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→‎व्रत कथा-: लेख संपादित किया
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एक समय की बात है, कि किसी देश में एक व्याध रहता था। वह नित्य प्रति बहुत-से जीवों का शिकार कर परिवार का पालन-पोषण करता था। शिवरात्रि के दिन वह व्याध प्रात:काल में धनुष-बाण लेकर जीव हिंसा के लिए चल पड़ा। उसे पूरे दिन घूमते रहने पर भी कोई शिकार न मिला। सूर्यास्त के समय वह एक तालाब के किनारे बिल्व पत्र के वृक्ष पर चढ़कर किसी जीव के आने की राह देखने लगा। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। वह अपने बैठने हेतु स्थान बनाने के लिये पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। उसे सामने से एक हिरणी दिखाई दी, ज्योंहि उसने उसे मारने के लिये धनुष उठाया तो हिरनी कातर वाणी में बोली-"हे व्याध! मैं गर्भवती हूं। इस वक्त मेरा प्रसव काल निकट है। अत: इस वक्त मुझ पर कृपा करो। मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि प्रसव के पश्चात्मैं  बच्चे को अपने पति के सहारे छोड़कर प्रात:काल ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगी।".
 
एक समय की बात है, कि किसी देश में एक व्याध रहता था। वह नित्य प्रति बहुत-से जीवों का शिकार कर परिवार का पालन-पोषण करता था। शिवरात्रि के दिन वह व्याध प्रात:काल में धनुष-बाण लेकर जीव हिंसा के लिए चल पड़ा। उसे पूरे दिन घूमते रहने पर भी कोई शिकार न मिला। सूर्यास्त के समय वह एक तालाब के किनारे बिल्व पत्र के वृक्ष पर चढ़कर किसी जीव के आने की राह देखने लगा। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। वह अपने बैठने हेतु स्थान बनाने के लिये पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। उसे सामने से एक हिरणी दिखाई दी, ज्योंहि उसने उसे मारने के लिये धनुष उठाया तो हिरनी कातर वाणी में बोली-"हे व्याध! मैं गर्भवती हूं। इस वक्त मेरा प्रसव काल निकट है। अत: इस वक्त मुझ पर कृपा करो। मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि प्रसव के पश्चात्मैं  बच्चे को अपने पति के सहारे छोड़कर प्रात:काल ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगी।".
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हिरणी की विनम्र याचना सुनकर व्याध का हृदय दया से परिपूर्ण हो गया और उसे जाने की सहर्ष अनुमति दे दी। इसके पश्चात् वह पुन: किसी जीव के
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हिरणी की विनम्र याचना सुनकर व्याध का हृदय दया से परिपूर्ण हो गया और उसे जाने की सहर्ष अनुमति दे दी। इसके पश्चात् वह पुन: किसी जीव के आने की प्रतीक्षा करता हुआ औरतो के आगे से बिल्व वृक्ष की शाखाओ को तोड़कर निचे गिराने लगा | इसी तरह जागते हुए उसको आधी रात का समय हो गया, तो उसे पुन: एक हिरणी आती दिखाई दी, ज्योहि अपना धनुष-बाण सम्भालते हुए निशाना लगाना चाहा त्योहि वह क्षमायाचना करते हुए कहा-“हे व्याध! मैं आज ही रजोधर्म से भिवृत हुई हूं। अतः मुझे अपने पति के दर्शन कर उनसे सहवास करने की अनुमति दो। मैं सवेरे स्वयं ही उपस्थित हो जाऊंगी।" हिरणी की कातर वाणी से प्रभावित होकर उसे भी जाने की अनुमति दे दी |
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इस प्रकार जब रात्रि का तीसरा पहर भी समाप्त हो गया तो उसने देखा कि एक हिरणी अपने तीन-चार बच्चों के साथ तालाब पर पानी पीने आई है। जैसे ही व्याध ने धनुष उठाया तब ही हिरणी ने प्रार्थना करते हुए कहा-"हे व्याध! मुझेमत मारो, मैं पति-वियोग से अत्यन्त दुःखी हूं। भूखी-प्यासी उन्हें खोज रही हूं। मुझे प्रात:काल तक का समय दे दो, मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि मैं सुबह प्रातःकाल हो उपस्थित हो जाऊंगी। हिरणी की करुण पुकार से उसका मन द्रवित हो उठा और उसने उसे जाने दिया जबकि वह स्वयं भूख और नींद से व्याकुल हो रहा था परन्तु जोवों पर दया करने से उसे सुख की अनुभूति हो रही थी, इसके साथ ही उसका यह भी विचार था कि देखे जीवों में सत्य प्रतिज्ञा के पालन का कहां तक साहस है।
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इसके पश्चात् उसने सतर्क होकर पुन: बिल्व वृक्ष पर ही जीवों की प्रतिज्ञा करना आरम्भ कर दिया। वह इधर-उधर निगाह घुमाते हुए बिल्व-पत्रों को तोड़कर फिर से नीचे गिराने लगा। इसी तरह उसे भूख-पयास से पीड़ित होकर जागते। रात्रि का चौथा प्रहर भी समाप्त होने आ गया। लेकिन उसकी शिकार की इच्छा पूर्ण न हुई। वह निराश होकर अब यहां से जाना ही चाह रहा था कि ठीक तभी एक मोटा-ताजा हिरण भागता हुआ उसकी ओर आता दिखा। हिरण को देखकर उसके हर्ष का कोई ठिकाना न रहा और उसने उसे मारने के लिए उसने धनुष पर बाण चढ़ा दिया और तत्पश्चात् ज्योहि निशाना लगाकर हिरण को बेधना चाहा, त्योंहि उसने उच्च स्वर में प्रार्थना करते हुए कहा-“हे व्याध! इस वक्त ऊषाकाल है। शास्त्रकारों ने इस वक्त ईश्वर का स्मरण और शुभ कार्य करने का उपदेश दिया है। क्योंकि इस वक्त किये गये  पाप-पुण्य सहस्त्र हैं।
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इसके अतिरिक्त मैं पत्नियों के वियोग में भूखा-प्यासा दुःखी मन से घूम रहा हूं। अत: मुझे इस वक्त न मारकर जाने की आज्ञा प्रदान कीजिये। मैं आपसे प्रतिज्ञा करता हूं कि शीघ्र ही अपनी पत्नियों से मिलकर, सूर्योदय के उपरान्त आपकी सेवा हाजिर हो जाऊंगा!" व्याध ने हिरण की बात सुनकर हँसते हुए कहा–"हे हिरण! जीव को अपनी
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