एक समय की बात है, कि किसी देश में एक व्याध रहता था। वह नित्य प्रति बहुत-से जीवों का शिकार कर परिवार का पालन-पोषण करता था। शिवरात्रि के दिन वह व्याध प्रात:काल में धनुष-बाण लेकर जीव हिंसा के लिए चल पड़ा। उसे पूरे दिन घूमते रहने पर भी कोई शिकार न मिला। सूर्यास्त के समय वह एक तालाब के किनारे बिल्व पत्र के वृक्ष पर चढ़कर किसी जीव के आने की राह देखने लगा। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। वह अपने बैठने हेतु स्थान बनाने के लिये पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। उसे सामने से एक हिरणी दिखाई दी, ज्योंहि उसने उसे मारने के लिये धनुष उठाया तो हिरनी कातर वाणी में बोली-"हे व्याध! मैं गर्भवती हूं। इस वक्त मेरा प्रसव काल निकट है। अत: इस वक्त मुझ पर कृपा करो। मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि प्रसव के पश्चात्मैं बच्चे को अपने पति के सहारे छोड़कर प्रात:काल ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगी।". | एक समय की बात है, कि किसी देश में एक व्याध रहता था। वह नित्य प्रति बहुत-से जीवों का शिकार कर परिवार का पालन-पोषण करता था। शिवरात्रि के दिन वह व्याध प्रात:काल में धनुष-बाण लेकर जीव हिंसा के लिए चल पड़ा। उसे पूरे दिन घूमते रहने पर भी कोई शिकार न मिला। सूर्यास्त के समय वह एक तालाब के किनारे बिल्व पत्र के वृक्ष पर चढ़कर किसी जीव के आने की राह देखने लगा। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। वह अपने बैठने हेतु स्थान बनाने के लिये पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। उसे सामने से एक हिरणी दिखाई दी, ज्योंहि उसने उसे मारने के लिये धनुष उठाया तो हिरनी कातर वाणी में बोली-"हे व्याध! मैं गर्भवती हूं। इस वक्त मेरा प्रसव काल निकट है। अत: इस वक्त मुझ पर कृपा करो। मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि प्रसव के पश्चात्मैं बच्चे को अपने पति के सहारे छोड़कर प्रात:काल ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगी।". |