नामक  गणपः शम्भोरत्यन्त वल्लभः | पित्रिशादुत्तरे भागे लिङ्गं संस्थापय शाम्भवं ||
 
  −
पित्रिशादुत्तरे भागे लिङ्गं संस्थापय शाम्भवं ||
  −
 
  −
कुण्ड चखान  तस्याग्रे विमलोदकसंज्ञकम् |
     −
यस्य तोयस्य  सम्स्पर्शाद्विमलो जायते नरः |
+
कुण्ड चखान  तस्याग्रे विमलोदकसंज्ञकम् | यस्य तोयस्य  सम्स्पर्शाद्विमलो जायते नरः |(काशीखण्ड)
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
महादेव का बड़ा प्यारा गणों में प्रधान एक गण कपर्दी नामक है , जिसने पितृश्वर के उत्तर भाग में कपर्दीश्वर शिव लिंग की स्थापना की थी , साथ ही उन्होंने विमलोदक कुंड भी खोद दिया था । इस कुंड के जल का स्पर्श करने से मनुष्य की मलिनता छूट जाती है ।
 
महादेव का बड़ा प्यारा गणों में प्रधान एक गण कपर्दी नामक है , जिसने पितृश्वर के उत्तर भाग में कपर्दीश्वर शिव लिंग की स्थापना की थी , साथ ही उन्होंने विमलोदक कुंड भी खोद दिया था । इस कुंड के जल का स्पर्श करने से मनुष्य की मलिनता छूट जाती है ।
   −
पिशाचमोचने तीर्थे संभोज्य शिवयोगिनम् |
+
पिशाचमोचने तीर्थे संभोज्य शिवयोगिनम् | कोटि भोज्यफ़लम् सम्यगेकैकपरिसंख्यया || (काशीखण्ड्)
 
  −
कोटि भोज्यफ़लम् सम्यगेकैकपरिसंख्यया ||
  −
 
  −
(#काशीखण्ड्)
      
इस पिशाच मोचन तीर्थ पर एक एक शिवयोगी के भोजन कराने से करोड़ करोड़ सन्यासी खिलाने के फल पूर्ण रीति से प्राप्त होता है ।
 
इस पिशाच मोचन तीर्थ पर एक एक शिवयोगी के भोजन कराने से करोड़ करोड़ सन्यासी खिलाने के फल पूर्ण रीति से प्राप्त होता है ।
   −
अघ शुक्लचतुर्दश्यां मार्गे मासि तपोनिधे |
+
अघ शुक्लचतुर्दश्यां मार्गे मासि तपोनिधे | अत्र स्नानादिक कार्य पिशाच्य परिमोचनं ||
   −
अत्र स्नानादिक कार्य पिशाच्य परिमोचनं ||
+
इमां सांवत्सरी यात्रां ये करिष्यन्ति ते नराः | तीर्थःप्रतिग्रहात्पपान्निःसरिष्यन्ति ते नराः || (काशीखण्ड)
 
  −
इमां सांवत्सरी यात्रां ये करिष्यन्ति ते नराः |
  −
 
  −
तीर्थःप्रतिग्रहात्पपान्निःसरिष्यन्ति ते नराः ||
  −
 
  −
(#काशीखण्ड)
      
आज अगहन मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दसी है , आज के दिन यहां पर स्नानदिक करने से पिशाच्योनि का मोचन होजाता है।
 
आज अगहन मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दसी है , आज के दिन यहां पर स्नानदिक करने से पिशाच्योनि का मोचन होजाता है।
Line 1,372: Line 1,296:  
अगहन शुक्ल चतुर्दशी के दिन कपर्दीश्वर के समीप पिशाच मोचन में स्नान करलेने से व्यक्ति जहां कही भी मारे पिशाच नही होना पड़ता।
 
अगहन शुक्ल चतुर्दशी के दिन कपर्दीश्वर के समीप पिशाच मोचन में स्नान करलेने से व्यक्ति जहां कही भी मारे पिशाच नही होना पड़ता।
   −
<nowiki>#</nowiki>कथा
+
===== कथा =====
 
+
त्रेता युग के समय एक वाल्मीकि नामक परम् शिव भक्त हुवा करते थे जो कि कपर्दीश्वर लिंग के पूजा और विमलोदक कुंड में नित्य स्नान , ध्यान करते थे । एक दिन उनको एक बहुत भयंकर राक्षस(पिशाच) दिखा जो कि बहुत ज्यादा भयावह था उस डरावने पिशाच को देख कर बड़ी धीरता से उस बूढ़े तपस्वी ने पूछा कि तुम कोन हो ? कहाँ से आये हो ? निर्भय हो कर बताओ क्योंकि जो तपस्वी शिव सहस्त्रनाम को जपते है तथा विभूति लगाते है उनको किसी से डर नही मैं निर्भीक हु तुम भी निर्भीक होकर कहो ।
<nowiki>#</nowiki>त्रेता युग के समय एक वाल्मीकि नामक परम् शिव भक्त हुवा करते थे जो कि कपर्दीश्वर लिंग के पूजा और विमलोदक कुंड में नित्य स्नान , ध्यान करते थे । एक दिन उनको एक बहुत भयंकर राक्षस(पिशाच) दिखा जो कि बहुत ज्यादा भयावह था उस डरावने पिशाच को देख कर बड़ी धीरता से उस बूढ़े तपस्वी ने पूछा कि तुम कोन हो ? कहाँ से आये हो ? निर्भय हो कर बताओ क्योंकि जो तपस्वी शिव सहस्त्रनाम को जपते है तथा विभूति लगाते है उनको किसी से डर नही मैं निर्भीक हु तुम भी निर्भीक होकर कहो ।
      
फिर पिशाच ने अपना वृतांत सुनाया
 
फिर पिशाच ने अपना वृतांत सुनाया
925

edits

Navigation menu