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| उसी महालिङ्ग ने काशी को मुक्ति क्षेत्र बनाया । अतएव इस अविमुक्त क्षेत्र में जो मनुष्य महादेव का दर्शन करेगा , वह चाहे कही भी क्यों न मरे पर अंत को शिवलोक में चला जायेगा । इसीलिए मोक्षार्थी लोगो को अविमुक्त क्षेत्र में उसी महालिंग का सेवन बड़े प्रयत्न से करना चाहिए । | | उसी महालिङ्ग ने काशी को मुक्ति क्षेत्र बनाया । अतएव इस अविमुक्त क्षेत्र में जो मनुष्य महादेव का दर्शन करेगा , वह चाहे कही भी क्यों न मरे पर अंत को शिवलोक में चला जायेगा । इसीलिए मोक्षार्थी लोगो को अविमुक्त क्षेत्र में उसी महालिंग का सेवन बड़े प्रयत्न से करना चाहिए । |
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− | वाराणस्यां महादेवो दृष्टयो यैर्लिन्ग रूप धृक् | | + | वाराणस्यां महादेवो दृष्टयो यैर्लिन्ग रूप धृक। तेन त्रैलोक्यलिङ्गानि दृष्टानिहः न संशय॥ |
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− | तेन त्रैलोक्यलिङ्गानि दृष्टानिहः न संशय ||
| + | वाराणस्यां महादेवं समभ्यचर्य सकृन्नर । आभूत संप्लवं याव्च्चिव्लोके वसेन्मुदा॥ |
− | | |
− | वाराणस्यां महादेवं समभ्यचर्य सकृन्नर | | |
− | | |
− | आभूत संप्लवं याव्च्चिव्लोके वसेन्मुदा || | |
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| जिस किसी ने वाराणसी क्षेत्र में लिंगरूपधारी महादेव का दर्शन किया है , निसंदेह वह त्रैलोक्य भर के समस्त लिंगो का दर्शन यही पर कर चुका है । वह महाप्रलय तक शिवलोक में बड़े हर्ष से वास करता है । जो मनुष्य काशी में एक बार भी महादेव का पूजन कर लिया , उसने विश्व के सभी लिंगो का दर्शन कर लिया है । | | जिस किसी ने वाराणसी क्षेत्र में लिंगरूपधारी महादेव का दर्शन किया है , निसंदेह वह त्रैलोक्य भर के समस्त लिंगो का दर्शन यही पर कर चुका है । वह महाप्रलय तक शिवलोक में बड़े हर्ष से वास करता है । जो मनुष्य काशी में एक बार भी महादेव का पूजन कर लिया , उसने विश्व के सभी लिंगो का दर्शन कर लिया है । |
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− | <nowiki>#</nowiki>सावन_में_जनेऊ_चढ़ाने_की_महिमा
| + | सावन में जनेऊ चढ़ाने की महिमा |
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− | पवित्रपर्वनि सदा श्रावणे मासि यत्नतः |
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− | लिङ्गे पवित्रमा रोप्य महादेवन गर्भभाक || | + | पवित्रपर्वनि सदा श्रावणे मासि यत्नतः। लिङ्गे पवित्रमा रोप्य महादेवन गर्भभाक॥ |
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| जो कोई श्रावण मास के पवित्र पर्व में (अर्थात शुक्ल चतुर्दशी के दिन) प्रयत्नपूर्वक महादेवलिंग पर पवित्रारोपण करता है (जनेऊ चढ़ता है) वह गर्भ भागी नही होता (दुबारा जन्म नही होता) । | | जो कोई श्रावण मास के पवित्र पर्व में (अर्थात शुक्ल चतुर्दशी के दिन) प्रयत्नपूर्वक महादेवलिंग पर पवित्रारोपण करता है (जनेऊ चढ़ता है) वह गर्भ भागी नही होता (दुबारा जन्म नही होता) । |
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Line 950: |
| पता - त्रिलोचन घाट पर त्रिलोचन मंदिर के पीछे आदि महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है । | | पता - त्रिलोचन घाट पर त्रिलोचन मंदिर के पीछे आदि महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है । |
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− | आज 21 अगस्त 2021 के दिन यहां दर्शन कर जनेऊ चढ़ना चाहिये ।
| + | ==== श्री वृषभध्वजेश्वर महादेव(काशीखण्डोक्त मंदिर) ==== |
− | | |
− | <nowiki>#</nowiki>श्री_वृषभध्वजेश्वर_महादेव #काशीखण्डोक्त_मंदिर
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− | | |
| शिव जी का पुनः काशी में आगमन का क्षेत्र | | शिव जी का पुनः काशी में आगमन का क्षेत्र |
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| जब काशी क्षेत्र से राजा दिवोदास को हटा दिया गया और शिव जी के आगमन की सूचना गरुण द्वारा विष्णु जी को पता चली तब उन्होंने गरुण को उचित इनाम दे कर दक्ष प्रजापति को अगुआ बना कर अगवानी की और फिर सूर्य , गणपति , योगिनी के सहित यहां शिव जी के आने की प्रतीक्षा किया । | | जब काशी क्षेत्र से राजा दिवोदास को हटा दिया गया और शिव जी के आगमन की सूचना गरुण द्वारा विष्णु जी को पता चली तब उन्होंने गरुण को उचित इनाम दे कर दक्ष प्रजापति को अगुआ बना कर अगवानी की और फिर सूर्य , गणपति , योगिनी के सहित यहां शिव जी के आने की प्रतीक्षा किया । |
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− | वृषभध्वज क्षेत्र का नाम | + | ====== वृषभध्वज क्षेत्र का नाम ====== |
− | | |
| यह वही क्षेत्र है जहां शिव जी अपने विमान से उतरे थे और विमान में बृषभ का ध्वज होने के कारण इस क्षेत्र का नाम वृषभ ध्वज पड़ा और जो शिव लिंग वहां पहले से स्थापित थे उनका नाम श्री वृषभध्वजेश्वर पड़ा । | | यह वही क्षेत्र है जहां शिव जी अपने विमान से उतरे थे और विमान में बृषभ का ध्वज होने के कारण इस क्षेत्र का नाम वृषभ ध्वज पड़ा और जो शिव लिंग वहां पहले से स्थापित थे उनका नाम श्री वृषभध्वजेश्वर पड़ा । |
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Line 976: |
Line 966: |
| उसी समय उस तीर्थ के भीतर से दिव्य पितृ लोग प्रकट हुवे उनको देखते ही देवताओं ने बड़े हर्ष से जलांजलि दी , प्रसन्न होकर पित्रो ने शिव की स्तुति किया और अपने लिए और अपने जीवित पुत्रो के लिए वरदान मांगा । | | उसी समय उस तीर्थ के भीतर से दिव्य पितृ लोग प्रकट हुवे उनको देखते ही देवताओं ने बड़े हर्ष से जलांजलि दी , प्रसन्न होकर पित्रो ने शिव की स्तुति किया और अपने लिए और अपने जीवित पुत्रो के लिए वरदान मांगा । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>शिव_ने_कहां
| + | शिव ने कहा- |
− | | |
− | शृणु विष्णु महाबाहो शृणु त्वं च पितामह |
| |
− | | |
− | ऐतस्मिन कापिले तीर्थे कपिलेय् पयोभृते ||
| |
− | | |
− | ये पिन्न्दाणि वर्पिष्यन्ति श्रध्या श्राध्नानतः |
| |
| | | |
− | तेषां पित्रणां संतृप्ति भर्विष्यते ममाज्ञा ||
| + | शृणु विष्णु महाबाहो शृणु त्वं च पितामह। ऐतस्मिन कापिले तीर्थे कपिलेय् पयोभृते॥ |
| | | |
− | (#काशी_खण्ड्) | + | ये पिन्न्दाणि वर्पिष्यन्ति श्रध्या श्राध्नानतः। तेषां पित्रणां संतृप्ति भर्विष्यते ममाज्ञा॥ (काशी_खण्ड्) |
| | | |
| हे महाबाहो , विष्णु , है पितामह , ब्राह्मण सब लोग श्रवण करो जो लोग कपिलाओ के दूध से भरे हुवे इस कपिलातीर्थ मे श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध और विधान से पिंडदान करेंगे , मेरी आज्ञा के अनुसार उनके पितृ लोगो की पूर्ण तृप्ति हो जावेगी । | | हे महाबाहो , विष्णु , है पितामह , ब्राह्मण सब लोग श्रवण करो जो लोग कपिलाओ के दूध से भरे हुवे इस कपिलातीर्थ मे श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध और विधान से पिंडदान करेंगे , मेरी आज्ञा के अनुसार उनके पितृ लोगो की पूर्ण तृप्ति हो जावेगी । |
Line 992: |
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| सोमवार से युक्त अमावस्या तिथि में यहां पर श्राद्ध करने से अक्षय फल प्राप्त होता है । | | सोमवार से युक्त अमावस्या तिथि में यहां पर श्राद्ध करने से अक्षय फल प्राप्त होता है । |
| | | |
− | कुरुक्षेत्रे नैमिषे च गङ्गा सागर सङ्गमे | | + | कुरुक्षेत्रे नैमिषे च गङ्गा सागर सङ्गमे। ग्रहणे श्रध्तो यतस्यात्त तीर्थे वार्षभ्ध्वजे ॥ |
− | | |
− | ग्रहणे श्रध्तो यतस्यात्त तीर्थे वार्षभ्ध्वजे || | |
| | | |
| सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र , नैमिशारण्य , और गंगा सागर के संगम में श्राद्ध करने से जो फल मिलता है वही फल इस वृषभध्वजतीर्थ मे भी वही पुण्य प्राप्त होता है। | | सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र , नैमिशारण्य , और गंगा सागर के संगम में श्राद्ध करने से जो फल मिलता है वही फल इस वृषभध्वजतीर्थ मे भी वही पुण्य प्राप्त होता है। |
| | | |
− | मधुस्रवेति प्रथमेषा पुष्कर्णि स्मृता | | + | मधुस्रवेति प्रथमेषा पुष्कर्णि स्मृता । कृतकृत्या ततो ज्ञेया ततोसोः क्षीरनीरधिः॥ |
− | | |
− | कृतकृत्या ततो ज्ञेया ततोसोः क्षीरनीरधिः || | |
− | | |
− | वृषभध्वजतीर्थं च तीर्थं पैतामहं ततः |
| |
− | | |
− | ततो गदाधराख्यं च पित्र तिर्थ् ततः परम् ||
| |
| | | |
− | ततः कपिलधारं वै सुधाखनिरियं पुनः | | + | वृषभध्वजतीर्थं च तीर्थं पैतामहं ततः। ततो गदाधराख्यं च पित्र तिर्थ् ततः परम् ॥ |
| | | |
− | तत् शिव गयाख्यं च ज्ञेयं तिर्थमिदं शुभं || | + | ततः कपिलधारं वै सुधाखनिरियं पुनः। तत् शिव गयाख्यं च ज्ञेयं तिर्थमिदं शुभं॥ |
| | | |
| पहले यह पोखरा मधुश्रवा था , फिर कृतकृत्या हुआ , तब क्रम से क्षीरनिधि , वृषभध्वज तीर्थ , पैतामहतीर्थ , गदाधर तीर्थ , पित्र तीर्थ , कपिलधारा , सुधाखनी और शिव गया तीर्थ हुआ है , हे पितृ गण इस तीर्थ के इन दशो नामो को श्राद्ध और तर्पण के बिना भी उच्चारण करने से आप लोगो की पूरी तृप्ति हो जाएगी । | | पहले यह पोखरा मधुश्रवा था , फिर कृतकृत्या हुआ , तब क्रम से क्षीरनिधि , वृषभध्वज तीर्थ , पैतामहतीर्थ , गदाधर तीर्थ , पित्र तीर्थ , कपिलधारा , सुधाखनी और शिव गया तीर्थ हुआ है , हे पितृ गण इस तीर्थ के इन दशो नामो को श्राद्ध और तर्पण के बिना भी उच्चारण करने से आप लोगो की पूरी तृप्ति हो जाएगी । |
Line 1,016: |
Line 992: |
| हे पितामह गण काशी के समस्त लोगो ने पहले यही पर वृषभ के चिन्ह से युक्त मेरी ध्वजा को देखा है , इसीलिए मैं इस स्थान पर वृषभध्वजेश्वर नाम से सदा निवास करूंगा ।। | | हे पितामह गण काशी के समस्त लोगो ने पहले यही पर वृषभ के चिन्ह से युक्त मेरी ध्वजा को देखा है , इसीलिए मैं इस स्थान पर वृषभध्वजेश्वर नाम से सदा निवास करूंगा ।। |
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− | उस समय के मंगल गीतों की ध्वनि से चारो दिशाओं से समस्त धरती वासी लोग सम्मोहित होकर काशी के तरफ यात्रा करने लगे जिसमे ..... | + | उस समय के मंगल गीतों की ध्वनि से चारो दिशाओं से समस्त धरती वासी लोग सम्मोहित होकर काशी के तरफ यात्रा करने लगे जिसमे |
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| तैतीस कोटि(प्रकार) देवतागण , बीस सहस्त्र कोटि गणलोग , नव करोड़ चामुंडा , एक करोड़ भैरवी , आठ करोड़ महाबली मयूरवाहनारूढ़ षणमुख , अनुचर वर्ग , साथी , कुमार गण थे , | | तैतीस कोटि(प्रकार) देवतागण , बीस सहस्त्र कोटि गणलोग , नव करोड़ चामुंडा , एक करोड़ भैरवी , आठ करोड़ महाबली मयूरवाहनारूढ़ षणमुख , अनुचर वर्ग , साथी , कुमार गण थे , |
Line 1,024: |
Line 1,000: |
| पता - सलारपुर में कपिलधारा नाम से प्रसिद्ध है । | | पता - सलारपुर में कपिलधारा नाम से प्रसिद्ध है । |
| | | |
− | 1. #त्रिलोचन_महादेव #काशीखण्डोक्त
| + | === त्रिलोचन महादेव (काशीखण्डोक्त) === |
− | | + | त्रिलोचन महादेव (विरजा क्षेत्र जाजपुर ओडिशा) |
− | 2. #त्रिलोचन_महादेव #विरजा_क्षेत्र_जाजपुर_ओडिशा
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− | | |
− | विर्जाख्यं हि तत्त्पीठम तत्र लिङ्गं त्रिविष्ट्म |
| |
| | | |
− | तत्पीठ दर्शना देव विरजा जायते नरः || | + | विर्जाख्यं हि तत्त्पीठम तत्र लिङ्गं त्रिविष्ट्म। तत्पीठ दर्शना देव विरजा जायते नरः ॥ |
| | | |
− | काशी में #त्रिलोचन_महादेव, विरजा पीठ के नाम से प्रसिद्ध है और वहा पर जो लिङ्ग है #त्रिविष्टप कहलाता है । उस पीठ के दर्शन ही से मनुष्य रजोगुण से रहित होजाता है । | + | काशी में त्रिलोचन महादेव विरजा पीठ के नाम से प्रसिद्ध है और वहा पर जो लिङ्ग है त्रिविष्टप कहलाता है । उस पीठ के दर्शन ही से मनुष्य रजोगुण से रहित होजाता है । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>शिव जी के आह्वाहन पर विरजा क्षेत्र से त्रिलोचन महादेव #काशी में चल कर आये थे और यही स्वयम्भू रूप से स्थापित होगये ।
| + | शिव जी के आह्वाहन पर विरजा क्षेत्र से त्रिलोचन महादेव काशी में चल कर आये थे और यही स्वयम्भू रूप से स्थापित होगये । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>विरजा क्षेत्र जो जाजपुर ओडिशा में है वहां पर जौंनलीबांध के तट पर त्रिलोचन महादेव का मंदिर है जो कि विरजा माता मंदिर से कुछ ही दूर है , यहां का त्रिलोचन लिंग पूरे विश्व के प्राचीन लिंगो में से एक है और हंसारेखा नामक छोटी नदी इनके मंदिर के पीछे बहती है ।
| + | विरजा क्षेत्र जो जाजपुर ओडिशा में है वहां पर जौंनलीबांध के तट पर त्रिलोचन महादेव का मंदिर है जो कि विरजा माता मंदिर से कुछ ही दूर है , यहां का त्रिलोचन लिंग पूरे विश्व के प्राचीन लिंगो में से एक है और हंसारेखा नामक छोटी नदी इनके मंदिर के पीछे बहती है । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>काशी_में_त्रिलोचन_लिंग_का_महात्म्य
| + | ====== काशी में त्रिलोचन लिंग का महात्म्य ====== |
| + | तिस्रस्तु संगतस्तत्र स्रोतस्विन्यो घटोद्भ्व । तिस्रः कल्मषहा रिण्यो दक्षिणे हि त्रिलोचनात ॥ |
| | | |
− | तिस्रस्तु संगतस्तत्र स्रोतस्विन्यो घटोद्भ्व |
| + | स्रोतो मूर्तिधराः साक्षालिन्न्गः स्नपनहेतवे। सरस्वत्यथ कालिन्दी नर्मदा चातिशर्मदा॥ |
| | | |
− | तिस्रः कल्मषहा रिण्यो दक्षिणे हि त्रिलोचनात ||
| + | तिस्रोपि हि त्रिशन्ध्य्म ताः सरितः कुम्भ पाणयः। स्नपयन्ति महाधाम लिङ्गं त्रिविष्टपं महत् ॥ |
− | | |
− | स्रोतो मूर्तिधराः साक्षालिन्न्गः स्नपनहेतवे |
| |
− | | |
− | सरस्वत्यथ कालिन्दी नर्मदा चातिशर्मदा ||
| |
− | | |
− | तिस्रोपि हि त्रिशन्ध्य्म ताः सरितः कुम्भ पाणयः | | |
− | | |
− | स्नपयन्ति महाधाम लिङ्गं त्रिविष्टपं महत् || | |
| | | |
| हे घटोद्भव , त्रिलोचन के दक्षिण की ओर तीन नदिया मिली हुई है और वे तीनों पापहारिणी है । केवल उसी लिंग को स्नान कराने के लिए सरस्वती , यमुना , नर्मदा ये तीनो ही साक्षात स्रोत की नदी रूप (मूर्ति रूप) धारण किये है । ये तीनो ही नदियां हाथ मे घड़ा(कुम्भ) लेकर महातेजस्वी उस #त्रिविष्टप_महालिंग को त्रिकाल(दिन में तीन बार) स्नान करती है । | | हे घटोद्भव , त्रिलोचन के दक्षिण की ओर तीन नदिया मिली हुई है और वे तीनों पापहारिणी है । केवल उसी लिंग को स्नान कराने के लिए सरस्वती , यमुना , नर्मदा ये तीनो ही साक्षात स्रोत की नदी रूप (मूर्ति रूप) धारण किये है । ये तीनो ही नदियां हाथ मे घड़ा(कुम्भ) लेकर महातेजस्वी उस #त्रिविष्टप_महालिंग को त्रिकाल(दिन में तीन बार) स्नान करती है । |
| | | |
− | स्नात्वा पिल्पिला तीर्थे त्रिविष्टप समीपतः | | + | स्नात्वा पिल्पिला तीर्थे त्रिविष्टप समीपतः । दृष्ट्वा त्रिलोचन लिङ्गं किं भूयः परिशोचति ॥ |
− | | |
− | दृष्ट्वा त्रिलोचन लिङ्गं किं भूयः परिशोचति || | |
− | | |
− | त्रिविष्टपस्य लिङ्गष्य स्मरणादप मानवः |
| |
− | | |
− | त्रिवष्टप् पति भुर्यान्त्र कार्या विचारणा ||
| |
| | | |
− | (काशीखण्ड) | + | त्रिविष्टपस्य लिङ्गष्य स्मरणादप मानवः। त्रिवष्टप् पति भुर्यान्त्र कार्या विचारणा ॥ (काशीखण्ड) |
| | | |
| त्रिविष्टप के समीप ही पिलपिला तीर्थ में स्नान और त्रिलोचन लिंग का दर्शन करलेने पर फिर किस बात का शोच रह जाता है (कहा तक कहे) यदि मनुष्य त्रिविष्टप लिंग का स्मरण भी कर सके , तोह वह त्रिविष्टप (स्वर्ग) का अधिपति होजाता है- इसमें कुछ भी विचार की जरूरत नही है (यही सत्य है) त्रिविष्टप के दर्शन करने वाले निसंदेह ब्रह्मपद को प्राप्त हो जाते है । | | त्रिविष्टप के समीप ही पिलपिला तीर्थ में स्नान और त्रिलोचन लिंग का दर्शन करलेने पर फिर किस बात का शोच रह जाता है (कहा तक कहे) यदि मनुष्य त्रिविष्टप लिंग का स्मरण भी कर सके , तोह वह त्रिविष्टप (स्वर्ग) का अधिपति होजाता है- इसमें कुछ भी विचार की जरूरत नही है (यही सत्य है) त्रिविष्टप के दर्शन करने वाले निसंदेह ब्रह्मपद को प्राप्त हो जाते है । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>वासुकीश्वर_महादेव - #काशी_खण्डोक्त_नाग_पंचमी_यात्रा
| + | === वासुकीश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) === |
− | | + | नाग पंचमी यात्रा(श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि) |
− | श्रावण_शुक्ल_पंचमी_तिथि 13/08/21
| |
| | | |
− | तत्र वासुकिकुण्डे च स्नानदानादिकाः क्रियाः | | + | तत्र वासुकिकुण्डे च स्नानदानादिकाः क्रियाः। वसुकिश्वरसंग्यन्च लिङ्ग मचर्य समन्तत॥ |
| | | |
− | वसुकिश्वरसंग्यन्च लिङ्ग मचर्य समन्तत ||
| + | सर्पभीतिहराः पुंसां वासुकिशप्रभावतः। यःस्नातो नाग्पञ्चम्यां कुण्डे वासुकी सङ्गयते ॥ |
| | | |
− | सर्पभीतिहराः पुंसां |वासुकिशप्र |भावतः |
| + | न तस्य विषयंसर्गो भवेत् सर्प समुद्भव। कर्तव्या नाग्पन्च्म्या यात्रा वर्षासु तत्र वै ॥ |
| | | |
− | यःस्नातो नाग्पञ्चम्यां कुण्डे वासुकी सङ्गयते ||
| + | नागाः प्रसन्ना जायते कुले तस्यापि सर्वदा॥ (काशी खण्ड) |
− | | |
− | न तस्य विषयंसर्गो भवेत् सर्प समुद्भव |
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− | | |
− | कर्तव्या नाग्पन्च्म्या यात्रा वर्षासु तत्र वै ||
| |
− | | |
− | नागाः प्रसन्ना जायते कुले तस्यापि सर्वदा || | |
− | | |
− | (#काशी_खण्ड्) | |
| | | |
| वासुकी कुंड में स्नान दानादि क्रिया करने के बाद में वासुकीश्वर की पूजा करे तोह मनुष्य को वासुकीश्वर के प्रभाव से सर्प के काटने का भय नही रहता। सर्प काटने के भय को यह नाश करते है । वासुकी कुंड में नागपंचमी के दिन स्नान करने से सर्प का विष का प्रभाव एक वर्ष तक नही होता(सर्प नही काटते ,सर्प से रक्षा होती है) वर्षा ऋतु में वहां की यात्रा करनी चाहिए । इससे समस्त नाग कुल उसके कुल पर प्रसन्न होजाते है । | | वासुकी कुंड में स्नान दानादि क्रिया करने के बाद में वासुकीश्वर की पूजा करे तोह मनुष्य को वासुकीश्वर के प्रभाव से सर्प के काटने का भय नही रहता। सर्प काटने के भय को यह नाश करते है । वासुकी कुंड में नागपंचमी के दिन स्नान करने से सर्प का विष का प्रभाव एक वर्ष तक नही होता(सर्प नही काटते ,सर्प से रक्षा होती है) वर्षा ऋतु में वहां की यात्रा करनी चाहिए । इससे समस्त नाग कुल उसके कुल पर प्रसन्न होजाते है । |
Line 1,098: |
Line 1,049: |
| स्कन्द पुराण के अनुसार वासुकी नदी , कठिन तप के दौरान वासुकी नाग के पसीने से निकली थी । | | स्कन्द पुराण के अनुसार वासुकी नदी , कठिन तप के दौरान वासुकी नाग के पसीने से निकली थी । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>वासुकी नागराज जिसकी उत्पत्ति प्रजापति कश्यप के औरस और रुद्रु के गर्भ से हुई थी।
| + | वासुकी नागराज जिसकी उत्पत्ति प्रजापति कश्यप के औरस और कद्रु के गर्भ से हुई थी। |
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− | इनकी पत्नी शतशीर्षा थी। नागधन्वातीर्थ में देवताओं ने इसे नागराज के पद पर अभिषिक्त किया था। शिव का परम भक्त होने के कारण यह उनके शरीर पर निवास था। जब उसे ज्ञात हुआ कि नागकुल का नाश होनेवाला है और उसकी रक्षा इसके भगिनीपुत्र द्वारा ही होगी तब इसने अपनी बहन जरत्कारु को ब्याह दी। जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय सर्पों की रक्षा की, नहीं तो सर्पवंश उसी समय नष्ट हो गया होता। समुद्रमंथन के समय वासुकी ने पर्वत का बाँधने के लिए रस्सी का काम किया था। | + | इनकी पत्नी शतशीर्षा थी। नागधन्वातीर्थ में देवताओं ने इसे नागराज के पद पर अभिषिक्त किया था। शिव का परम भक्त होने के कारण यह उनके शरीर पर निवास था। जब उसे ज्ञात हुआ कि नागकुल का नाश होनेवाला है और उसकी रक्षा इसके भगिनीपुत्र द्वारा ही होगी तब इसने अपनी बहन जरत्कारु को ब्याह दी। जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय सर्पों की रक्षा की, नहीं तो सर्पवंश उसी समय नष्ट हो गया होता। समुद्रमंथन के समय वासुकी ने पर्वत का बाँधने के लिए रस्सी का काम किया था। त्रिपुरदाह के समय वासुकी नाग शिव जी के धनुष की डोर बने थे । |
− | | |
− | त्रिपुरदाह के समय वासुकी नाग शिव जी के धनुष की डोर बने थे । | |
| | | |
| पता- सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर के पास जहाँ से सीढ़ी नीचे घाट पर उतरी है । | | पता- सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर के पास जहाँ से सीढ़ी नीचे घाट पर उतरी है । |
| | | |
− | <nowiki>#</nowiki>बुद्धेश्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
| + | === बुद्धेश्वर महादेव (काशी खण्डोक्त) === |
| + | काश्यां बुद्धेश्वरसमर्चनलब्धबुद्धिः। संसारसिन्धु मधिगम्य नरो ह्य्गाधाम॥ |
| | | |
− | काश्यां बुद्धेश्वरसमर्चनलब्धबुद्धिः |
| + | मज्जेन्न सज्जनविलोलचनचन्द्र कान्ति । कान्ताननस्त्व धीवसेच्च बुधेत्र लोके ॥ (काशी खण्ड) |
− | | |
− | संसारसिन्धु मधिगम्य नरो ह्य्गाधाम् ||
| |
− | | |
− | मज्जेन्न सज्जनविलोलचनचन्द्र कान्ति | | |
− | | |
− | कान्ताननस्त्व धीवसेच्च बुधेत्र लोके || | |
− | | |
− | (#काशी_खण्ड) | |
| | | |
| बुधवार को बुद्धेश्वर के नाम से जो प्रसिद्ध है , उनका दर्शन करने वाला व्यक्ति अगाध क्षीर सागर में गिर कर गोता नही खाता बल्कि साधुजनों के नेत्रों में चंद्रमा के तुल्य कांतिमय सूंदर बदन होकर अंत मे बुद्धलोक में निवास करता है । | | बुधवार को बुद्धेश्वर के नाम से जो प्रसिद्ध है , उनका दर्शन करने वाला व्यक्ति अगाध क्षीर सागर में गिर कर गोता नही खाता बल्कि साधुजनों के नेत्रों में चंद्रमा के तुल्य कांतिमय सूंदर बदन होकर अंत मे बुद्धलोक में निवास करता है । |
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− | <nowiki>#</nowiki>ब्रह्मांड पुराण में ये कहा गया है कि बुद्धेश्वर के दर्शन पूजन से सभी कार्य सफल होते है और नवग्रह शांत होते है ।
| + | ब्रह्मांड पुराण में ये कहा गया है कि बुद्धेश्वर के दर्शन पूजन से सभी कार्य सफल होते है और नवग्रह शांत होते है । |
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− | <nowiki>#</nowiki>बुद्धग्रह व्यापार और बुद्धि का प्रतीक है इनकी सेवा करते रहने से विद्यार्थी को विद्या और व्यापारी के रोजगार में वृद्धि होती है और कुंडली मे बुद्ध ग्रह शुभ फल देते है ।
| + | बुद्धग्रह व्यापार और बुद्धि का प्रतीक है इनकी सेवा करते रहने से विद्यार्थी को विद्या और व्यापारी के रोजगार में वृद्धि होती है और कुंडली मे बुद्ध ग्रह शुभ फल देते है । |
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| पता- सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर में । | | पता- सिंधिया घाट पर आत्मविरेश्वर मंदिर में । |
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− | 1. #श्री_महाकालेश्वर_महादेव #काशीखण्डोक्त
| + | === श्री महाकालेश्वर महादेव (काशीखण्डोक्त) === |
− | | + | श्री महाकालेश्वर महादेव उज्जैन अवंतिकाखण्ड |
− | 2. #श्री_महाकालेश्वर_महादेव #उज्जैन_अवंतिकाखण्ड
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− | <nowiki>#</nowiki>काशी में शिव जी के आह्वाहन पर महाकाल लिंग उज्जैन(अवंतिकाखण्ड) से चल कर काशी में स्वयम्भू रूप से स्थापित हुवे और उज्जैन स्थित महाकालेश्वर लिंग के प्रतिनिधि के रूप में यहां काशी में सबको दर्शन दे रहे है , शास्त्रो में ऐसी वर्णन है कि काशी में यहां महाकाल के दर्शन करने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना उज्जैन के महाकाल के दर्शन से मिलता है , यह काशी स्थित द्वादस 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है ।
| + | काशी में शिव जी के आह्वाहन पर महाकाल लिंग उज्जैन(अवंतिकाखण्ड) से चल कर काशी में स्वयम्भू रूप से स्थापित हुवे और उज्जैन स्थित महाकालेश्वर लिंग के प्रतिनिधि के रूप में यहां काशी में सबको दर्शन दे रहे है , शास्त्रो में ऐसी वर्णन है कि काशी में यहां महाकाल के दर्शन करने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना उज्जैन के महाकाल के दर्शन से मिलता है, यह काशी स्थित द्वादस 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है । |
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| पता-मैदागिन, दारा नगर पर मृत्युंजय मंदिर में । | | पता-मैदागिन, दारा नगर पर मृत्युंजय मंदिर में । |
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− | <nowiki>#</nowiki>उज्जैन को उज्जयिनी और अवंतिका के नाम से भी जाना जाता है, जो क्षिप्रानदी के तट पर बसा हुआ है और साथ ही कुम्भ मेले का आयोजन करने वाले चार शहरो में से भी एक है।
| + | उज्जैन को उज्जयिनी और अवंतिका के नाम से भी जाना जाता है, जो क्षिप्रानदी के तट पर बसा हुआ है और साथ ही कुम्भ मेले का आयोजन करने वाले चार शहरो में से भी एक है। |
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| उज्जैन का पवित्र शहर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का घर और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। | | उज्जैन का पवित्र शहर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का घर और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। |
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− | महाकाल महाकाल महाकालेति कीर्तनात । | + | महाकाल महाकाल महाकालेति कीर्तनात। शतधा मच्यते पापैनार्त्र कार्या विचारणा॥ (काशीखण्ड) |
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− | शतधा मच्यते पापैनार्त्र कार्या विचारणा ।। | |
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− | (#काशीखण्ड) | |
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− | <nowiki>#</nowiki>महाकालेश्वर का तीन बार नाम लेने से व्यक्ति सैकड़ो पापो से मुक्त हो जाता है , इस पर विचार करने का प्रश्न ही नही उठता।
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− | ~दर्शनाद्देवदेवस्य ब्रह्महत्या प्रणश्यति |
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− | प्राणानुत्सृज्य तत्रैव मोक्षं प्राप्नोति मानवः ||
| + | महाकालेश्वर का तीन बार नाम लेने से व्यक्ति सै#कड़ो पापो से मुक्त हो जाता है , इस पर विचार करने का प्रश्न ही नही उठता। |
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− | (#ब्रह्म_संहिता ) | + | दर्शनाद्देवदेवस्य ब्रह्महत्या प्रणश्यति । प्राणानुत्सृज्य तत्रैव मोक्षं प्राप्नोति मानवः॥ (ब्रह्म संहिता ) |
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− | देवों के देव महादेव श्री #काशी_विश्वनाथ जीके दर्शन करने से ब्रह्म हत्या आदि पापों का नाश होता है तथा काशी में प्राण त्याग कर मोक्ष प्राप्त होता है । | + | देवों के देव महादेव श्री काशी विश्वनाथ जीके दर्शन करने से ब्रह्म हत्या आदि पापों का नाश होता है तथा काशी में प्राण त्याग कर मोक्ष प्राप्त होता है । |
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− | <nowiki>#</nowiki>चतुःषष्ठेश्वर_महादेव #काशीखण्डोक्त_मंदिर
| + | === चतुःषष्ठेश्वर महादेव(काशीखण्डोक्त) === |
− | | + | चौंसठ योगिनियों के द्वारा ये स्थापित लिंग काशी के प्राचीन लिंगो में से एक है ।प्राचीन काल में चौसठ योगिनी यात्रा में सर्वप्रथम यही से संकल्प ले कर यात्रा होती थी । |
− | चौसठ योगिनियो के द्वारा ये स्थापित लिंग काशी के प्राचीन लिंगो में से एक है ।प्राचीन काल मे चौसठ योगिनी यात्रा में सर्वप्रथम यही से संकल्प ले कर यात्रा होती थी ।
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| जब शिव जी सभी देवी देवताओं को राजा दिवोदास के राज्य में कमी निकालने के लिए काशी में बारी बारी भेज रहे थे पर सभी इस कार्य में असक्षम होकर काशी में ही निवास करने लगे और स्वामी(शिव) के आज्ञा का पालन न कर पाने के प्रायश्चित में सभी जन शिव लिंग की स्थापना कर के यही रुक गए | | जब शिव जी सभी देवी देवताओं को राजा दिवोदास के राज्य में कमी निकालने के लिए काशी में बारी बारी भेज रहे थे पर सभी इस कार्य में असक्षम होकर काशी में ही निवास करने लगे और स्वामी(शिव) के आज्ञा का पालन न कर पाने के प्रायश्चित में सभी जन शिव लिंग की स्थापना कर के यही रुक गए |
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| पता- 21/9 चौसट्टी घाट , राणा महल , वाराणसी | | पता- 21/9 चौसट्टी घाट , राणा महल , वाराणसी |
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− | <nowiki>#</nowiki>नर्मदर्श्वर_महादेव #काशी_खण्डोक्त
| + | === नर्मदेश्वर महादेव(काशी खण्डोक्त) === |
− | | + | श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी दर्शन |
− | <nowiki>#</nowiki>श्रावण_कृष्ण_पक्ष_दशमी_दर्शन
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| काशी दिव्य दर्शन पुस्तक के अनुसार आज यहां के दर्शन करने से सभी पाप और कष्ट दूर होजाते है । | | काशी दिव्य दर्शन पुस्तक के अनुसार आज यहां के दर्शन करने से सभी पाप और कष्ट दूर होजाते है । |
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| पता - d 21/9 राणा महल चौसट्टी देवी मंदिर के बगल वाली गली में । | | पता - d 21/9 राणा महल चौसट्टी देवी मंदिर के बगल वाली गली में । |
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− | <nowiki>#</nowiki>श्री_काल_भैरव #काशी_खण्डोक्त_मंदिर
| + | === श्री काल भैरव (काशी खण्डोक्त) === |
− | | + | शनिवार अष्टमी दर्श (कालाष्टमी) |
− | <nowiki>#</nowiki>शनिवार_अष्टमी_दर्शन (कालाष्टमी)
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− | ~अष्टम्यां च चतुर्दश्याम रवि भूमिजवासरे |
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− | यात्रां च भैरवी कृत्वा कृते पापेः प्रमुच्यते || | + | अष्टम्यां च चतुर्दश्याम रवि भूमिजवासरे । यात्रां च भैरवी कृत्वा कृते पापेः प्रमुच्यते॥ कालराज न यः काश्या प्रतिभू ताष्टामी कुजं ॥ |
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− | कालराज न यः काश्या प्रतिभू ताष्टामी कुजं |
| + | काल भैरव जी का और सभी भैरवो का दर्शन करने का विशेष दिन मंगलवार रविवार अष्टमी चतुर्दशी है । श्रद्धा भक्ति से दर्शन करने से पाप ताप भूत प्रेत डाकनी सनी का भय नहीं होता और शारीरिक मानसिक चिंता दूर होती है । अनेक प्रकार के रोग शांत होते हैं और मनोकामना की पूर्ति होती है । वस्त्र भोजन रहने की व्यवस्था काल भैरव जी की कृपा से स्वतः प्राप्त होती है अंत में भैरव विश्वनाथ जी से प्रार्थना करके मुक्ति दिला देते हैं उन मनुष्यों का पुनर्जन्म नहीं होता है । |
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− | ~ काल भैरव जी का और सभी भैरवो का दर्शन करने का विशेष दिन मंगलवार रविवार अष्टमी चतुर्दशी है । श्रद्धा भक्ति से दर्शन करने से पाप ताप भूत प्रेत डाकनी सनी का भय नहीं होता और शारीरिक मानसिक चिंता दूर होती है । अनेक प्रकार के रोग शांत होते हैं और मनोकामना की पूर्ति होती है । वस्त्र भोजन रहने की व्यवस्था काल भैरव जी की कृपा से स्वतः प्राप्त होती है अंत में भैरव विश्वनाथ जी से प्रार्थना करके मुक्ति दिला देते हैं उन मनुष्यों का पुनर्जन्म नहीं होता है ।
| + | शास्त्रो में ऐसी मान्यता है कि जो भी काल भैरव की आठ प्रदक्षिणा (फेरी) लगाएगा उसके सारे पाप कट जाएंगे और 6 महीने नित्य पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है । |
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− | <nowiki>#</nowiki>शास्त्रो में ऐसी मान्यता है कि जो भी काल भैरव की आठ प्रदक्षिणा (फेरी) लगाएगा उसके सारे पाप कट जाएंगे और 6 महीने नित्य पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है ।
| + | ऐसी मान्यता है कि जो काशी वासी अगर काशी से बाहर जाता है तोह काल भैरव के दर्शन (आज्ञा ले) कर के जाता है । और आने पर भी हाजरी लगता है(जिससे काल भैरव उसकी रक्षा करते है) शिव जी द्वारा काशी के कोतवाल पद पर इनको नियुक्त किया गया है और प्राचीन काल से ही राजा , महाराज , नेता , मंत्री , नर्तक , बड़े साहूकार , मार्तंड और तत्काल समय मे नेता , विधायक , सांसद , प्रधान और मुख्य मंत्री , अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी यहां माथा टेकने जरूर आते है । |
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− | ऐसी मान्यता है कि जो काशी वासी अगर काशी से बाहर जाता है तोह काल भैरव के दर्शन (आज्ञा ले) कर के जाता है । | |
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− | और आने पर भी हाजरी लगता है(जिससे काल भैरव उसकी रक्षा करते है) | |
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− | शिव जी द्वारा काशी के कोतवाल पद पर इनको नियुक्त किया गया है और प्राचीन काल से ही राजा , महाराज , नेता , मंत्री , नर्तक , बड़े साहूकार , मार्तंड और तत्काल समय मे नेता , विधायक , सांसद , प्रधान और मुख्य मंत्री , अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी यहां माथा टेकने जरूर आते है । | |
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| पता k 32 / 22 काल भैरव , भैरव नाथ । | | पता k 32 / 22 काल भैरव , भैरव नाथ । |
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− | यहां के महंत श्री सुमित उपाध्याय जी आरती करते हुवे ।
| + | === दण्डपाणी भैरव (काशी खण्डोक्त) === |
− | | + | प्राचीन काल में पूर्णभद्र नामक एक धर्मात्मा यक्ष गंधमादन पर्वत पर रहते थे। निसंतान होने के कारण वह अपने पुत्र प्राप्ति के लिए हमेशा चिंतित रहते थे उसके चिंतित रहने के कारण उसकी पत्नी कनककुंडला ने उनसे शिवजी की आराधना करने की बात कही और यह भी कहा जब शिलाद मुनि ने जिन की कृपा से मरण हीन नंदेश्वर नामक पुत्र को प्राप्त किया उन शिव की आराधना क्यों नही करते । अपने स्त्री का वचन सुनकर यक्षराज ने गीत वाद्य आदि से ओम्कारेश्वर(कोयला बाजार स्थित,काशी) का पूजन कर पुत्र की अभिलाषा पूर्ण की और शिव जी के कृपा के कारण पूर्णभद्र ने हरिकेश नामक पुत्र को प्राप्त किया जो आगे चलकर काशी में दंडपाणी भैरव नाम से प्रसिद्ध हुआ। |
− | दण्डपाणी_भैरव #काशी_खण्डोक्त
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− | प्राचीन काल में पूर्णभद्र नामक एक धर्मात्मा यक्ष गंधमादन पर्वत पर रहते थे , | |
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− | निसंतान होने के कारण वह अपने पुत्र प्राप्ति के लिए हमेशा चिंतित रहते थे उसके चिंतित रहने के कारण उसकी पत्नी कनककुंडला ने उनसे शिवजी की आराधना करने की बात कही और यह भी कहा जब शिलाद मुनि ने जिन की कृपा से मरण हीन नंदेश्वर नामक पुत्र को प्राप्त किया उन शिव की आराधना क्यों नही करते । | |
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− | अपने स्त्री का वचन सुनकर यक्षराज ने गीत वाद्य आदि से #ओम्कारेश्वर(कोयला बाजार स्थित,काशी) | |
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− | का पूजन कर पुत्र की अभिलाषा पूर्ण की और शिव जी के कृपा के कारण पूर्णभद्र ने हरिकेश नामक पुत्र को प्राप्त किया जो आगे चलकर काशी में दंडपाणी भैरव नाम से प्रसिद्ध हुआ। | |
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− | जब हरिकेश 8 वर्ष का था तभी से खेल खेल में बालू में शिवलिंग बनाकर दूर्वा से उनका पूजा करता था और अपने मित्रों को शिव नाम से ही पुकारता था और अपना सारा समय शिवपूजन में ही लगाया करता था।
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− | हरिकेश की यह दशा देखकर उसके पिता ने उसे गृह कार्य में लगाने की अनेक चेष्टा की पर उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ , अंत में हरिकेश घर से निकल गया और कुछ दूर जाकर उसे भ्रम हो गया और वह मन ही मन कहने लगा हे शंकर कहां जाऊं कहां रहने से मेरा कल्याण होगा उसने अपने मन में विचारों की जिनका कहीं ठिकाना नहीं है उनका आधार काशीपुरी है जो दिन-रात विपत्तियों से दबे हैं उनका काशीपुरी ही आधार है इस प्रकार निश्चय करके वह काशीपुरी को गया ।
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− | आनंदवन में जाकर ओम नमः शिवाय का जप करने लगा
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− | काफी समय के बाद शंकर जी पार्वती जी को अपना आनंदवन दिखाने के लिए काशी लाए और बोला जैसे तुम मुझको बहुत प्रिय हो वैसे ही आनंदवन भी मुझे परम प्रिय है हे देवी मेरे अनुग्रह से इस आनंद वन में मरे हुए जनों को जन्म मरण का बंधन नहीं होता अर्थात वह फिर से संसार में जन्म नहीं लेता और पुण्य आत्माओं के पाप के कर्म बीज विश्वनाथ जी की प्रज्वलित अग्नि में जल जाते हैं और फिर गर्भाशय में नहीं आते हैं ऐसे ही बात करते करते भगवान शिव और माता पार्वती उस स्थान पर पहुंच गए जहां पर हरिकेश यक्ष ने समाधि लगाए बैठे थे । | + | जब हरिकेश 8 वर्ष का था तभी से खेल खेल में बालू में शिवलिंग बनाकर दूर्वा से उनका पूजा करता था और अपने मित्रों को शिव नाम से ही पुकारता था और अपना सारा समय शिवपूजन में ही लगाया करता था। हरिकेश की यह दशा देखकर उसके पिता ने उसे गृह कार्य में लगाने की अनेक चेष्टा की पर उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ , अंत में हरिकेश घर से निकल गया और कुछ दूर जाकर उसे भ्रम हो गया और वह मन ही मन कहने लगा हे शंकर कहां जाऊं कहां रहने से मेरा कल्याण होगा उसने अपने मन में विचारों की जिनका कहीं ठिकाना नहीं है उनका आधार काशीपुरी है जो दिन-रात विपत्तियों से दबे हैं उनका काशीपुरी ही आधार है इस प्रकार निश्चय करके वह काशीपुरी को गया । आनंदवन में जाकर ओम नमः शिवाय का जप करने लगा काफी समय के बाद शंकर जी पार्वती जी को अपना आनंदवन दिखाने के लिए काशी लाए और बोला जैसे तुम मुझको बहुत प्रिय हो वैसे ही आनंदवन भी मुझे परम प्रिय है हे देवी मेरे अनुग्रह से इस आनंद वन में मरे हुए जनों को जन्म मरण का बंधन नहीं होता अर्थात वह फिर से संसार में जन्म नहीं लेता और पुण्य आत्माओं के पाप के कर्म बीज विश्वनाथ जी की प्रज्वलित अग्नि में जल जाते हैं और फिर गर्भाशय में नहीं आते हैं ऐसे ही बात करते करते भगवान शिव और माता पार्वती उस स्थान पर पहुंच गए जहां पर हरिकेश यक्ष ने समाधि लगाए बैठे थे । |
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| उनको देखकर पार्वती जी ने कहा हे ईश्वर यह आपका तपस्वी भक्त है इसको उचित वर देखकर उसका मनोरथ पूर्ण कीजिए इसका चित्त केवल आप में ही लगा है और इसका जीवन भी आपके ही अधीन है इतना सुनकर महादेव जी उस हरिकेश के समक्ष गए और हरिकेश को हाथों से स्पर्श किया । (कठिन तप के कारण हरिकेश कमजोर और दुर्बल होगये थे) | | उनको देखकर पार्वती जी ने कहा हे ईश्वर यह आपका तपस्वी भक्त है इसको उचित वर देखकर उसका मनोरथ पूर्ण कीजिए इसका चित्त केवल आप में ही लगा है और इसका जीवन भी आपके ही अधीन है इतना सुनकर महादेव जी उस हरिकेश के समक्ष गए और हरिकेश को हाथों से स्पर्श किया । (कठिन तप के कारण हरिकेश कमजोर और दुर्बल होगये थे) |
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− | दया सिंधु का स्पर्श पाकर हरिकेश यक्ष ने आंखें खोल कर अपने सम्मुख प्रत्यक्ष अपने अभीष्ट देव को देखा और गदगद स्वर से यक्ष ने कहा कि हे शंभू हे पार्वती पते हे शंकर आपकी जय हो आपके कर कमलों का स्पर्श पाकर मेरा यह शरीर अमृत स्वरूप हो गया इस प्रकार प्रिय वचन सुनकर आशुतोष भगवान बोले हे यक्ष तुम इसी क्षण मेरे वरदान से मेरे क्षेत्र के दंडनायक हो जाओ आज से तुम दुष्टों के दंड नायक और पुण्य वालों के सहायक बनो और दंडपाणी नाम से विख्यात होकर सभी गणों का नियंत्रण करो । | + | दया सिंधु का स्पर्श पाकर हरिकेश यक्ष ने आंखें खोल कर अपने सम्मुख प्रत्यक्ष अपने अभीष्ट देव को देखा और गदगद स्वर से यक्ष ने कहा कि हे शंभू हे पार्वती पते हे शंकर आपकी जय हो आपके कर कमलों का स्पर्श पाकर मेरा यह शरीर अमृत स्वरूप हो गया इस प्रकार प्रिय वचन सुनकर आशुतोष भगवान बोले हे यक्ष तुम इसी क्षण मेरे वरदान से मेरे क्षेत्र के दंडनायक हो जाओ आज से तुम दुष्टों के दंड नायक और पुण्य वालों के सहायक बनो और दंडपाणी नाम से विख्यात होकर सभी गणों का नियंत्रण करो । मनुष्यो में सम्भ्रम और विभ्रम ये दोनों गण तुम्हारे साथ रहेंगे। तुम काशीवासी जनों के अन्नदाता, प्राणदाता , ज्ञान दाता होओ और मेरे मुख से निकले तारक मंत्र के उपदेश से मोक्ष दाता होकर नियमित रूप से काशी में निवास करो भगवान की कृपा से वही हरिकेश यक्ष काशी में दण्डपाणि के रूप में स्थित हो गए और भक्तों के कल्याण में लग गए । ज्ञानवापी में स्नान कर दण्डपाणि के दर्शन से सभी मनोकामना पूर्ण होती है । |
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− | मनुष्यो में सम्भ्रम और उदभ्रम ये दोनों गण तुम्हारे साथ रहेंगे। | |
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− | तुम काशीवासी जनों के अन्नदाता । प्राणदाता , ज्ञान दाता होओ और मेरे मुख से निकले तारक मंत्र के उपदेश से मोक्ष दाता होकर नियमित रूप से काशी में निवास करो भगवान की कृपा से वही हरिकेश यक्ष काशी में दण्डपाणि के रूप में स्थित हो गए और भक्तों के कल्याण में लग गए । | |
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− | <nowiki>#</nowiki>ज्ञानवापी में स्नान कर दण्डपाणि के दर्शन से सभी मनोकामना पूर्ण होती है ।
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| <nowiki>https://maps.app.goo.gl/U8Z22PBVDx9RfV1GA</nowiki> | | <nowiki>https://maps.app.goo.gl/U8Z22PBVDx9RfV1GA</nowiki> |
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− | <nowiki>#</nowiki>dandpani #harikesh #yaksh #banaras #varanasi
| + | मोक्षद्वारेश्वर लिंग (काशी खण्डोक्त) |
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− | <nowiki>#</nowiki>मोक्षद्वारेश्वर_लिंग #काशी_खण्डोक्त
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− | <nowiki>#</nowiki>ज्येष्ठ_मास_कृष्ण_पक्ष_पंचमी को 29/6/21 इनका दर्शन होता है , विश्वनाथ कॉरिडोर में यह मंदिर तोड़ फोड़ होने के कारण अब विलुप्त होगया है ।
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− | | |
− | लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है ।
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− | <nowiki>#</nowiki>मोक्षद्वारेश्वर_लिंग #काशी_खण्डोक्त
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− | <nowiki>#</nowiki>ज्येष्ठ_मास_कृष्ण_पक्ष_पंचमी को 29/6/21 इनका दर्शन होता है , विश्वनाथ कॉरिडोर में यह मंदिर तोड़ फोड़ होने के कारण अब विलुप्त होगया है ।
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− | लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है । | + | ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष पंचमी को इनका दर्शन होता है। लाहौरी टोला स्थित इस मंदिर में आज दर्शन पूजन का विशेष महत्व है । दैनिक दर्शन करने वाले लोगों को मोक्ष प्राप्त करना बहुत मामूली बात है यहां , पर अब यह मंदिर विलुप्त होगया है । |