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अश्विन कृष्ण द्वितीया तिथि के दिन ललिता देवी की पूजा करने से नर , नारी के वांछित सभी मनोरथ पूर्ण होते है । मनुष्यो को भी संपत्ति प्राप्त करने के लिए ललिता गौरी की प्रयत्न पूर्वक पूजा करनी चाहिए । जो मनुषय ललिता देवी की पूजा करते है उन्हें कभी भी काशी में विघ्न नही प्राप्त होते है , साथ राज राजेश्वरी ललिता यह दश महाविद्याओं में से है इनका भी दर्शन करना चाहिए ।
अश्विन कृष्ण द्वितीया तिथि के दिन ललिता देवी की पूजा करने से नर , नारी के वांछित सभी मनोरथ पूर्ण होते है । मनुष्यो को भी संपत्ति प्राप्त करने के लिए ललिता गौरी की प्रयत्न पूर्वक पूजा करनी चाहिए । जो मनुषय ललिता देवी की पूजा करते है उन्हें कभी भी काशी में विघ्न नही प्राप्त होते है , साथ राज राजेश्वरी ललिता यह दश महाविद्याओं में से है इनका भी दर्शन करना चाहिए ।
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===== विश्वकर्मा_जयंती_दर्शन_यात्रा =====
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=== विश्वकरमेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
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आज 17/9/21#विश्वकरमेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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विश्वकर्मा जयंती दर्शन यात्रा (भाद्र शुक्ल पक्ष एकादशी)
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भाद्र शुक्ल पक्ष एकादशी
विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र त्वष्टा के यहां जन्म लिए थे, बचपन से ही हर कार्य मे निपुण होने के कारण उनका नाम विश्वकर्मा पड़ा, बाल्यकाल में ही यज्ञोपवित होजाने के कारण वह केवल भिक्षा द्वारा ही भोजन करते थे ।
विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र त्वष्टा के यहां जन्म लिए थे, बचपन से ही हर कार्य मे निपुण होने के कारण उनका नाम विश्वकर्मा पड़ा, बाल्यकाल में ही यज्ञोपवित होजाने के कारण वह केवल भिक्षा द्वारा ही भोजन करते थे ।
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गरुकुल में पढ़ाई के साथ साथ अपने गुरु के आज्ञा को ही सर्वोपरि मान कर कार्य किया करते थे ,
गरुकुल में पढ़ाई के साथ साथ अपने गुरु के आज्ञा को ही सर्वोपरि मान कर कार्य किया करते थे ,
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एक बार वर्षा ऋतु में उनके #गुरु ने उनसे ऐसा घर बनाने को कहा जो सदा नया और मजबूत रहे ।
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एक बार वर्षा ऋतु में उनके गुरु ने उनसे ऐसा घर बनाने को कहा जो सदा नया और मजबूत रहे ।
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गुरु_माता ने भी ऐसे वस्त्रों की मांग की जो कभी खराब न हो और हमेशा उज्ज्वल रहे ।
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गुरु माता ने भी ऐसे वस्त्रों की मांग की जो कभी खराब न हो और हमेशा उज्ज्वल रहे ।
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गुरु_पुत्र ने कभी न टूटने वाली पादुका (चप्पल) की मांग की जो बिना चमड़े की हो और पानी मे भी चल पाए ।
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गुरु पुत्र ने कभी न टूटने वाली पादुका (चप्पल) की मांग की जो बिना चमड़े की हो और पानी मे भी चल पाए ।
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गुरु_कन्या में हाथी दांत के खिलौने , सोने के कर्णफूल (झुमके) कभी न टूटने वाले बर्तन , और कुछ बड़े बर्तन भी जो बिना धोए ही साफ रहे ।
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गुरु कन्या में हाथी दांत के खिलौने , सोने के कर्णफूल (झुमके) कभी न टूटने वाले बर्तन , और कुछ बड़े बर्तन भी जो बिना धोए ही साफ रहे ।
इनको बनाने की विद्या से अनभिज्ञ होने पर भी विश्वकर्मा ने यह सब बनाने का संकल्प ले लिया और कुछ दिन सोच में पड़े रहने के बाद , वह निर्जन जंगल मे चले गए और चिंता में कहने लगे कि मैं। "" क्या करूँ? किसकी शरण मे जाऊ ? जो गरुकुल कि प्रतिज्ञा पूरी नही करता वह नरक में जाता है ।
इनको बनाने की विद्या से अनभिज्ञ होने पर भी विश्वकर्मा ने यह सब बनाने का संकल्प ले लिया और कुछ दिन सोच में पड़े रहने के बाद , वह निर्जन जंगल मे चले गए और चिंता में कहने लगे कि मैं। "" क्या करूँ? किसकी शरण मे जाऊ ? जो गरुकुल कि प्रतिज्ञा पूरी नही करता वह नरक में जाता है ।
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पता- सिंधिया घाट पर , आत्मविरेश्वर मंदिर में पीछे कुवे के बगल में ।
पता- सिंधिया घाट पर , आत्मविरेश्वर मंदिर में पीछे कुवे के बगल में ।
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===== सोहरहिया मेला दर्शन =====
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=== महालक्ष्मीश्वर सोहरहिया महादेव (काशी खण्डोक्त ) ===
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महालक्ष्मीश्वर सोहरहिया महादेव (काशीखण्डोक्त लिंग)
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सोहरहिया मेला दर्शन
महालक्ष्मी देवी के द्वारा पूजित लिंग
महालक्ष्मी देवी के द्वारा पूजित लिंग
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पता - लक्ष्मीकुंड के पास सोहरहिया महादेव नाम से प्रसिद्ध।
पता - लक्ष्मीकुंड के पास सोहरहिया महादेव नाम से प्रसिद्ध।
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==== श्री महालक्ष्मी देवी (काशीखण्डोक्त) ====
+
=== श्री महालक्ष्मी देवी (काशीखण्डोक्त) ===
सोरहिया मेला यात्रा काशी वार्षिक यात्रा
सोरहिया मेला यात्रा काशी वार्षिक यात्रा
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पता - D52/40 luxa laxmi kund
पता - D52/40 luxa laxmi kund
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==== संतानेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ====
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=== संतानेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
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भाद्रशुक्ल सप्तमी संतान सप्तमी_यात्रा 13/9/21
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भाद्रशुक्ल सप्तमी संतान सप्तमी यात्रा
लोलार्क षष्टि के ठीक दूसरे दिन सप्तमी तिथि में संतानेश्वर महादेव के दर्शन का विधान प्राचीन काल से ही चला आरहा है। आज के दिन यहां दर्शन करने से संतान की रक्षा होती है साथ ही संतान की वृद्धि होती है ।
लोलार्क षष्टि के ठीक दूसरे दिन सप्तमी तिथि में संतानेश्वर महादेव के दर्शन का विधान प्राचीन काल से ही चला आरहा है। आज के दिन यहां दर्शन करने से संतान की रक्षा होती है साथ ही संतान की वृद्धि होती है ।
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काशी खण्ड पुस्तक के अनुसार यदि किसी शादी शुदा दंपति को शादी के सालों बाद भी संतान उत्पत्ति नही हो रही हो तोह यहां संतानेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करने से संतान प्राप्ति अवश्य होती है , ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जिन्होंने यहां पूजा कर संतान की मनोकामना को प्राप्त किया है ।
काशी खण्ड पुस्तक के अनुसार यदि किसी शादी शुदा दंपति को शादी के सालों बाद भी संतान उत्पत्ति नही हो रही हो तोह यहां संतानेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करने से संतान प्राप्ति अवश्य होती है , ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जिन्होंने यहां पूजा कर संतान की मनोकामना को प्राप्त किया है ।
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मंदिर प्रांगण में #अमृतेश्वर महादेव लिंग भी है जो दर्शनार्थियों को जीवन दान देने में पूर्णरूप से सक्षम है
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मंदिर प्रांगण में अमृतेश्वर महादेव लिंग भी है जो दर्शनार्थियों को जीवन दान देने में पूर्णरूप से सक्षम है
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<nowiki>#</nowiki>काल_माधव का दर्शन हर एकादशी को करने से तमाम तरह की शारीरिक व्याधियां नष्ट होती है
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काल_माधव का दर्शन हर एकादशी को करने से तमाम तरह की शारीरिक व्याधियां नष्ट होती है
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साथ ही #अमृत_सिद्धि_गणेश तमाम तरह की सिद्धियो के साथ निरोगता प्रदान करते है ।
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साथ ही अमृत सिद्धि गणेश तमाम तरह की सिद्धियो के साथ निरोगता प्रदान करते है ।
पता- k 34 / 4 चौखम्बा भैरोनाथ मार्ग पर
पता- k 34 / 4 चौखम्बा भैरोनाथ मार्ग पर
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=== लोलार्क आदित्य लोलार्क़ेश्वर महादेव (काशी खण्ड) ===
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<nowiki>#</nowiki>लोलार्क_आदित्य #लोलार्क़ेश्वर_महादेव #काशी_खण्ड
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भाद्रशुक्ल पक्ष षष्टी रविवार यात्रा(लोलार्क षष्टी )
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<nowiki>#</nowiki>भाद्रशुक्ल_पक्ष_षष्टी #रविवार_यात्रा
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<nowiki>#</nowiki>लोलार्क_षष्टी 12-9-21
आज के विशेष दिन में संतानहीन लोग आज के तिथि में लोलार्क कुंड में श्रद्धा के डुबकी लगाते है , फलस्वरूप उनको संतान की प्राप्ति होती है , बहुत दूर दूर से लोग यहां अपनी मंन्नत मांगने आज के दिन यहां स्नान करने आते है ।
आज के विशेष दिन में संतानहीन लोग आज के तिथि में लोलार्क कुंड में श्रद्धा के डुबकी लगाते है , फलस्वरूप उनको संतान की प्राप्ति होती है , बहुत दूर दूर से लोग यहां अपनी मंन्नत मांगने आज के दिन यहां स्नान करने आते है ।
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वैसे काशी में कुल 12 आदित्य है
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वैसे काशी में कुल 12 आदित्य हैं-
अरुण आदित्य
अरुण आदित्य
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पता- अस्सीघाट के पास भदैनी मुहल्ले में , वाराणसी ।
पता- अस्सीघाट के पास भदैनी मुहल्ले में , वाराणसी ।
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===== ढूंढी विनायक (काशी खण्डोक्त) =====
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=== ढूंढी विनायक (काशी खण्डोक्त) ===
भाद्रपद शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी दर्शन
भाद्रपद शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी दर्शन
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पता-काशी विश्वनाथ जाने वाले गेट नंबर 1 पर ही इनका मंदिर है (अन्नपूर्णा मंदिर के पहले)
पता-काशी विश्वनाथ जाने वाले गेट नंबर 1 पर ही इनका मंदिर है (अन्नपूर्णा मंदिर के पहले)
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===== हरतालिका तीज वार्षिक यात्रा =====
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=== मंगला गौरी(काशी खण्डोक्त) ===
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भाद्रशुक्ल पक्ष तृतीया दर्शन (हरतालिका तीज वार्षिक यात्रा)
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===== मंगला गौरी(काशी खण्डोक्त) =====
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भाद्रशुक्ल पक्ष तृतीया दर्शन
आज के दिन समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी माँ मंगला गौरी के पूजा से मनचाहा जीवन साथी और अपने जीवन साथी के लंबी उम्र के लिए यहां प्राचीन समय से ही (हरतालिका तीज के दिन)माताएं और बहने दर्शन करती आई है ।
आज के दिन समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी माँ मंगला गौरी के पूजा से मनचाहा जीवन साथी और अपने जीवन साथी के लंबी उम्र के लिए यहां प्राचीन समय से ही (हरतालिका तीज के दिन)माताएं और बहने दर्शन करती आई है ।
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पता -पंचगंगा घाट पर स्थित मंगला गौरी प्रसिद्ध मंदिर है ।
पता -पंचगंगा घाट पर स्थित मंगला गौरी प्रसिद्ध मंदिर है ।
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===== अंगारेश्वर (मंगलेश्वर) महादेव (काशी खण्डोक्त) =====
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=== अंगारेश्वर (मंगलेश्वर) महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
मंगलवार यात्रा
मंगलवार यात्रा
मंगल देवता जिनको कुज ,अंगारक , भौम और लोहित के नाम से भी जाना जाता है यह युद्ध के देवता और धरती माता के पुत्र है और शिव जी के पसीने से उत्पन्न हुवे है , इनकी चार भुजाएं और शरीर लाल (रक्त)वर्ण का है ।
मंगल देवता जिनको कुज ,अंगारक , भौम और लोहित के नाम से भी जाना जाता है यह युद्ध के देवता और धरती माता के पुत्र है और शिव जी के पसीने से उत्पन्न हुवे है , इनकी चार भुजाएं और शरीर लाल (रक्त)वर्ण का है ।
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अंगारेश्वर लिंग की महिमा
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===== अंगारेश्वर लिंग की महिमा =====
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पुरा तपस्यतः शम्भोदर्क्षान्या वियोगतः। भाल स्थालात्पपातैकः स्वेदबिन्दु मर्हितले॥
पुरा तपस्यतः शम्भोदर्क्षान्या वियोगतः। भाल स्थालात्पपातैकः स्वेदबिन्दु मर्हितले॥
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पता- चौक सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर प्रांगण में ।
पता- चौक सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर प्रांगण में ।
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===== चन्द्रेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त ) =====
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=== चन्द्रेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त ) ===
सोमवती अमावस्या दर्शन
सोमवती अमावस्या दर्शन
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चंद्रेश्वर लिंग महिमा
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===== चंद्रेश्वर लिंग महिमा =====
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पूर्वकाल में प्रजा एवं सृष्टि के विधानेक्षु ब्रम्हा जी के मन से ही चन्द्र देव के पिता अत्रि ऋषि उतप्पन हुवे , अत्रि ऋषि ने पहले दिव्य परिमाण से तीन सहस्त्र वर्ष अनुत्तर नामक सर्वोत्कृष्ट तपस्चर्या की थी ।
पूर्वकाल में प्रजा एवं सृष्टि के विधानेक्षु ब्रम्हा जी के मन से ही चन्द्र देव के पिता अत्रि ऋषि उतप्पन हुवे , अत्रि ऋषि ने पहले दिव्य परिमाण से तीन सहस्त्र वर्ष अनुत्तर नामक सर्वोत्कृष्ट तपस्चर्या की थी ।
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पता - सिद्धेश्वरी गली , संकठा मंदिर मार्ग , चौक वाराणसी ।
पता - सिद्धेश्वरी गली , संकठा मंदिर मार्ग , चौक वाराणसी ।
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===== Siddheshwari devi n chandreshwer n chandrakoop(kashikhandokt) ईशानेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त मंदिर) =====
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=== ईशानेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ===
सोमवारी चतुर्दशी यात्रा
सोमवारी चतुर्दशी यात्रा
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ईशानेश्वर लिंग महिमा
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===== ईशानेश्वर लिंग महिमा =====
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अल्कयाः पुरो भागे पुरैशाणि महोदया। अस्यां वसन्ति सततं रुद्र भक्तास्त पोधानाः॥(काशी खण्ड)
अल्कयाः पुरो भागे पुरैशाणि महोदया। अस्यां वसन्ति सततं रुद्र भक्तास्त पोधानाः॥(काशी खण्ड)
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पता- शाहपुरी मॉल , बांसफाटक मार्ग , गोदौलिया , वाराणसी ।
पता- शाहपुरी मॉल , बांसफाटक मार्ग , गोदौलिया , वाराणसी ।
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===== गंगा तिरस्त श्री महालक्ष्मी(काशी खण्डोक्त मंदिर) =====
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=== गंगा तिरस्त श्री महालक्ष्मी(काशी खण्डोक्त) ===
भाद्र कृष्ण पक्ष नवमी काशी खण्ड वार्षिक यात्रा
भाद्र कृष्ण पक्ष नवमी काशी खण्ड वार्षिक यात्रा
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पता -केदारघाट पर श्री गौरी केदारेश्वर मंदिर के मेन गेट के थोड़ा पहले यह मंदिर है , लोहे के गेट के अंदर धर्मशाला में ।
पता -केदारघाट पर श्री गौरी केदारेश्वर मंदिर के मेन गेट के थोड़ा पहले यह मंदिर है , लोहे के गेट के अंदर धर्मशाला में ।
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===== कृष्णेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त मंदिर) =====
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=== कृष्णेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
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भाद्र कृष्ण पक्ष जन्माष्टमी दर्शन
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भाद्र कृष्ण पक्ष (जन्माष्टमी दर्शन)
जब श्री कृष्ण पांडवो के साथ शिव लिंग स्थापना के उद्देश्य से काशी में आये थे और कृष्णेश्वर नामक लिंग की स्थापना किया , इस लिंग के पूजन अर्चना करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
जब श्री कृष्ण पांडवो के साथ शिव लिंग स्थापना के उद्देश्य से काशी में आये थे और कृष्णेश्वर नामक लिंग की स्थापना किया , इस लिंग के पूजन अर्चना करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
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पता - संकटा घाट (सिंधिया घाट के पास) के पीछे वाली गली में ck 7/159
पता - संकटा घाट (सिंधिया घाट के पास) के पीछे वाली गली में ck 7/159
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==== लक्ष्मणेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त वार्षिक यात्रा) ====
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=== लक्ष्मणेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ===
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बलराम जयंती हल षष्टी
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बलराम जयंती हल षष्टी (वार्षिक यात्रा)
हिन्दी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल छठ, हल षष्ठी या बलराम जयंती मनाई जाती है। हल षष्ठी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। बलराम जी का जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पूर्व होता है। इस वर्ष हल षष्ठी या बलराम जयंती 28 अगस्त दिन शनिवार को है, जबकि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त दिन सोमवार को है।
हिन्दी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल छठ, हल षष्ठी या बलराम जयंती मनाई जाती है। हल षष्ठी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। बलराम जी का जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पूर्व होता है। इस वर्ष हल षष्ठी या बलराम जयंती 28 अगस्त दिन शनिवार को है, जबकि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त दिन सोमवार को है।
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हल षष्ठी का महत्व
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===== हल षष्ठी का महत्व =====
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बलराम जयंती, हल छठ या हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। यह निर्जला व्रत महिलाएं रखती हैं। हल षष्ठी के दिन व्रत रखते हुए बलराम जी और हल की पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बलराम जयंती, हल छठ या हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। यह निर्जला व्रत महिलाएं रखती हैं। हल षष्ठी के दिन व्रत रखते हुए बलराम जी और हल की पूजा की जाती है।
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मान्यताओं के अनुसार बलराम जी को भगवान विष्णु के शेषनाग का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण शेषनाग का अवतार ही थे। इसी प्रकार द्वापर में जब भगवान विष्णु धरती पर श्री कृष्ण अवतार में आए तो शेषनाग भी यहां उनके बड़े भाई के रूप में अवतरित हुए। शेषनाग कभी भी भगवान विष्णु के बिना नहीं रहते हैं। इसलिए वह प्रभु के हर अवतार के साथ स्वयं भी आते हैं।
मान्यताओं के अनुसार बलराम जी को भगवान विष्णु के शेषनाग का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण शेषनाग का अवतार ही थे। इसी प्रकार द्वापर में जब भगवान विष्णु धरती पर श्री कृष्ण अवतार में आए तो शेषनाग भी यहां उनके बड़े भाई के रूप में अवतरित हुए। शेषनाग कभी भी भगवान विष्णु के बिना नहीं रहते हैं। इसलिए वह प्रभु के हर अवतार के साथ स्वयं भी आते हैं।
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काशी में बलराम जयंती के दिन #लक्ष्मणेश्वर_शिव लिंग की वार्षिक यात्रा होती है , लक्ष्मण और बलराम दोनों ही शेषनाग के अवतार है , और काशी में लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लिंग के दर्शन करने से लक्ष्मण , बलराम और शेषनाग तीनो की ही कृपा प्राप्त हो जाती है।
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काशी में बलराम जयंती के दिन लक्ष्मणेश्वर शिव लिंग की वार्षिक यात्रा होती है , लक्ष्मण और बलराम दोनों ही शेषनाग के अवतार है , और काशी में लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लिंग के दर्शन करने से लक्ष्मण , बलराम और शेषनाग तीनो की ही कृपा प्राप्त हो जाती है।
यहां दर्शन करने से भातृ भक्ति और धैर्य धारण की शक्ति बढ़ती है और साथ में सभी पापो से मुक्ति भी मिलती है।
यहां दर्शन करने से भातृ भक्ति और धैर्य धारण की शक्ति बढ़ती है और साथ में सभी पापो से मुक्ति भी मिलती है।
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पता-बंगाली टोला के पास हनुमान घाट पर
पता-बंगाली टोला के पास हनुमान घाट पर
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==== संगमेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ====
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=== संगमेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ===
गङ्गा और वरुणा नदी क सङ्गं मे स्थित यह लिङ्ग की पूजा अर्चना करने से सभी पाप कट जाते है और शास्त्रो में ऐसा वर्णीत है कि यहां रुद्राभिषेक करने से गौदान का फल प्राप्त होता है और इस तीर्थ पर अन्नदान का भी बहुत महात्म्य है ।
गङ्गा और वरुणा नदी क सङ्गं मे स्थित यह लिङ्ग की पूजा अर्चना करने से सभी पाप कट जाते है और शास्त्रो में ऐसा वर्णीत है कि यहां रुद्राभिषेक करने से गौदान का फल प्राप्त होता है और इस तीर्थ पर अन्नदान का भी बहुत महात्म्य है ।
Line 872:
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पता- आदिकेशव मंदिर A 37/41 आदिकेशव घाट वरुणा संगम ।
पता- आदिकेशव मंदिर A 37/41 आदिकेशव घाट वरुणा संगम ।
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सिद्धि विनायक वा सिद्धि लक्ष्मी( काशी खण्डोक्त मंदिर)
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=== सिद्धि विनायक वा सिद्धि लक्ष्मी(काशी खण्डोक्त) ===
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संकष्टी चतुर्थी
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===== संकष्टी चतुर्थी =====
काशी के श्रेष्ठतम तीर्थ मणिकर्णिका पर स्थित सिद्धि विनायक और सिद्धि लक्ष्मी के मंदिर में भक्तों की फरियाद तुरन्त सुनी जाती है ।
काशी के श्रेष्ठतम तीर्थ मणिकर्णिका पर स्थित सिद्धि विनायक और सिद्धि लक्ष्मी के मंदिर में भक्तों की फरियाद तुरन्त सुनी जाती है ।
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यहां ऐसी मान्यता है कि गणेश_अथर्वश्रीर्ष का पाठ करने से 1000 गुना ज्यादा फल मिलता है और सिद्धि लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कनक धारा स्तोत्र पढ़ने का विधान चला आरहा है ।
यहां ऐसी मान्यता है कि गणेश_अथर्वश्रीर्ष का पाठ करने से 1000 गुना ज्यादा फल मिलता है और सिद्धि लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कनक धारा स्तोत्र पढ़ने का विधान चला आरहा है ।
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==== जागेश्वर महादेव या अग्नि ध्रुवेश्वर लिंग ====
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=== जागेश्वर महादेव या अग्नि ध्रुवेश्वर लिंग ===
==== ईश्वर गंगी पोखरा या अग्नि कुंड ( आदि गंगा) ====
==== ईश्वर गंगी पोखरा या अग्नि कुंड ( आदि गंगा) ====
यह शिव लिंग और कुंड दोनों काशीखंड में वर्णीत है (अर्थात काशी खण्डोक्त है )
यह शिव लिंग और कुंड दोनों काशीखंड में वर्णीत है (अर्थात काशी खण्डोक्त है )
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भाद्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा आज के दिन 23/8/21 यहां की वार्षिक यात्रा होती है , वार्षिक यात्रा के अंतर्गत लिंग दर्शन , पूजन , एवं रुद्राभिषेक का बहुत महात्म्य है । यह जागेश्वर नामक लिंग जो कि स्वयम्भू लिंग हैं । यहां जो कोई भी स्त्री पुरुष अपनी मनोरथ ले कर जाते है सभी पूर्ण होती है ।
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भाद्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा आज के दिन यहां की वार्षिक यात्रा होती है , वार्षिक यात्रा के अंतर्गत लिंग दर्शन , पूजन , एवं रुद्राभिषेक का बहुत महात्म्य है । यह जागेश्वर नामक लिंग जो कि स्वयम्भू लिंग हैं । यहां जो कोई भी स्त्री पुरुष अपनी मनोरथ ले कर जाते है सभी पूर्ण होती है ।
इस प्रकार का बड़ा स्वयम्भू लिंग काशी में बहुत दुर्लभ और अन्यत्र कही भी नही है । कुछ लोगो का मानना है कि ऋषि जैगीषव्य द्वारा पूजित होने के कारण इनका नाम जागेश्वर पड़ा है , ऋषि जैगीषव्य वही है जिन्होंने शिव जी के काशी छोड़ के कर चले जाने पर अन्न जल त्याग दिया था और योग तपस्या में लीन होगये थे जिस गुफा में उन्होंने कठोर तप किया वह आज भी इस मंदिर के पीछे स्थित है और जैगीषव्य गुहा नाम से जाना जाता है । अब यह गुफा पाताल पूरी मठ में है ।
इस प्रकार का बड़ा स्वयम्भू लिंग काशी में बहुत दुर्लभ और अन्यत्र कही भी नही है । कुछ लोगो का मानना है कि ऋषि जैगीषव्य द्वारा पूजित होने के कारण इनका नाम जागेश्वर पड़ा है , ऋषि जैगीषव्य वही है जिन्होंने शिव जी के काशी छोड़ के कर चले जाने पर अन्न जल त्याग दिया था और योग तपस्या में लीन होगये थे जिस गुफा में उन्होंने कठोर तप किया वह आज भी इस मंदिर के पीछे स्थित है और जैगीषव्य गुहा नाम से जाना जाता है । अब यह गुफा पाताल पूरी मठ में है ।
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पता- आदर्श इंटर मीडिएट स्कूल के पास ईश्वर गंगी रोड वाराणसी ।
पता- आदर्श इंटर मीडिएट स्कूल के पास ईश्वर गंगी रोड वाराणसी ।
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==== आदि महादेव या (काशी खण्डोक्त) ====
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=== आदि महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
श्रावण शुक्ल चतुर्दशी दर्शन वार्षिक यात्रा
श्रावण शुक्ल चतुर्दशी दर्शन वार्षिक यात्रा
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महादेव लिंग का महात्म्य
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===== महादेव लिंग का महात्म्य =====
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वृन्दार्षि वृन्दनां स्तुवतां प्रथमे युगे। उत्पन्नं यन्महालिङ्गं भूमिं भित्वा सुदुर्भिदाम॥
वृन्दार्षि वृन्दनां स्तुवतां प्रथमे युगे। उत्पन्नं यन्महालिङ्गं भूमिं भित्वा सुदुर्भिदाम॥
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पता - त्रिलोचन घाट पर त्रिलोचन मंदिर के पीछे आदि महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है ।
पता - त्रिलोचन घाट पर त्रिलोचन मंदिर के पीछे आदि महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है ।
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==== श्री वृषभध्वजेश्वर महादेव(काशीखण्डोक्त मंदिर) ====
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=== श्री वृषभध्वजेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ===
शिव जी का पुनः काशी में आगमन का क्षेत्र
शिव जी का पुनः काशी में आगमन का क्षेत्र
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शृणु विष्णु महाबाहो शृणु त्वं च पितामह। ऐतस्मिन कापिले तीर्थे कपिलेय् पयोभृते॥
शृणु विष्णु महाबाहो शृणु त्वं च पितामह। ऐतस्मिन कापिले तीर्थे कपिलेय् पयोभृते॥
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ये पिन्न्दाणि वर्पिष्यन्ति श्रध्या श्राध्नानतः। तेषां पित्रणां संतृप्ति भर्विष्यते ममाज्ञा॥ (काशी_खण्ड्)
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ये पिन्न्दाणि वर्पिष्यन्ति श्रध्या श्राध्नानतः। तेषां पित्रणां संतृप्ति भर्विष्यते ममाज्ञा॥ (काशी खण्ड)
हे महाबाहो , विष्णु , है पितामह , ब्राह्मण सब लोग श्रवण करो जो लोग कपिलाओ के दूध से भरे हुवे इस कपिलातीर्थ मे श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध और विधान से पिंडदान करेंगे , मेरी आज्ञा के अनुसार उनके पितृ लोगो की पूर्ण तृप्ति हो जावेगी ।
हे महाबाहो , विष्णु , है पितामह , ब्राह्मण सब लोग श्रवण करो जो लोग कपिलाओ के दूध से भरे हुवे इस कपिलातीर्थ मे श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध और विधान से पिंडदान करेंगे , मेरी आज्ञा के अनुसार उनके पितृ लोगो की पूर्ण तृप्ति हो जावेगी ।
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पता - सलारपुर में कपिलधारा नाम से प्रसिद्ध है ।
पता - सलारपुर में कपिलधारा नाम से प्रसिद्ध है ।
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=== त्रिलोचन महादेव (काशीखण्डोक्त) ===
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=== त्रिलोचन महादेव (काशी खण्डोक्त) ===
त्रिलोचन महादेव (विरजा क्षेत्र जाजपुर ओडिशा)
त्रिलोचन महादेव (विरजा क्षेत्र जाजपुर ओडिशा)
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देवों के देव महादेव श्री काशी विश्वनाथ जीके दर्शन करने से ब्रह्म हत्या आदि पापों का नाश होता है तथा काशी में प्राण त्याग कर मोक्ष प्राप्त होता है ।
देवों के देव महादेव श्री काशी विश्वनाथ जीके दर्शन करने से ब्रह्म हत्या आदि पापों का नाश होता है तथा काशी में प्राण त्याग कर मोक्ष प्राप्त होता है ।
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=== चतुःषष्ठेश्वर महादेव(काशीखण्डोक्त) ===
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=== चतुःषष्ठेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ===
चौंसठ योगिनियों के द्वारा ये स्थापित लिंग काशी के प्राचीन लिंगो में से एक है ।प्राचीन काल में चौसठ योगिनी यात्रा में सर्वप्रथम यही से संकल्प ले कर यात्रा होती थी ।
चौंसठ योगिनियों के द्वारा ये स्थापित लिंग काशी के प्राचीन लिंगो में से एक है ।प्राचीन काल में चौसठ योगिनी यात्रा में सर्वप्रथम यही से संकल्प ले कर यात्रा होती थी ।
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<nowiki>https://maps.app.goo.gl/U8Z22PBVDx9RfV1GA</nowiki>
<nowiki>https://maps.app.goo.gl/U8Z22PBVDx9RfV1GA</nowiki>
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मोक्षद्वारेश्वर लिंग (काशी खण्डोक्त)
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=== मोक्षद्वारेश्वर लिंग (काशी खण्डोक्त) ===
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ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी को इनका दर्शन होता है। लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है ।
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वृषेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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आगादिह महादेवो वृषेशो वृषभध्वजात् ।
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बाणेश्वरस्य लिङ्गष्य समीपे वृषदः सदा ।।
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(#काशीखण्ड्)
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~धर्मप्रद लिंग वृषेश्वर , जो कि वृषभध्वज तीर्थ से यहाँ आकर बाणेश्वर महादेव के समीप में सदैव शोभायान रहते है ।
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काशी में वृषेश्वर लिंग का स्थापना महादेव के परम भक्त नंदी द्वारा किया गया है।
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काशीखण्ड पुराण के हिसाब से वृषेश्वर लिंग वृषभध्वज तीर्थ से काशी में नन्दी जी के आग्रह पर आये थे । वृषेश्वर के दर्शन पूजन से वृषभध्वजेश्वर महादेव के दर्शन का फल मिलता है।
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(वृषभध्वजेश्वर लिंग काशी से कुछ दूर सलारपुर - कपिलधारा पर स्थित है)
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काशी में वृषेश्वर लिंग का प्रादुर्भाव नंदी के द्वारा हुआ है ।
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वृषेश्वर लिंग चतुर्दश लिंगो में से एक है जिसकी दर्शन यात्रा करने से मुक्ति अवश्य ही मिलती है ।
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आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी तिथि को इनकी यात्रा का प्रावधान है।
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वृषेश्वर लिंग का स्थान उत्तर दिग्देव यात्रा के 201 शिव लिंगो में भी है , इस यात्रा को करने से समस्त जन्मों के पाप कट कर मोक्ष मिल जाता है ।
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प्राचीन समय मे यहां वृषेश नामक कूप(कुँवा) भी था जिसका पता अब नही लगता पर मंदिर प्रांगण में एक कूप है जिसको वृषेश कूप से जोड़ कर देखा जा सकता है । यहां श्राद्ध तर्पण करने का भी बहुत फल मिलता है ।
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पता- k 58/78 गुरु गोरखनाथ का टीला , मैदागिन , वाराणसी।
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इस मंदिर से थोड़ा पहले बाणेश्वर महादेव का भी मन्दिर है।
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<nowiki>#</nowiki>अत्युग्रह_नरसिंह #काशीखण्डोक्त
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अतिउग्र नरसिंह यह नरसिंह भगवान का रूप काशी में बहुत ही उग्र रूप से निवास करते है । काशी और काशीवासियो की सदैव रक्षा करते रहते है ।
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इस तीर्थ के बारे में भगवान माधव विष्णु ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा था कि :--
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अतिउग्र नरसिंहोःहं कल्शेश्वर पश्चिमे।
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अत्युग्रमपि पापोघं हरामि श्रध्यार्चितः।।
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कल्शेश्वर शिव लिङ्ग के पश्चिम भाग में मैं अत्युग्रह नरसिंह के नाम से राहत हूं । श्रद्धा से उनका पूजन करने पर बड़ी उग्र पापराशि (जो अक्षय कर्मो के बाद भी इंसान को दुख देती है और पीछा नही छोड़ती) को भी दूर कर देता हूं ।
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पता -ck 8/21 गौमठ (संकठा जी मन्दिर मार्ग के पास) , चौक , वाराणसी
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<nowiki>#</nowiki>श्री_ब्रह्मनालेश्वर_महादेव #काशीखण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>नाभितीर्थ #नाभितीर्थेश्वर
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काशी में चौक के ब्रह्मनाल मोहल्ले से मणिकर्णिका मार्ग पर जाने वाले मार्ग पर यह स्वयंभू शिवलिंग है , प्राचीन समय पर यहां इसी लिंग के आस पास कही ब्रह्मनाल तीर्थ (कुंड) भी था जो अब लुप्त होगया है । काशीखण्ड में ऐसा वर्णन है कि ब्रह्माल तीर्थ में स्नान करने से करोड़ो जन्म के पाप नष्ट होजाते है । स्वर्गीय पण्डित केदारनाथ व्यास जी के पुस्तक के अनुसार इनको अविमुक्तेश्वर नाम से भी बताया गया है ।
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यह मंदिर विश्व्नाथ कॉरिडोर की जद में आने से अभी तक तोह बचा हुआ है , आगे इस स्वयंभू शिव लिंग का क्या होगा इसका कोई अनुमान नही है यह बचेंगे या उखाड़ दिए जाएंगे ।
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काशी में ब्रह्मनाल मोहल्ला इनके ही नाम पर पड़ा हुआ है पर समय का फेर कह लीजिए या बदकिस्मती उस मोहल्ले के कुछ ही लोग इस प्राचीन शिव लिंग के बारे में जानते है और उनकी तरफ से यहां साफ सफाई और पूजा की कोई व्यवस्था नही दी जाती ।
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यदि हम दिखावे से दूर होकर अपने आस पास के मंदिरों का ध्यान साफ सफाई रखते है तोह यह बहुत सौभाग्य प्रद है।क्योंकि भगवान शिव काशी के सभी लिंगो में एक स्वरूप वास करते है ।
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<nowiki>#</nowiki>श्री_काशी_विश्वनाथ_महिमा
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न विश्वानाथस्य समं हि लिङ्गं न तिर्थमन्यमणिकर्निकातः।
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तपोवन कुत्रचिदस्ति नान्यच्छुभं ममाःनन्दवनेन तुल्यं ।।
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विश्वेशे परमान्नं यो दद्याद्दपर्णं चारुचामरं ।
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त्रयलोकयं तर्पितम् तेन सदेवपृतमानवं ।।
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यस्तु विश्वेश्वरं दृष्ट्वा ह्यन्यत्राःपि विपद्यते।
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तस्य जन्मान्तरे मोक्षो भवत्येव न संशयः।।
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(#काशीखण्ड्)
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विश्वनाथ के समान लिंग और मणिकर्णिका के तुल्य तीर्थ और मेरे शुभमय आनंदवन(काशी) के सदृश तपोवन दूसरा कही भी नही है।
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जो कोई विश्वनाथ लिंग के ऊपर घृत और शक्कर के सहित उत्तम पकवान चढ़ता है , वह देवता , पितर , और मनुष्य के सहित त्रयलोक्य भर को तृप्त करदेता है (त्रयलोक्य भर के तीर्थ तृप्त होजाते है)।
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जो कोई विश्वनाथ जी की दर्शन करने के उपरांत कही अन्यस्थान में भी जा कर मरता है तोह , विश्वनाथ जी की कृपा से अगले जन्म में निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त होता है ।
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~ इसीलिए तोह कहते है कि ~
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विश्व्नाथ सम लिंग नहीं , नगर न काशी समान ।
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मणिकर्णिका सो तीर्थ नहीं , जग में कतहूँ महान ।।
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मानुष तन वह धन्य है , विश्वनाथ को जो देख ।
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जन्म लिए कर विश्व मे , एक यही फल लेख ।।
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<nowiki>#</nowiki>जैगीषव्येश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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भूत भैरव मुहल्ला (करनघन्टा नखास मार्ग ) वाराणसी
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अत्र जयेष्ठेश्वरक्षेत्रे त्वल्लिङ्गं सर्वसिद्धिदं ।
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नाशयेदघसंघानि दृष्टं स्पृष्टं समर्चितम् ।।
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अस्मिन् ज्येष्ठेश्वरक्षेत्रे संभोज्य शिवयोगिनः।
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कोटिभोज्यफलं सम्यगेकैकपरिसंख्यया।।
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करिष्याम्यत्र सान्निध्यमस्मिलिन्ङ्गे ।
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योगसिद्धिप्रदानाय साध्केभ्यः सदैव हि ।।
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इस ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र में यह लिंग सभी सिद्धियो का दाता है , इसके दर्शन और स्पर्श और पूजन से सभी पाप नष्ट होजाते है । इस ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र में एक एक शिव योगियो को भोजन कराने से करोड़ करोड़ जन को भोजन कराने का पूर्ण फल प्राप्त होता है। मैं साधक लोगो को सिद्धि दान करने के लिए सदैव इस लिंग में बना रहूंगा ।
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<nowiki>#</nowiki>प्राचीन_समय_की_बात_है
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जब शिव जी दिवोदास के याचना के अनुसार , ब्रह्मा जी के कहने पर काशी छोड़कर मंदरांचल चले गए थे , तभी से "#जैगीषव्य" नामक महामुनि काशी के प्रसिद्ध तीर्थ गंभीर गुहा में अन्न जल त्याग कर शिवलिंग स्थापित करके तपोलीन होगये थे । मुनि की प्रतिज्ञा थी कि भवानी नाथ के पुनः काशी में दर्शन होने पर ही वे अन्न जल ग्रहण करेंगे ।
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शिव जी को यह बात काशी छोड़ते ही पता चल गई थी , इसीलिए तोह शिव जी का काशी में पुनः वापस लौट आने की प्रबल इक्षा थी जिसको उन्होंने अभी विधि से पूर्ण कर ही लिया।
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काशी पुनः लौट कर शिव जी ने सर्व प्रथम नंदीश्वर को जैगीषव्य मुनि के पास जाने का आदेश दिया और कहा कि --
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हे नंदिन ! यहां पर एक मनोहर गुहा है , उसमें तुम घुस जाओ ,उसके भीतर मेरा एक भक्त जैगीषव्य नाम से तपोरत है कठोर तपस्यारत होने के कारण उनका शरीर हाड़ (हड्डी) के तरह होगया है ।
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अतः तुम अमृत समान पोषक इस लीला कमल (दुर्लभ फूल) को लेलो , जिसके स्पर्श कराने मात्र से उनका शरीर फिर से युवावस्था जैसा होगया और नंदी ने उनको उठा कर शिव जी के चरणों के आगे प्रस्तुत करदिया ।
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अपने इष्ट और माता को सामने देख कर मुनि ने भूमि में दंडवत करते हुवे अनगिनत तरीके से शिव स्तुति करने लगे । तब चंद्रभूषण ने उस मुनि की ऐसे स्तुति को सुनने से प्रसन्नचित होकर जैगीषव्य मुनि से अनुकूल वर मांगने को कहा
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जिसमे उनका पहला वर था कि , यदि आप प्रसन्न है तोह मुझे कभी अपने चरण कमल से दूर मत होने दीजिए और दूसरा वर भी बिना विचार दे दीजिए जिसमे मेरे द्वारा स्थापित लिंग में आप सर्वदा वास् करें ।
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शिव जी ने तथास्तु बोल कर एक वर अपने पास से और दे और कहा कि आज में मैं तुमको निर्माण साधक योगशास्त्र दान करता हूं , तुम आज से समस्त योगियों के मध्य मव योगाचार्य होंगे , मेरे प्रेम प्रसाद से तुम योगशास्त्र के सम्पूर्ण गुढ़ तत्वों को यथार्थ रीति से ऐसा समझ सकोगे जिसके अंत मे निर्वाण को प्राप्त होजाओगे जैसे नंदी , भृंगी , और सोमनन्दी हैं वैसे तुम भी जरा मरण से रहित मेरे परम भक्त होजावोगे ।
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+
यह जो तुमने तप किया है वह सभी तपो में बड़ा कठिन है , तुमने जिस बड़े नियम का अनुष्ठान किया , उसके समक्ष कोई भी नियम अथवा यम नही पहुँच सकते । अतएव तुम मेरे चरणों के समीप में सदैव वास् करोगे और वही पर निःसंदेह तुमको अंत मे निर्वाणपद प्राप्त होगा ।
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काशी में परमदुर्लभ इस जैगीषव्येश्वर नामक लिंग के तीन वर्ष तक सेवा करने से निश्चित ही योग प्राप्त हो जाता है ।
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<nowiki>#</nowiki>कंदुकेश्वर_महादेव #काशीखण्डोक्त
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भूत भैरव मुहल्ला , (करनघन्टा नखास मार्ग) वाराणसी।
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मृडानी तस्य लिङ्गस्य पूजां कुर्यात्सदैव हि ।
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तत्रैव देव्याः सान्निध्यं पार्वत्या भक्तसिद्धिदम् ।।
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(#काशीखण्ड)
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पार्वती देवी प्रतिदिन इस लिंग की पूजा करती है और वहां पर वर्तमान रहकर भक्त लोगों को सिद्धि प्रदान करती है ।
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<nowiki>#</nowiki>कंदुकेश्वर लिंग कंदुक (गेंद) से प्रकट हुआ है ।
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एक समय की बात है काशी के ज्येष्ठेश्वर लिंग के पास में महेश्वर (शिव) विहार कर रहे थे और माता भगवती (भवानी) गेंद से(कंदुक से) खेल रहीं थी ।
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उसी समय पर ब्रह्मा के वरदान से त्रिलोक भर के पुरुषों को तृण के समान समझने वाले , अपने भुजबल से दर्पित , आकाशचारी , विदल और उतपल नमक दो दैत्य अपने मृत्यु के निकट आजाने पर माता जगदंबा देवी को देखते ही मोहित होकर उनको हर ले जाने की इक्षा करते हुवे शाम्बरी माया को धारण कर तुरन्त ही गगनमण्डल से शिव पार्षद का रूप बना कर नीचे धरती पर उतर कर माँ जगदंबा के पास आगये।
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तभी सर्वज्ञ भगवान ने उनदोनो को उनकी आँखों के चुलबुलाहट से ही पहचान कर जगदंबा देवी को इशारे मात्रा से सचेत कर के मुस्कुरा पड़े ।
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बस फिर क्या था , सर्वज्ञ शिव की अर्धांगिनी ने भगवान शिव की नेत्रचेष्टा को समझ कर तुरन्त ही उसी गेंद (कंदुक)से एक साथ ही उन दोनों दैत्यों को मार दिया ।
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जगदंबा के क्रीड़ा कंदुक(गेंद) की चोट से घायल होते ही वे दोनों दैत्य चक्कर खा खाकर , डाली से पके फल के समान(हास्यास्पद तरीके से) तुरन्त ही गिर पड़े ।
+
+
इसके बाद वह गेंद (कंदुक) उन पापी दैत्यों को मार कर वही पर लिंगरूप में परिणित हो गया ,तब से सभी दुष्टों का निवारण करने वाला यह लिंग कंदुकेश्वर नाम से प्रसिद्ध होगया।
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+
जो कोई कंदुकेश्वर की इस उत्पत्ति को सुनेगा और प्रसन्न मन से उनका पूजन करेगा , उसे पुनः किसी दुख का भय नही रहेगा ।
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+
कन्दुकेश्वरभक्तानां मानवानां निरेनसाम् ।
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योगक्षेमं सदा कुर्याद् भवानि भयनाशिनी ।।
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+
(#काशीखण्ड)
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समस्त भयनशिनी स्वयं भवानी ही कंदुकेश्वर के निष्पाप भक्तलोगों का सैदेव योगक्षेम करती रहती है ।
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+
जिन लोगो ने कंदुकेश्वर नामक महालिंग की पूजा ही नही की , तोह भला शिव और पार्वती जी उन सबके अभीष्ट फल कैसे दे सकते हैं ।
+
+
कंदुकेश्वर का नाम सुनते ही पापपुंज ऐसे शीघ्र क्षय होने लगते है , जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार दूर हो जाता है ।
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+
<nowiki>#</nowiki>काल_भैरव #काशीखण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>वार्षिक_रुद्राक्ष_सृंगार_महोत्सव
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<nowiki>#</nowiki>चतुर्दशी_दर्शन 18/12/21
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काशी में मैदागिन से विशेश्वरगन्ज मार्ग पर अति प्रसिद्ध मंदिर
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अष्टम्यां च चतुर्दश्यां रविभुमिजवासरे |
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यात्रां च भैरवी कृत्वा कृतेः पापै प्रमुच्यते ||
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यत्किञ्चिदशुभं कर्म कृतं मानुषबुद्धितः |
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तत्सर्व विलयं याति कालभैरवं दर्शनात् ||
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अनेकजन्मनियुतैयर्त्कृतं जन्तुभिस्त्वघं |
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तत्सर्व विलयत्याशु कालभैरव दर्शनात् ||
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(#काशीखण्ड)
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रवि और मंगलवार तथा अष्टमी एवं चतुर्दशी तिथि को कालभैरव की यात्रा करने से समस्त पापों से छुट जाता है ।
+
+
कालभैरव के दर्शन करने से जो कुछ भी अशुभ कर्म मानव बुद्धि से किया गया हो , वह अब भस्म हो जाता है ।
+
+
कालभैरव के दर्शन करने से लोगो के अनेक जन्म का संचित पाप अतिशीघ्र ही विलीन हो जाता है ।
+
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तीर्थे कलोदके स्नात्वा कृत्वा तर्पण मत्वरः |
+
+
विलोक्य कालराजं च निरया दुद्धरेत् पीतृन् ||
+
+
(#काशीखण्ड्)
+
+
कालोदक तीर्थ में (जो कि काल भैरव के मंदिर में ही है) स्थिरता पूर्वक स्नान तर्पण करके फिर कालराज(कालभैरव) का दर्शन करने से मनुष्य अपने पितरों का नरक से उद्धार कर देता है ।
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<nowiki>#</nowiki>कपर्दीश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त_लिंग
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<nowiki>#</nowiki>पिशाच_मोचन #विमल_कुंड #विमलोदक_महातीर्थ
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<nowiki>#</nowiki>अगहन_शुक्ल_चतुर्दशी_यात्रा
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<nowiki>#</nowiki>लोटा_भंटा_मेला
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मार्गशीर्ष 17 /12/21
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ब्रह्महत्यादयः पापाः विनश्यन्त्यस्य् पूजनात |
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पिशाच मोचने कुण्डे स्नातः स्यात्प्रश मोर्यतेः ||
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(#पद्मपुराण)
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कपर्दीश्वर के पूजन से ब्रह्म हत्या का पाप दूर होता है ,यदि वह पिशाचमोचन कुंड में स्नान करके दर्शन करता है तोह उस व्यक्ति के पितृगण मुक्त होजाते है ।
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कपर्दी नामक गणपः शम्भोरत्यन्त वल्लभः |
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पित्रिशादुत्तरे भागे लिङ्गं संस्थापय शाम्भवं ||
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कुण्ड चखान तस्याग्रे विमलोदकसंज्ञकम् |
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+
यस्य तोयस्य सम्स्पर्शाद्विमलो जायते नरः |
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+
(#काशीखण्ड)
+
+
महादेव का बड़ा प्यारा गणों में प्रधान एक गण कपर्दी नामक है , जिसने पितृश्वर के उत्तर भाग में कपर्दीश्वर शिव लिंग की स्थापना की थी , साथ ही उन्होंने विमलोदक कुंड भी खोद दिया था । इस कुंड के जल का स्पर्श करने से मनुष्य की मलिनता छूट जाती है ।
+
+
पिशाचमोचने तीर्थे संभोज्य शिवयोगिनम् |
+
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कोटि भोज्यफ़लम् सम्यगेकैकपरिसंख्यया ||
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+
(#काशीखण्ड्)
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इस पिशाच मोचन तीर्थ पर एक एक शिवयोगी के भोजन कराने से करोड़ करोड़ सन्यासी खिलाने के फल पूर्ण रीति से प्राप्त होता है ।
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अघ शुक्लचतुर्दश्यां मार्गे मासि तपोनिधे |
+
+
अत्र स्नानादिक कार्य पिशाच्य परिमोचनं ||
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इमां सांवत्सरी यात्रां ये करिष्यन्ति ते नराः |
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तीर्थःप्रतिग्रहात्पपान्निःसरिष्यन्ति ते नराः ||
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+
(#काशीखण्ड)
+
+
आज अगहन मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दसी है , आज के दिन यहां पर स्नानदिक करने से पिशाच्योनि का मोचन होजाता है।
+
+
जो लोग आज की दिन अगहन शुक्ल चतुर्दसी के दिन प्रतिवर्ष यहां की यात्रा करेंगे , वे सब तीर्थ में दान लेने के पाप से हमेशा के लिए मुक्त होजाएंगे ।
+
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पिशाच मोचन पर स्नान तथा कपर्दीश्वर के पूजन एवं वहां अन्न दान करदेने से मनुष्य सर्वत्र निर्भय रहता है ।
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+
अगहन शुक्ल चतुर्दशी के दिन कपर्दीश्वर के समीप पिशाच मोचन में स्नान करलेने से व्यक्ति जहां कही भी मारे पिशाच नही होना पड़ता।
+
+
<nowiki>#</nowiki>कथा
+
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<nowiki>#</nowiki>त्रेता युग के समय एक वाल्मीकि नामक परम् शिव भक्त हुवा करते थे जो कि कपर्दीश्वर लिंग के पूजा और विमलोदक कुंड में नित्य स्नान , ध्यान करते थे । एक दिन उनको एक बहुत भयंकर राक्षस(पिशाच) दिखा जो कि बहुत ज्यादा भयावह था उस डरावने पिशाच को देख कर बड़ी धीरता से उस बूढ़े तपस्वी ने पूछा कि तुम कोन हो ? कहाँ से आये हो ? निर्भय हो कर बताओ क्योंकि जो तपस्वी शिव सहस्त्रनाम को जपते है तथा विभूति लगाते है उनको किसी से डर नही मैं निर्भीक हु तुम भी निर्भीक होकर कहो ।
+
+
फिर पिशाच ने अपना वृतांत सुनाया
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+
गोदावरी नदी के तीर के तीर्थ पर मैं दान लेने वाला ब्राह्मण था , जो लोग तीर्थ में दान तोह ले लेते है पर तिथि पड़ने पर स्वयं कुछ दान नही करते उन्ही लोगो को पिशाच योनि भोगनी पड़ती है यही मेरे पिशाच होने का कारण है ।
+
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बहुत पहले मैंने एक दुर्बुद्धि लड़के के शरीर मे निवास बनाया था पर वह ब्राह्मण कुमार किसी बनिया के साथ लोभवश काशी में आगया जिससे मैं काशी की सीमा पर ही उसके शरीर से निकल कर गिर पड़ा क्योंकि काशी में किसी पिशाच के लिए कोई जगह नही है , मैं और उसके सभी पाप काशी के सीमा पर ही रुक कर उसका इंतज़ार करने लगे ।
+
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कुछ समय पश्चात एक सन्याशी के मुख से शिव नाम सुन कर कुछ मेरे पाप कम होगये जिससे मैं काशी में प्रवेश कर गया और अंतरगृही के सीमा पर मुझे रुकना पड़ गया और सन्यासी अंदर चला गया । पिशाच की स्थिति देख कर वाल्मीकि नामक बूढ़े तपस्वी को बहुत दया आई और पिशाच के पापों को अपने तपस्या से दूर करने का संकल्प लिया और पिशाच को विमलोदक कुंड में नहाने को कहा जिससे उसका पाप तत्काल नष्ट होजाये ।
+
+
और कहा कि इस तीर्थ में स्नान और कपर्दीश्वर के दर्शन से तेरी पिशाच योनि तत्काल क्षीण होकर नष्ट होजाएगी । तपस्वी की बात सुन कर पिशाच ने कहा कि जल के अधिष्ठाता देवतालोग हमेशा जल की रक्षा करते है , जिससे मुझे न जल पीने को मिलता है ना ही छूने को , नहाने की बात ही क्या है मेरे लिए नामुमकिन सा है इतना सुन कर उस तपस्वी ने पिशाच के माथे पर विभूति लगाने को दिया उसी क्षण पिशाच ने विभूति को अपने माथे पर मल कर विमलोदक कुंड में उतर गया जहाँ विभूति के प्रभाव से किसी भी जल के रक्षक ने आपत्ति नही की , जल में स्नान और पान करने से तुरन्त ही उसकी पिशाच योनि छूट गयी और वह दिव्यदेह को प्राप्त करते हुवे दिव्य विमान पर चढ़ पावन मार्ग की ओर चल पड़ा और उच्च स्वर में उस तपस्वी को प्रणाम कर और आभार प्रकट करने के साथ यह बोला कि आज से इस तीर्थ का नाम पिशाच मोचन पड़ेगा और इसमें स्नान करने से लोगो की पिशाच योनि छूट जाएगी ।
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और जो लोग इस कुंड में स्नान करके संध्या और तर्पण के साथ पितरों को पिंडदान करेंगे तोह अगर उनके बाप दादा अगर पिशाच योनि में भी पड़े रहेंगे वह तुरन्त छूट जाएंगे ।
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+
पता- A 13/39 pishach mochan kund
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चौदश अगहन शुक्ल की , लोटा भंटा नाम।
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पिशाचमोचन तीर्थ पै , मेला लगतालाम ।
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<nowiki>#</nowiki>हस्तिपालेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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काशी के अति प्रसिद्ध मृत्युंजय(दारानगर) मन्दिर परिसर में हस्तिपालेश्वर महादेव का लिंग स्थापित है ।
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हस्तिपालेश्वरं लिङ्गं तस्य दक्षिणो मुने |
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तस्य पुजनतो याति पुण्यं वै हस्तिदानजं |
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(#काशी_खण्ड)
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मृत्युञ्जय मन्दिर के दक्षिण में हस्तिपालेश्वर लिंग है । इनके पूजन से हस्तिदान (हाथी दान)का पुण्यलाभ होता है ।
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इनके दर्शन से हाथी के दर्शन का भी पुण्यलाभ प्राप्त होता है ।
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अग्नि पुराण के अनुसार दस महादान बताए गए है जिसमे
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हाथी का दान भी बताया गया है ।
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सोना , घोड़ा , तिल , हाथी , दासी , रथ , भूमि , घर , कन्या , गाय ।
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<nowiki>#</nowiki>भीष्म_केशव #काशी_खण्डोक्त
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काशी में दारानगर में स्थित प्रसिद्ध मृत्युंजय महादेव मंदिर परिसर में स्थित यह श्री हरि विष्णु जी अपने भक्तों के सभी मनोकामनाओं के पूर्ति के साथ उनके सभी अड़चनों और गंभीर विषयो को तत्काल में दूर कर देते है ।
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<nowiki>#</nowiki>विष्णु_उवाचः
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भीष्मकेशवानामाःहं वृद्धकालेशपश्चिमे |
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उपसर्गान हरे भीष्मान सेवितो भक्तियुक्तिं ||
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(#काशीखण्ड्)
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<nowiki>#</nowiki>श्री_विष्णु_ने_कहा
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वृद्धकाल के पश्चिम में मैं भीष्म केशव नाम से रहता हूं और भक्तिपूर्वक सेवा करने वाले का सभी उपद्रव(विपदा) को क्षण में दूर करदेता हूं ।
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प्राचीन काल मे यहां काफी लोग इनका नित्य दर्शन करने दूर दूर से आते रहते थे , पर आज कल लोग इनकी महिमा को भूलते जा रहें है (जिसमे हमारा ही नुकसान है)।
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इस श्री विग्रह में विष्णु जी चक्र , गदा , शंख , पद्म भी लिए हुवे है , जिससे वह हमेशा अपने भक्तों का भला करते रहते है ।
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<nowiki>#</nowiki>सुदर्शन_चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। यह दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सर्वहित शुभ मार्ग पर चलते हुए दृढ़ संकल्पित जीव अपने लक्ष्य को भेदने में सदा विजयी होता है। चक्र शिक्षा देता है कि जीव को दूरदर्शी व दृढ़ संकल्प वाला होना चाहिए।
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<nowiki>#</nowiki>गदा न्याय प्रणाली को दर्शाता है
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गदा ईश्वर की अनंत शक्ति, बल का प्रतीक है। कर्मों के अनुसार ईश्वर जीव को दंड प्रदान करते हैं। यह ईश्वरीय न्याय प्रणाली को दर्शाता है।
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<nowiki>#</nowiki>शंख ध्वनि का प्रतीक है
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भगवान विष्णु द्वारा धारण किया गया शंख नाद (ध्वनि) का प्रतीक है। अध्यात्म में शंख ध्वनि ओम ध्वनि के समान ही मानी गई है। यह नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह ध्वनि शिक्षा देती है कि ऐसा ही नाद हमारी देह में स्थित है। वह है आत्म नाद, जिसे आत्मा की आवाज कहते हैं। जो हर अच्छे-बुरे कर्म से पहले हमारे भीतर गूंजायमान होता है।
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<nowiki>#</nowiki>पद्म मोह से मुक्त होने का शिक्षा देता है
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पद्म (कमल पुष्प) सत्यता, एकाग्रता और अनासक्ति का प्रतीक है। जिस प्रकार कमल पुष्प कीचड़ में रहकर भी स्वयं को निर्लेप रखता है, ठीक वैसे ही जीव को संसार रूपी माया रूप कीचड़ में रहते हुए स्वयं को निर्लेप रखना चाहिए अर्थात संसार में रहें, लेकिन संसार को अपने भीतर न आने दें। कमल मोह से मुक्त होने व ईश्वरीय चेतना से जुड़ने की शिक्षा देता है। कीचड़ कमल के अस्तित्व की मात्र जरूरत है, जिस तरह संसारिक पदार्थ मनुष्य की जरूरत मात्र हैं।
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<nowiki>#</nowiki>स्वामी_कार्तिकेय
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<nowiki>#</nowiki>षडानन_षष्टि #स्कन्द_षष्टि
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मार्गशीर्ष के षष्टि के दिन बामन पुराण में लिखा है कि आज के दिन कार्तिकेय जी के दर्शन पूजन करने से छः प्रकार के दोष नष्ट हो जाते है और मोक्ष प्राप्त होता है ।
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स्कन्दतीर्थं तत्राप्लुत्य नरोतमः |
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दृष्ट्वा षडाननः चैवजम्ह्यात् षातकौशिकी तनुम ||
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तारकेश्वरपुर्वेन दृष्ट्वा देवं षडाननं |
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वसेत् षडानने लोके कुमारं वपरुद्वहन ||
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ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी को इनका दर्शन होता है। लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है ।
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(#काशीखण्ड्)
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स्कन्द तीर्थ नामक इस उत्तम तीर्थ (कुंड)पर जहाँ उत्तम जन स्नान करने के पश्च्यात षडानन के दर्शन करने छह कोषों ( त्वचा , मास , रुधिर , नस , हड्डी और मज़्ज़ा)से परिपूर्ण शरीर फिर नही धारण करना पड़ता ।
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तारकेश्वर के पूर्व स्वामी कार्तिकेय का दर्शन करने से , कुमार सा शरीर पा कर व्यक्ति को स्कंदलोक में वास मिलता है ।
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विश्वनाथ मंदिर के पास अब तारकेश्वर मंदिर को विश्व्नाथ कॉरिडोर में तोड़ कर लुप्त कर दिया गया है , साथ ही कार्तिकेय जी की मूर्ति भी थी वह भी अब अस्तित्व में नही रह गयी और स्कन्द तीर्थ तोह बहुत पहले औरंगजेब द्वारा तोड़ फोड़ के समय ही पाट दिया गया था ।
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<nowiki>#</nowiki>पता
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अब इनका मंदिर मणिकर्णिका घाट पर तारकेश्वर मंदिर के नीचे सीढ़ी पर छोटे से मढ़ी में है जिसमे यह मयूर पर बैठे है ।
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कुछ मत के अनुसार कार्तिक तीर्थ(कुंड) जो जैतपुरा पर वागेश्वरी देवी मंदिर के पास था पर अब वह भी लुप्त हो चुका है ।
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<nowiki>#</nowiki>महाबल_नरसिंह #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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<nowiki>#</nowiki>श्री बिन्दु माधव उवाचः
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महाबलनृसिन्होःहमोंकारात्पूर्वतो मुने |
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दूतान महाबलान्याम्यान्न पश्येत्तु तदर्चकः ||
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<nowiki>#</nowiki>श्री बिंदु माधव ने अग्निबिन्दु ऋषि से कहा
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~हे मुने ! ओंकारेश्वर के पूर्वभाग में मैं ही महाबल नृसिंग के नाम से वास करता हूँ । मेरी पूजा करने वाला नर कभी यमराज के महाबली दूतों को नही देख पाता~
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काशी में अग्निबिन्दु ऋषि के पूछने पर श्री हरि विष्णु (बिंदु माधव) ने उनसे अपने कई रूपो और स्थानों का वर्णन किया था जिसमे की महाबल नर्सिंग का भी उल्लेख किया ।
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क्योंकि शिव ही विष्णु है और विष्णु ही शिव है , यह काशी नगरी में पहले श्री हरि विष्णु जी वास करते थे । बाद में काशी शिव जी की नगरी हुई ।
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महाबल नृसिंग काशी में अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते है और उनको मुक्ति का दान देते है ।
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अधिकतर लोग जो काशी के यात्राओं में रुचि रखते है वह यहां हर एकादशी और हर साल नृसिंग जयंती पर यहां दर्शन जरूर करते है ।
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पता- त्रिलोचन घाट पर कामेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में , मछोदरी , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>श्री_खखोलकादित्य(#विनितादित्य)
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<nowiki>#</nowiki>काशी_खण्डोक्त
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अत्यंत प्राचीन समय की बात है , #दक्षप्रजापति की दो पुत्रियां जिनका नाम #कद्रू और #विनता था , इन दोनों का विवाह मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप मुनि से हुआ ।
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विवाह पश्चात कद्रू सर्पो की माता बनी यह सर्पिणी , कुटिला , स्वार्थीन तथा चल कपटी थी और दूसरे तरफ विनता पक्षिणी थी और स्वभाव से अत्यंत विनीत , सरल , निश्चल और अपनी बहन कद्रू की छल और प्रपंच से हमेशा से ही अनजान रहीं ।
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एक दिन जब दोनों बहनें खेल खेल में पणबंध किया (शर्त लगाया) जिसमे हारने वाली को दासी का भार संभालना पड़ेगा , इस बात पर दोनों की स्वीकृति हुई ।
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कद्रू की चाल विनता के समझ से परे था । शर्त इस बात पर लगी थी कि उच्चःश्रवा (सूर्य के अश्व)किस रंग के है , विनता ने स्वेत (सफेद) बोला वही कद्रु ने चितकबरा बोला (बाद में कद्रू ने अपने सर्प पुत्रो को सूर्य के अश्व को चितकबरा करने का आज्ञा दीया , आज्ञा से मुकरने पर उसने अपने पुत्रों को श्राप दे डाला कि वह सभी सर्प सदैव सर्पो का भोजन बनते रहेंगे और तुम्हारी स्त्रियां बच्चा देते मान उनका भक्षण करती रहेंगी श्राप के डर से सर्पो ने कद्रू का यह काम करदिया)
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जब विनता कद्रू को अपने पीठ पर बैठा कर सूर्य के समीप ले जाने लगी उसी समय सूर्य की गर्मी से कद्रू ने अपनी हार मान ली और आगे जाने से मना करने लगी पर निश्चल विनता ने उसकी हार को स्वीकार नही किया और आगे ही बढ़ती रही , इतने में कद्रू सूर्य का ताप सहन नही कर पाई और ख खोल्क बोल कर विनता के कंधे पर ही मूर्छित होगयी ।
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अपनी बहन को मूर्छित देख कर विनता सूर्य की खखोलक नाम से ही आराधना करने लगी फलस्वरूप सूर्य ने अपना ताप कम कर दिया और अंत मे सूर्य के अश्व के पास पहुचने पर विनता को कद्रू की क्रूरता का पता चला और चितकबरे घोड़े को देख कर विनता ने हार मान दासित्व का भार ले लिया ।
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कुछ वर्षों तक दासित्व का भार लेते लेते विनता थक गई और अपने पुत्र गरुण के पास बैठ कर सारा वृतांत सुनाया जिससे गरुण ने दासित्व से छुटकारे की कीमत कद्रू से पूछने के लिए अपनी माँ को भेज दिया , कद्रू और उसके सर्प पुत्रो ने कीमत में अमृत की मांग की
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गरुण ने भी अपने पुरुषार्थ के द्वारा अमृत ला कर अपने माँ को दासित्व से छुड़ा लिया और सर्पो को अमृत पान से वंचित करते हुवे अमृत देवताओं को वापस करदिया ।
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ततपश्चात विनता ने गरुण से काशी चलने को कहा जहाँ विनता ने खखोलक आदित्य की स्थापना कर वर्षो तक कठिन तप किया ।
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कठिन तप के फल स्वरूप खखोलक रूप में सूर्य देव प्रकट हो कर विनता को अनेको वरदान दिए और पापनाशक शिव ज्ञान दिया और विनितादित्य नाम से प्रसिद्ध होकर वही निवास करने लगे।
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काश्यां पैशमगिले तीर्थे खखोल्कस्य विलोकनात |
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नरशिन्च्न्तित माप्नोति निरोगो जायते क्षणात ||
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नरः श्रुत्वैतदाख्यान खखोलदित्य संभवं |
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दर्शनेन खखोलदित्य सर्व पापेः प्रमुच्येत ||
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( #काशीखण्ड)
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काशी के पिलपिला तीर्थ में ( त्रिलोचन घाट पर) खखोलक आदित्य के दर्शन करने से ही मनुष्य समस्त पापों से छूट जाता है और अपने अभीष्ट फल को पा कर तुरन्त निरोग होजाता है।
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जो कोई भी इस खखोलक आदित्य की कथा का श्रवण और दर्शन करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है ।
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पता- त्रिलोचन घाट के पास , कामेश्वर मंदिर के प्रांगण में , मछोदरी , वाराणासी ।
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<nowiki>#</nowiki>श्री_निवासेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त_लिंग
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दर्शनेन निवासेशः काशीवासफ़लप्रदः |
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(#काशीखण्ड्)
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निवासेश्वर लिंग के दर्शन करने से काशी वास् का फल सहजता से प्राप्त हो जाता है ।
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यहां ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी पर्यटक काशी वास् की इक्षा रखते है वह यहां अगर निवासेश्वर महादेव से काशी में निवास करने का भक्ति पूर्वक निवेदन करते है तोह महादेव तुरन्त ही उनकी विनती को पूर्ण कर देते है ,
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और उनको शिव जी की कृपा से काशी में स्थायी निवास मिलता है , इसमें तनिक भी संदेह नही करना चाहिए ।
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पता- भूत भैरव मुहल्ला , करनघन्टा चौक, वाराणसी।.
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<nowiki>#</nowiki>श्री_आदि_केशव #काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>मार्गशीर्ष_कृष्ण_पक्ष_एकादशी_से_पूर्णिमा
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<nowiki>#</nowiki>दर्शन_यात्रा
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30/11/21 से 19/12/21
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<nowiki>#</nowiki>बिन्दु माधव उवाच
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आदौ पदोदके तीर्थे त्यम कथ्यमानं मयाःधुना |
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अग्निबिन्दो महाप्राग्य भक्तानां मुक्तिदायकम ||
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अविमुक्तेमृते क्षेत्रे येःचर्ययन्त्यादिकेशवं |
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तेःमृत्वं भजन्त्येव सर्व दुखः विवर्जिताः ||
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सङ्गमेश महालिङ्गं प्रतिष्ठाप्यादिकेशवः |
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दर्शनादघहं नृणा भुक्तिं मुक्तिं दिशेत्सदा ||
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<nowiki>#</nowiki>बिन्दु माधव ने कहा
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हे महा पण्डित अग्निबिन्दु प्रथम तोह मुझे भक्त लोगो के मुक्ति दाता आदि केशव रूप को पादोदक तिर्थ् पर समझना चाहिए ।
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जो लोग अमृतस्वरूप अविमुक्त क्षेत्र में मेरे आदि केशव रूप का पूजन करते है , वे सब दुखो से रहित होकर अंत मे अमृत पद को प्राप्त होते हैं ।
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आदिकेशव दर्शन से ही पापनाशक संगमेश्वर नामक महालिंग की स्थापना कर मनुष्यो को सदैव भोग और मोक्ष का दान करते रहते है ।
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<nowiki>#</nowiki>केशवादित्य
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भगवान केशव को संगमेश्वर लिंग की पूजा (शिवाराधना) करते देखकर सूर्यनारायण(आदित्य) ने उनसे पूछा कि आप जगदात्मा विशम्भर होकर भी किसकी अर्चना करते है ।
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इसपर श्री हरि विष्णु ने उनको सदाशिव की महत्ता का उपदेश दिया और तभी से सूर्यनारायण शिव भक्त हुवे जिस स्थान पर सूर्यनारायण को यह ज्ञानोपदेश केशव भगवान से मिला , वही पर केशवादित्य की स्थापना हुई । केशवादित्य कि आराधना से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
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माघ शुक्ल सप्तमी(रथसप्तमी) को यदि रविवार पड़ जाए तोह इनके दर्शन पूजन का विशेष महात्म्य है ।
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<nowiki>#</nowiki>वरुणासंगमेश्वर
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संगमेश्वरमालोक्यं तत्प्राच्यां जायतेःनघः
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संगमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से निष्पप्ता होती है (अर्थात किये गये सभी पाप कट जाते है)|
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<nowiki>#</nowiki>स्वेतदीपेश्वर
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पादोदक तिर्थ् (यानि आदिकेशव घाट ) को श्वेत दीप तिर्थ् भी कहते है वही पर यह लिङ्ग स्थापित है
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<nowiki>#</nowiki>नक्षत्रेश्वर
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काशीखण्ड् के कथा अनुसार जब 27 नक्षत्रियो द्वारा शिव लिंग स्थापना करके उग्र तपस्या के पश्चात जब शिव जी प्रकट होकर वर मांगने को कहते है तभी सभी नक्षत्रियो ने शिव समान की पराक्रमी और दिव्य गुणों वाला वर की इक्षा जाहिर की जिसके फल स्वरूप शिव जी ने उनको चंद्रमा से विवाह करने को कहा तभी से इस लिंग को नक्षत्रेश्वर नाम से जाना जाता है ।
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<nowiki>#</nowiki>कालमाधव #काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>मार्गशीर्ष_एकादशी_दर्शन_यात्रा 30/11/21
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कालमाधवनामाःहं काल भैरव संनिधौ |
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कलिः कालो न कलयेन्मदभक्तिमिति निश्चितं ||
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मार्गशीर्षस्य शुक्लायामेकादश्यामुयोषितः |
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तत्र जागरणं कृत्वा यमं नालोकयेत् क्वचित् ||
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काल भैरव जी के दक्षिण के पास में कालमाधव विराजमान हैं।
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उनके दर्शन से कलियुग में भक्तों को काल का भय नही रहता ।
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एकादशी को व्रत रहकर उपवास करके जो जागरण करता है , उसको यमराज नही देखते अथवा नरक में नही जाना पड़ता ।
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मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि के दिन कालमाधव विष्णु जी का वार्षिक दर्शन पूजन यात्रा प्रयत्न पूर्वक करनी चाहिए । कालमाधव कि दर्शन करने वाले नर नारियों को विष्णु भगवान और राम कृष्ण की अनन्य भक्ति प्राप्त होती है ।
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+
पता- k 38/39 चौखम्बा सब्जी सट्टी , संतानेश्वर के मंदिर में पापभक्षेश्वर के पास , मोहल्ला कालभैरव , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>व्याघ्रेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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प्राचीन समय मे दंडखात तीर्थ पर (जो कि अब भूत भैरव मोहल्ला नाम से जाना जाता है) अनेक ब्राह्मण लोग निष्काम होकर तपोरत थे । उस समय 'प्रह्लाद' का मामा 'दुन्दुभिनिह्नार्द'
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नामक दैत्य देवतागण पर विजय का उपाय सोचने लगा ।
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उसने विचार किया कि पृथ्वी को ब्राह्मण रहित करने से यज्ञादि समाप्त होजाएंगे । क्योंकि देवताओं का भोजन यज्ञ ही है बिना यज्ञ के वह निर्बल होजाएंगे तब उनको जितना अतिसरल होजावेगा ।
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इसी सोच विचार के क्रम में निर्णय किया कि काशी में ज्येष्ठेश्वर लिंग के चारो ओर के ब्राह्मण का सर्वप्रथम भक्षण करना चाहिए अतः वह उस लिंग के पास के जंगल मे व्याघ्र (बाघ) के रूप में रहता था और जो ब्राह्मण कुशा , समिधा आदि के लिए जंगल मे जाते उनको यह दैत्य दबोच कर खा जाता था ।
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एक बार एक शिवभक्त , जो मन्त्ररूप अंगन्यास से कवचित होकर शिवरात्रि के दिन शिव के दर्शन में दृढ़चित्त होकर अपने द्वारा स्थापित लिंग के दर्शन करने चल पड़ा दुंदुभी दैत्य जैसे ही व्याघ्र के रूप में उसको दबोचने लपका , त्यों ही भगवान उसी पूजित शिवलिंग से प्रकट होगये । साक्षात शिव को देख कर वह दैत्य अपना व्याघ्र का रूप अति विशाल करता गया तब तुरन्त ही शिव जी ने उसको अपनी कांख में पीस कर उसके सर में मुक्के से प्रहार किया मुक्का पड़ते ही वह बहुत ही डरावने स्वर में चिंघाड़ने लगा जिसका आवाज़ पूरी पृथ्वी और आकाश तक फैल गई ।
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चीत्कार सुनने से बाकी के ब्राह्मणगण वहां तुरन्त पहुँच कर शिव जी का दर्शन पाते है और शिव जी का अनेक प्रकार स्तुति करते हुवे उनका अभिवादन कर उनसे यही व्याघ्रेश्वर नाम से निवास करने का निवेदन करते है ।
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फलस्वरूप शिव जी भी उनको अनेको वरदान के साथ इस स्थान की सदैव रक्षा करते रहेंगे ऐसा वरदान दिया साथ ही कहा कि
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<nowiki>#</nowiki>शिव_उवाचः
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यो मामनेन रुपेन द्रक्ष्यन्ति श्रद्धयाःत्र वै |
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तस्योपसर्गसंघातं घातयिष्याम्यसंशयं ||
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ऐतलिङ्गं समभ्यच्र्य यो याति पथि मानवः |
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चौरव्याघ्रादिसंभूतं भयं तस्य कुतो भवेत् ||
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मच्चरित्रमिदं श्रुत्वा स्मृत्वा लिङ्गमिदं हृदि |
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संग्रामे प्रविशन्मतर्यो जयमाप्नोति नान्यथा ||
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ईत्युक्त्वा देवदेवेशस्तस्मिलिन्ङ्गे लयं ययौ |
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सविस्मयास्ततो विप्राः प्रातयार्ता यथागतम् ||
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(#काशी_खण्ड)
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<nowiki>#</nowiki>शिव_जी_ने_कहा
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जो कोई यहाँ पर श्रद्धापूर्वक इसी रूप का(व्याघ्रेश्वर) दर्शन करेगा निसंदेह मैं उसके सभी उपद्रव को नष्ट कर दूंगा ।
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जो मनुष्य इस लिंग का पूजन करके यात्रा करेगा उसे मार्ग में चोर अथवा बाघ इत्यादि से कभी डर नही रहेगा ।
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जो मनुष्य इस कथा चरित्र को सुन कर और हृदय में मेरे इस लिंग को सुमिरण कर रण संग्राम में प्रवेश करेगा , उसे विजय प्राप्त होगी , इसमें तनिक भी संदेह नही करना चाहिए ।
+
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ऐसा कहने के बाद शिव जी उसी लिंग में लीन होगये और ब्राह्मण लोग शिव सुमिरन करते करते प्रातःकाल होने पर अपने अपने स्थान चले गए ।
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जो लोग व्याघ्रेश्वर के भक्त है , उनसे यमराज के दूत (यमदूत)भी उन भक्तों की जय करते हुवे भी उनसे डरते रहते है ।
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पता- भूत भैरव मोहल्ला , ज्येष्ठेश्वर मंदिर, वंदे काशी देवी(सप्तसागर) के निकट , बुलानाला , चौक , वाराणसी
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<nowiki>#</nowiki>पापभक्षेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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मनुष्य की बुद्धि से किये गए सभी पाप श्री काल भैरव जी के दर्शन से नष्ट हो जाते हैं । प्राणियों के द्वारा करोड़ो करोड़ो जन्मों में किये गए पाप भी कालभैरव जी के दर्शन से नष्ट हो जाते है । भैरव पीठ पर बैठ कर जो अपने इष्टदेव के मंत्र का जप करता है उसको कालभैरव की कृपा से छः महीने में सिद्धि होजाती है । कालभैरव का भक्त सैकड़ो पाप कर के भी #पापभक्षक भैरव के पास पहुँचने के कारण किसी से डरता नही है । कलयुग में काशी वासियों के पाप और काल को कालभैरव निगल जाते है । इसीलिए कालभैरव जी का नाम #पापभक्षक प्रसिद्ध हुआ है ।
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पता - कालभैरव से चौखम्बा सब्जी सट्टी मार्ग , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>कालभैरव (#भैरवनाथ) #काशीखण्डोक्त
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कालाष्टमी दर्शनयात्रा कालभैरव जयंती 27/11/21
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मार्गशीर्ष सिताष्टम्यां कालभैरव सन्निधो |
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नरो मार्गासिताष्टम्यां वार्षिकं विघ्नमूत्सृजेत् ||
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अष्टम्यान्च चतुर्दरश्यां रविभूमिजवासरे |
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यात्रस्च भैरवीं कृत्वा कृतैः पापै प्रमुच्ते ||
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कालभैरव भक्तानां सदा काशीनिवासिनां |
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विघ्नं यः कुरुतेमूढः स दुर्गतिमवाप्रुयात् ||
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तीर्थे कलोदक स्नात्वा कृत्वा तर्पनमत्त्वरः |
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विलोक्यं कालराजं च निरयादुध्दरेतपित्घन ||
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कृत्वा च विविधा पूजां महासंभारविस्तरैः |
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उपोष्य जागरंकुर्वन्महापापापैः प्रमुच्यते ||
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नरो न पापैलिर्प्येत मनोवाक्कायसंभवैः ||
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मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को श्री कालभैरव जी के पास वर्ष भर में किये हुवे पापों को छोड़े अर्थात भैरव जी के दर्शन करने मात्र से वर्ष भर में किये हुवे पाप नष्ट होजाते है ।
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रविवार और मंगलवार को तथा अष्टमी और चतुर्दशी को श्री बटुकभैरव एवं कालभैरव जी के दर्शन यात्रा करके सभी पापों से मुक्त होना चाहिए ।
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सदा काशी में रहने वाले और भैरव के भक्तों को जो कष्ट देता है वह दुर्गति को पता है ।
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जो कालोदक तीर्थ में(कालभैरव मंदिर में जो कुँवा है) स्नान करके जो अपने पितृगण का तर्पण करता है वह खुद को और अपने पितृगण को नरक से उद्धार करदेता है ।
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बहुत तरह के पूजा सामग्री से विविध प्रकार के पूजा कर के जो व्यक्ति रात्रि में जागरण करता है , वह पापों से मुक्त होजाता है।
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जो नर नारी भैरव की आठ परिक्रमा करते है उनके सभी पाप तत्काल में नष्ट हो जाते है । उस भक्त को कायिक , वाचिक , तथा मानशिक कोई भी पाप पुनः नही लगता ।
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<nowiki>#</nowiki>बृहस्पतिश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>गुरुपुष्य_नक्षत्र_गुरुवार_दर्शन 25/11/21
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देव गुरु बृहस्तपति द्वारा स्थापित लिंग
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शिव उवाचः
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गुरुपुष्यसमायोगे लिङ्गमेतत्सम्चर्य च |
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यत्करिष्यन्ति मनुजास्तत्सिम्धिधियास्ति ||
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अस्य सन्दर्शनादेव प्रतिभा प्रतिलभ्य्ते
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(#काशी_खण्ड)
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शिव जी के कथन अनुसार
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जो लोग भी पुष्यनक्षत्र युक्त बृहस्तपतिवार (गुरुवार) को इस लिंग का पूजन करेंगे उनको सिद्धि प्राप्त होगी और पूजन कर के जो कुछ भी करेंगे , वह सब कार्य सिद्धि प्रदायक होगी ।इस लिंग के दर्शन से ही प्रतिभा प्राप्त होजाती है ।
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स्कन्दपुराण के काशी खण्ड के अनुसार यहाँ देवगुरु बृहस्पति ने काशी में बृहस्पतिश्वर नामक शिव लिंग स्थापित करके 6000 साल तक उग्र तपस्या की थी तत्पश्चात शिव जी प्रसन्न होकर उनको दर्शन दिए थे
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इस शुभ योग में पीपल के पेड़ की पूजा और देवगुरु बृहस्तपति की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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ज्योतिष शास्त्र के सभी 27 नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरुपुष्य, और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी।
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<nowiki>#</nowiki>पुष्य_नक्षत्र में गुरु का जन्म
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बृहस्पति देव और प्रभु श्री राम इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे ।तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभ फलदाई कहे गये हैं
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पुष्य नक्षत्र का नाम मंत्र: ॐ पुष्याय नम:।
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नक्षत्र देवता के नाम का मंत्र: ॐ बृहस्पतये नम:।
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<nowiki>#</nowiki>मंगल_विनायक #काशी_खण्डोक्त
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मंगलवार की चतुर्थी (#अंगारक_चतुर्थी_यात्रा)
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ऐश्यामैशीं पुरीं पायात समङ्गलविनायकः |
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(#काशी_खण्ड)
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~काशी के ईशान कोण पर मंगल विनायक इस पूरी की रक्षा करते है और अपने भक्तों के विघ्नों को हरते है ।
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मंगल की कामना से यहां दर्शनार्थी प्राचीन समय से ही आते रहे है , गंगा घाट के ऊपर स्थित मंगल विनायक भी अपने भक्तों का खूब मंगल करते ही रहते है ।
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कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन छप्पन विनायक यात्रा करने का विधान हजारों साल पहले से चला आरहा है । सोने पे सुहागा तब होता है जब आज के तिथि में मंगल वार भी पड़ जाए तोह इस तिथि को मंगल विनायक की यात्रा महायात्रा हो जाती है ।
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जीवन के सभी क्षेत्र में मंगल की कामना करने वाले लोगों को यहां अवश्य दर्शन करना चाहिए और मंगल विनायक का मंगल आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए ।
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पता- मंगला गौरी मंदिर , बाला घाट , वाराणसी ।
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प्राचीन समय से ही मंगलविनायक के स्थान के विषय मे विवाद है ,पर इस विवाद का निर्णय स्वयं हो जाता है कि मंगल तीर्थ के ऊपर मंगलागौरी तथा मांगलोदक कूप कहे गए है अतः मंगल विनायक का स्थान यही था ।
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<nowiki>#</nowiki>मित्र_विनायक #काशी_खण्डोक्त
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यमतीर्थादुदीच्यां च पूज्यो मित्र विनायकान् |
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कुर्वन्ति रक्षां क्षेत्रस्य
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(#काशी_खण्ड)
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यमतीर्थ के उत्तर की ओर मित्र विनायक भी अति पूजनीय है और काशी क्षेत्र की रक्षा करते है (रक्षक विनायक है)।
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<nowiki>#</nowiki>जो प्राणी मित्र विनायक की यात्रा करते रहते है , वे दुख और विघ्नों से छूटते रहते है । इनके दर्शन पूजन से सर्वसम्पत्ति की प्राप्ति और मनोकामना की सिद्धि होती है और जीवन के अन्तकाल तक ज्ञान बना रहता है । इनके दर्शन का बड़ा ही महात्म्य है ।
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<nowiki>#</nowiki>मित्र_विनायक काशी वासियो को सदैव मित्रवत ही देखते है और प्राचीन काल से ही काशी के लोग भी इन्हें मित्र मान कर अपने सारे दुखो को बताते है जिसको सुनने के बाद श्री मित्र विनायक एक मित्र के तरह ही अपने भक्तों के सभी कष्टों को तत्काल में दूर कर देते है ।
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काशी में सिंधिया घाट जिसका शास्त्रोक्त परिमाण मणिकर्णिका घाट क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है इस पूरे क्षेत्र के रक्षक श्री मित्र विनायक ही है जो सदा भक्तों की भी रक्षा करते ही रहते है ।
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पता- सिंधिया घाट , आत्मविरेश्वर मंदिर में ck 7/158 . चौक वाराणसी ।
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~ये काश्यां धर्मभूमिष्ठा निवसन्ति मुनीश्वराः
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ते तारयन्ति चात्मान शतपूर्वान शतापरान् ||
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(#काशी_महात्म्य)
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जो महात्मा सद्धर्म काशी में निवास करते है , वे अपने साथ पिछली सौ पीढ़ियों को भी लेकर इस संसार से पार उतर जाते है ।
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~संवत्सरं वसंस्तत्र जितक्रोधो जितेन्द्रियः |
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अपरस्वाद्विपुष्टान्गः परान्नपरिवर्जकः ||
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परापवाद रहितः किञ्चिद्दानपरायणः |
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समाः सहसन्नमन्यत्र तेन तप्तं महत्तपः ||
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(#काशी_खण्ड)
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जो मनुष्य क्रोध एवं इंद्रियों को जीतकर स्वयं के धन से अपना पालन पोषण करता हुआ पराए अन्न तथा निंदा को त्याग कर , कुछ दान देता हुआ एक वर्ष तक काशी वास् करे तोह उसे 1000 साल तप करने का फल प्राप्त होता है ।
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<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव #काशी_विश्वनाथ
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<nowiki>#</nowiki>कार्तिक_पूर्णिमा_दर्शन 19 - 11 - 21
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<nowiki>#</nowiki>देव_दीपावली
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काशी में पूर्णिमा के स्नान में मुख्यत: गंगा स्नान का विधान है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पुराणों में वर्णन मिलता है कि इस दिन को भगवान विष्णु नें मतस्य अवतार लिया था।
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पंचनद तीर्थ(पंचगंगा घाट) में ही दीपावली का बहुत महात्म्य है क्योंकि पूरे कार्तिक मास में देवतागण इसी घाट पर स्नान करते है । आज का ही दिन है जिसमे सम्पूर्ण देवी देवता और तीर्थो का काशी में आगमन होता है , इसीलिए काशी में घाटों को सजाया जाता है ।
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दूसरे मतानुसार
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देव दीपावली की पृष्ठभूमि पौराणिक कथाओं से भरी हुई है। इस कथा के अनुसार भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर सभी को उत्पीडि़त करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया और त्रिपुरारी कहलाये, जिसके उल्लास में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे आगे चलकर देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली।
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आज के दिन खुद शिव जी भी काशी आकर पंचगंगा घाट पर स्नान करते है ।
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कार्तिक मास के अधिष्ठाता श्री हरि विष्णु ही है इसीलिए आज के दिन इनका विशेष रूप से दर्शन पूजन करना चाहिए साथ ही काशी विश्वनाथ के दर्शन कर इस द्वितीर्थी यात्रा को सम्पूर्ण करना चाहिए ।
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कार्तिक पूर्णिमा देवताओ का विजय दिवस है , आज के दिन दीप दान करने से वह सभी प्रकार के मनोवांक्षित फल तत्काल ही दे देते है ।
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<nowiki>#</nowiki>हरिशचंद्रेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>हरिश्चन्द्र_विनायक #काशी_खण्डोक्त
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सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र जी द्वारा स्थापित लिंग
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हरिश्चन्द्रे महातीर्थे तर्पयेयुः पितामहान् |
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शतंसमाः सुतृप्ताः स्युः प्रयच्छन्ति च् वाञ्छितं ||
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हरिश्चन्द्रे महातीर्थे स्नात्वा श्रद्धान्वितो नरः |
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हरिश्चन्द्रेश्वरं नत्वा न सत्यात्परिहीयते ||
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हरिश्चन्द्र तीर्थ में अपने पितरो का तर्पण करने से सभी(पूर्व पुरुष) पितृ सौ वर्ष के लिए तृप्त होकर मनवांक्षित फल देते है।
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मनुष्य श्रद्धा पूर्वक हरिश्चंद्र महातीर्थ में स्नान कर #हरिशचंद्रेश्वर लिंग को प्रणाम करने से वह कभी सत्य से भ्रष्ट नही होता ।
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यह मंदिर मणिकर्णिका के पुराणोक्त सिमान्तर्गत आता है ,अतः यह मणिकर्णिका घाट के ही सीमा के अंतर्गत है वर्तमान में यह मंदिर संकटा घाट क्षेत्र में आ गया है । यह सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र जी के द्वारा स्थापित लिंग है , और हरिश्चंद्र जी का कार्य क्षेत्र मणिकर्णिका घाट ही था ,सोनारपुरा में जो हरीश चंद्र घाट है वह उनके नाम पर रखा गया है । मणिकर्णिका क्षेत्र ही उनकी तपोभूमि थी
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राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेच दिया था। कहा जाता है-
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राजा हरिश्चंद्र की पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहिताश था और बाद में रोहिताश्व गढ़ के राजा हुवे और आगे चल कर इनके ही वंशज #रस्तोगी कहलाये । इन्होंने अपने दानी स्वभाव के कारण महर्षि विश्वामित्र जी को अपने सम्पूर्ण राज्य को दान कर दिया था, लेकिन दान के बाद की दक्षिणा के लिये साठ भर सोने में खुद तीनो प्राणी बिके थे और अपनी मर्यादा को निभाया था, सर्प के काटने से जब इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को मणिकर्णिका घाट (शमशान) में अन्तिम क्रिया के लिये ले गयी। वहाँ पर राजा खुद एक डोम के यहाँ नौकरी कर रहे थे और शमशान का कर लेकर उस डोम को देते थे। उन्होने रानी को भी कर के लिये आदेश दिया, तभी रानी तारा ने अपनी साडी को फाड़कर कर चुकाना चाहा, उसी समय आकाशवाणी हुयी और राजा की ली जाने वाली दान वाली परीक्षा तथा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की जीत बतायी गयीं। इन सब कष्टों और परीक्षाओं के पीछे शनिदेव का प्रकोप माना जाता है और इनके पुत्र रोहिताश्व को जिंदा कर पुनः सब राजपाट लौटा दिया गया था ।
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इसीलिए कहा जाता है कि
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चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार, पै दृढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार
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पता -- Ck7/ 66 संकठा घाट , चौक , वाराणसी ( संकटा मंदिर के पीछे के तरफ)
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वही #हरिश्चन्द्र_विनायक जो काशी में चतुर्थ विनायक के अंतर्गत आते है इनके भी दर्शन से सत्य बोलने शक्ति मिलती है ,
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और यहां मोदक ब्राह्मण को दान देने से मनवांक्षित फल तत्काल ही गणेश जी की कृपा से मिल जाता है ।
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<nowiki>#</nowiki>बिंदु_माधव #काशी_खण्डोक्त
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अत्र पञ्चनदे तीर्थे स्नाति विश्वेश्वरः स्वयं |
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ऊर्जे सदैव सगणः सस्कन्दः सपरिच्छदः ||
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ब्रह्म सवेदः समखो ब्राह्मण्याद्याश्च् मातरः |
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सप्ताब्धयः ससरितः स्नान्त्युर्जे धुत्पापके ||
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सचेतना हि यावन्तस्त्रैलोक्ये देहधारिणः |
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तावन्तः स्नातुमायान्ती कार्तिके धुत्पापके ||
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(#काशीखण्ड्)
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इस पंचनद तीर्थ में स्वयं भगवान विश्वेश्वर भी गणराज , स्कंद और परिजनों के सहित सदैव कार्तिक मास में स्नान करते है ।
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चारो वेद और समस्त प्रकार के यज्ञ के साथ साक्षात ब्रम्हा एवं ब्रम्हाणी , मातृगण , समस्त नदी और समुद्रगण कार्तिक भर इस धुतपापक तीर्थ ( पंचगंगा) में स्नान करते है ।
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त्रैलोक्य भर में जितने भी सचेतन देहधारी है , वे सब के सब कार्तिक मास में इस धुतपापक तीर्थ में स्नान करने के लिए आते है ।
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पृथ्वी पर सबसे पवित्र काशी नगरी (आनंदवन) है , उसमें भी पंचनद तीर्थ और भी पवित्र है , और वहां पर मेरा दर्शन तो अत्यंत ही पवित्र है ।
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पता- पंचगंगा घाट , बिंदु माधव मंदिर ।।
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1.जो मनुष्य कार्तिक मास में बिल्व पत्र से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे मुक्ति को प्राप्त होते हैं।
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2. कार्तिक मास में जो मनुष्य तुलसी से भगवान का पूजन करते हैं, उनके 10,000 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
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3. जो मनुष्य अगस्त्य के पुष्प से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, उनके आगे इंद्र भी हाथ जोड़ते है। तपस्या करने से जो फल प्राप्त होता है वह अगस्त्य के फूलों के सृंगार करने से सुलभता से प्राप्त होजाता है ।
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4. कार्तिक मास में तुलसी दर्शन करने, स्पर्श करने, कथा कहने, नमस्कार करने, स्तुति करने, तुलसी रोपण, जल से सींचने और प्रतिदिन पूजन-सेवा आदि करने से हजार करोड़ युगपर्यंत विष्णुलोक में निवास करते हैं।
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5. जो मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं, उनके कुटुम्ब से उत्पन्न होने वाले प्रलयकाल तक विष्णुलोक में निवास करते हैं।
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6. जो मनुष्य कार्तिक मास में तुलसी का रोपण करता है और रोपी गई तुलसी जितनी जड़ों का विस्तार करती है उतने ही हजार युगपर्यंत तुलसी रोपण करने वाले सुकृत का विस्तार होता है।
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7. जिस किसी मनुष्य द्वारा रोपी गई तुलसी से जितनी शाखा, प्रशाखा, बीज और फल पृथ्वी में बढ़ते हैं, उसके उतने ही कुल जो बीत गए हैं और होंगे, वे 2,000 कल्प तक विष्णुलोक में निवास करते हैं।
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8. जो मनुष्य कदम्ब के पुष्पों से श्रीहरि का पूजन करते हैं, वे कभी भी यमराज को नहीं देखते।
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9. जो भक्त गुलाब के पुष्पों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, उन्हें मुक्ति मिलती है।
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10. जो मनुष्य सफेद या लाल कनेर के फूलों से भगवान का पूजन करते हैं, उन पर भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
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11. जो मनुष्य भगवान विष्णु पर आम की मंजरी चढ़ाते हैं, वे करोड़ों गायों के दान का फल पाते हैं।
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12. जो मनुष्य दूब के अंकुरों से भगवान की पूजा करते हैं, वे 100 गुना पूजा का फल ग्रहण करते हैं।
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13. जो मनुष्य विष्णु भगवान को चंपा के फूलों से पूजते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते।
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14. पीले रक्त वर्ण के कमल पुष्पों से भगवान का पूजन करने वाले को श्वेत द्वीप में स्थान मिलता है।
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15. जो भक्त विष्णुजी को केतकी के पुष्प चढ़ाते हैं, उनके करोड़ों जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।
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16. जो मनुष्य शमी के पत्र से भगवान की पूजा करते हैं, उनको महाघोर यमराज के मार्ग का भय नहीं रहता।
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17. जो मनुष्य वकुल और अशोक के फूलों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे सूर्य-चंद्रमा रहने तक किसी प्रकार का शोक नहीं पाते।
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<nowiki>#</nowiki>मुचुकुंदेश्वर_महादेव (#बड़ादेव) #काशीखण्डोक्त_लिंग
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इस लिंग के दर्शन पूजन करने से सभी पापों का नाश , काशी वास् का फल , लम्बी उम्र और सेहत की प्राप्ति होती है ।
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मुचुकुन्द द्वापर युग के इक्ष्वाकु (सूर्यवंश) कुल के राजा थे, जिस कुल में श्री राम, राजा दिलीप, राजा हरिश्चन्द्र, रघु, इत्यादि महारथी हुए। उनके भाई अम्बरीष उनके समान ही शूरवीर थे।
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मुचुकुन्द श्री राम के पूर्वज थे। असुरो के खिलाफ देवों की सहायता करने के फल स्वरूप वे अत्यन्त थक गए थे इसलिए उन्हें चिरनिद्रा का वरदान दिया गया था। देवों के कार्यों में सहायता के लिए इंद्रदेव ने उन्हें मुक्ति के सिवाय कोई भी वर मांगने को कहा। उन्होंने बिन-अवरोध निद्रा मांगी, और यह भी अन्तर्गत किया गया कि उनकी निद्रा भंग करने वाला तुरंत भस्म हो जाएगा।
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<nowiki>#</nowiki>कालयवन_संहार
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कालयवन, जो यवन महारथी थे, उनका संहार मुचुकुन्द की दृष्टि के प्रकोप से हुआ। दैविक आशीर्वाद के कारण, कालयवन को पराजित करना असंभव था। उसे पता चला कि सिर्फ श्री कृष्ण ही उनको पराजित कर सकते हैं। इस कारण कालयवन ने द्वारिका पर आक्रमण कर दिया। कालयवन के आशीर्वाद की वजह से उसे पराजित करना कठिन था। श्री कृष्ण ने युक्ति लगाकर रण छोड़ दिया। इस कारण उन्हें रणछोड़दास का नाम मिला। श्री कृष्ण मुचुकुन्द की गुफा में घुस गए, उन पर अपने वस्त्र डाल दिये। इस कारण कालयवन को लगा की श्री कृष्ण वहां आकर सो गए हैं। अँधेरे में बिना देखे मुचुकुन्द को ललकार कर जगाया, और इसका परिणाम यह हुआ कि कालयवन भस्म हो गया।
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श्री कृष्ण ने मुचुकुन्द को आशीष दिए, और मुक्ति की ओर मार्ग दर्शन कराए जिसमे उन्होंने काशीवास् के साथ साथ काशी में शिव लिंग की स्थापना भी की।
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जब मुचुकुन्द गुफा से बाहर निकले तो उन्होंने देखा की लोग और अन्य प्राणी छोटे छोटे हो गए हैं। क्योंकि वह श्री राम के पूर्वज थे (त्रेता युग) और तब से निद्रावस्था में थे, द्वापर युग तक सृष्टि में काफी परिवर्तन हुआ था ऐसा ज्ञात कर सकते हैं।
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पता- गोदौलिया में बड़ादेव नाम से प्रसिद्ध , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>दक्षेश्वर_महादेव #काशीखण्डोक्त_लिंग
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लिङ्गं दक्षेश्वराःह्वं च ततः कुपादुदग्दिशि |
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अपराधसहस्त्रं तु नश्येत्तस्य समर्चनात् ||
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वृद्धकाल कूप से उत्तर की ओर दक्षेश्वर लिंग है , जिसके समर्चन(विधिवत पूजा करने)से सहस्त्रों ही पाप खुद ही विनिष्ट हो जाते है ।
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<nowiki>#</nowiki>दक्षेश्वर लिङ्ग माता सति के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा स्थापित है।
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दक्ष प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र के रूप में उत्पन्न किया था। दक्ष प्रजापति का विवाह मनु स्वायम्भुव मनु की तृतीय कन्या प्रसूति के साथ हुआ था। दक्ष राजाओं के देवता थे। शिव पुराण के अनुसार सती आत्मदाह के बाद दक्ष को जब बकरे का सिर प्राप्त होता है तब बाद में वह प्रायश्चित करने के लिए अपनी पत्नी प्रसूति के साथ काशी में मृत्युंजय लिंग के पास महामृत्युंजय का मंत्र जपते हुए दक्षेश्वर लिंग की स्थापना करते है जिससे शिव जी प्रसन्न होकर दक्षेश्वर लिंग के पूजा करने वालो के समस्त गलतियों को क्षमा करते रहेंगे ऐसा वरदान दिया ( तभी से माना जाता है की दक्ष प्रजापति अपना निवास काशी में ही बनाये हुवे है और नित्य दक्षेश्वर लिंग की पूजा करते है)
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जब माता पार्वती का विवाह शिवजी से संपन्न होता है तब उनकी बारात कैलाश जाती है उस समय माता पार्वती भगवान शिव से आग्रह करती है कि काशी चलिए फिर वह दोनों काशी जाते हैं पार्वती वहां पर अपने पिछले जन्म के माता-पिता दक्ष प्रजापति और प्रसूति को मिलती है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती है अपने पिछले जन्म के ऋण मुक्ति के लिए वह महादेव से प्रार्थना करती हैं कि मेरे माता-पिता को क्षमा कर दीजिए पार्वती की बात मानकर शिवजी प्रजापति दक्ष को उनका पूर्वमनुष्य मुख दे देते हैं ।
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पता- मृत्युंजय मंदिर प्रांगण में वृद्धकाल कूप के पीछे के तरफ,
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दारानगर , वाराणसी ।