राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ० हेडगेवार जी का युगाब्द 5041 (1940 ई०) में असामयिक निधन हो जाने पर सरसंघचालक का दायित्व श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी के कधों पर आ गया। उनका जन्म नागपुर में हुआ था। काशी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में काम करते हुए वे 'गुरुजी' नाम से प्रसिद्ध हुए।प्राध्याप की छोड़कर विधि-शिक्षा ली, किन्तु नैसर्गिक वैराग्य-वृत्ति के कारण सब कुछ छोड़कर सारगाछी (बंगाल) के स्वामी अखण्डानन्द के शिष्य बने और अध्यात्म-साधना में लीन हुए। स्वामी जी की मृत्यु के बाद,उन्हीं की प्रेरणा और आज्ञा से,समाजरूपी परमेश्वर की सेवा करने की ओर उन्मुख हुए और इस कार्य केलिएउन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघसर्वोपयुक्त जान पड़ा। 33 वर्ष (1940-1973) तक सरसंघचालक के रूप में उन्होंने संघकार्य का विस्तार करने के लिए अथक प्रयत्न किया, लाखों संस्कारित स्वयंसेवक खड़ेकिये, राष्ट्र एवं समाज-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का पुनर्निर्माण करने के लिए स्वयंसेवकों को अनेक संस्थाएँ गठित करने की प्रेरणा दी और विश्वभर के हिन्दुओं को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ० हेडगेवार जी का युगाब्द 5041 (1940 ई०) में असामयिक निधन हो जाने पर सरसंघचालक का दायित्व श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी के कधों पर आ गया। उनका जन्म नागपुर में हुआ था। काशी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में काम करते हुए वे 'गुरुजी' नाम से प्रसिद्ध हुए।प्राध्याप की छोड़कर विधि-शिक्षा ली, किन्तु नैसर्गिक वैराग्य-वृत्ति के कारण सब कुछ छोड़कर सारगाछी (बंगाल) के स्वामी अखण्डानन्द के शिष्य बने और अध्यात्म-साधना में लीन हुए। स्वामी जी की मृत्यु के बाद,उन्हीं की प्रेरणा और आज्ञा से,समाजरूपी परमेश्वर की सेवा करने की ओर उन्मुख हुए और इस कार्य केलिएउन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघसर्वोपयुक्त जान पड़ा। 33 वर्ष (1940-1973) तक सरसंघचालक के रूप में उन्होंने संघकार्य का विस्तार करने के लिए अथक प्रयत्न किया, लाखों संस्कारित स्वयंसेवक खड़ेकिये, राष्ट्र एवं समाज-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का पुनर्निर्माण करने के लिए स्वयंसेवकों को अनेक संस्थाएँ गठित करने की प्रेरणा दी और विश्वभर के हिन्दुओं को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। |