कुटुम्ब जीवन का केन्द्रबिन्दु है - पति और पत्नी। पतिपत्नी को जोड़ने वाला विवाह संस्कार होता है । एक सर्वथा अपरिचित पुरुष और सर्वथा अपरिचित स्त्री विवाह संस्कार से जुड़कर पतिपत्नी बनते हैं और अब वे अपरिचित नहीं परन्तु परम परिचित जैसे बनते हैं । ये दो नहीं रहते एक बनते हैं । इसलिये पतिपत्नी की एकात्मता यह कुटुम्ब जीवन का केन्द्र बिन्दु है। इस एकात्मता का स्रोत क्या है ? जैसे हमने पूर्व में भी देखा है यह सृष्टि परमात्मा से निसृत हुई है । परमात्मा ने अपने में से ही इसे बनाया है । इसलिये सृष्टि के सारे पदार्थों में एकात्म सम्बन्ध रहता है। सृष्टि निसृत हुई इसलिये सृष्टि के सारे पदार्थ सारे व्यक्तित्व पुनः परमात्मा में एकात्म हो जाने के लिये ही अपने जीवन की गति करते हैं। सर्वथा अपरिचित, सर्वथा अलग ऐसे स्त्री और पुरुष विवाह संस्कार से जब एक बनते हैं तो यह एकात्मता की साधना है। | कुटुम्ब जीवन का केन्द्रबिन्दु है - पति और पत्नी। पतिपत्नी को जोड़ने वाला विवाह संस्कार होता है । एक सर्वथा अपरिचित पुरुष और सर्वथा अपरिचित स्त्री विवाह संस्कार से जुड़कर पतिपत्नी बनते हैं और अब वे अपरिचित नहीं परन्तु परम परिचित जैसे बनते हैं । ये दो नहीं रहते एक बनते हैं । इसलिये पतिपत्नी की एकात्मता यह कुटुम्ब जीवन का केन्द्र बिन्दु है। इस एकात्मता का स्रोत क्या है ? जैसे हमने पूर्व में भी देखा है यह सृष्टि परमात्मा से निसृत हुई है । परमात्मा ने अपने में से ही इसे बनाया है । इसलिये सृष्टि के सारे पदार्थों में एकात्म सम्बन्ध रहता है। सृष्टि निसृत हुई इसलिये सृष्टि के सारे पदार्थ सारे व्यक्तित्व पुनः परमात्मा में एकात्म हो जाने के लिये ही अपने जीवन की गति करते हैं। सर्वथा अपरिचित, सर्वथा अलग ऐसे स्त्री और पुरुष विवाह संस्कार से जब एक बनते हैं तो यह एकात्मता की साधना है। |