− | प्राचीन काल में वाराणसी में एक अहीर रहता था। दीनता से काहिल वह बेचारा कभी-कभी भूखा ही बच्चों सहित आकाश के तारे गिनता रहता था। उसका पेट भरने का साधन जंगल को लकड़ियां काटकर बेचना था। उनके ना बिकने पर उसे भूखा ही रहना पड़ता था। एक दिन उसने किसी साहूकार के यहां व्रतोत्सव की तैयारी देखकर पूछा-"यह क्या हो रहा है?" सेठ ने उसे बताया-"घटतिला नामक इस व्रत को करने से घोर पाप, रोग, हत्या आदि भव-बंधनों से छुटकारा तथा धन, पुत्र की प्राप्ति होती है।" यह सुनकर अहीर | + | प्राचीन काल में वाराणसी में एक अहीर रहता था। दीनता से काहिल वह बेचारा कभी-कभी भूखा ही बच्चों सहित आकाश के तारे गिनता रहता था। उसका पेट भरने का साधन जंगल को लकड़ियां काटकर बेचना था। उनके ना बिकने पर उसे भूखा ही रहना पड़ता था। एक दिन उसने किसी साहूकार के यहां व्रतोत्सव की तैयारी देखकर पूछा-"यह क्या हो रहा है?" सेठ ने उसे बताया-"घटतिला नामक इस व्रत को करने से घोर पाप, रोग, हत्या आदि भव-बंधनों से छुटकारा तथा धन, पुत्र की प्राप्ति होती है।" यह सुनकर अहीर ने भी सपरिवार यह व्रत किया जिसके परिणामस्वरूप वह एक राजा हो गया और बनारस में सम्मानित होने लगा। |
| + | यह पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। उत्सव के द्वारा हिन्दू जाति अपना आनन्द व्यक्त करती है। इस रोज लोग संगीत दरबार का आयोजन करते हैं। युवक वृद्ध एवं बच्चे पीले वस्त्र धारण करते हैं। युवतियां पीली चुनरियां धारण कर उत्सव के प्रति अपनी आस्था प्रकट करती हैं। इस उत्सव में ज्ञान की देवी सरस्वतीजी की पूजा का विशेष विधान है। सरस्वती पूजन से पूर्व विधि कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु एवं महादेवजी की पूजा करनी चाहिये। इस दिन होली जलाने के स्थान पर विधि-विधान से पूजन करके बसन्त रखा जाता है। लोग अपने मित्रों को गुलाल मलते हैं तथा रंगों से सराबोर कर देते हैं। उत्तर-प्रदेश में इस दिन से ही फाग उड़ाना शुरू कर दिया जाता है। फाग की मस्ती लोगों के दिलो-दिमाग पर फाल्गुन की पूर्णिमा तक छायी रहती है। इस दिन से ही होली व धमार गीत प्रारम्भ किये जाते हैं। गेहूं व जौ को स्वर्णित बालियां भगवान को अर्पित की जाती हैं। |
| + | विष्णु भगवान की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उसे संसार में देखते हैं तो चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता था। उदासी से सारा वातावरण मूक-सा हो उठा, जैसे किसी के वाणी न हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने उदासी व मलिनता को दूर करने हेतु अपने कमण्डल से जल छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में क्रमश: पुस्तक व माला धारण किये हुए थी। ब्रह्माजी उस देवी से वीणा बजाकर विश्व की पूकता एवं उदासी को दूर करने को कहने लगी। तब उस देवी ने ब्रह्माजी का आदेश पाकर वीणा के मधुर-स्वर नाद से जब जीवों को वीणा प्रदान की, इसलिये उस देवी को माता सरस्वती के नाम से सम्बोधित किया गया। यह देवी सुविद्या एवं सद्ज्ञान का भण्डार भरने वाली है। इसलिए घर-घर में माता सरस्वती का पूजन विधि-विधान से किया जाता है। |