Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "हमेशा" to "सदा"
Line 246: Line 246:  
विद्यालय का भवन भावात्मक दृष्टि से शिक्षा के अनुकूल होना चाहिए । इसका अर्थ है वह प्रथम तो पवित्र होना चाहिए । पवित्रता स्वच्छता की तो अपेक्षा रखती ही है साथ ही सात्त्विकता की भी अपेक्षा रखती है। आज सात्त्विकता नामक संज्ञा भी अनेक लोगों को परिचित नहीं है यह बात सही है परन्तु वह मायने तो बहुत रखती है । भवन बनाने वालों का और बनवाने वालों का भाव अच्छा होना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए पैसा खर्च करने वाले. भवन बनते समय ध्यान रखने वाले, प्रत्यक्ष भवन बनाने वाले और सामग्री जहाँ से आती है वे लोग विद्यालय के प्रति यदि अच्छी भावना रखते हैं तो विद्यालय भवन के वातावरण में  
 
विद्यालय का भवन भावात्मक दृष्टि से शिक्षा के अनुकूल होना चाहिए । इसका अर्थ है वह प्रथम तो पवित्र होना चाहिए । पवित्रता स्वच्छता की तो अपेक्षा रखती ही है साथ ही सात्त्विकता की भी अपेक्षा रखती है। आज सात्त्विकता नामक संज्ञा भी अनेक लोगों को परिचित नहीं है यह बात सही है परन्तु वह मायने तो बहुत रखती है । भवन बनाने वालों का और बनवाने वालों का भाव अच्छा होना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए पैसा खर्च करने वाले. भवन बनते समय ध्यान रखने वाले, प्रत्यक्ष भवन बनाने वाले और सामग्री जहाँ से आती है वे लोग विद्यालय के प्रति यदि अच्छी भावना रखते हैं तो विद्यालय भवन के वातावरण में  
   −
पवित्रता आती है। पवित्रता हम चाहते तो हैं । अतः तो हम भूमिपूजन, शिलान्यास, वास्तुशांति, यज्ञ, भवनप्रवेश जैसे विधिविधानों का अनुसरण करते हैं । ये केवल कर्मकाण्ड नहीं हैं। इनका भी अर्थ समझकर पूर्ण मनोयोग से किया तो बहुत लाभ होता है । परन्तु समझने का अर्थ क्रियात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए ग्रामदेवता. वास्तुदेवता आदि की प्रार्थना और उन्हें सन्तुष्ट करने की बात मंत्रों में कही जाती है । तब सन्तुष्ट करने का क्रियात्मक अर्थ वह होता है कि हम सामग्री का या वास्तु का दुरुपयोग नहीं करेंगे, उसका उचित सम्मान करेंगे, उसका रक्षण करेंगे आदि । यह तो हमेशा के व्यवहार की बातें हैं। भारत की पवित्रता की संकल्पना भी क्रियात्मक ही होती है ।
+
पवित्रता आती है। पवित्रता हम चाहते तो हैं । अतः तो हम भूमिपूजन, शिलान्यास, वास्तुशांति, यज्ञ, भवनप्रवेश जैसे विधिविधानों का अनुसरण करते हैं । ये केवल कर्मकाण्ड नहीं हैं। इनका भी अर्थ समझकर पूर्ण मनोयोग से किया तो बहुत लाभ होता है । परन्तु समझने का अर्थ क्रियात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए ग्रामदेवता. वास्तुदेवता आदि की प्रार्थना और उन्हें सन्तुष्ट करने की बात मंत्रों में कही जाती है । तब सन्तुष्ट करने का क्रियात्मक अर्थ वह होता है कि हम सामग्री का या वास्तु का दुरुपयोग नहीं करेंगे, उसका उचित सम्मान करेंगे, उसका रक्षण करेंगे आदि । यह तो सदा के व्यवहार की बातें हैं। भारत की पवित्रता की संकल्पना भी क्रियात्मक ही होती है ।
    
पवित्रता के साथ साथ भवन में शान्ति होनी चाहिए । उसकी ध्वनिव्यवस्था ठीक होना यह पहली बात है। कभी कभी कक्ष की रचना ऐसी बनती है कि पचीस लोगों में कही हुई बात भी सुनाई नहीं देती, तो अच्छी रचना में सौ लोगों को सनने के लिए भी ध्वनिवर्धक यन्त्र की आवश्यकता नहीं पडती। ऐसी उत्तम ध्वनिव्यवस्था होना अपेक्षित है। यह शान्ति का प्रथम चरण है । साथ ही आसपास के कोलाहल के प्रभाव से मुक्त रह सकें ऐसी रचना होनी चाहिए । कोलाहल के कारण अध्ययन के समय एकाग्रता नहीं हो सकती । कभी कभी पूरे भवन की रचना कुछ ऐसी बनती है कि लोग एकदूसरे से क्या बात कर रहे हैं यह समझ में नहीं आता या तो धीमी आवाज भी बहुत बड़ी लगती है । यह भवन की रचना का ही दोष होता है ।
 
पवित्रता के साथ साथ भवन में शान्ति होनी चाहिए । उसकी ध्वनिव्यवस्था ठीक होना यह पहली बात है। कभी कभी कक्ष की रचना ऐसी बनती है कि पचीस लोगों में कही हुई बात भी सुनाई नहीं देती, तो अच्छी रचना में सौ लोगों को सनने के लिए भी ध्वनिवर्धक यन्त्र की आवश्यकता नहीं पडती। ऐसी उत्तम ध्वनिव्यवस्था होना अपेक्षित है। यह शान्ति का प्रथम चरण है । साथ ही आसपास के कोलाहल के प्रभाव से मुक्त रह सकें ऐसी रचना होनी चाहिए । कोलाहल के कारण अध्ययन के समय एकाग्रता नहीं हो सकती । कभी कभी पूरे भवन की रचना कुछ ऐसी बनती है कि लोग एकदूसरे से क्या बात कर रहे हैं यह समझ में नहीं आता या तो धीमी आवाज भी बहुत बड़ी लगती है । यह भवन की रचना का ही दोष होता है ।

Navigation menu