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== संध्योपासन विधि ==
== संध्योपासन विधि ==
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संध्योपासन की प्रमुख क्रियायें इस प्रकार हैं-
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संध्योपासन की प्रमुख क्रियायें इनमें बड़ा रहस्य छिपा है और बड़े लाभ निहित हैं जो कि इस प्रकार हैं-
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*आचमन
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*Achamana (आचमन) - आचमन की क्रिया सामान्यतः सभी धार्मिक क्रियायों में देखी जाती है। मुख्यतः आचमन विष्णु जी के तीन नामों (केशव,नारायण और माधव) के साथ जल को अधरों से स्पर्श करना चाहिये।कहीं कहीं आचमन में विष्णु जी के २४ नाम लिये जाते हैं।आचमन के द्वारा अन्तःकरण की शुद्धि होती है।
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*[[Pranayama (प्राणायाम)]]
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*[[Pranayama (प्राणायाम)]] - प्राणायाम में श्वास एवं प्रश्वास का गति विच्छेद कहा गया है ।गौतम ऋषि जी के अनुसार प्राणायाम के मुख्य तीन अंग हैं- पूरक (बाहरी वायु भीतर लेना),कुम्भक(लिये हुये श्वास को रोके रखना अर्थात न तो श्वास छोडना न ग्रहण करना) और रेचक(फेफडों से वायु बाहर निकलना) ।
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*मार्जन
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*Marjana (मार्जन) - मार्जन में शरीर की पवित्रता हेतु आपो हि ष्ठा ० आदि तीन मन्त्रों के द्वारा जल से छिडकाव किया जाता है ।
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*अघमर्षण
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*Aghamarshana (अघमर्षण) - अघमर्षण(पाप को भगाना) में गौ के कान के भॉंति दाहिने हाथ का रूप बनाकर,उसमें जल लेकर,नाक के पास रखकर,उस पर ऋतं च० आदि तीन मन्त्रों के साथ श्वास धीरे धीरे छोडें(इस भावना से कि अपना पाप भाग जाय) एवं पृथिवी पर बायीं ओर जल फेक दिया जाता है।
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*अर्घ्य
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*Arghya (अर्घ्य) - अर्घ्य(सम्मान के साथ सूर्य को जलार्पण) में दोनों जुडे हुए हाथों में जल लेकर,गायत्री मन्त्र बोलते हुए,सूर्य की ओर उन्मुख होकर तीन बार जल गिराया(प्रदान किया)जाता है।
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*गायत्री जप
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*Gayatri Japa (गायत्री जप) -
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*उपस्थान
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*Upasthana (उपस्थान) - उपस्थान में बौधायन के मतानुसार उद्वयम् ० आदि मन्त्रों के द्वारा प्रातः काल सूर्य से प्रार्थना करनी चाहिये किन्तु सायन्ह सन्ध्या में वरुण मन्त्रों के द्वारा वरुण देव का उपस्थान किया जाता है।
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*[[Abhivadana (अभिवादन)]]
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*[[Abhivadana (अभिवादन)]] - अभिवादन सन्ध्योपासन के अनन्तर गुरुजी के सन्निकट जाकर नमन करना अथवा गृह,तीर्थ, विदेश आदि ऐसे स्थान पर जहां गुरुजी उपस्थित न हों उन्हैं अपना स्व नाम गोत्र शाखा वेद आदि का उच्चाकरण करके मन से प्रणाम निवेदित करना चाहिये ।
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इन क्रियाओं में बड़ा रहस्य छिपा है और बड़े लाभ निहित हैं। आचमन की क्रिया सामान्यतः सभी धार्मिक क्रियायों में देखी जाती है। मुख्यतः आचमन विष्णु जी के तीन नामों (केशव,नारायण और माधव) के साथ जल को अधरों से स्पर्श करना चाहिये।कहीं कहीं आचमन में विष्णु जी के २४ नाम लिये जाते हैं।आचमन के द्वारा अन्तःकरण की शुद्धि होती है।
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प्राणायाम में श्वास एवं प्रश्वास का गति विच्छेद कहा गया है ।गौतम ऋषि जी के अनुसार प्राणायाम के मुख्य तीन अंग हैं- पूरक (बाहरी वायु भीतर लेना),कुम्भक(लिये हुये श्वास को रोके रखना अर्थात न तो श्वास छोडना न ग्रहण करना) और रेचक(फेफडों से वायु बाहर निकलना) ।
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मार्जन में शरीर की पवित्रता हेतु आपो हि ष्ठा ० आदि तीन मन्त्रों के द्वारा जल से छिडकाव किया जाता है ।
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अघमर्षण(पाप को भगाना) में गौ के कान के भॉंति दाहिने हाथ का रूप बनाकर,उसमें जल लेकर,नाक के पास रखकर,उस पर ऋतं च० आदि तीन मन्त्रों के साथ श्वास धीरे धीरे छोडें(इस भावना से कि अपना पाप भाग जाय) एवं पृथिवी पर बायीं ओर जल फेक दिया जाता है।
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==== सन्ध्या करने के अधिकारी ====
==== सन्ध्या करने के अधिकारी ====