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==== व्रत कथा- ====
 
==== व्रत कथा- ====
जब वनवास के समय श्री राम को समुद्र ने पार करने के लिये मार्ग नहीं दिया तो भगवान राम ने सागर तट पर रहने वाले ऋषि-मुनियों से इसका उपाय पूछा। भगवान श्री राम की उत्कण्ठा को जानकर ऋषियों ने कहा-"हे मर्यादा
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जब वनवास के समय श्री राम को समुद्र ने पार करने के लिये मार्ग नहीं दिया तो भगवान राम ने सागर तट पर रहने वाले ऋषि-मुनियों से इसका उपाय पूछा। भगवान श्री राम की उत्कण्ठा को जानकर ऋषियों ने कहा-"हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम! आप तो अनन्त महासागरों की पार करने वाली महाशक्ति हो फिर भी आपने पूछा ही है तो सुनो-हम ऋषि-मुनि कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व व्रत एवं अनुष्ठान करते हैं, आप भी फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत धारण कीजिये। भगवन राम को ऋषियों ने व्रत-विधान बताते हुए कहा-"इस व्रत को करने के लिये मिट्टी का बर्तन लेकर समानाज पर स्थापित करें।
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उसके पास पीपल, आम, बड़ व गूलर के पत्ते रखें। एक बर्तन जौ से भरकर कलश पर स्थापित करो। जौ के बर्तन में श्री विष्णुजी की प्रतिमा एवं विधि-विधान से पूजन करो! रात्रि जागरण के उपरान्त सवेरा होने पर जल सहित कलश को सागर के निमित्त अर्पित कर देना। इसके करने से समुद्र तुम्हें पथ दे देगा। तुम लंका पर विजय प्राप्त करोगे।" तभी से इस उत्तम व्रत का समाज में प्रचलन है। व्रत की कथा को सुनाकर विष्णु भगवान की आरती करें।
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=== महा शिवरात्रि ===
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इस व्रत को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। सभी आवश्यक सामग्री जुटाने के पश्चात् व्रत धारण करने वालों को चाहिये कि वह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर स्वच्छ व्रत धारण करें। भगवान शिव को अर्घ्य दे विधि-विधान से पूजन कर शिव चालीसा व आरती का पाठ करें।
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==== व्रत कथा- ====
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एक समय की बात है, कि किसी देश में एक व्याध रहता था। वह नित्य प्रति बहुत-से जीवों का शिकार कर परिवार का पालन-पोषण करता था। शिवरात्रि के दिन वह व्याध प्रात:काल में धनुष-बाण लेकर जीव हिंसा के लिए चल पड़ा। उसे पूरे दिन घूमते रहने पर भी कोई शिकार न मिला। सूर्यास्त के समय वह एक तालाब के किनारे बिल्व पत्र के वृक्ष पर चढ़कर किसी जीव के आने की राह देखने लगा। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। वह अपने बैठने हेतु स्थान बनाने के लिये पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। उसे सामने से एक हिरणी दिखाई दी, ज्योंहि उसने उसे मारने के लिये धनुष उठाया तो हिरनी कातर वाणी में बोली-"हे व्याध! मैं गर्भवती हूं। इस वक्त मेरा प्रसव काल निकट है। अत: इस वक्त मुझ पर कृपा करो। मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि प्रसव के पश्चात्मैं  बच्चे को अपने पति के सहारे छोड़कर प्रात:काल ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगी।".
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हिरणी की विनम्र याचना सुनकर व्याध का हृदय दया से परिपूर्ण हो गया और उसे जाने की सहर्ष अनुमति दे दी। इसके पश्चात् वह पुन: किसी जीव के
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