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सुधार जारी
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काशी में केदार, विश्वेश्वर और ओंकार ये तीन खण्ड हैं। त्रिशूल के जो तीन नोंक हैं वही काशी के तीन खण्ड हैं।   
 
काशी में केदार, विश्वेश्वर और ओंकार ये तीन खण्ड हैं। त्रिशूल के जो तीन नोंक हैं वही काशी के तीन खण्ड हैं।   
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1. केदार खण्ड ( श्री गौरी केदारेश्वर) केदारनाथ।( उत्तराखंड के प्रतिनिधि)
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1 केदार खण्ड ( श्री गौरी केदारेश्वर) केदारनाथ।( उत्तराखंड के प्रतिनिधि)
    
2 विश्वेश्वर        ( श्री काशी विश्वनाथ)।( काशी के प्रतिनिधि)
 
2 विश्वेश्वर        ( श्री काशी विश्वनाथ)।( काशी के प्रतिनिधि)
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3 ओमकार।      ( श्री ओम्कारेश्वर )।(  ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि)
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3 ओंकार     ( श्री ओम्कारेश्वर )।(  ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि)
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विश्वेश्वर खण्ड के प्रधान लिंग श्री काशी विश्वनाथ (ज्योतिर्लिंग) के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट ऐसे नष्ट  हो जाते है जैसे सूर्योदय के बाद अंधकार। ये पूरे विश्व के नाथ है , और इनका गढ़ काशी है , इसीलिए (त्रिशूल पर टिकी )काशी का कभी विनाश नही होता ।<blockquote>येन काशी दृढी ध्याता येन काशीः सेविता |  तेनाहं हृदि संध्यातस्तेनाहं  सेवितः सदा ||
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विश्वेश्वर खण्ड के प्रधान लिंग श्री काशी विश्वनाथ (ज्योतिर्लिंग) के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट ऐसे नष्ट  हो जाते है जैसे सूर्योदय के बाद अंधकार। ये पूरे विश्व के नाथ है , और इनका गढ़ काशी है , इसीलिए (त्रिशूल पर टिकी )काशी का कभी विनाश नही होता ।<blockquote>येन काशी दृढी ध्याता येन काशीः सेविता |  तेनाहं हृदि संध्यातस्तेनाहं  सेवितः सदा॥
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 काशी यः सेवते जन्तु  निर्विकल्पेन चेतसा |  तमहं  हृदये   नित्यं  धारयामि  प्रयत्नतः ||(#काशी_खण्ड् )</blockquote>विश्वनाथ जी कहते हैं की जो मनुष्य हृदय में काशी का ध्यान करता है साथ ही जो मनुष्य निर्विकल्प चित से काशी का स्मरण करता है , समझना चाहिए कि उसने मेरा हृदय में ध्यान कर लिया , उससे मैं सदा सेवित रहता हूं तथा मैं नित्य उसे प्रयत्न पूर्वक अपने हृदय में धारण करता हूं ।<blockquote>नित्यं विश्वेश  विश्वेश विश्वनाथेति यो जपेत् | त्रिसन्ध्यं     तंसुकृतिनं     जपाम्य्ह्म  पिध्रुवं || (#पद्म_पुराण)</blockquote>जो नित्य विश्वेश्वर विश्वेश्वर , हे विश्वनाथ विश्वनाथ ऐसा जपता है , विश्वनाथ जी कहते है कि तीनों संध्यायो में मैं भी उसे जपता हु अर्थात मै उनको इस संसार से तार देता हूं ।
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काशी यः सेवते जन्तु  निर्विकल्पेन चेतसा |  तमहं  हृदये   नित्यं  धारयामि  प्रयत्नतः ||(#काशी_खण्ड् )</blockquote>विश्वनाथ जी कहते हैं की जो मनुष्य हृदय में काशी का ध्यान करता है साथ ही जो मनुष्य निर्विकल्प चित से काशी का स्मरण करता है , समझना चाहिए कि उसने मेरा हृदय में ध्यान कर लिया , उससे मैं सदा सेवित रहता हूं तथा मैं नित्य उसे प्रयत्न पूर्वक अपने हृदय में धारण करता हूं ।<blockquote>नित्यं विश्वेश  विश्वेश विश्वनाथेति यो जपेत् | त्रिसन्ध्यं     तंसुकृतिनं     जपाम्य्ह्म  पिध्रुवं || (#पद्म_पुराण)</blockquote>जो नित्य विश्वेश्वर विश्वेश्वर , हे विश्वनाथ विश्वनाथ ऐसा जपता है , विश्वनाथ जी कहते है कि तीनों संध्यायो में मैं भी उसे जपता हु अर्थात मै उनको इस संसार से तार देता हूं ।
    
गच्क्षता  तिष्ठता वापि  स्वपता जग्रताथवा | काशीत्येष महामन्त्रो येन जप्तः स निर्गम ||
 
गच्क्षता  तिष्ठता वापि  स्वपता जग्रताथवा | काशीत्येष महामन्त्रो येन जप्तः स निर्गम ||
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== काशीखण्डोक्त अनुक्रमयात्रा  ==
 
== काशीखण्डोक्त अनुक्रमयात्रा  ==
<blockquote>विश्वेशं  माधवं ढूंढिम , दंडपाणि च भैरवं । वंदे काशीं गुहां गङ्गा, भवानी मणिकर्णिकां ।।</blockquote>1. #विश्वेशं = श्री काशी विश्वनाथ  
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<blockquote>विश्वेशं  माधवं ढूंढिम , दंडपाणि च भैरवं । वंदे काशीं गुहां गङ्गा, भवानी मणिकर्णिकां ।।</blockquote>1.विश्वेशं = श्री काशी विश्वनाथ  
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2. #माधवं = बिंदु माधव पंचगंगा घाट
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2.माधवं = बिंदु माधव पंचगंगा घाट
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3. #ढूंढी = ढूंढी राज विनायक , गेट नंबर 4 से अन्नपूर्णा मंदिर
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3.ढूंढी = ढूंढी राज विनायक। (गेट नंबर 4 से अन्नपूर्णा मंदिर के पहले)
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   के पहले ।
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4.दंडपाणि = विश्वनाथ मंदिर। (ज्ञानवापी लेन)
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4. #दंडपाणि = विश्व्नाथ मंदिर ज्ञानवापी लेन , कॉरिडोर के कारण अब दर्शन बंद होगया है
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5.भैरव = काल भैरव मंदिर  
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5. #भैरव = काल भैरव मंदिर
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6.वंदे काशी = काशी देवी मंदिर। (करनघन्टा)
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6. #वंदे_काशी = काशी देवी मंदिर , करनघन्टा .
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7.गुहां = जैगीषव्य ऋषि का गुफा। (पाताल पूरीमठ, ईश्वरगंगी)
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7. #गुहां = जैगीषव्य ऋषि का गुफा पाताल पूरीमठ । ईश्वरगंगी।
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8.गंगा = गंगा दर्शन गंगा स्नान और आदि गंगा। (ईश्वर गंगी पोखरा )
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8. #गंगा = गंगा दर्शन गंगा स्नान और (आदि गंगा , ईश्वर गंगी पोखरा )
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9.भवानी =भवानी गौरी। (अन्नपूर्णा मंदिर में राम दरबार के आंगन में)
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9. #भवानी =भवानी गौरी , अन्नपूर्णा मंदिर में राम दरबार के आंगन में(प्राचीन समय मे यहां भवानी कुंड भी था जो अब लुप्त होगया है । वर्तमान  समय मे माता अन्नपूर्णा को भवानी नाम से जाना जाता है और भवानी गौरी को ही आदि अन्नपूर्णा कहा जाता है (दोनों एक ही मानी गयी है)
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(प्राचीन समय मे यहां भवानी कुंड भी था जो अब लुप्त होगया है । वर्तमान  समय में माता अन्नपूर्णा को भवानी नाम से जाना जाता है और भवानी गौरी को ही आदि अन्नपूर्णा कहा जाता है (दोनों एक ही मानी गयी हैं)
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10. #मणिकर्णिकां = मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर मणिकर्णिका देवी दर्शन सिंधिया घाट के ऊपर आत्मविरेश्वर मंदिर के सामने
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10.मणिकर्णिकां = मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर मणिकर्णिका देवी दर्शन। (सिंधिया घाट के ऊपर आत्मविरेश्वर मंदिर के सामने)
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जो व्यक्ति काशी में अनेक प्रकार की यात्राएं करने में असक्षम है , वह इस अनुक्रम यात्रा को अवश्य करे
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(जो व्यक्ति काशी में अनेक प्रकार की यात्राएं करने में असक्षम है ,वह इस अनुक्रम यात्रा को अवश्य करें)
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== काशी_खण्डोक्त शारदीयनवरात्रयात्रा ==
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== काशीखण्डोक्त शारदीयनवरात्रयात्रा ==
 
<blockquote>प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
 
<blockquote>प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
    
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
 
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
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नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।</blockquote>1. शैलपुत्री -A40 / 11 मरहिया घाट , वाराणसी सिटी स्टेशन अलईपुरा के पास से रास्ता गया है , शैलपुत्री देवी के लिए
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नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।</blockquote>1. शैलपुत्री -
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2.ब्रह्मचारिणी- K 22/ 72 दुर्गा घाट (ब्रह्मा घाट) चौखम्बा सब्जी सट्टी के आगे से काल भैरव मार्ग पर)
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(A40 / 11 मरहिया घाट , वाराणसी सिटी स्टेशन अलईपुरा के पास से रास्ता गया है , शैलपुत्री देवी के लिए)
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3.चंद्रघंटा- ck 23/34 चित्रघंटा गली , चौक रोड .
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2.ब्रह्मचारिणी-
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4.कुष्मांडा- दुर्गाकुंड प्रसिद्ध
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(K 22/ 72 दुर्गा घाट (ब्रह्मा घाट) चौखम्बा सब्जी सट्टी के आगे से काल भैरव मार्ग पर)
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5.स्कन्द माता - j 6/33 जैतपुरा पुलिस स्टेशन के पास ।
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3.चंद्रघंटा-  
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6 .कात्यायनी - सिंधिया घाट , आत्मविरेश्वर मंदिर में ।
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(ck 23/34 चित्रघंटा गली , चौक रोड .
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7.कालरात्रि - D 8/17 कालिका गली , विश्वनाथ गली ।
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4.कुष्मांडा-  
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8.अन्नपूर्णा - अन्नपूर्णा मंदिर विश्वनाथ मंदिर
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(दुर्गाकुंड प्रसिद्ध)
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9.सिद्धिदात्री - सिद्धेश्वरी गली , गढ़वासी टोला , चौक ( संकटा माता मंदिर मार्ग )
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5.स्कन्द माता -
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( j 6/33 जैतपुरा पुलिस स्टेशन के पास )
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6 .कात्यायनी -
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(सिंधिया घाट , आत्मविरेश्वर मंदिर में ।)
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7.कालरात्रि -
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(D 8/17 कालिका गली , विश्वनाथ गली )
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8.अन्नपूर्णा -
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(अन्नपूर्णा मंदिर विश्वनाथ मंदिर)
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9.सिद्धिदात्री -
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(सिद्धेश्वरी गली , गढ़वासी टोला , चौक ( संकटा माता मंदिर मार्ग )
    
एक मत यह कहता है कि ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं।
 
एक मत यह कहता है कि ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं।
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नवरात्रि यात्रा  आदि अन्नपूर्णा
 
नवरात्रि यात्रा  आदि अन्नपूर्णा
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अश्विन_शुक्ल_पक्ष   प्रतिप्रदा से नवमी तक
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अश्विन शुक्ल पक्ष   प्रतिप्रदा से नवमी तक
    
यह मंदिर आदि अन्नपूर्णा नाम से भी जाना जाता है। काशी खण्ड पुस्तक के अनुसार काशी वाशियो को क्षेम कुशल के लिए यहां नवरात्रि के पूरे नौ दिन तक यात्रा करनी चाहिए ।
 
यह मंदिर आदि अन्नपूर्णा नाम से भी जाना जाता है। काशी खण्ड पुस्तक के अनुसार काशी वाशियो को क्षेम कुशल के लिए यहां नवरात्रि के पूरे नौ दिन तक यात्रा करनी चाहिए ।
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काशी में अनादि काल से ही सभी प्रकार की शांति को देने के लिए यहां पर उपशान्त शिव विराजमान हुवे है । जो व्यक्ति मानसिक रूप में परेशान चल रहे हो या मन अशांत चल रहा है वह लोग यहां दर्शन पूजन कर के विशेष लाभ ले सकते है ।
 
काशी में अनादि काल से ही सभी प्रकार की शांति को देने के लिए यहां पर उपशान्त शिव विराजमान हुवे है । जो व्यक्ति मानसिक रूप में परेशान चल रहे हो या मन अशांत चल रहा है वह लोग यहां दर्शन पूजन कर के विशेष लाभ ले सकते है ।
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मंदिर प्रांगण में उपस्थित होते ही असीम शांति एवं ऊर्जा मिलती है और अक्सर यहाँ विशेष प्रकार के पूजा हवन (अनुष्ठान) होते रहते है जिसमे ,
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मंदिर प्रांगण में उपस्थित होते ही असीम शांति एवं ऊर्जा मिलती है और अक्सर यहाँ विशेष प्रकार के पूजा हवन (अनुष्ठान) होते रहते है जिसमें मूढ़शांति, कालसर्पदोष शांति, मंगलदोष शांति, मारकग्रह शान्ति आदि अनेक प्रकार के अनुष्ठान होते है जिससे कुंडली मे बन रहे दोष शांत हो जाते है ।
 
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<nowiki>#</nowiki>मूढ़शांति , #कालसर्पदोष शांति , #मंगलदोष शांति , #मारकग्रह शान्ति न जाने कितने ही प्रकार के अनुष्ठान होते है जिसमे कुंडली मे बन रहे दोष शांत हो जाते है ।
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<nowiki>#</nowiki>उपशांतेश्वर_महिमा
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उपशांतेश्वर महिमा
    
तस्य लिङ्गष्य संस्प्शार्त्परां शान्तिं समृछति | उप शान्तशिवं लिङ्गं दृष्ट्वा जन्मशतार्जितम ||
 
तस्य लिङ्गष्य संस्प्शार्त्परां शान्तिं समृछति | उप शान्तशिवं लिङ्गं दृष्ट्वा जन्मशतार्जितम ||
Line 514: Line 530:  
पितरों के तर्पण में जल की प्रधानता हैं क्योंकि बिना जल के तर्पण सम्भव नही होता , वही श्री हरि विष्णु का नारायण नाम भी नार=जल  , आयन= स्थान ( नारायण = जल का स्थान) है
 
पितरों के तर्पण में जल की प्रधानता हैं क्योंकि बिना जल के तर्पण सम्भव नही होता , वही श्री हरि विष्णु का नारायण नाम भी नार=जल  , आयन= स्थान ( नारायण = जल का स्थान) है
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<nowiki>#</nowiki>श्राद्ध_प्रकरण
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श्राद्ध प्रकरण
    
आयुः प्रजां विद्यां स्वर्ग मोक्षं सुखानि च  | प्रयछन्ति तथा राज्य पितरः श्राद्ध तपिर्ता || (#वृहद_सनातन_मार्तंड)
 
आयुः प्रजां विद्यां स्वर्ग मोक्षं सुखानि च  | प्रयछन्ति तथा राज्य पितरः श्राद्ध तपिर्ता || (#वृहद_सनातन_मार्तंड)
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ललिता_गौरी  काशी_खण्डोक्त
 
ललिता_गौरी  काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>अश्विन_कृष्ण_पक्ष_द्वितीया 22-9 से 23-9 21 तक
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अश्विन_कृष्ण_पक्ष_द्वितीया 22-9 से 23-9 21 तक
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आज 17/9/21#विश्वकरमेश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त
 
आज 17/9/21#विश्वकरमेश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>भाद्र_शुक्ल_पक्ष_एकादशी
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भाद्र शुक्ल पक्ष एकादशी
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विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र त्वष्टा के यहां जन्म लिए थे , बचपन से ही हर कार्य मे निपुण होने के कारण उनका नाम विश्वकर्मा पड़ा , बाल्यकाल में ही यग्योपवित होजाने के कारण वह केवल भिक्षा द्वारा ही भोजन करते थे ।
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विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र त्वष्टा के यहां जन्म लिए थे, बचपन से ही हर कार्य मे निपुण होने के कारण उनका नाम विश्वकर्मा पड़ा, बाल्यकाल में ही यज्ञोपवित होजाने के कारण वह केवल भिक्षा द्वारा ही भोजन करते थे ।
    
गरुकुल में पढ़ाई के साथ साथ अपने गुरु के आज्ञा को ही सर्वोपरि मान कर कार्य किया करते थे ,
 
गरुकुल में पढ़ाई के साथ साथ अपने गुरु के आज्ञा को ही सर्वोपरि मान कर कार्य किया करते थे ,
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एक बार वर्षा ऋतु में उनके #गुरु ने उनसे ऐसा घर बनाने को कहा जो सदा नया और मजबूत रहे ।
 
एक बार वर्षा ऋतु में उनके #गुरु ने उनसे ऐसा घर बनाने को कहा जो सदा नया और मजबूत रहे ।
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<nowiki>#</nowiki>गुरु_माता ने भी ऐसे वस्त्रों की मांग की जो कभी खराब न हो और हमेशा उज्ज्वल रहे ।
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गुरु_माता ने भी ऐसे वस्त्रों की मांग की जो कभी खराब न हो और हमेशा उज्ज्वल रहे ।
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<nowiki>#</nowiki>गुरु_पुत्र ने कभी न टूटने वाली पादुका (चप्पल) की मांग की जो बिना चमड़े की हो और पानी मे भी चल पाए ।
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गुरु_पुत्र ने कभी न टूटने वाली पादुका (चप्पल) की मांग की जो बिना चमड़े की हो और पानी मे भी चल पाए ।
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<nowiki>#</nowiki>गुरु_कन्या में हाथी दांत के खिलौने , सोने के कर्णफूल (झुमके) कभी न टूटने वाले बर्तन , और कुछ बड़े बर्तन भी जो बिना धोए ही साफ रहे ।
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गुरु_कन्या में हाथी दांत के खिलौने , सोने के कर्णफूल (झुमके) कभी न टूटने वाले बर्तन , और कुछ बड़े बर्तन भी जो बिना धोए ही साफ रहे ।
    
इनको बनाने की विद्या से अनभिज्ञ होने पर भी विश्वकर्मा ने यह सब बनाने का संकल्प ले लिया और कुछ दिन सोच में पड़े रहने के बाद , वह निर्जन जंगल मे चले गए और चिंता में कहने लगे कि मैं। "" क्या करूँ? किसकी शरण मे जाऊ ? जो गरुकुल कि प्रतिज्ञा पूरी नही करता वह नरक में जाता है ।
 
इनको बनाने की विद्या से अनभिज्ञ होने पर भी विश्वकर्मा ने यह सब बनाने का संकल्प ले लिया और कुछ दिन सोच में पड़े रहने के बाद , वह निर्जन जंगल मे चले गए और चिंता में कहने लगे कि मैं। "" क्या करूँ? किसकी शरण मे जाऊ ? जो गरुकुल कि प्रतिज्ञा पूरी नही करता वह नरक में जाता है ।
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पता- सिंधिया घाट पर , आत्मविरेश्वर मंदिर में पीछे कुवे के बगल में ।
 
पता- सिंधिया घाट पर , आत्मविरेश्वर मंदिर में पीछे कुवे के बगल में ।
   −
===== सोहरहिया_मेला_दर्शन =====
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===== सोहरहिया मेला दर्शन =====
महालक्ष्मीश्वर  सोहरहिया_महादेव काशीखण्डोक्त_लिंग    
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महालक्ष्मीश्वर  सोहरहिया महादेव (काशीखण्डोक्त लिंग)    
    
महालक्ष्मी देवी के द्वारा पूजित लिंग
 
महालक्ष्मी देवी के द्वारा पूजित लिंग
   −
कुण्ड श्रीकण्ठसंज्ञितं तत्र कुण्डे नरः स्नात्वा
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कुण्ड श्रीकण्ठसंज्ञितं तत्र कुण्डे नरः स्नात्वा। दाता नृप प्रभावातः
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दाता नृप प्रभावातः
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महालक्ष्मिश्वर लिङ्गं तस्य कुण्डस्य सन्निधो महालक्षमीं समभ्यचर्य स्नातस्तत्कुण्ड्वारिषु चामरासक्त हस्ता भिर्दिदिव्यस्त्रीभिस्च विज्यते।
 
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महालक्ष्मिश्वर लिङ्गं तस्य कुण्डस्य सन्निधो
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महालक्षमीं समभ्यचर्य स्नातस्तत्कुण्ड्वारिषु
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चामरासक्त हस्ता भिर्दिदिव्यस्त्रीभिस्च विज्यते
      
जो व्यक्ति श्रीकंठ (लक्ष्मीकुंड) नामक कुंड में स्नान करता है वह लक्ष्मी जी की कृपा से राजा के तरह बहुत भारी दाता होजाता है ।
 
जो व्यक्ति श्रीकंठ (लक्ष्मीकुंड) नामक कुंड में स्नान करता है वह लक्ष्मी जी की कृपा से राजा के तरह बहुत भारी दाता होजाता है ।
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पता - लक्ष्मीकुंड के पास सोहरहिया महादेव नाम से प्रसिद्ध।
 
पता - लक्ष्मीकुंड के पास सोहरहिया महादेव नाम से प्रसिद्ध।
   −
<nowiki>#</nowiki>श्री_महालक्ष्मी_देवी    #काशीखण्डोक्त
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==== श्री महालक्ष्मी देवी (काशीखण्डोक्त) ====
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सोरहिया मेला यात्रा काशी वार्षिक यात्रा
   −
<nowiki>#</nowiki>सोरहिया_मेला_यात्रा    #काशी_वार्षिक_यात्रा
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लक्खा मेला
   −
<nowiki>#</nowiki>लक्खा_मेला
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महालक्ष्मी के पूजन और व्रत का नाम सोरहिया इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें 16 के अंक का विशेष महत्व है और यह मेला और व्रत 16 दिनों तक चलता है। 16 दिनाें तक व्रत रखने वाली महिलाओं ने मां को 16 गांठ का धागा अर्पित करती है । 16 दाना चावल की 16 पुड़िया और 16 दूर्वा अर्पित करके महिलाओं ने माता के स्वरूप की 16 परिक्रमा कर विधान पूर्ण किया जाता है ।  माता पार्वती ने महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए काशी में यह पूजन किया था। उन्होंने 16 कलश स्थापित करके पूजन किया और महालक्ष्मी प्रसन्न हुई थीं। उन्होंने माता पार्वती को पुत्रवती होने का वरदान दिया और कहा कि जो भी यह 16 दिनों का व्रत अनुष्ठान करेगा उसको धन-धान्य, सौभाग्य और पुत्र की प्राप्ति होगी।
   −
महालक्ष्मी के पूजन और व्रत का नाम सोरहिया इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें 16 के अंक का विशेष महत्व है और यह मेला और व्रत 16 दिनों तक चलता है
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====== माहात्म्य ======
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स्नात्वा श्रीकुण्डतिर्थे तु समचर्या जग्दम्बिका। पित्रन संतपर्य विधिवतीर्थे श्रीकुण्डसंज्ञिते॥
   −
16 दिनाें तक व्रत रखने वाली महिलाओं ने मां को 16 गांठ का धागा अर्पित करती है । 16 दाना चावल की 16 पुड़िया और 16 दूर्वा अर्पित करके महिलाओं ने माता के स्वरूप की 16 परिक्रमा कर विधान पूर्ण किया जाता है ।  माता पार्वती ने महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए काशी में यह पूजन किया था। उन्होंने 16 कलश स्थापित करके पूजन किया और महालक्ष्मी प्रसन्न हुई थीं। उन्होंने माता पार्वती को पुत्रवती होने का वरदान दिया और कहा कि जो भी यह 16 दिनों का व्रत अनुष्ठान करेगा उसको धन-धान्य, सौभाग्य और पुत्र की प्राप्ति होगी।
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दत्वा दानानि विधिवन्न लक्ष्म्या परिमुच्येते॥
 
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<nowiki>#</nowiki>महिमा
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स्नात्वा श्रीकुण्डतिर्थे तु समचर्या जग्दम्बिका
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पित्रन संतपर्य विधिवतीर्थे श्रीकुण्डसंज्ञिते
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  −
दत्वा दानानि विधिवन्न लक्ष्म्या परिमुच्येते
      
लक्ष्मी कुंड में नहा कर महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए , तथा उस जल से लक्ष्मी कुंड नामक तीर्थ में विधिपूर्वक पितरों का तर्पण और विविध तरह के दान के करने से मनुष्य सदैव लक्ष्मीवान बना रहता है ।
 
लक्ष्मी कुंड में नहा कर महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए , तथा उस जल से लक्ष्मी कुंड नामक तीर्थ में विधिपूर्वक पितरों का तर्पण और विविध तरह के दान के करने से मनुष्य सदैव लक्ष्मीवान बना रहता है ।
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लक्ष्मीक्षेत्रं महापिठं साधकस्येव सिद्धिदम
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लक्ष्मीक्षेत्रं महापिठं साधकस्येव सिद्धिदम। साधकस्तत्र मन्त्राश्च नरः सिद्धिमवाप्युनात॥
   −
साधकस्तत्र मन्त्राश्च नरः सिद्धिमवाप्युनात
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साधकों का परमसिद्धिप्रद लक्ष्मीक्षेत्र नामक महापीठ है, जो मनुष्य वहां पर मन्त्रो की साधना करता है, वह अनायास ही सिद्धि को पा जाता है ।
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साधको का परमसिद्धिप्रद लक्ष्मीक्षेत्र नामक महापीठ है , जो मनुष्य वहां पर मन्त्रो की साधना करता है , वह अनायास ही सिद्धि को पा जाता है ।
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सन्ति पीठान्यकानि काश्यां सिद्धिकरण्यपि।महालक्ष्मीपीठसमं नान्यल्क्ष्मीकरं परम॥
   −
सन्ति पीठान्यकानि काश्यां सिद्धिकरण्यपि
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महालक्ष्म्यष्टमीं  प्राप्य तत्र यात्राकृतां नृणां।संपुजिते विधिवत् पद्मा सद्म न मुच्चति॥
   −
महालक्ष्मीपीठसमं नान्यल्क्ष्मीकरं परम
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काशीपूरी में सिद्धि देने वाले अनेक पीठ है, पर महालक्ष्मी के समान परमलक्ष्मीकारक दूसरा कोई नही है। (कुआर वदी) महालक्ष्मी की अष्टमी पर वहां की यात्रा करने वालो के घर को विधिवत पूजित होने से महालक्ष्मी देवी काशी में कभी नही छोड़ती ।
 
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महालक्ष्म्यष्टमीं  प्राप्य तत्र यात्राकृतां नृणां
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संपुजिते विधिवत् पद्मा सद्म न मुच्चति
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काशीपूरी में सिद्धि देने वाले अनेक पीठ है , पर महालक्ष्मी के समान परमलक्ष्मीकारक दूसरा कोई नही है । (कुआर वदी) महालक्ष्मी की अष्टमी पर वहां की यात्रा करने वालो के घर को विधिवत पूजित होने से महालक्ष्मी देवी काशी में कभी नही छोड़ती ।
      
पता - D52/40 luxa laxmi kund
 
पता - D52/40 luxa laxmi kund
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<nowiki>#</nowiki>संतानेश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त
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==== संतानेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) ====
 
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भाद्रशुक्ल सप्तमी  संतान सप्तमी_यात्रा 13/9/21
<nowiki>#</nowiki>भाद्रशुक्ल_सप्तमी  #संतान_सप्तमी_यात्रा 13/9/21
      
लोलार्क षष्टि के ठीक दूसरे दिन सप्तमी तिथि में संतानेश्वर महादेव के दर्शन का विधान प्राचीन काल से ही चला आरहा है। आज के दिन यहां दर्शन करने से संतान की रक्षा होती है साथ ही संतान की वृद्धि होती है ।
 
लोलार्क षष्टि के ठीक दूसरे दिन सप्तमी तिथि में संतानेश्वर महादेव के दर्शन का विधान प्राचीन काल से ही चला आरहा है। आज के दिन यहां दर्शन करने से संतान की रक्षा होती है साथ ही संतान की वृद्धि होती है ।
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पता- अस्सीघाट के पास भदैनी मुहल्ले में , वाराणसी ।
 
पता- अस्सीघाट के पास भदैनी मुहल्ले में , वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>ढूंढी_विनायक        #काशी_खण्डोक्त
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===== ढूंढी विनायक (काशी खण्डोक्त) =====
 
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भाद्रपद शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी दर्शन
<nowiki>#</nowiki>भाद्_शुक्ल_पक्ष_गणेश_चतुर्थी_दर्शन
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10-9-21 तिथि दर्शन
      
प्रथम पूज्य श्री ढूंढी राज़ गणेश
 
प्रथम पूज्य श्री ढूंढी राज़ गणेश
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गणेश जी के वश में हो जाने के बाद विष्णु जी ने राजा को काशी से उच्चाटीत (मुक्त) कर के विश्वकर्मा के द्वारा नई काशी का निर्माण करवाया और शिव जी को मंदरांचल से काशी आने का निमंत्रण दिया ।
 
गणेश जी के वश में हो जाने के बाद विष्णु जी ने राजा को काशी से उच्चाटीत (मुक्त) कर के विश्वकर्मा के द्वारा नई काशी का निर्माण करवाया और शिव जी को मंदरांचल से काशी आने का निमंत्रण दिया ।
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<nowiki>#</nowiki>गणेश_चतुर्थी_व्रत_कथा (ganesh chaturthi vrat katha)
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गणेश चतुर्थी व्रत कथा
    
धार्मिक दृष्टि से कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक पौराणिक कथा ये भी है. पुराणों के अनुसार एक बार सभी देवता संकट में घिर गए और उसके निवारण के लिए वे भगवान शिव के पास पहुंचे. उस समय भगवान शिव और माता पार्वती अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश के साथ मौजूद थे. देवताओं की समस्या सुनकर भगवान शिव ने दोनों पुत्र से प्रश्न किया कि देवताओं की समस्याओं का निवारण तुम में से कौन कर सकता है. ऐसे में दोनों ने एक ही स्वर में खुद को इसके योग्य बताया.
 
धार्मिक दृष्टि से कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक पौराणिक कथा ये भी है. पुराणों के अनुसार एक बार सभी देवता संकट में घिर गए और उसके निवारण के लिए वे भगवान शिव के पास पहुंचे. उस समय भगवान शिव और माता पार्वती अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश के साथ मौजूद थे. देवताओं की समस्या सुनकर भगवान शिव ने दोनों पुत्र से प्रश्न किया कि देवताओं की समस्याओं का निवारण तुम में से कौन कर सकता है. ऐसे में दोनों ने एक ही स्वर में खुद को इसके योग्य बताया.
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गणेश को ऐसा करता देख सब अचंभित थे कि आखिर वो ऐसा करके आराम से क्यों बैठ गए हैं. भगवान शिव ने गणेश से परिक्रमा न करने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक है. उनके इस जवाब से सभी दंग रह गए. गणेश का ऐसा उत्तर पाकर भगवान शिव भी प्रसन्न हो गए और उन्हें देवता की मदद करने का कार्य सौंपा. साथ ही कहा, कि हर चतुर्थी के दिन जो तुम्हारी पूजन और उपासना करेगा उसके सभी कष्टों का निवारण होगा. इस व्रत को करने वाले के जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होगा. कहते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत कथा पढ़ने और सुनने से सभी कष्टों का नाश होता है, और जीवन भर किसी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता.
 
गणेश को ऐसा करता देख सब अचंभित थे कि आखिर वो ऐसा करके आराम से क्यों बैठ गए हैं. भगवान शिव ने गणेश से परिक्रमा न करने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक है. उनके इस जवाब से सभी दंग रह गए. गणेश का ऐसा उत्तर पाकर भगवान शिव भी प्रसन्न हो गए और उन्हें देवता की मदद करने का कार्य सौंपा. साथ ही कहा, कि हर चतुर्थी के दिन जो तुम्हारी पूजन और उपासना करेगा उसके सभी कष्टों का निवारण होगा. इस व्रत को करने वाले के जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होगा. कहते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत कथा पढ़ने और सुनने से सभी कष्टों का नाश होता है, और जीवन भर किसी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता.
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काशी विश्वनाथ जाने वाले गेट नंबर 1 पर ही इनका  मंदिर है (अन्नपूर्णा मंदिर के पहले)
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पता-काशी विश्वनाथ जाने वाले गेट नंबर 1 पर ही इनका  मंदिर है (अन्नपूर्णा मंदिर के पहले)
 
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<nowiki>#</nowiki>मंगला_गौरी      #काशी_खण्डोक्त
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<nowiki>#</nowiki>भाद्रशुक्ल_पक्ष_तृतीया_दर्शन    9-8-21
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===== हरतालिका तीज वार्षिक यात्रा =====
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<nowiki>#</nowiki>हरतालिका_तीज_वार्षिक_यात्रा
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===== मंगला गौरी(काशी खण्डोक्त) =====
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भाद्रशुक्ल पक्ष तृतीया दर्शन
    
आज के दिन समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी माँ मंगला गौरी के पूजा से मनचाहा जीवन साथी और अपने जीवन साथी के लंबी उम्र के लिए यहां प्राचीन समय से ही (हरतालिका तीज के दिन)माताएं और बहने दर्शन करती आई है ।
 
आज के दिन समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी माँ मंगला गौरी के पूजा से मनचाहा जीवन साथी और अपने जीवन साथी के लंबी उम्र के लिए यहां प्राचीन समय से ही (हरतालिका तीज के दिन)माताएं और बहने दर्शन करती आई है ।
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फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से कराना चाहते हैं। तब उनकी सहेली ने उनका हरण कर के कही और ले गयी फिर सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहाँ एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।
 
फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से कराना चाहते हैं। तब उनकी सहेली ने उनका हरण कर के कही और ले गयी फिर सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहाँ एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।
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आज के दिन अपने सखी द्वारा हरण करने और व्रत रखने  के कारण ही आज के दिन का नाम हरतालिका तीज पड़ा
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आज के दिन अपने सखी द्वारा हरण करने और व्रत रखने  के कारण ही आज के दिन का नाम हरतालिका तीज पड़ा।
    
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
 
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
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पता -पंचगंगा घाट पर स्थित मंगला गौरी प्रसिद्ध मंदिर है ।
 
पता -पंचगंगा घाट पर स्थित मंगला गौरी प्रसिद्ध मंदिर है ।
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<nowiki>#</nowiki>अंगारेश्वर_महादेव (मंगलेश्वर) #काशी_खण्डोक्त
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===== अंगारेश्वर (मंगलेश्वर) महादेव (काशी खण्डोक्त) =====
 
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मंगलवार यात्रा
<nowiki>#</nowiki>मंगलवार_यात्रा
      
मंगल देवता जिनको कुज ,अंगारक , भौम और लोहित के नाम से भी जाना जाता है यह युद्ध के देवता और धरती माता के पुत्र है और शिव जी के पसीने से उत्पन्न हुवे है , इनकी चार भुजाएं और शरीर लाल (रक्त)वर्ण का है ।
 
मंगल देवता जिनको कुज ,अंगारक , भौम और लोहित के नाम से भी जाना जाता है यह युद्ध के देवता और धरती माता के पुत्र है और शिव जी के पसीने से उत्पन्न हुवे है , इनकी चार भुजाएं और शरीर लाल (रक्त)वर्ण का है ।
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अंगारेश्वर लिंग की महिमा
 
अंगारेश्वर लिंग की महिमा
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~पुरा तपस्यतः  शम्भोदर्क्षान्या  वियोगतः |
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पुरा तपस्यतः  शम्भोदर्क्षान्या  वियोगतः। भाल स्थालात्पपातैकः  स्वेदबिन्दु मर्हितले॥
 
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भाल स्थालात्पपातैकः  स्वेदबिन्दु मर्हितले ||
      
पूर्वकाल में दाक्षायणी (सती) देवी के वियोग से तपस्या करते हुवे शिव जी के भाल स्थल से स्वेदबिन्दु (पसीना) भूमितल पर गिर पड़ा । उसी के द्वारा एक लोहितांग कुमार (मंगलदेव) उतपन्न हुवे और धरती ने माता की तरह स्नेहपूर्वक उस कुमार का लालन पोषण किया ।
 
पूर्वकाल में दाक्षायणी (सती) देवी के वियोग से तपस्या करते हुवे शिव जी के भाल स्थल से स्वेदबिन्दु (पसीना) भूमितल पर गिर पड़ा । उसी के द्वारा एक लोहितांग कुमार (मंगलदेव) उतपन्न हुवे और धरती ने माता की तरह स्नेहपूर्वक उस कुमार का लालन पोषण किया ।
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पता- चौक सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर प्रांगण में ।
 
पता- चौक सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर प्रांगण में ।
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<nowiki>#</nowiki>चन्द्रेश्वर_महादेव      #काशी_खण्डोक्त_लिंग
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===== चन्द्रेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त ) =====
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सोमवती अमावस्या दर्शन
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<nowiki>#</nowiki>सोमवती_अमावस्या_दर्शन
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चंद्रेश्वर लिंग महिमा
 
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<nowiki>#</nowiki>चंद्रेश्वर_लिंग_महिमा
      
पूर्वकाल में प्रजा एवं सृष्टि के विधानेक्षु ब्रम्हा जी के मन से ही चन्द्र देव के पिता अत्रि ऋषि उतप्पन हुवे , अत्रि ऋषि ने पहले दिव्य परिमाण से तीन सहस्त्र वर्ष अनुत्तर नामक सर्वोत्कृष्ट तपस्चर्या की थी ।
 
पूर्वकाल में प्रजा एवं सृष्टि के विधानेक्षु ब्रम्हा जी के मन से ही चन्द्र देव के पिता अत्रि ऋषि उतप्पन हुवे , अत्रि ऋषि ने पहले दिव्य परिमाण से तीन सहस्त्र वर्ष अनुत्तर नामक सर्वोत्कृष्ट तपस्चर्या की थी ।
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लोक पिता ब्रम्हा ने चंद्र को भूतल पर गिरा देख कर त्रैलोक्य की हिट साधना के इक्षा से उनको रथ पर चढ़ा लिया।
 
लोक पिता ब्रम्हा ने चंद्र को भूतल पर गिरा देख कर त्रैलोक्य की हिट साधना के इक्षा से उनको रथ पर चढ़ा लिया।
   −
स तेन रथ मुख्येन सागरान्तां वसुन्धरां |
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स तेन रथ मुख्येन सागरान्तां वसुन्धरां। त्रिः सप्तकृत्वो द्रुहिनश्व कारामुं प्रदक्षिणम॥
 
  −
त्रिः सप्तकृत्वो द्रुहिनश्व कारामुं प्रदक्षिणम
      
ब्रम्हा ने उसी चंद्र को रथ पर प्रधान बनाकर इक्कीस बार उसकोसमुद्रान्त पृथ्वी की प्रदक्षिणा करायी , उनका द्रवित जो तेज़ पृथ्वी में गिरा उसी से ये सारी औषधियां उपजी , जिनके द्वारा जगत का धारण होता है ।
 
ब्रम्हा ने उसी चंद्र को रथ पर प्रधान बनाकर इक्कीस बार उसकोसमुद्रान्त पृथ्वी की प्रदक्षिणा करायी , उनका द्रवित जो तेज़ पृथ्वी में गिरा उसी से ये सारी औषधियां उपजी , जिनके द्वारा जगत का धारण होता है ।
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स लब्धतेजा भगवान  ब्रह्मणा वर्धितः स्वयं |
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स लब्धतेजा भगवान  ब्रह्मणा वर्धितः स्वयं। तपस्तेपे  महाभाग  पद्मानां  दशतीदर्शं
 
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तपस्तेपे  महाभाग  पद्मानां  दशतीदर्शं ||
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अविमुक्तं  समासाद्य  क्षेत्रं  परम्  पावनं |
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संस्थाप्यं लिङ्ग ममृतं चन्द्रेशाख्यं स्वनामतः ||
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अविमुक्तं  समासाद्य  क्षेत्रं  परम्  पावनं । संस्थाप्यं लिङ्ग ममृतं चन्द्रेशाख्यं स्वनामतः॥
    
हे महाभाग , स्वयं ब्रह्मा से वर्धित भगवान चंद्र तेज़ पाने पर परम् पावन अविमुक्त क्षेत्र को प्राप्त होकर और स्वनामनुसार चन्द्रेश्वर नामक अमृत लिंग की स्थापना कर एक सौ पद्म प्रमाण वर्ष पर्यंत तपस्या ही करते रहे और महादेव विश्वेश्वर के प्रसाद से बीज , औषधि , जल , और ब्राह्मणों के राजा हुवे ।
 
हे महाभाग , स्वयं ब्रह्मा से वर्धित भगवान चंद्र तेज़ पाने पर परम् पावन अविमुक्त क्षेत्र को प्राप्त होकर और स्वनामनुसार चन्द्रेश्वर नामक अमृत लिंग की स्थापना कर एक सौ पद्म प्रमाण वर्ष पर्यंत तपस्या ही करते रहे और महादेव विश्वेश्वर के प्रसाद से बीज , औषधि , जल , और ब्राह्मणों के राजा हुवे ।
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पता - सिद्धेश्वरी गली , संकठा मंदिर मार्ग , चौक वाराणसी ।
 
पता - सिद्धेश्वरी गली , संकठा मंदिर मार्ग , चौक वाराणसी ।
   −
Siddheshwari devi n chandreshwer n chandrakoop(kashikhandokt)
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===== Siddheshwari devi n chandreshwer n chandrakoop(kashikhandokt) ईशानेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त मंदिर) =====
 
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सोमवारी चतुर्दशी यात्रा
 
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 · . #ईशानेश्वर
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<nowiki>#</nowiki>सोमवारी_चतुर्दशी_यात्रा  #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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<nowiki>#</nowiki>ईशानेश्वर_लिंग_महिमा
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अल्कयाः  पुरो भागे  पुरैशाणि महोदया |
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अस्यां वसन्ति सततं रुद्र भक्तास्त पोधानाः ||
+
ईशानेश्वर लिंग महिमा
   −
(काशी खण्ड)
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अल्कयाः  पुरो भागे  पुरैशाणि महोदया। अस्यां वसन्ति सततं रुद्र भक्तास्त पोधानाः॥(काशी खण्ड)
    
इस अलकापुरी के आगे के भाग में यह महोदया इशानपुरी है । इसमें शिवभक्त तपोधन लोग निवास करते है ।
 
इस अलकापुरी के आगे के भाग में यह महोदया इशानपुरी है । इसमें शिवभक्त तपोधन लोग निवास करते है ।
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जो लोग शिव के स्मरण में लगे रहते है , जो लोग शिव व्रत में दीक्षित है , जिन्होंने अपने समस्त कर्मो को शिवार्पण कर दिया है और नित्य ही शिव पूजन में तत्पर रहते है , वे सब मनुष्य " हमको सर्वभोग यहाँ से प्राप्त होवे" इस कामना से तपस्या करने वाले रुद्ररूप धारी लोग इस रम्य रुद्रपुर में निवास करते है ।
 
जो लोग शिव के स्मरण में लगे रहते है , जो लोग शिव व्रत में दीक्षित है , जिन्होंने अपने समस्त कर्मो को शिवार्पण कर दिया है और नित्य ही शिव पूजन में तत्पर रहते है , वे सब मनुष्य " हमको सर्वभोग यहाँ से प्राप्त होवे" इस कामना से तपस्या करने वाले रुद्ररूप धारी लोग इस रम्य रुद्रपुर में निवास करते है ।
   −
अजै कपादहिबुध्न्यमुख्या ऐकादशापि वै |
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अजै कपादहिबुध्न्यमुख्या ऐकादशापि वै। रुद्राः परिवृढाश्वआत्र त्रिशुलोद्यत पाणय
 
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रुद्राः परिवृढाश्वआत्र त्रिशुलोद्यत पाणय ||
      
अज , एकपाद , अहिबुर्ध्न्य प्रभृति हाथ मे त्रिशूल धारण किये हुवे एकादश रुद्र इस स्थान के प्रभु है ।
 
अज , एकपाद , अहिबुर्ध्न्य प्रभृति हाथ मे त्रिशूल धारण किये हुवे एकादश रुद्र इस स्थान के प्रभु है ।
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पुर्यष्टकं च दुष्टेभ्यो देव ध्रुग्भ्यो हय्वन्ति ते |
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पुर्यष्टकं च दुष्टेभ्यो देव ध्रुग्भ्यो हय्वन्ति ते ।प्रयक्छन्ति वरानित्यं शिव भक्त जने वराः॥
 
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प्रयक्छन्ति वरानित्यं शिव भक्त जने वराः ||
      
ये श्रेष्ठजन रुद्रगण उक्त अष्टपुरियो की दुष्टों से और देव द्रोहियो से सदा रक्षा करते है और शिव जनों को वर प्रदान करते है ।
 
ये श्रेष्ठजन रुद्रगण उक्त अष्टपुरियो की दुष्टों से और देव द्रोहियो से सदा रक्षा करते है और शिव जनों को वर प्रदान करते है ।
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पता- शाहपुरी मॉल , बांसफाटक मार्ग , गोदौलिया , वाराणसी ।
 
पता- शाहपुरी मॉल , बांसफाटक मार्ग , गोदौलिया , वाराणसी ।
   −
<nowiki>#</nowiki>गंगा_तिरस्त_श्री_महालक्ष्मी    #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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===== गंगा तिरस्त श्री महालक्ष्मी(काशी खण्डोक्त मंदिर) =====
 
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भाद्र कृष्ण पक्ष नवमी काशी खण्ड वार्षिक यात्रा
<nowiki>#</nowiki>भाद्र_कृष्ण_पक्ष_नवमी    #काशी_खण्ड_वार्षिक_यात्रा
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31/8/21 मंगलवार
      
केदार घाट के गली में श्री गौरी केदारेश्वर के मंदिर के थोड़ा पहले ही यह मंदिर स्थापित है । स्कंद पुराण में (काशीखण्ड)  वर्णन होने के कारण इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है, काशी में बहुत से लोग इस मंदिर से अनजान है यहां माँ लक्ष्मी श्री हरि विष्णु के साथ विराजित है और इनका विग्रह भी उतना ही प्राचीन है जितना इनका इतिहास है (शायद मुग़ल काल मे यह मंदिर तोड़ फोड़ से बच गया हो क्योंकि यह मंदिर घर के अंदर था , ऐसे ही कई मंदिर बच गए थे काशी में , वाराणसी वैभव पुस्तक के अनुसार 1100 ईसवी से ही बाहरी आक्रमणकारी काशी में मंदिर तोड़ते आये है , काशी में ज्यादातर मंदिर विग्रह के रक्षा के लिए अपने स्थान से हटाए गए है या टूटने के कारण नया विग्रह स्थापित किया गया है )
 
केदार घाट के गली में श्री गौरी केदारेश्वर के मंदिर के थोड़ा पहले ही यह मंदिर स्थापित है । स्कंद पुराण में (काशीखण्ड)  वर्णन होने के कारण इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है, काशी में बहुत से लोग इस मंदिर से अनजान है यहां माँ लक्ष्मी श्री हरि विष्णु के साथ विराजित है और इनका विग्रह भी उतना ही प्राचीन है जितना इनका इतिहास है (शायद मुग़ल काल मे यह मंदिर तोड़ फोड़ से बच गया हो क्योंकि यह मंदिर घर के अंदर था , ऐसे ही कई मंदिर बच गए थे काशी में , वाराणसी वैभव पुस्तक के अनुसार 1100 ईसवी से ही बाहरी आक्रमणकारी काशी में मंदिर तोड़ते आये है , काशी में ज्यादातर मंदिर विग्रह के रक्षा के लिए अपने स्थान से हटाए गए है या टूटने के कारण नया विग्रह स्थापित किया गया है )
Line 870: Line 839:  
पता -केदारघाट पर  श्री गौरी केदारेश्वर  मंदिर के मेन गेट के थोड़ा पहले यह मंदिर है , लोहे के गेट के अंदर धर्मशाला में ।
 
पता -केदारघाट पर  श्री गौरी केदारेश्वर  मंदिर के मेन गेट के थोड़ा पहले यह मंदिर है , लोहे के गेट के अंदर धर्मशाला में ।
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<nowiki>#</nowiki>कृष्णेश्वर_महादेव    #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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===== कृष्णेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त मंदिर) =====
 
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भाद्र कृष्ण पक्ष जन्माष्टमी दर्शन
<nowiki>#</nowiki>भाद्र_कृष्ण_पक्ष_जन्माष्टमी_दर्शन 30/8/21
      
जब श्री कृष्ण पांडवो के साथ शिव लिंग स्थापना के उद्देश्य से काशी में आये थे और कृष्णेश्वर नामक लिंग की स्थापना किया , इस लिंग के पूजन अर्चना करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
 
जब श्री कृष्ण पांडवो के साथ शिव लिंग स्थापना के उद्देश्य से काशी में आये थे और कृष्णेश्वर नामक लिंग की स्थापना किया , इस लिंग के पूजन अर्चना करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
Line 884: Line 852:  
पता - संकटा घाट (सिंधिया घाट के पास) के पीछे वाली गली  में ck 7/159
 
पता - संकटा घाट (सिंधिया घाट के पास) के पीछे वाली गली  में ck 7/159
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1. #बलराम_जयंती या  #हल_षष्टी  28/8/21
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==== लक्ष्मणेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त वार्षिक यात्रा) ====
 
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बलराम जयंती हल षष्टी
2. #लक्ष्मणेश्वर_महादेव  #काशी_खण्डोक्त_वार्षिक_यात्रा
      
हिन्दी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल छठ, हल षष्ठी या बलराम जयंती मनाई जाती है। हल षष्ठी के अवसर पर भगवान ​श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। बलराम जी का जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पूर्व होता है। इस वर्ष हल षष्ठी या बलराम जयंती 28 अगस्त दिन शनिवार को है, जबकि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त दिन सोमवार को है।
 
हिन्दी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल छठ, हल षष्ठी या बलराम जयंती मनाई जाती है। हल षष्ठी के अवसर पर भगवान ​श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। बलराम जी का जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पूर्व होता है। इस वर्ष हल षष्ठी या बलराम जयंती 28 अगस्त दिन शनिवार को है, जबकि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त दिन सोमवार को है।
Line 904: Line 871:  
पता-बंगाली टोला के पास हनुमान घाट पर
 
पता-बंगाली टोला के पास हनुमान घाट पर
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<nowiki>#</nowiki>संगमेश्वर_महादेव  #काशी_खण्डोक्त
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==== संगमेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) ====
 
   
गङ्गा और  वरुणा नदी क सङ्गं मे स्थित यह लिङ्ग की पूजा अर्चना करने से सभी पाप कट जाते है और शास्त्रो में ऐसा वर्णीत है कि यहां रुद्राभिषेक करने से गौदान का फल प्राप्त होता है और इस तीर्थ पर अन्नदान का भी बहुत महात्म्य है ।
 
गङ्गा और  वरुणा नदी क सङ्गं मे स्थित यह लिङ्ग की पूजा अर्चना करने से सभी पाप कट जाते है और शास्त्रो में ऐसा वर्णीत है कि यहां रुद्राभिषेक करने से गौदान का फल प्राप्त होता है और इस तीर्थ पर अन्नदान का भी बहुत महात्म्य है ।
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~सङ्गमेश महालिङ्गं  प्रतिष्ठयादि  केशवः |
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सङ्गमेश महालिङ्गं  प्रतिष्ठयादि  केशवः। दर्शनादघहन्णानं भुक्तिं मुक्तिं दिशेत्सदा॥(काशी खण्ड)
 
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दर्शनादघहन्णानं भुक्तिं मुक्तिं दिशेत्सदा ||
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(#काशी_खण्ड)
      
आदिकेशव (भगवान विष्णु) द्वारा प्रतिष्ठापित ( स्थापित ) महाशिवलिंग के दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है और मुक्ति (मोक्ष) मिलती है ।
 
आदिकेशव (भगवान विष्णु) द्वारा प्रतिष्ठापित ( स्थापित ) महाशिवलिंग के दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है और मुक्ति (मोक्ष) मिलती है ।
Line 918: Line 880:  
पता- आदिकेशव मंदिर A 37/41 आदिकेशव घाट वरुणा संगम ।
 
पता- आदिकेशव मंदिर A 37/41 आदिकेशव घाट वरुणा संगम ।
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<nowiki>#</nowiki>सिद्धि_विनायक      #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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सिद्धि विनायक वा सिद्धि लक्ष्मी( काशी खण्डोक्त मंदिर)
 
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<nowiki>#</nowiki>सिद्धि_लक्ष्मी          #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
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<nowiki>#</nowiki>संकष्टी_चतुर्थी  #बुधवार 25/8/21
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संकष्टी चतुर्थी
    
काशी के श्रेष्ठतम तीर्थ मणिकर्णिका पर स्थित सिद्धि विनायक और सिद्धि लक्ष्मी के मंदिर में भक्तों की फरियाद तुरन्त सुनी जाती है ।
 
काशी के श्रेष्ठतम तीर्थ मणिकर्णिका पर स्थित सिद्धि विनायक और सिद्धि लक्ष्मी के मंदिर में भक्तों की फरियाद तुरन्त सुनी जाती है ।
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<nowiki>#</nowiki>बुधवार_को_होता_है_विशेष_दर्शन जिसमे स्थानीय लोग अपने सामर्थ अनुसार विविध प्रकार से पूजा करते है जिसके फल स्वरूप सिद्धि विनायक उनके समस्त विघ्न हर लेते है ।
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बुधवार_को_होता_है_विशेष_दर्शन जिसमे स्थानीय लोग अपने सामर्थ अनुसार विविध प्रकार से पूजा करते है जिसके फल स्वरूप सिद्धि विनायक उनके समस्त विघ्न हर लेते है ।
 
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<nowiki>#</nowiki>शुक्रवार को विशेष दर्शन माता सिद्धि लक्ष्मी का होता है , शास्त्रो के अनुसार यहाँ दर्शन पूजन से सभी प्रकार की सिद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है
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सिद्दलक्ष्मी  जगत्धत्री  प्रतीच्याममृतेश्वरात |
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शुक्रवार को विशेष दर्शन माता सिद्धि लक्ष्मी का होता है , शास्त्रो के अनुसार यहाँ दर्शन पूजन से सभी प्रकार की सिद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है
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प्रपितामहलिङ्गष्य  पुरतः  सिद्धिदाःचिर्ताः ||
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सिद्दलक्ष्मी  जगत्धत्री  प्रतीच्याममृतेश्वरात। प्रपितामहलिङ्गष्य  पुरतः  सिद्धिदाःचिर्ताः॥
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प्रसादं सिद्धलक्ष्म्याश्च विलोक्य  कमला कृतं |
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प्रसादं सिद्धलक्ष्म्याश्च विलोक्य  कमला कृतं। लक्ष्मीविलाससंज्ञं च को न लक्ष्मीं समाप्युनात॥ (काशी खण्ड)
 
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लक्ष्मीविलाससंज्ञं च को न लक्ष्मीं समाप्युनात् ||
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(#काशी_खण्ड)
      
पिता महेश्वर लिंग के आगे ही जगन्माता सिद्धि लक्ष्मी देवी विराजमान है , पूजन करने से वह सब सिद्धियों को देती है ।
 
पिता महेश्वर लिंग के आगे ही जगन्माता सिद्धि लक्ष्मी देवी विराजमान है , पूजन करने से वह सब सिद्धियों को देती है ।
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पता- मणिकर्णिका घाट पर चकरपुष्कर्णी कुंड के बगल की सीढ़ी से ऊपर जा कर , गौमठ , गढ़वासी टोला चौक वाराणसी।
 
पता- मणिकर्णिका घाट पर चकरपुष्कर्णी कुंड के बगल की सीढ़ी से ऊपर जा कर , गौमठ , गढ़वासी टोला चौक वाराणसी।
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यहां ऐसी मान्यता है कि #गणेश_अथर्वश्रीर्ष का पाठ करने से 1000 गुना ज्यादा फल मिलता है और सिद्धि लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए #कनक_धारा स्तोत्र पढ़ने का विधान चला आरहा है ।
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यहां ऐसी मान्यता है कि गणेश_अथर्वश्रीर्ष का पाठ करने से 1000 गुना ज्यादा फल मिलता है और सिद्धि लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कनक धारा स्तोत्र पढ़ने का विधान चला आरहा है ।
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1. #जागेश्वर_महादेव या #अग्नि_ध्रुवेश्वर_लिंग
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==== जागेश्वर महादेव या अग्नि ध्रुवेश्वर लिंग ====
 
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2. #ईश्वर_गंगी_पोखरा या #अग्नि_कुंड (#आदि_गंगा)
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==== ईश्वर गंगी पोखरा या अग्नि कुंड ( आदि गंगा) ====
 
यह शिव लिंग और कुंड दोनों काशीखंड में वर्णीत है (अर्थात काशी खण्डोक्त है )
 
यह शिव लिंग और कुंड दोनों काशीखंड में वर्णीत है (अर्थात काशी खण्डोक्त है )
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पता- आदर्श इंटर मीडिएट स्कूल के पास ईश्वर गंगी रोड वाराणसी ।
 
पता- आदर्श इंटर मीडिएट स्कूल के पास ईश्वर गंगी रोड वाराणसी ।
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<nowiki>#</nowiki>आदि_महादेव या #महादेव_लिंग      #काशी_खण्डोक्त
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==== आदि महादेव या (काशी खण्डोक्त) ====
 
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श्रावण शुक्ल चतुर्दशी दर्शन वार्षिक यात्रा
<nowiki>#</nowiki>श्रावण_शुक्ल_चतुर्दशी_दर्शन  #वार्षिक_यात्रा
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21-8-21
      
महादेव लिंग का महात्म्य
 
महादेव लिंग का महात्म्य
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वृन्दार्षि  वृन्दनां  स्तुवतां  प्रथमे  युगे  |
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वृन्दार्षि  वृन्दनां  स्तुवतां  प्रथमे  युगे। उत्पन्नं यन्महालिङ्गं भूमिं भित्वा सुदुर्भिदाम॥
 
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उत्पन्नं यन्महालिङ्गं भूमिं भित्वा सुदुर्भिदाम ||
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महादेवेति  तैरुक्तं    यन्मनोरथ  पूर्णात्  |
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वाराणस्यां महादेवस्त दारम्भ्या भवच्च यत् ||
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महादेवेति  तैरुक्तं    यन्मनोरथ  पूर्णात्  । वाराणस्यां महादेवस्त दारम्भ्या भवच्च यत् (काशी_खण्ड)
 
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(#काशी_खण्ड)
      
सतयुग में देवता और मुनिवृन्दो की स्तुति करने पर बड़ी दुर्भेद्य भूमि को भेद कर जो महालिंग उत्पन्न हुआ और सभी मुनियों के मनोरथ पूर्ण करने के कारण जिनको महादेव कहा गया है , वह लिंग तब से वाराणसी में महादेव नाम से विख्यात है ।
 
सतयुग में देवता और मुनिवृन्दो की स्तुति करने पर बड़ी दुर्भेद्य भूमि को भेद कर जो महालिंग उत्पन्न हुआ और सभी मुनियों के मनोरथ पूर्ण करने के कारण जिनको महादेव कहा गया है , वह लिंग तब से वाराणसी में महादेव नाम से विख्यात है ।
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मुक्ति क्षेत्रं कृतं येन महालिङ्गेन काशिका |
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मुक्ति क्षेत्रं कृतं येन महालिङ्गेन काशिका। अविमुक्ते  महादेवं यो दक्ष्यत्यत्र  मानवः॥
 
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अविमुक्ते  महादेवं यो दक्ष्यत्यत्र  मानवः ||
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शंभु  लोके  गम्तस्य यत्र तत्र  मृतस्य  हि |
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अविमुक्ते  प्रयत्नेन तत्सन्सेवयं  मुमुक्षुभिः ||
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(#काशी_खण्ड् )
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शंभु  लोके  गम्तस्य यत्र तत्र  मृतस्य  हि। अविमुक्ते  प्रयत्नेन तत्सन्सेवयं  मुमुक्षुभिः॥(काशी खण्ड् )
    
उसी महालिङ्ग ने काशी को मुक्ति क्षेत्र बनाया । अतएव इस अविमुक्त क्षेत्र में जो मनुष्य महादेव का दर्शन करेगा , वह चाहे कही भी क्यों न मरे पर अंत को शिवलोक में चला जायेगा । इसीलिए मोक्षार्थी लोगो को अविमुक्त क्षेत्र में उसी महालिंग का सेवन बड़े प्रयत्न से करना चाहिए ।
 
उसी महालिङ्ग ने काशी को मुक्ति क्षेत्र बनाया । अतएव इस अविमुक्त क्षेत्र में जो मनुष्य महादेव का दर्शन करेगा , वह चाहे कही भी क्यों न मरे पर अंत को शिवलोक में चला जायेगा । इसीलिए मोक्षार्थी लोगो को अविमुक्त क्षेत्र में उसी महालिंग का सेवन बड़े प्रयत्न से करना चाहिए ।
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