श्री शिवकर बापूजी तलपदे मुम्बई के सुप्रसिद्ध जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्समें चित्रकलाके शिक्षक थे । प्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्री श्रीपाद दामोदर सातवलेकर भी उस समय जे. जे. स्कूल में अध्ययनरत थे । दोनों ही वेदों के अध्येता तथा ऋषि दयानंद के भक्त थे | वायुयान निर्माणमें श्री तलपदेको मुम्बई के लोक निर्माण विभागमें कार्यरत वास्तुशास्त्रविदू श्री पिटकरने भी महत्त्वपूर्ण सहयोग fear | मरुतूसखा ने परीक्षण उडान में तो सफलता प्राप्त कर ली किन्तु अपने देश में परकीयों का शासन होने से श्री तलपदेजीको आवश्यक आर्थिक सहयोग तथा समर्थन नहीं मिला । अंग्रेज किसी धार्मिकको विमान विद्याके आविष्कारक का सम्मान लेने देना नहीं चाहते थे | श्री तलपदे सातवलेकरजी के साथ मिलकर शामरावकृष्ण आणि मण्डली तथा वेद प्रचारिणी सभा मुम्बई के माध्यम से वेद प्रचार में संलयर थे । उन्होंने मराठी पत्र “आर्यधर्म' का सम्पादन भी किया था । “आर्यधर्म' के जनवरी १९०९ के अंकमें श्री तलपदेने अपने विमान विद्या सम्बन्धी ग्रन्थ “प्राचीन विमान कला” का विज्ञापन दिया था, जिसमें उन्होंने लिखा - | श्री शिवकर बापूजी तलपदे मुम्बई के सुप्रसिद्ध जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्समें चित्रकलाके शिक्षक थे । प्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्री श्रीपाद दामोदर सातवलेकर भी उस समय जे. जे. स्कूल में अध्ययनरत थे । दोनों ही वेदों के अध्येता तथा ऋषि दयानंद के भक्त थे | वायुयान निर्माणमें श्री तलपदेको मुम्बई के लोक निर्माण विभागमें कार्यरत वास्तुशास्त्रविदू श्री पिटकरने भी महत्त्वपूर्ण सहयोग fear | मरुतूसखा ने परीक्षण उडान में तो सफलता प्राप्त कर ली किन्तु अपने देश में परकीयों का शासन होने से श्री तलपदेजीको आवश्यक आर्थिक सहयोग तथा समर्थन नहीं मिला । अंग्रेज किसी धार्मिकको विमान विद्याके आविष्कारक का सम्मान लेने देना नहीं चाहते थे | श्री तलपदे सातवलेकरजी के साथ मिलकर शामरावकृष्ण आणि मण्डली तथा वेद प्रचारिणी सभा मुम्बई के माध्यम से वेद प्रचार में संलयर थे । उन्होंने मराठी पत्र “आर्यधर्म' का सम्पादन भी किया था । “आर्यधर्म' के जनवरी १९०९ के अंकमें श्री तलपदेने अपने विमान विद्या सम्बन्धी ग्रन्थ “प्राचीन विमान कला” का विज्ञापन दिया था, जिसमें उन्होंने लिखा - |